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Magazine - Year 1986 - Version 2

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First 40 42 Last
महाराज प्रद्युम्न का स्वर्गवास हो गया पूरे परिवार में कुहराम मच गया। महर्षि कौत्स पुनर्जन्म विज्ञान के ज्ञाता थे उन्हें बुलाया गया और कहा राजा जिस रूप में भी हों, हम उनका दर्शन करना चाहते हैं।

राजा काष्ठ कीट हो गये थे। उनका छोटा सा परिवार भी बन गया। कीड़े को पकड़ने का प्रयत्न किया गया तो उसने कहा- मुझे छेड़ो मत, मैं अब इसी योनि में प्रसन्न हूँ। नये मोह ने मेरा पुराना मोह समाप्त कर दिया है साँसारिक संबंध शरीर रहने तक के ही हैं।

विचारों को उत्तेजित करना और फिर उनको रोकने का प्रयत्न करना, यह रीति ऐसी हो सकती है जिसमें झंझट खड़ा हो, अतः उत्तेजक अश्लील वातावरण से दूर रहा जाय। वासना की अतिवादी तुष्टि के भयानक दुष्परिणामों का अनुमान लगा सकें तो प्रतीत होगा कि रसास्वादन राई रत्ती जितना था पर उसका दुष्परिणाम इतना सामने आया जिसे प्रतिभा का सर्वनाश ही कहा जा सकता है। यौनाचार से तो शरीर का स्वत्व नष्ट होता ही है, साथ ही व्यक्तित्व के गहन अन्तराल को हर दृष्टि से समर्थ बनाने वाले ओजस्, तेजस् और वर्चस् की भी भयंकर कमी पड़ती है, जिनके कारण मनुष्य के खोखला बनकर रहना पड़ता है। उसकी वह विशिष्टता नष्ट हो जाती है, जो ब्रह्मचर्य पालन करने के उपरान्त काय कलेवर और जीवन ऊर्जा के रूप में बलिष्ठता और वरिष्ठता बढ़ाती रहती है।

नारी को रमणी, कामिनी, रूपसी, वेश्या की दृष्टि से देखने उसकी कल्पना करने से ही चिन्तन चंचल होता है और अश्लीलता का खुमार चढ़ता है। उनके अश्लील अवयवों की छवि मानस पटल पर जमाने और उनके साथ खिलवाड़ करने की कल्पना ही उत्तेजना उत्पन्न करती है। यह स्वनिर्मित उन्माद है जिससे मद्यपान की तरह बचा भी जा सकता है।

नारी को माता, भगिनी, पुत्री की दृष्टि से देखने पर कुविचार मन में नहीं उठते। धर्मपत्नी के संबंध में भी साथी, सहचर, मित्र, भाई जैसी मान्यताएँ रखी जा सकती हैं। पुरुष-पुरुष के बीच और नारी-नारी के बीच अश्लील विचार नहीं उठते हैं, वरन् उनकी मित्रता घनिष्ठता आत्मीय स्तर की हो जाती है। मनुष्य जाति के दो वर्ग हैं नर और नारी। पर उन दोनों के बीच ऐसी कोई विशेषता नहीं है, जो अश्लील स्तर की उत्तेजना उत्पन्न करे। रेलगाड़ी, मुसाफिरखाने, मेल ठेले, पर्व स्नान आदि के अवसर पर असंख्यों नर नारियाँ आते जाते, मिलते बिछुड़ते रहते हैं। किन्तु उस माहौल में किसी के मन में अश्लील विचार नहीं आते। इसी दृष्टि से संसार को देखा जाय और इसमें नर नारी वर्ग के दोनों प्राणियों की भीड़ भरी हुई देखी जाय तो किसी विशेष आकृति के सौंदर्य पर मन लुभाने जैसी कोई विचारणा उठेगी ही नहीं।

मानव शरीर की नर नारी दो आकृतियाँ हैं। दोनों में पूर्णतया समानता है। अन्तर इतना ही है कि प्रकृति की विनोद क्रीड़ा, वंश परंपरा चलाने के लिए एक पक्ष जो कुछ अधिक दायित्व भार उठाना पड़ता है, जबकि दूसरे को प्रजनन के उपरान्त बालक की दीर्घकालीन सुव्यवस्था बनाने के लिए अन्यान्य भारी भरकम दायित्व उठाने पड़ते हैं। उसमें प्रकृति का वंश-वृद्धि प्रयोजन तो पूरा होता है, पर नर और नारी उस प्रयोजन की पूर्ति के लिए यौनाचार अपनाते और उसकी परिणति को कोल्हू के बैल की तरह वहन करते हैं। यौनाचार का रत्ती भर कौतुक दोनों ही पक्षों को ऐसे निविड़ जंजाल में फँसाता है कि सारा जीवन उसी जंजाल की उलझन सुलझाने में व्यतीत हो जाता है।

कामुकता के आरंभ, मध्य और अन्त की बदलती हुई परिस्थितियों को देखा जाय तो प्रतीत होगा की यह किसी माया नगरी में बुना गया जाल जंजाल मात्र है। पत्नी की सहायता से जीवन क्रम में सुविधा होने की बात भी रंगीली कल्पना मात्र है। वास्तविकता यह है कि दोनों पक्षों को एक दूसरे के लिए इतना करना खपना पड़ता है जिसकी तुलना में एकाकी निर्वाह कहीं अधिक सरल और सस्ता पड़ता है।

कामुकता एक मद्यपान जैसी खुमारी है जिसमें कल्पित मजेदारी दीख पड़ती है। इसी को पाश्चात्य वैज्ञानिक आवश्यक बताते हैं और उस रसास्वादन की महिमा बखानते हुए कहते हैं कि इससे बचा गया, इसे रोका गया तो स्वास्थ्य बिगड़ेगा और मानसिक उद्वेग उठेंगे। धन्य हैं प्रतिपादनकर्ता और धन्य है, उनकी उलटा सोचने की दृष्टि। जो उनकी बातों पर भरोसा करते और समर्थन का सिर हिलाते हैं, उन्हें भी किसी सनक लोक के वासी ही कहा जा सकता है।

First 40 42 Last


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Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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