• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • कर्ज (Kahani)
    • इस धरा का पवित्र श्रृंगार है नारी
    • सभ्यता की पूँजी एक सर्वश्रेष्ठ निधि
    • पतन क्रम (Kahani)
    • क्या मृत व्यक्ति में प्राण संचार संभव है?
    • महाप्रभु की महाकृपा
    • प्रज्ञायोग की साधना - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अन्तःकरण की हूक
    • अन्तःकरण की हूक (Kavita)
    • मानव मस्त फकीर रे!
    • मानव मस्त फकीर रे! (Kavita)
    • पुनर्स्थापित विशेष लेखमाला-2 - प्रज्ञा परिजनों के सप्त महाव्रत
    • VigyapanSuchana
    • युगव्यास पूज्यपाद गुरुदेव कर- - सम्पूर्ण वाङ्मय अब सबके लिये उपलब्ध!
    • अपनों से अपनी बात- - प्रज्ञावतार के लीला संदोह में भागीदारी का अब यह अंतिम अवसर
    • VigyapanSuchana
    • आत्मविजेता ही विश्वविजेता
    • एक साधना, एक योगाभ्यास
    • गृहस्थ जीवन का मर्म (Kahani)
    • माया से उठ कर ही होती है परमसत्ता की अनुभूति
    • एलिजाबेथ नोरथ (Kahani)
    • भोगी बनें कि उद्योगी?
    • द्रौपदी की विशालता (Kahani)
    • सहस्रार जगायें, दिव्य क्षमता पायें
    • कुछ अनसुलझी गुत्थियाँ
    • सूक्ष्म के जागरण की विधाः गायत्री साधना
    • कष्टों का अर्थ यह तो नहीं कि ईश्वर है ही नहीं
    • महाकाली का पुत्र
    • यदि प्रसुप्त को जगाया जा सके
    • देखते-देखते वे धरती के गर्भ में विलुप्त हो गए
    • प्रतिभा और संकल्प शक्ति का केन्द्र -मन
    • अमरत्व सृष्टि के नियमों के विपरीत
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • कर्ज (Kahani)
    • इस धरा का पवित्र श्रृंगार है नारी
    • सभ्यता की पूँजी एक सर्वश्रेष्ठ निधि
    • पतन क्रम (Kahani)
    • क्या मृत व्यक्ति में प्राण संचार संभव है?
    • महाप्रभु की महाकृपा
    • प्रज्ञायोग की साधना - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अन्तःकरण की हूक
    • अन्तःकरण की हूक (Kavita)
    • मानव मस्त फकीर रे!
    • मानव मस्त फकीर रे! (Kavita)
    • पुनर्स्थापित विशेष लेखमाला-2 - प्रज्ञा परिजनों के सप्त महाव्रत
    • VigyapanSuchana
    • युगव्यास पूज्यपाद गुरुदेव कर- - सम्पूर्ण वाङ्मय अब सबके लिये उपलब्ध!
    • अपनों से अपनी बात- - प्रज्ञावतार के लीला संदोह में भागीदारी का अब यह अंतिम अवसर
    • VigyapanSuchana
    • आत्मविजेता ही विश्वविजेता
    • एक साधना, एक योगाभ्यास
    • गृहस्थ जीवन का मर्म (Kahani)
    • माया से उठ कर ही होती है परमसत्ता की अनुभूति
    • एलिजाबेथ नोरथ (Kahani)
    • भोगी बनें कि उद्योगी?
    • द्रौपदी की विशालता (Kahani)
    • सहस्रार जगायें, दिव्य क्षमता पायें
    • कुछ अनसुलझी गुत्थियाँ
    • सूक्ष्म के जागरण की विधाः गायत्री साधना
    • कष्टों का अर्थ यह तो नहीं कि ईश्वर है ही नहीं
    • महाकाली का पुत्र
    • यदि प्रसुप्त को जगाया जा सके
    • देखते-देखते वे धरती के गर्भ में विलुप्त हो गए
    • प्रतिभा और संकल्प शक्ति का केन्द्र -मन
    • अमरत्व सृष्टि के नियमों के विपरीत
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1995 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


युगव्यास पूज्यपाद गुरुदेव कर- - सम्पूर्ण वाङ्मय अब सबके लिये उपलब्ध!

