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Magazine - Year 1985 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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अजब तेरी कुदरत अजब तेरा खेल

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रस्टीड−जर्मनी−के सेन्ट भूलारिच चर्च में एक ऊँची मीनार बनी है। इस पर एक 1599 और 1783 के बीच भयंकर आकाशी बिजली चार बार गिरी। वह चार बार धराशायी हुई और नये सिरे से बनाई गयी। चारों बार बिजली गिरने की तारीख 18 अप्रैल थी।

स्पेन के वार्सिलोना नगर में एक ‘सिएट सेंटिम्ब्रे’ नामक व्यक्ति हुआ है। जिसका अर्थ स्पेनी भाषा में होता है−सात सितम्बर। यह नाम उसे माता−पिता से नहीं मिला। लोगों के द्वारा थोपा गया। वह 7 सितम्बर को 1749 को पैदा हुआ और 7 सितम्बर 1801 को मर गया। उसके बेटे का भी यही नाम था। वह 7 सितम्बर 1774 को पैदा हुआ और 7 सितम्बर 1826 को मरा। इतना ही नहीं उसके पोते का भी यही नाम था और जन्म−मरण का दिन भी पूर्वजों की भाँति है। पोता 7 सितम्बर 1814 को पैदा हुआ और 7 सितम्बर 1868 को दिवंगत हुआ। तीन पीढ़ियों तक एक ही नाम और एक ही जन्म−मरण का दिन अभी तक उस देश में चर्चा का विषय है।

जापान पर भूकम्पों की विपत्तियाँ अनेक बार आई हैं पर छः भयानक संयोग ऐसे हैं जो एक ही तारीख को घटित हुये। और विनाश की दृष्टि से असाधारण रूप से भयानक माने गये।

(1) 1 सितम्बर 837 (2) 1 सितम्बर 859 (3) 1 सितम्बर 867 (4) 1 सितम्बर 1185 (5) 1 सितम्बर 1649 (6) 1 सितम्बर 1923। इनमें से छठे ने सबसे अधिक विनाश किया। उससे टोकियो और योकोहामा शहर बुरी तरह बर्बाद हुये और प्रायः 1 लाख 43 हजार व्यक्ति दबकर मर गये। घायलों की संख्या तो इससे भी कहीं अधिक थी।

विश्व−विख्यात चित्रकार आल्माटाडमा के जीवन में “17” की संख्या महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। यह बात वे स्वयं स्वीकार करते हुए कहा करते थे− ‘‘जब मैं 17 वर्ष का था तब 17 तारीख को अपनी प्रिय पत्नी से मिला। मेरे पहले मकान का नम्बर 17 था जब दूसरा मकान बनाया था वह भी 17 अगस्त से प्रारम्भ हुआ और उस नूतन ग्रह में मेरा प्रवेश भी 17 नवम्बर को ही हुआ। चित्रकारी के लिए सेन्ट जोन्स वुड ने जो कमरा लिया वह भी 17 नवम्बर का ही निकला।

एस. बी. फ्रेंच के जीवन की अधिकाँश घटनायें “7” की संख्या के साथ ही घटित हुईं। उनका जन्म 7वीं महीने की 7वीं तारीख को हुआ था। 7 वर्ष तक वे कभी बीमार नहीं हुये। 7वीं कक्षा तक वे कभी फेल नहीं हुये। उनका विवाह भी 7वीं लड़की के साथ हुआ और संयोग से उस लड़की के लिए भी फ्रेच 7वें ही लड़के थे।

