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Magazine - Year 1986 - Version 2

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अग्निहोत्र का अंतरिक्ष पर प्रभाव

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हवा में जीवन पोषक तत्त्वों का बाहुल्य है। यों उसमें कई प्रकार की गैसें मिली रहती हैं, परन्तु जिसे प्राणवायु कहते हैं, वह ऑक्सीजन है। इसी के आधार पर शरीर में तथा संसार में तापमान सहज एवं आवश्यक मात्रा में बना रहता है। हमारे क्रिया-कलाप ऐसे होने चाहिए, जिससे वायु-संतुलन सही बना रहे।

इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि वायुमंडल का महत्व उतना नहीं समझा जाता, जितना कि उसे समझना चाहिए। आहार और जल के संबंध में यथासंभव अपनी-अपनी मति के अनुसार शुद्ध रखने का प्रयत्न करते हैं। वे अलग-अलग रखे जाने के कारण अपेक्षाकृत अच्छी तरह संभाल कर रखे भी जा सकते हैं, पर वायु के संबंध में ऐसी बात नहीं। वह सार्वजनिक है। सर्वत्र संव्याप्त है। चलती-दौड़ती रहती है। कुछ ही क्षण में कहीं-से-कहीं जा पहुँचती है। इसलिए अपने घर-कमरे की हवा रोशनी आने-जाने का प्रबन्ध रखते हुए भी यदि वायुमंडल में प्रदूषण की मात्रा बढ़ गई है, तो फिर उस पर नियंत्रण रखना कठिन है। पानी में यदि जहर घोल दिया जाय, तो उसमें रहने वाले सभी जल-जन्तु मरेंगे। इसी प्रकार यदि वायु प्रदूषण बढ़े, तो उसका परिणाम सावधान असावधान सभी को भुगतना पड़ेगा।

इस दिनों मनुष्य का बुद्धि-कौशल ऐसे कारखाने चलाने, ऐसे रसायन बनाने में लगा है, जिनके कारण हवा में जहर घुलता है। यों साधारण क्रियाकलापों से भी यह गंदगी बढ़ती है, जो वायु की शुद्धता पर आघात लगाती है। चूल्हे में जलने वाली आग- शरीर से निःसृत होने वाले मलमूत्र, स्वेद, श्वास-प्रश्वास द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ता है, पर उसका संतुलन वृक्ष वनस्पतियों की बहुलता से बन जाता है। वृक्ष प्रायः कार्बन खाते हैं और ऑक्सीजन उगलते हैं। इसके ठीक विपरीत मनुष्य ऑक्सीजन खाता है और कार्बन उगलता है। इस प्रकार मनुष्य और वृक्ष वनस्पति मिलकर ऐसा ताल मेल बिठा लेते हैं कि अनिवार्य रूप से ऑक्सीजन में होने वाली कमी की पूर्ति होती रहे। चिर अतीत से संतुलन का यही क्रम चलता आ रहा है।

यह समय विचित्र युग है। मनुष्य की बुद्धि बढ़ी है, साथ ही उपार्जन और विलास की ललक भी। वैज्ञानिक प्रगति को इसी कार्य में प्रयुक्त किया गया। कल कारखाने, बढ़ती हुई जनसंख्या, धूम्रपान एवं वृक्षों के अंधाधुंध कटाव ने वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा घटा दी है और प्रदूषण का अनुपात बढ़ा दिया है। अणु विस्फोटों से उत्पन्न विकिरण भी इस विषाक्तता को बढ़ाता है। इस प्रकार हम क्रमशः ऐसे दल-दल में फँसते जा रहे हैं, जिसमें शुद्ध वायु का मिलना कठिन हो रहा है। यह उपक्रम जिस तेजी के साथ निर्वाध रूप से आगे बढ़ रहा है, उसे देखते हुये भविष्य अंधकारमय दीखता है।

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