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 13 15 Last
परमपूज्य गुरुदेव के अस्सी वर्ष के जीवन का एक-एक पल इतना विलक्षण है कि उसकी विवेचना उपलब्धियों- कर्तृत्व का वर्णन करने का प्रयास यदि किया जाय तो संभवतः ढेरों कागज भी कम पड़े। एक असाधारण स्तर का व्यक्तित्व युगऋषि का था, जिनने अपने 80 वर्ष के 29000 दिनों की अवधि का एक क्षण भी निरर्थक नहीं जाने दिया। यदि इसमें से बाल्यकाल के 15 वर्ष के 7 हजार दिन निकाल भी दिये जाएँ तो यह कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं है कि चौबीस हजार दिनों के एक-एक क्षण को उनने गायत्री के लघु अनुष्ठान की तरह गायत्री मय बनाकर जिया है। उनने जीवन भर साधना की, अगणित पुस्तकों का स्वाध्याय किया किंतु जो एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि उनकी रही है, जिसने गायत्री परिवार रूपी विराट संगठन को भी जनम देने का मुख्य निमित्त बनने का श्रेय प्राप्त किया, वह है उनकी लेखनी की साधना। युगव्यास की तरह जीवन भर वे लिखते रहें व अपने वजन से भी अधिक भार का साहित्य, हर विषय पर युग-संजीवनी के रूप में लिख गए।

मूर्च्छितों में भी प्राणों को लौटा दें, उदास मनों में नूतन शक्ति का संचार कर दें, जीवन जीने की कला का शिक्षण करते हुए कैसे इस यात्रा को आगे बढ़ाया जाय, भौतिक आध्यात्मिक लाभ कैसे अर्जित किये जाये, गुह्यविज्ञानी से लेकर उच्चस्तरीय योग साधनाएँ कैसे सम्पन्न कैसे सम्भव बनाया जाय, शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक स्वास्थ्य कैसे हस्तगत किया जाय एवं राष्ट्र के नवनिर्माण का परिवार -संस्था रूपी प्रजातंत्र के मेरुदण्ड का पुनरुत्थान कैसे हो, ऐसे हर विषय पर पूज्यवर छूटा नहीं। जिस विषय को उनने छुआ, पूरी गहराई से उसकी तह तक जाकर उसके सरल व्यावहारिक पक्ष को जन समुदाय के समक्ष रखा। यह उनकी लेखनी का जादू ही था कि ममत्व में लिपटे उनके शब्द लाखों व्यक्तियों को उनके अंग-अवयव बनाते चले गए व एक विराट गायत्री परिवार विनिर्मित हो गया। शब्द, भाव-संवेदना को छलकाते हुए हर लेख में ऐसे, मानों किसी विशेष राग पर मन को शाँति देने वाली-तपन में तनाव लाने वाली कोई धुन कहीं बज रही हो।