ऐलन वान ने अपनी पुस्तक ‘इनक्रेडिबल कोइन्सीडेन्स’ में अंक संयोग पर आधारित घटना का भी उल्लेख किया है। आयरलैण्ड स्थित डबलिन के निवासी एन्टनी क्लैंसी के जीवन में ‘सात’ संख्या का विशेष महत्व रहा। उसके जीवन के हर महत्वपूर्ण मोड़ पर सात का संयोग अवश्य रहा। एन्टनी क्लैंसी के शब्दों में “सप्ताह के सातवें दिन, महीने की सातवीं तारीख को, वर्ष के सातवें दिन, इस सदी के सातवें वर्ष में मेरा जन्म हुआ था। मैं अपने माता−पिता का सातवाँ बेटा हूँ, यहाँ तक मेरे पिता भी अपने अभिभावक के सातवें पुत्र थे। अपनी सत्ताइसवीं वर्षगाँठ पर सातवीं घुड़−दौड़ में मैंने सात नम्बर का घोड़ा चुना और उसका नाम था−‘सातवाँ बहिश्त’। मैंने उस घोड़े पर सात शिलिंग लगाये। रेस में भी उसका सातवाँ नम्बर था।”

उत्तरी वर्टन यार्क्रस से डा. रुड के जीवन में 13 की संख्या दुर्भाग्य सूचक के रूप में रही। 13 वर्ष की अल्प आयु में वे बीमार पड़े। 13 दिन तक घोर कष्ट सहते हुये 13 तारीख को हृदय की बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गयी। उनके परिवार में 13 सदस्य थे। मृत्यु के समय कुछ 13 शिलिंग ही उनके फण्ड में बचे थे। अन्तिम संस्कार के समय भी 13 सदस्य ही उपस्थित हुये। रुड का नाम फूवाह था जो कि बाइबिल के 13 वें छन्द में आता है। उनकी मृत्यु के समय मात्र 13 तार ही शोक संवेदना के रूप में आये।

इसके विपरीत ‘डेनवरा कोलराडो’ के धनाढ्य उद्योगपति शेरमैन के लिए 13 की संख्या सौभाग्य सूचक थी। शेरमैन का जन्म 13 तारीख को हुआ। उनकी सगाई 13 तारीख को हुयी और विवाह भी 13 जून 1913 को हुआ। पत्नी का जन्म दिन भी 13 तारीख को ही था। उनके विवाहोत्सव में कुल 13 सदस्य ही उपस्थित थे। 13 की संख्या उनके जीवन में सदैव लाभदायक रही।

फ्राँस के सिंहासन के साथ 14 की संख्या का महत्व संख्याओं के साथ जुड़ी विचित्रताओं को प्रकट करती हैं। फ्राँस के प्रथम सम्राट हेनरी 14 मई 1029 को सिंहासन पर बैठे जबकि वहाँ के आखिरी सम्राट का नाम भी हेनरी था 14 मई 1610 को उनकी हत्या कर दी गयी थी। जिस तारीख को एक को सिंहासन मिला उसी को दूसरी 14 मई को मृत्यु का उपहार। वहाँ के अन्य सभी राजाओं के लिए 14 संख्या का महत्व सदैव बना रहा। हेनरी द्वितीय ने 14 मई को ही फ्राँस का राज्य विस्तार किया। हेनरी तृतीय को 14 मई के दिन युद्ध के मोर्चे पर जाना पड़ा। हेनरी चतुर्थ ने आपवरी का युद्ध 14 मार्च 1590 को जीता। 14 दिसम्बर 1599 को सवाय के ड्यूक ने अपने आपको हेनरी को आत्म−समर्पण किया। 14 तारीख को ही लार्ड डफिन ने लुई 13 वें के रूप में वैपतिस्मा ग्रहण किया। हेनरी चतुर्थ के पुत्र लुई 13 वें की मृत्यु 14 मई 1643 को हुई। 14 वें 1643 में (1+6+4+3=14) सिंहासन पर बैठे और 77 वर्ष (7+7=14) की आयु में उनकी मृत्यु हुई। लुई 14 वें ने कुल 14 वर्ष राज्य किया। इस प्रकार फ्राँस के सिंहासन पर 14 का महत्व सदैव बना रहा।

जर्मनी के शासक चार्ल्स चौथे ने अपने जीवन में चार की संख्या को अत्यधिक महत्व दिया। वह चार रंग की पोशाक को दिन में चार बार पहनते थे। चार प्रकार का भोजन, चार मेजों पर दिन में चार बार करते थे। चार प्रकार की शराब पीते थे, बग्घी में चार पहिए और चार ही घोड़े जुतते थे। उनके चार महल थे उनमें चार−चार ही दरवाजे और प्रत्येक महल में चार−चार कमरे, प्रत्येक में चार−चार ही खिड़कियाँ। मृत्यु के दिन उनके समीप चार ही डाक्टर उपस्थित थे। उन्होंने चार बार ‘गुडबाय’ कहा और ठीक चार बजकर 4 मिनट पर इस संसार से विदा हो गये।

