• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सर्वम् अश्वमेधः
    • अश्वमेध श्रृंखला-महाकाल की प्रतिज्ञा का उत्तरार्द्ध
    • देव संस्कृति दिग्विजय अभियान बनाम देवासुर संग्राम
    • यज्ञ-महत्व
    • देव संस्कृति का मेरुदण्ड है-यज्ञ
    • यज्ञों से कामनाओं की सिद्धि
    • यज्ञ मात्र श्रद्धा नहीं, अद्भुत विज्ञान भी
    • महायज्ञों से महाप्राण कुँडलिनी का अलोड़न
    • यज्ञों का राजा-अश्वमेध
    • यज्ञ, महायज्ञ,अश्वमेध यज्ञ
    • दो सहस्र वर्षों बाद एक अभूतपूर्व प्रयास
    • अश्वमेध के संदर्भ में शतपथ ब्राह्मण का मत
    • Quotation
    • ‘मेध’ सम्बन्धी भ्रान्तियों को निर्मूल बताते हैं−ये प्रतिपादन
    • वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति अर्थ निकालें, अनर्थ नहीं
    • राष्ट्र एवं दिग्विजय, राजनीतिक नहीं साँस्कृतिक शब्द हैं
    • मेधा को जो जगाये, वह है−अश्वमेध
    • अश्वमेध सविता एवं गायत्री साधना
    • अश्वमेध यज्ञ सौर शक्ति के संदोहन की प्रक्रिया
    • प्रयाज याज एवं अनुयाज
    • साधना पुरुषार्थ एवं सूक्ष्मजगत का अनुकूलन
    • चार चरणों में सम्पन्न होगा अभिनव अश्वमेध
    • यज्ञ बलि−देव दक्षिणा
    • सूक्ष्म जगत का परिशोधन−पराप्रकृति का अवगाहन
    • यज्ञ प्रक्रिया, दिव्य अनुशासन एवं यज्ञ−संसद
    • यज्ञों के विविध विधान-कुण्ड विज्ञान
    • देव संस्कृति दिग्विजय का विदेशी मोर्चा
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सर्वम् अश्वमेधः
    • अश्वमेध श्रृंखला-महाकाल की प्रतिज्ञा का उत्तरार्द्ध
    • देव संस्कृति दिग्विजय अभियान बनाम देवासुर संग्राम
    • यज्ञ-महत्व
    • देव संस्कृति का मेरुदण्ड है-यज्ञ
    • यज्ञों से कामनाओं की सिद्धि
    • यज्ञ मात्र श्रद्धा नहीं, अद्भुत विज्ञान भी
    • महायज्ञों से महाप्राण कुँडलिनी का अलोड़न
    • यज्ञों का राजा-अश्वमेध
    • यज्ञ, महायज्ञ,अश्वमेध यज्ञ
    • दो सहस्र वर्षों बाद एक अभूतपूर्व प्रयास
    • अश्वमेध के संदर्भ में शतपथ ब्राह्मण का मत
    • Quotation
    • ‘मेध’ सम्बन्धी भ्रान्तियों को निर्मूल बताते हैं−ये प्रतिपादन
    • वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति अर्थ निकालें, अनर्थ नहीं
    • राष्ट्र एवं दिग्विजय, राजनीतिक नहीं साँस्कृतिक शब्द हैं
    • मेधा को जो जगाये, वह है−अश्वमेध
    • अश्वमेध सविता एवं गायत्री साधना
    • अश्वमेध यज्ञ सौर शक्ति के संदोहन की प्रक्रिया
    • प्रयाज याज एवं अनुयाज
    • साधना पुरुषार्थ एवं सूक्ष्मजगत का अनुकूलन
    • चार चरणों में सम्पन्न होगा अभिनव अश्वमेध
    • यज्ञ बलि−देव दक्षिणा
    • सूक्ष्म जगत का परिशोधन−पराप्रकृति का अवगाहन
    • यज्ञ प्रक्रिया, दिव्य अनुशासन एवं यज्ञ−संसद
    • यज्ञों के विविध विधान-कुण्ड विज्ञान
    • देव संस्कृति दिग्विजय का विदेशी मोर्चा
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1992 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