उनका स्पर्श पाकर लेखनी भी धन्य हो गयी, इस युग का साहित्य समुदाय भी धन्य हो गया एवं एक विलक्षण कीर्तिमान स्थापित हो गया। 1940 से अनवरत प्रकाशित अखण्ड-ज्योति पत्रिका जो बाद में और कई सहचरी पत्रिकाओं युग निर्माण योजना मासिक-पाक्षिक-साप्ताहिक प्रज्ञा अभियान (पाक्षिक), युगशक्ति गायत्री, महिला जागृति अभियान, युगसाधना आदि अनेकों के साथ मिल कर पत्रकारिता का एक इतिहास विनिर्मित करती चली आयी है। इस पत्रिका को अब प्रायः अट्ठाईस वर्ष प्रकाशित होते हो गये हैं, क्योंकि पहला अंक 1937 में पूज्यवर ने हाथ से बने कागज पर छापा था पर यह मासिक नियमित न रहकर दो-ढाई वर्ष तक एक पाती का ही काम करता रहा। बाद में नियमित रूप से वसन्तपर्व 1490 से यह पत्रिका पहले आगरा व फिर मथुरा से प्रकाशित होने लगी। इस व अन्य सारी पत्रिकाओं को अकेले एक व्यक्ति द्वारा लिखा जाना एक ऐसा पुरुषार्थ है, जो अवतारी स्तर की सत्ता द्वारा ही संभव है। व्यास जी को भी लेखनी के लिए गणेश जी की आवश्यकता पड़ी थी किंतु पूज्यवर अकेले लिखते चले, अगणितों को प्रेरणा देकर पत्रकारिता के क्षेत्र में जोड़ते चले गए, शताधिक व्यक्तियों को इस क्षेत्र में प्रशिक्षित कर उनने रोजी-रोटी कमाने योग्य बना दिया व स्वयं इस पत्रिका के अतिरिक्त 2700 पुस्तकें भी लिख गए। इन पुस्तकों में आर्ष ग्रन्थों का आमूलचूल भाष्य (सरल हिन्दी में विज्ञान सम्मत टिप्पणियाँ के साथ ) भी सम्मिलित है जो उनने 1559 से 1962 की अवधि में किया व जिसे अब पुनः संशोधित मुद्रित परम वंदनीय माता जी के सम्पादन में उन्हीं के निर्देशों के अनुरूप किया जा रहा है। इन पुस्तकों में गायत्री साधना सम्बन्धी पहला विश्वकोष जो गायत्री महाविज्ञान के रूप में प्रकाशित हुआ, भी सम्मिलित है तथा इस विषय पर लिखी गयी ढाई सौ से अधिक पुस्तकें। यही एक मात्र प्रामाणिक साहित्य विश्वभर में है जो गायत्री साधना पर उपलब्ध है। ऋषि स्तर की सत्ता जिसने गायत्री मय अपने को बना लिया हो, यही यह सृजन कर सकती है।

विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय पर नूतन चिंतन- नितान्त मौलिक चिन्तन पूज्यवर ने ही पहली बार जन-जन के समक्ष प्रस्तुत किया। प्रामाणिक आँकड़ों के माध्यम से साधना विज्ञान का विज्ञान सम्मत प्रस्तुतीकरण से लेकर सर्वधर्म संभव, यज्ञ विज्ञान व यज्ञोपैथी, मनोविकारों का आध्यात्मिक उपचार, मरणोत्तर जीवन व मानवी काया से लेकर सृष्टि-ब्रह्माण्ड की विलक्षण गुत्थियों को उनने अपने साहित्य के द्वारा जनसमुदाय के समक्ष रखा। व्यक्ति परिवार और समाज निर्माण के आधारभूत सिद्धान्त क्या हों, कैसे दाम्पत्य जीवन को शुचिता पूर्ण तथा परिवार संस्था को अटूट गरिमामय बनाया जा सकता है, नारी का उत्थान कैसे सम्भव है यह युग ऋषि के चिंतन-नवनीत के रूप में प्रकाशित वह निधि है जो प्रत्येक के लिए मार्गदर्शिका के रूप विद्यमान है। रामचरितमानस से प्रगतिशील प्रेरणा से लेकर प्रज्ञापुराण रूपी 19 वें पुराण के अठारह खण्डों का निर्माण कर उनने वह साहित्य निधि समाज को दी जो जीवन के कायाकल्प का माध्यम बन गयी। सामाजिक जीवन में छाई कुरीतियों-मूढ़-मान्यताओं से कैसे मोर्चा लिया जाय, अंधविश्वासों को मिटाकर कैसे भव्य समाज की अभिनव संरचना हो, राष्ट्र एक व अखण्ड कैसे बने, यह मार्गदर्शन भी पत्रिका व पुस्तकों के माध्यम से युगऋषि ने सतत् किया। संस्कार परम्परा का उनने पुनर्जागरण किया व षोडश संस्कारों को लोक प्रचलित कर धर्मतन्त्र से लोक शिखर का एक सशक्त माध्यम खड़ा कर भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने, इसे विश्व संस्कृति बनने के सारे आधार खड़े कर दिए।