संयोगवश संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास में 160 वर्षों से एक विचित्र परम्परा ही दिखाई पड़ती है। प्रति 20 वर्ष पर राष्ट्रपति की मृत्यु अपने ही कार्यकाल में हो जाया करती थी। 1840 में 68 वर्षीय विलियम हैरीसन राष्ट्रपति बने। मार्च 1841 में निमोनिया से मृत्यु हो गयी। 1860 में लिंकन राष्ट्रपति बने और इनकी हत्या 1865 में हो गयी। 1880 में प्रेसीडेन्ट गारफील्ड राष्ट्रपति बने और अगले वर्ष गोली लगने के कारण मर गये। 1920 में प्रेसीडेन्ट हार्डिंग ने कार्यभार सम्भाला। आप स्वाभाविक मृत्यु से 1923 में मर गये। 1940 में फ्रेंकलिन रुजवेल्ट राष्ट्रपति बने और 1945 आते−आते मर गये। 1960 में प्रेसीडेन्ट कैनेडी ने अपनी 1963 की मृत्यु के पूर्व तक राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया। 1860, 1900, 1940 में चुने सभी राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में मरे तो थे ही सब दूसरी बार राष्ट्रपति कार्यकाल में थे। अपवाद रूप में वर्तमान राष्ट्रपति रीगन ही हैं। अब तक इस श्रृंखला में वर्णित राष्ट्रपति में रीगन भी सबसे वयोवृद्ध हैं। वे 1984 में दूसरी बार के लिए पुनः चुने गए।

अमरीका के जिस विशप ने अपने तुलनात्मक अध्ययन से यह सिद्ध कर दिया है कि एफ. कैनेडी ही अब्राहम लिंकन थे। चालीस वर्ष की आयु में लिंकन को राष्ट्रपति बनने की इच्छा हुयी थी। कैनेडी को भी। दोनों विश्व शान्ति के प्रयासों में संलग्न रहे और नीग्रो स्वतन्त्रता को भी उन्होंने समान रूप से चाहा। लिंकन के चार बच्चे थे दो मर गये दो उनके साथ रहते थे। कैनेडी के भी चार पुत्र हुये दो मर गये दो जीवित रहे। लिंकन की पहली पत्नी फैशनेबुल थी, कविता व पेंटिंग में उसकी रुचि थी। ठीक इसी स्वभाव की पत्नी कैनेडी की थी। दोनों की आस्था धार्मिकता की ओर थी। भोजन में स्पार्शा दोनों को प्रिय था। लिंकन 1861 में राष्ट्रपति बने तो कैनेडी 1961 में। लिंकन के प्राइवेट सैक्रेटरी का नाम था कैनेडी और कैनेडी का लिंकन। दोनों की मृत्यु शुक्रवार के दिन हुई। दोनों ही गोली के शिकार हुये और जान्सन नामक उपराष्ट्रपतियों ने ही दोनों का पद सम्भाला।

किन्हीं व्यक्तियों के जीवन में कुछ अंकों का विशेष महत्व रहता है। प्रिंस विस्मार्क के जीवन में 3 का अंक कुछ विलक्षण संयोग लाता रहा। उनके तीन नाम थे− लाग्नवर्ग, शोपासेवी और विस्मार्क। उन्हें तीन उपाधियाँ मिलीं- प्रिंस, ड्यूक तथा काउण्ट। तीन कालेजों से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। तीन ही उनके पुत्र थे।

साइप्रस के शासनाध्यक्ष मकरिआस के जीवन में 13 का अंक कुछ ऐसे ही संयोग लाता रहा। 10 अगस्त 1913 को उनका जन्म हुआ। 13 वर्ष की आयु में चर्च में भर्ती हुये। 13 नवम्बर 1946 में उन्होंने प्रीस्ट दीक्षा ली। 13 जून 1948 में वे विशप बने तथा राजगद्दी पर बैठे। 13 मार्च 1951 में यूनान के राजा ने उनका अभिनन्दन किया। 13 दिसम्बर 1959 को वे राष्ट्रपति चुने गये।

भारत के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री के जीवन में मंगलवार का विशेष महत्व रहा। बचपन में एक बार वे गंगा में डूबते−डूबते बचे वह दिन भी मंगलवार था। यू. पी. पार्लियामेंटरी बोर्ड के मंत्री, 1947 में पुलिस एवं यातायात मन्त्री, 1951 में काँग्रेस के महासचिव, 1952 में रेलमन्त्री, 1957 में परिवहन मन्त्री आदि पद उन्होंने मंगलवार के दिन ही प्राप्त किये। यहाँ तक कि वे प्रधानमन्त्री भी मंगलवार को ही बने। मंगलवार को ही उन्हें स्व. राधाकृष्णन ने भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया। ताशकन्द वार्ता भी उन्होंने मंगलवार को प्रारम्भ की और अन्त में उन्होंने अपना पार्थिव शरीर भी मंगलवार के दिन छोड़ा।

आयरलैण्ड के क्रुक हैवेन शहर में एक ही मकान में रहने वाले दो दम्पत्तियों के एक ही दिन कुछ मिनटों के अन्तर से दो पुत्र पैदा हुए। नाम रखा गया−एलेनर गेडी तथा पैट्रिक। दोनों बच्चे अलग−अलग खेलते किन्तु एक दिन दोनों रोते−रोते घर पहुँचे तो उनके माता−पिता ने देखा कि दोनों के पैर में एक ही स्थान पर चोट लगी थी। दोनों बच्चे पढ़ रहे थे तब कई बार ऐसा हुआ कि दोनों को परीक्षा में समान अंक मिले। दोनों का विवाह एक साथ ही तय हुआ। शादी के बाद पहला बच्चा भी दोनों के एक ही दिन हुआ। पैट्रिक और ऐलेनर 96 वर्ष की आयु में एक ही दिन बीमार पड़े और साथ ही मृत्यु भी दोनों की एक ही समय में हुयी। इन घटनाओं से आयरलैण्ड के शिक्षित व्यक्ति भी बात को मानने लगे कि कोई एक सार्वभौमिक सत्ता व नियम सृष्टि में अवश्य काम कर रहा है।

भारत की भुवाल रियासत के उत्तराधिकारी के मुकदमे का फैसला संसार के इतिहास में अपने ढंग का अनोखा है। रियासत का राजा रमेन्द्र राय 1909 में मरा। उत्तराधिकारी स्थानापन्न हो गये। इसके 12 वर्ष बाद राजा प्रकट हुआ और उसने अदालत में अपनी सम्पत्ति वापस लेने का दावा किया उसका कहना था कि घर के लोग चिता में आग लगाकर घर चले गये और उसी समय वर्षा से आग बुझ गयी और वे मृतक से जीवित हो गये। स्मृति न रहने के कारण वे बारह वर्ष जहाँ तहाँ भटकते रहे और अब वे अपनी बंगला मातृभाषा तक भूल चुके हैं। इस दावे का उनके पूरे परिवार ने खण्डन किया। विधवा ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि यह कोई जाल−साज है उसका पति नहीं। इतने पर भी ब्रिटेन की प्रीवी कौंसिल ने सन् 1935 में राजा के पक्ष में फैसला दिया। राजा की भारी जायदाद थी उसमें तैंतीस लाख रुपया वार्षिक की आमदनी थी। यह सम्पत्ति फैसले के अनुसार उस मृतात्मा को मिल गयी जिसने अपने आपको सिद्ध करने और न्याय कर्ताओं को प्रभावित करने में विभिन्न सबूतों के आधार पर सफलता पाई। कुदरत का खेल विचित्र है इसकी पहेलियाँ वस्तुतः अबूझ हैं।

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