राष्ट्र एवं दिग्विजय, राजनीतिक नहीं साँस्कृतिक शब्द हैं

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 15 17 Last
अश्वमेध में राष्ट्र का संगठन तथा दिग्विजय यात्रा, यह दो कार्य अनिवार्य माने गये हैं। लम्बे समय तक हम यज्ञीय−साँस्कृतिक परिभाषाओं से अलग−थलग पड़ गये थे, इसलिए मस्तिष्क में उसके अनुरूप प्रवाह कठिनाई से उठते हैं। राजनीतिक संदर्भ में हम उक्त दोनों शब्दों को लेने लगते हैं तो अनेक शंका−.............. मन में उठने लगती हैं। अश्वमेध प्रयोजन के लिए उन्हें व उनके वास्तविक साँस्कृतिक संदर्भों में समझना एवं प्रयुक्त करना आवश्यक है।

क्या है राष्ट्र?

भारत में ‘राष्ट्र’ सदैव एक साँस्कृतिक शब्द रहा है, राजनीतिक नहीं। पश्चिमी देशों में राष्ट्र को राज्य ‘नेशन या स्टेट’ के रूपों में ही लिया गया है। वहाँ राष्ट्र एवं राज्य समानार्थी माने जाते हैं। उसका अस्तित्व राज्य सत्ता पर निर्भर करता है। अब उसे तकनीकी−आर्थिक (टैक्नो इकाँनाँमिकल) इकाई भी माना जाने लगा है। यही कारण है वहाँ सभी ओर स्वार्थपूर्ण स्पर्धा, संघर्ष वातावरण ही पनपता रहता है।

भारत में राष्ट्र सदैव से एक साँस्कृतिक इकाई है। राष्ट्र उपास्य है, इष्ट है। सैकड़ों राज्यों विभिन्न उपासना पद्धतियों, विभिन्न भाषाओं एवं विभिन्न वेषभूषाओं के होते हुए भी भारत ‘एक राष्ट्र’ रहा है। हमारे ऋषियों ने संसार की प्रकृति प्रदत्त विविधताओं को बहुत सहज भाव से स्वीकार किया। किन्तु मनुष्य के अंतःकरण में स्थित परिष्कृत चेतना को लक्ष्य करके साँस्कृतिक एकता के भाव भरे सूत्रों को विकसित एवं प्रतिष्ठित करने में सफलता पायी।

‘मानवीय चेतना विज्ञान के मर्मज्ञ ऋषियों ने अनुभव किया कि केवल भौतिक आधारों पर बनाये गये सम्बन्ध टिकाऊ−चिरंजीवी नहीं हो सकते। भौतिक आधारों को प्रधानता देकर चलने से स्वार्थ, प्रतिस्पर्धा, संघर्ष, शोषण आदि का समावेश देर−सबेर हो ही जाता है। इसीलिए उन्होंने राष्ट्रीय अवधारणा को कालजयी बनाने के लिए साँस्कृतिक आधारों को ही प्राथमिकता दी। साँस्कृतिक सूत्रों को उन्होंने जन−जन के भावनात्मक स्तर तक गहराई से बिठाने में सफलता पायी। यही कारण है कि हम गर्व से कह पाते हैं। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी “भले ही सदियों तक ‘दौरे जमाँ’ (साँसारिक राजनीतिक चक्र) हमारा दुश्मन रहा है।

‘भारतभूमि’ निर्जीव भूखंड नहीं है, एक चेतन सत्ता है, स्वर्गादपि गरीयसी है। वह तप शक्ति एवं सद्भावनाओं को अपने अंदर धारण करने में, उन्हें बीजों की तरह फलित विकसित करने में समर्थ है। सन्तों के ऋषियों के तप को धारण करने के कारण इस भूमि में जगह−जगह तीर्थ बन गये हैं। उनके प्रति जन, श्रद्धा क्षेत्र एवं भाषा भेद से ऊपर उठकर, सतत् प्रवाहमान है। साँस्कृतिक अवधारणा हर भारतीय की रगों में रक्त की तरह सतत् प्रवाहित है।

अयोध्या में जन्मे राम कन्याकुमारी में रामेश्वरम् की स्थापना करते हैं। बृज के श्रीकृष्ण द्वारिका में अपना आवास बनाते हैं। बंगाल के चैतन्य बृज में आकर अपने इष्ट के लीला क्षेत्र को खोजते हैं। केरल में जन्मे शंकराचार्य चारों दिशाओं में चारधामों की स्थापना करके कश्मीर के सरस्वती मन्दिर के पट खोले बिना अपनी यात्रा पूर्ण नहीं मानते। वे अपना शरीर दक्षिण में नहीं उत्तराखण्ड में छोड़ना पसंद करते हैं। गंगोत्री का जल पिये बिना रामेश्वरम् की प्यास नहीं बुझती। उत्तराखण्ड के देवालयों के देवता दक्षिण के पुजारी माँगते हैं। भक्त को रामेश्वरम् केदारनाथ, सोमनाथ, विश्वनाथ, पशुपतिनाथ, महाकालेश्वर, अमरनाथ आदि सभी जगह एक ही इष्ट के दर्शन होते हैं। वैष्णोदेवी से कन्याकुमारी तथा अम्बाजी (गुजरात) से कामाख्या (आसाम) .............. एक ही मातृसत्ता को नमन किया जाता है।

यह भाव भरी साँस्कृतिक चेतना ही उस कालजयी राष्ट्र को बनाती है जो ‘भारत’ कहलाता है। इस राष्ट्र का संगठन राजनीतिक महत्वाकाँक्षाओं से न कभी किया जा सका है और न कभी किया जा सकेगा। किन्तु साँस्कृतिक सूत्रों में बँधकर यह राष्ट्र सदैव विश्व मुकुट बना है और पुनः बनकर रहेगा। इसलिए राष्ट्रीय एकत्व का लक्ष्य अश्वमेध जैसे विराट यज्ञीय अनुष्ठानों द्वारा ही प्राप्त किया जाता रहा है, पुनः किया जाना है।

अश्वमेध की दिग्विजय

अश्वमेध के साथ दिग्विजय यात्रा अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई है। दिग्विजय यात्रा पूरी किये बिना अश्वमेध यज्ञ की आधार भूमि ही नहीं बनती है।

विजय शब्द सुनते ही किसी युद्ध में विजय की कल्पना उभरती है। यह भी इसलिए है कि हमारा चिन्तन देवसंस्कृति की धारा से काफी दूर हो गया है। हमारे यहाँ तो आत्म विजय−मनोजय को ही सबसे श्रेष्ठ विजय माना गया है। जीवन को एक समर का गया है। उसमें आसुरी−पाशविक प्रकृतियों को पराजित करके दैवी प्रवृत्तियों को विजयी बनाया जाता है।

अश्वमेध प्रकरण में साँस्कृतिक दिग्विजय का ही विधान है। समय के अनुरूप कुछ साँस्कृतिक अनुशासनों को अनिवार्य मानकर उनका विस्तार जन−जन तक किया जाता था। उन अनुशासनों−निर्धारणों को धातु की पट्टियों पर अंकित करके यज्ञाश्व पर स्थापित किया जाता था। अश्व सारे क्षेत्र में घूमता था। उस पर अंकित सूत्रों को पढ़कर लोग उस समय के लिए ऋषियों एवं शूरवीरों द्वारा घोषित अनिवार्य नियमों को जान लेते थे और उनका अनुसरण करने लगते थे। यह एक विशुद्ध साँस्कृतिक अभियान होता था। शक्ति के बल पर लोगों को पराधीन बनाने वाला व्यक्ति अश्वमेध करने के योग्य नहीं माना जाता था। निम्न पौराणिक आख्यानों से यह बात स्पष्ट हो जाती है−

स्कंद पुराण की कथा है−देवगुरु बृहस्पति इन्द्र से रुष्ट होकर अज्ञात स्थल पर जाकर तप करने लगे। इन्द्र दुखी होकर उन्हें खोजते फिरे। राज्य अस्त−व्यस्त होने लगा। अवसर का लाभ उठाकर पाताल के राजा बलि ने आक्रमण करके स्वर्गलोक को जीत लिया। वे स्वर्ग का वैभव अपने राज्य में ले गये किन्तु लक्ष्मी सहित सभी दिव्य पदार्थ लुप्त हो गये। स्वर्ग सुखों के लुप्त हो जाने से दुखी राजा बलि गुरु शुक्राचार्य के पास गये। उन्होंने कहा “बिना अश्वमेध यज्ञ किये तुम्हें स्वर्ग सुख प्राप्त नहीं हो सकते। एक सौ अश्वमेध अनुष्ठान पूर्ण करने पर तुम इन्द्र के समतुल्य होकर स्वर्गीय पदार्थों का भोग कर सकोगे।”