इतना विराट परिणाम में प्रकाशित साहित्य व और भी जो अभी अप्रकाशित है काफी कुछ दुर्लभ होने के कारण अब अनुपलब्ध है, परिजनों तक पहुँचे, यह चिंतन काफी समय से चल रहा था। पूज्यवर ने महाप्रयाण से पूर्व संकेत दिया कि युगसंधि महापुरश्चरण की पूर्णाहुति के आने तक उनका समग्र साहित्य क्रमबद्ध, विषय बद्ध, रूप में जन-जन तक पहुँचे, इसका प्रयास उनके उत्तराधिकारियों द्वारा किया जाय। इस साहित्य में यह ही नहीं जो उनने लिखा बल्कि जो उनने अगणित उद्बोधन वक्ताओं के रूप में समय समय पर अमृतवाणी के रूप में अभिव्यक्त किया, वह भी सम्मिलित किया जाना था। अंततः एक विशाल स्तर के पं. श्री राम शर्मा आचार्य वाङ्मय की योजना बनी एवं सारा साहित्य प्रारंभ से लेकर अब तक का संकलन करने की रूपरेखा बनाई गयी। इसमें वह सब भी देने का विचार किया गया जो शक्तियों आदर्शवादियों-प्रेरणाप्रद निर्देशों के रूप में वे समय-समय पर लिखते या अभिव्यक्त करते रहे। साथ ही उनकी प्रेरणा से काव्य क्षेत्र में गोता लगाकर मणिमुक्तक खोज लाने वाले लोकमंगल पर कविताओं का सृजन करने वाले कवियों व स्वयं पूज्यवर द्वारा रचित काव्य को भी संकलित कर प्रस्तुत करने की रूपरेखा बनी।

अब यह समग्र वाङ्मय प्रायः पाँच-पाँच सौ पृष्ठों के, जो अखण्ड-ज्योति आकार के होंगे, साठ खण्डों के रूप में इस वर्ष के अंत तक प्रकाशित होने जा रहा हैं प्रथम पूर्णाहुति तक प्रायः चालीस खण्ड जन-जन के लिए उपलब्ध हो सकेंगे, ऐसी व्यवस्था त्वरित स्तर पर छपाई का प्रबन्ध बनाकर की गयी है। यह ऐसा दुर्लभ संकलन है जो सम्भवतः साहित्य जगत के इतिहास में स्वयं में एक अभूतपूर्व स्थापना के रूप में सामने आएगा। प्रत्येक खण्ड में परमपूज्य गुरुदेव उनकी जीवनचर्या में क्षण-क्षण साथ कहीं शक्ति स्वरूपा परम वंदनीय माताजी तथा इन दोनों के जीवन से गुँथे मिशन की भूमिका भी प्रस्तुत की जा रही है। कपड़े को जिल्द पर एक प्रोटेक्टिंग कवर एवं अच्छी गुणवत्ता वाले कागज पर छपाई के साथ एक विशेषता है प्रत्येक में गुरुदेव माताजी के भिन्न-भिन्न मुद्राओं में भिन्न अवस्थाओं के रंगीन चित्र। ब्रह्मवर्चस् द्वारा सम्पादित तथा अखण्ड-ज्योति संस्थान मथुरा द्वारा मुद्रित-प्रकाशित इस समग्र वाङ्मय का मूल्य एक साथ लेने पर 6000/- रुपये रखा गया है। यों अलग-अलग खण्डों का मूल्य लागत के आधार पर 125/- है। पूर्णाहुति के अवसर पर चालीस खण्ड उपलब्ध होंगे, शेष बीस खण्ड परिजनों को बाद में भेज दिए जाएँगे। प्रत्येक खण्ड पर विषय अनुक्रमणिका, परिशिष्ट के साथ-साथ साठ की विषय सूची भी सम्मिलित होगी।

परमपूज्य गुरुदेव का जीवन एक जीती-जाती प्रेरणा गाथा के रूप में चमत्कारों-विलक्षण अनुदानों की थाती के रूप में सभी परिजनों के समक्ष रहा है। जिनने उन्हें नहीं देखा, न उनके साहित्य के संपर्क में कभी आए, वे सभी अब इस माध्यम से उन्हें अंतरंग तक जान पायेंगे व इस संग्रह से लाभान्वित ही जीवन दिशा को एक नया मोड़ दे सकेंगे। इन खण्डों में अनेकों नेक अनुभूतियाँ जो लोगों के जीवन में प्रत्यक्ष फलीभूत हुई, प्रस्तुत की जा रही हैं, साथ ही महापुरुषों के जीवन चरित्रों से लेकर इक्कीसवीं सदी की रूपरेखा क्या होने जा रही है, कैसे नवयुग सम्भावित है, मानव में देवत्व व धरती पर स्वर्ग अगले दिनों कैसे आएगा, यह सब उनकी ही लेखनी के माध्यम से परिजन पढ़ सकेंगे। यही नहीं, समय-समय पर पूज्यवर द्वारा परिजनों को लिखें गए प्रेरणाप्रद, मार्गदर्शक, साधनात्मक परामर्श प्रधान ममत्व व स्नेह की स्याही में लिखें गए दुर्लभ पत्र भी प्रकाशित किया जा रहे है। अपने आप में अनूठा यह संकल्प परिजनों के लिए अपने घरों में रखने योग्य है। स्वाध्याय मण्डलों, शक्तिपीठों पर अमूल्य निधि की तरह रखने के लिए, उपहार आदि के लिए देने हेतु, वाचनालय में अपनी ओर से स्थापना कराने के निमित्त, दहेज व विरासत के रूप में बच्चों या रिश्तेदारों के देने योग्य श्रेष्ठतम भेंट इससे अधिक और कोई नहीं हो सकती। पितरों के प्रति श्रद्धा निमित्त श्रद्धा निमित्त श्राद्ध-तर्पण के साथ-साथ यह साहित्य विद्यालयों में, संगठनों में भेंट के रूप में या प्रतिभाशाली छात्रों को पारितोषिक रूप में दिया जा सकता है। इतने विराट परिमाण में प्रकाशित हो रहे साहित्य का पुनर्रचना न मिशन के बढ़ते दायित्वों को देखते हुए सम्भव नहीं है, अतः यह अवसर चूका नहीं जाना चाहिए।

प्रस्तावित साठ खण्डों में प्रथम खण्ड किसी भी विश्वकोष परपीड़ा ‘ की तरह होगा जिसमें समग्र इतिहास, परमपूज्य गुरुदेव की एवं परम वंदनीय माताजी की जीवन यात्रा विस्तार से दी जाएगी। यह प्रारंभिक खण्ड एक प्रकार से भूमिका खण्ड समझा जा सकता है जिससे शेष 57 खण्डों के माहात्म्य की जानकारी सबको मिल सकेगी। पहली बार परमपूज्य गुरुदेव एवं शक्ति स्वरूपा माताजी के जीवन के कई गुह्य पक्ष भी लोगों के सम्मुख आयेंगे

इसके बाद के खण्ड इस प्रकार से है-(2) जीवन देवता की साधना-आराधना (3) उपासना समर्पण योग (4) साधना पद्धतियों का ज्ञान एवं विज्ञान (5) गायत्री महाविद्या का तत्त्वदर्शन (6) गायत्री साधना का गुह्य विवेचन (7) गायत्री साधना के प्रत्यक्ष चमत्कार (8) गायत्री की दैनिक एवं विशिष्ट अनुष्ठान परक साधना (9) गायत्री की पंचकोशी साधना व उपलब्धियाँ (10) गायत्री साधना की वैधानिक पृष्ठभूमि (11) सावित्री, कुण्डलिनी एवं तंत्र (12) मरणोत्तर जीवन तथ्य एवं सत्य (13) विलक्षण अद्भुत यह मानव शरीर (14) चमत्कारी विशेषताओं से भरा मानवी मस्तिष्क (15) शब्दब्रह्म-नादब्रह्म (16) व्यक्तित्व विकास का मनोविज्ञान (17) अपरिमित संभावनाएँ का आगार मानवी व्यक्तित्व (18) चेतन, अचेतन व सुपरचेतन मन (19) विज्ञान और अध्यात्म, परस्पर पूरक (20) भविष्य का धर्मः वैज्ञानिक धर्म (21) यज्ञ का ज्ञान-विज्ञान (22) यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया (23) युगपरिवर्तन कैसे व कब? (24) सतयुग की वापसी (25) सूक्ष्मीकरण एवं उज्ज्वल भविष्य का अवतरण (26) मर्यादा पुरुषोत्तम राम (27) संस्कृति संजीवनी श्रीमद्भागवत एवं गीता (28) रामायण की प्रगतिशील प्रेरणाएँ (29) षोडश संस्कार विवेचन (30) भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व (31) अमृतवाणी-1 (32) अमृतवाणी -2 (33) नव्य समाज का अभिनव निर्माण (34) धर्म तत्व का दर्शन व मर्म (35) नव्य समाज का अभिनव निर्माण (36) निरोग जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र (37) जीवेम शरदः शतम् (38) इक्कीसवीं सदी नारी सदी (39) समाज का मेरुदण्ड ‘सशक्त परिवार तंत्र (40) अमर हो गए मरकर भी जो। (41) हमारी संस्कृति-इतिहास के कीर्ति स्तम्भ (42) महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग (43) विचार सार एवं शक्तियाँ भाग 1 (44) विचार-सार एवं शक्तियाँ भाग-2(45) शिक्षा एवं विद्या। ये सभी इन दिनों प्रेस छपाई पर है तथा शेष 15 भी इस माह के अंत तक प्रेस में पहुँच जाएँगे। निश्चित ही यह संग्रह जो युग व्यास की लेखनी से निस्सृत चिंतन चेतना का है, हर किसी के लिए प्राणों से भी बढ़कर निधि हैं। जो भी कुछ साहित्य पूज्यवर ने अवधि लिखा है, जो भी कुछ उनने कहा है अथवा जो भी कुछ उनने चिंतन कर लाखों को उद्वेलित अनुप्रमाणित कर श्रेष्ठ राह पर चलने योग्य बना दिया है, वह सब कुछ इस संग्रह में है। वाङ्मय का प्रारूप जब सबके समक्ष आएगा तब ही वास्तविक मूल्याँकन सभी कर सकेंगे किंतु अभी तो यह निश्चित ही कहा जा सकता है कि यह ‘न भूतो, न भविष्यति’ की उपमा वाला एक ऐसा संकलन है, जिससे वंचित रहने वाला हाथ ही मलता रह जाएगा।

First 13 15 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • कर्ज (Kahani)
  • इस धरा का पवित्र श्रृंगार है नारी
  • सभ्यता की पूँजी एक सर्वश्रेष्ठ निधि
  • पतन क्रम (Kahani)
  • क्या मृत व्यक्ति में प्राण संचार संभव है?
  • महाप्रभु की महाकृपा
  • प्रज्ञायोग की साधना - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • अन्तःकरण की हूक
  • अन्तःकरण की हूक (Kavita)
  • मानव मस्त फकीर रे!
  • मानव मस्त फकीर रे! (Kavita)
  • पुनर्स्थापित विशेष लेखमाला-2 - प्रज्ञा परिजनों के सप्त महाव्रत
  • VigyapanSuchana
  • युगव्यास पूज्यपाद गुरुदेव कर- - सम्पूर्ण वाङ्मय अब सबके लिये उपलब्ध!
  • अपनों से अपनी बात- - प्रज्ञावतार के लीला संदोह में भागीदारी का अब यह अंतिम अवसर
  • VigyapanSuchana
  • आत्मविजेता ही विश्वविजेता
  • एक साधना, एक योगाभ्यास
  • गृहस्थ जीवन का मर्म (Kahani)
  • माया से उठ कर ही होती है परमसत्ता की अनुभूति
  • एलिजाबेथ नोरथ (Kahani)
  • भोगी बनें कि उद्योगी?
  • द्रौपदी की विशालता (Kahani)
  • सहस्रार जगायें, दिव्य क्षमता पायें
  • कुछ अनसुलझी गुत्थियाँ
  • सूक्ष्म के जागरण की विधाः गायत्री साधना
  • कष्टों का अर्थ यह तो नहीं कि ईश्वर है ही नहीं
  • महाकाली का पुत्र
  • यदि प्रसुप्त को जगाया जा सके
  • देखते-देखते वे धरती के गर्भ में विलुप्त हो गए
  • प्रतिभा और संकल्प शक्ति का केन्द्र -मन
  • अमरत्व सृष्टि के नियमों के विपरीत
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj