
प्रयाज याज एवं अनुयाज
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विशिष्ट प्रयोजनों लिये किये जाने वाले यज्ञों को तीन चरणों में बाँटा जाता है 1 प्रयाज 2 याज 3 अनुयाज
1 प्रयाज के अंतर्गत यज्ञ की घोषणा होने से लेकर यज्ञ प्रारंभ होने तक की सारी प्रक्रियायें आती है। यज्ञ स्थल का चुनाव उसके विभिन्न संस्कार यज्ञ की अनिवार्य व्यवस्थाएं जुटाना उसके लिये आवश्यक आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये जप तप के विधान यज्ञशाला निर्माण आदि सभी कार्यों का समावेश उसमें होता है।
2 याज-यज्ञीय कर्मकाण्ड को कहते है। इसमें आचार्य ब्रह्मा अध्वर्यु उद्गाता आदि की यज्ञ संसद की स्थापना से लेकर देवपूजन आहुतियाँ सामागान पूर्णाहुति आदि विभिन्न कर्म आते है प्रयोजनों के अनुरूप यज्ञ निर्धारित अवधि तक चलाये जाने का निर्देश शास्त्रों में है।
3-अनुयाज-यज्ञ पूर्णाहुति के बाद भागीदारी को संतुष्ट करना सभी वस्तुओं को यथा स्थान पहुंचाना यज्ञ से उत्पन्न ऊर्जा को लोक कल्याण के प्रयोजनों में नियोजित करना इस प्रक्रिया के अंतर्गत आते है। वर्तमान अश्वमेध यज्ञों के लिये भी इन तीनों चरणों को क्रियान्वित करने की रूपरेखा एवं व्यवस्था बनायी जा रही है। यज्ञ के स्थलों के चुनाव तथा वहाँ उपयुक्त वातावरण बनाने का क्रम चल पड़ा है।
अश्वमेध यज्ञ के लिये प्रयाज के रूप में दिग्विजय यात्रा की जाती है। जिन जिन क्षेत्रों के अश्वमेध घोषित किये गये है उन सभी क्षेत्रों में देवसंस्कृति दिग्विजय यात्राओं की व्यवस्था बना दी गयी है। यज्ञ की सफलता के लिये विशेष रूप से गायत्री उपासना साधना करने वाले व्यक्ति लाखों की संख्या में तैयार हो रहे हैं।
शास्त्रीय विधि से यज्ञशाला निर्माण से लेकर सुसंस्कारवान भावनाशीलों के सहयोग से साधन सामग्री जुटाने एवं व्यवस्था बनाने का क्रम चल पड़ा है।
यज्ञ के लिये आध्यात्मिक ऊर्जा तो परम पूज्य गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी द्वारा प्रचुर मात्रा में उत्पादित की ही जा रही है।
अनुयाज प्रक्रिया भी बहुत व्यापक है। यज्ञ के माध्यम से सूक्ष्म जगत तथा साधकों याजकों में दिव्य प्रवाह दिव्य ऊर्जा संचारित होगी। उसका उपयोग मनुष्य मात्र के लिये उज्ज्वल भविष्य के निर्माणार्थ किया जाना है जन जन के मनों में एवं स्वभाव में संव्याप्त कुसंस्कारों का उच्छेदन करना बेशरम बेल की तरह समाज में फैली कुरीतियों अनाचार आदि को निरस्त करके उनके स्थान पर श्रेष्ठ सतयुगी परम्पराओं की स्थापना करना आदि व्यापक लक्ष्य अनुयाज के निर्मित रखे गये है।
यह सब करने के लिये जिन संकल्पवान तेजस्वी व्यक्तित्वों की आवश्यकता पड़ेगी उनके निर्माण का कार्य दिव्य चेतना स्तर पर तो चल ही रहा है, मानवी पुरुषार्थ भी उस दिशा में नियोजित किया जाना है। व्यक्तित्वों को खोजने उभारने विकसित करने प्रयुक्त करने आदि में मानवी बुद्धि एवं परिश्रम को भी नियोजित करना होगा।
यह प्रक्रिया देशव्यापी स्तर पर तो चलानी ही होगी विश्वव्यापी स्तर तक भी जाना अनिवार्य हो गया है। अब सप्तद्वीप वसुँधरा पर रहने वाले मनुष्यों का भविष्य एक दूसरे के साथ जुड़ गया है। किसी एक क्षेत्र के लिये उज्ज्वल भविष्य तथा दूसरे के लिये पतन पराभव की रूपरेखा अब नहीं बन सकती। साँस्कृतिक चेतना का संचार सभी में करना होगा। संकीर्ण स्वार्थ भरी आपाधापी से सभी को विरत होना होगा।
उक्त सभी प्रयोजनों को ध्यान में रख कर इस अभूतपूर्व अश्वमेध श्रृंखला के लिये ऊपर वर्णित प्रयाज याज एवं अनुयाज आदि प्रक्रियाओं के योजनाबद्ध ताने बाने बुने जा रहे है।