इस आख्यान से बात बहुत साफ हो जाती है। बलि स्वर्ग को जीत कर लौकिक अर्थों में दिग्विजय कर चुके थे। किन्तु यह विजय उनके किसी काम नहीं आयी। यज्ञीय सद्भाव प्रेरित साँस्कृतिक यात्रा ही उन देव वृत्तियों को जन्म दे सकती है जिनके आधार पर स्वर्गीय पदार्थों की पात्रता सिद्ध होती है।

महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में भी ऐसी ही विवरण मिलता है। युधिष्ठिर ने यज्ञाश्व के साथ अर्जुन को भेजा और यह निर्देश दिया कि “यदि कोई राजा अश्वमेध की घोषणाओं को स्वीकार न करे तो भी झगड़ा मत करना, उससे समय पर यज्ञ में पहुँचने का आग्रह करना।” उन्हें इस बात का भरोसा था कि यदि कोई भ्रमवश असहमति प्रकट करता है, तो भी यज्ञीय वातावरण में, ऋषियों एवं वीर पुरुषों की सहमति के प्रभाव से वह भी सहमत हो जायेगा।

अश्वमेध के अनुरूप दिग्विजय यात्रा भगवान बुद्ध के धर्मचक्र प्रवर्तन एवं आदि शंकराचार्य की ‘शंकर दिग्विजय को कहा जा सकता है। आज की परिस्थितियों में मनुष्य मात्र को उन साँस्कृतिक सूत्रों की खोज है जिनके आधार पर विग्रह मिटें और स्वर्गीय परिस्थितियों का निर्माण किया जा सके। ऋषियों की धरोहर−देव संस्कृति के समय के अनुकूल व्यावहारिक सूत्रों को जन−जन तक पहुँचाना आज की अनिवार्यता है। उसी आधार पर व्यक्तियों में देवत्व का विकास एवं धरती पर स्वर्ग का अवतरण संभव होगा। इसीलिए यह आश्वमेधिक अनुष्ठान प्रारंभ किया गया है।

First 15 17 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सर्वम् अश्वमेधः
  • अश्वमेध श्रृंखला-महाकाल की प्रतिज्ञा का उत्तरार्द्ध
  • देव संस्कृति दिग्विजय अभियान बनाम देवासुर संग्राम
  • यज्ञ-महत्व
  • देव संस्कृति का मेरुदण्ड है-यज्ञ
  • यज्ञों से कामनाओं की सिद्धि
  • यज्ञ मात्र श्रद्धा नहीं, अद्भुत विज्ञान भी
  • महायज्ञों से महाप्राण कुँडलिनी का अलोड़न
  • यज्ञों का राजा-अश्वमेध
  • यज्ञ, महायज्ञ,अश्वमेध यज्ञ
  • दो सहस्र वर्षों बाद एक अभूतपूर्व प्रयास
  • अश्वमेध के संदर्भ में शतपथ ब्राह्मण का मत
  • Quotation
  • ‘मेध’ सम्बन्धी भ्रान्तियों को निर्मूल बताते हैं−ये प्रतिपादन
  • वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति अर्थ निकालें, अनर्थ नहीं
  • राष्ट्र एवं दिग्विजय, राजनीतिक नहीं साँस्कृतिक शब्द हैं
  • मेधा को जो जगाये, वह है−अश्वमेध
  • अश्वमेध सविता एवं गायत्री साधना
  • अश्वमेध यज्ञ सौर शक्ति के संदोहन की प्रक्रिया
  • प्रयाज याज एवं अनुयाज
  • साधना पुरुषार्थ एवं सूक्ष्मजगत का अनुकूलन
  • चार चरणों में सम्पन्न होगा अभिनव अश्वमेध
  • यज्ञ बलि−देव दक्षिणा
  • सूक्ष्म जगत का परिशोधन−पराप्रकृति का अवगाहन
  • यज्ञ प्रक्रिया, दिव्य अनुशासन एवं यज्ञ−संसद
  • यज्ञों के विविध विधान-कुण्ड विज्ञान
  • देव संस्कृति दिग्विजय का विदेशी मोर्चा
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj