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Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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नारी की वरिष्ठता-वैज्ञानिकों की दृष्टि में

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इतना जल्दी निर्णय करने से पहले वैज्ञानिकों से तो पूछ लीजिए, वे क्या कहते हैं ? वैज्ञानिकों के अनुसार मृत शरीर के अस्थि पिंजर को देखकर नर-नारी की परख आसानी से की जा सकती है, क्योंकि उनकी बनावट में थोड़ा अन्तर प्रकृति ने रख छोड़ा है। नारी की हड्डियाँ पुरुष की अपेक्षा छोटी, चिकनी और सरल होती हैं। मस्तक की ऊँचाई कम, नीचे का जबड़ा हलका, दाँत छोटे, ठोड़ी ऊँची, सीने के बीच की हड्डी (स्टरनम) छोटी तथा टेड़ी, छाती पतली, रीढ़ की हड्डियों के गुटके गहरे देखकर नारी का अस्थि पिंजर पहचाना जा सकता है। लम्बाई भी पुरुष की तुलना में कम होती है। माथे की हड्डियाँ अपेक्षाकृत कम मजबूत और कम कड़ी होती है। आँखों के गड्ढे अण्डाकृत, गहराई कम, वक्षस्थल की अस्थि दीवार पुरुष की अपेक्षा कुछ अधिक फैली होती है। गले के नीचे वक्षस्थल से थोडा ऊपर दोनों पार्श्वों में दो’ क्लेविकल’ हड्डियाँ होती है। ! वे भी अपेक्षाकृत चिकनी पतली तथा टेड़ी होती है।

स्त्रियों के हाथ पुरुष की तुलना में छोटे होते हैं, किन्तु तर्जनी लम्बी और अँगूठा छोटा होता है। संधियां छोटी होती है। मेरुदण्ड पुरुष का प्रायः 2 फुट 4 इंच होता है, जबकि औसत स्त्री का 2 फुट ही पाया जाता है। स्त्रियों का वस्ति गह्वर 90-100 होता है, जबकि पुरुषों का 70-75 ही पाया जाता है। उरु अस्थि पुरुष की 47-3 और नारी की 41-3 होती है। पैर की अस्थि (टीविया) पुरुष की 78-5 और नारी की 67-8 होती है। पैर कुछ छोटे होते हैं। पैर की मध्यमा उँगली तो निश्चित रूप से छोटी और सीधी होती है। पेट का फैलाव इसलिए अधिक रहता है कि उसमें भ्रूण का निर्वाह ठीक तरह हो सके।

नारी की मांसपेशियों में जल का अंश अधिक रहता है। यही उन्हें कोमलता का आकर्षण प्रदान करता है। मस्तिष्कीय पदार्थ पुरुष का 49 ओंस और नारी का 44 ओंस पाया जाता है। छोटा मस्तिष्क पुरुष में एक ओंस साढ़े आठ ड्राम और स्त्रियों का एक ओंस सवा आठ ड्राम होता है। हृदय पिण्ड पुरुष का 10 से 12 ओंस और स्त्रियों का 8 से 10 ओंस होता है। फेफड़े का वजन पुरुष का 1400 ग्राम और स्त्री का 1260 ग्राम अनुपात में पाया गया है। गुर्दे, पुरुष के साढ़े 4 से 6 ओंस और नारी के 4 से साढ़े 5 ओंस तक होते हैं। पुरुष की मूत्र नली 8 से 9 इंच लम्बी और स्त्रियों की डेढ़ इंच भर होती है।

आहार अपेक्षाकृत वे कम करती है। शरीर का ताप पुरुष से अधिक होता है। नाडी स्पन्दन प्रति मिनट पुरुष का 70 और नारी का 80 रहता है। श्वास नर के 15 और नारी के 17 चलते हैं। माँसपेशियों का वजन पुरुष में 400 और स्त्रियों में 350 होता है। स्वप्न भी वे ही अधिक देखती है। नारी के यौवन के उभार का अधिक प्रभाव थाइराइड ग्लैण्ड पर अधिक पड़ता है। उसके यौवन अंगों में तेजी से उभार आता है। इस ग्रन्थि के विकास पर नारी की ‘प्रवृत्ति ‘ बहुत कुछ अवलम्बित रहती है। स्वस्थ पुरुष में रक्त का वजन 1060 और स्त्रियों में 1050 पाया जाता है। रक्त कणों का औसत पुरुषों में 50 लाख और स्त्रियों में 45 लाख पाया गया है। स्वर यन्त्र पुरुषों का बड़ा और कड़ा होता है, नारी का छोटा ओर कोमल। शरीरों के आकार में यह थोड़ा-सा अन्तर ही शायद नर की वरिष्ठता के दर्प का कारण बन बैठा। लेकिन वास्तविक रूप से वरिष्ठता का मापदण्ड क्या है ? इस प्रश्न का थोड़ी गहराई में चलकर उत्तर ढूंढ़ें तो अधिकाँश तथ्य, प्रमाण एवं शोध अध्ययन से प्राप्त वैज्ञानिक निष्कर्ष नारियों के पक्ष में जाते हैं और उनकी श्रेष्ठता सिद्ध करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, शारीरिक बनावट में यत्किंचित् न्यूनता भी नारी के विशिष्ट उत्तरदायित्व वहन किए जाने के कारण ही है। सौ इसे भी वरिष्ठता के दर्जे में ही रखा जाएगा।

इसे ठीक तरह से न समझे जाने के कारण ही शरीर की दृष्टि से पुरुष को अधिक समर्थ और बलिष्ठ मान लिया गया। संभवतः इसी उथले आधार पर समर्थता का मूल्याँकन करने वाले किसी व्यक्ति ने नारियों को अबला के सम्बोधन से सम्बोधित किया होगा। जबकि तथ्य यह है कि बाहरी ताकत की दृष्टि से पुरुष सबल भले ही दिखाई पड़े, आन्तरिक जीवनी-शक्ति की दृष्टि से नारियाँ कहीं अधिक समर्थ होती है। माटी दृष्टि शरीर बल को ही प्रधानता देती है, जबकि स्थायी सामर्थ्य, सुस्वास्थ्य एवं आरोग्य का केन्द्र-बिन्दु भीतर की विद्यमान जीवनी-शक्ति हैं।

शरीरशास्त्रियों ने सही अर्थों में शक्तिशाली उसे माना है, जिसके अन्दर इस आन्तरिक शक्ति की प्रचुरता है। शरीर से बलिष्ठ होना, एक बात है और जीवनी-शक्ति सम्पन्न होना सर्वथा दूसरी बात है। यह आवश्यक नहीं है कि जो शरीर से ताकतवर हो वह जीवनी-शक्ति का भी धनी हो। इसके विपरीत यह भी आवश्यक नहीं है कि जीवनी-शक्ति सम्पन्न व्यक्ति शरीर से अधिक हृष्ट-पुष्ट हो। यह सच है कि जिस शरीर बल को प्रधानता दी जाती है, उस क्षेत्र में पुरुष यत्किंचित् ज्यादा है, पर जहाँ तक स्वास्थ्य आरोग्य की मूल आधार जीवनी-शक्ति का प्रश्न है-नारियाँ पुरुषों की तुलना में कही अधिक समर्थ होती हैं।

काफी खोजबीन करने के बाद शरीरविज्ञानी इस निष्कर्ष पर पहुँच गए हैं कि स्त्रियों की प्रतिरक्षा प्रणाली पुरुषों की अपेक्षा कही अधिक सशक्त होती है। उनके अनुसार इसका कारण है रक्त में पाये जाने वाला एक विशिष्ट प्रकार का प्रोटीन जिसे ‘इग्यूनोग्लोबुलिन-एम’ के नाम से जाना जाता है। स्त्रियों के शरीर में यह पुरुषों की अपेक्षा अधिक बनता है। शरीर रक्षा के लिए यह एक बड़ा शक्तिशाली घटक है। यही कारण है कि वे पुरुषों से कही अधिक स्वस्थ, सानन्द दिनचर्या व्यतीत करती देखी जाती है।

अमेरिकी चिकित्साविज्ञानियों द्वारा इस तथ्य की पुष्टि हो चुकी है कि दिल का दौरा पुरुष वर्ग को ही अधिक होता देखा जाता है। उनकी दृष्टि में अमेरिका के लगभग 4 करोड़ 20 लाख से भी अधिक पुरुष वर्ग के लोगों को दिल अथवा रक्तवाहिनी का कोई न कोई रोग बना ही रहता है। उनसे अधिक पूछताछ करने पर एक ही जवाब मिलता है कि इसके लिए वातावरण और परिस्थितियाँ दोषी हैं। जबकि वास्तविकता वैसी नहीं है। मूल कारण तो शारीरिक-मानसिक संरचना में निहित है।

स्त्रियों के सम्बन्ध में एक अति महत्वपूर्ण बात प्रकृति की विशेष अनुकम्पा ही कही जा सकती है, वह है ‘इस्ट्रोजन’ नामक हारमोन। इसके रूप में उन्हें ऐसा अमोघ अस्त्र हाथ लगा है, जो किसी भी प्रकार के हृदय रोग से मुक्ति दिलाने में हर सम्भव सहायक सिद्ध होता है। यही कारण है कि स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा किसी भी प्रकार की शारीरिक कष्ट-कठिनाई को सहन करने की क्षमता अधिक होती है। इतना ही नहीं मनः- चिकित्सकों द्वारा किए गए प्रयोग -परीक्षणों से यह भी सिद्ध हो चुका है कि किसी भी समस्या के समाधान में पुरुष वर्ग को अधिक तनावग्रस्तता का सामना करना पड़ता है। ऐसी अवस्था में उनके हृदय की धड़कन तीव्र हो जाती है, जबकि स्त्रियों के हृदय की धड़कन में कोई विशेष अन्तर नहीं आता और न उत्तेजना उभारने वाले ‘एड्रिनेलिन’ नामक हारमोन का स्राव अधिक मात्रा में होता है । दिल के दौरे पुरुषों की तुलना में कम पड़ने का यही एक प्रमुख कारण है। स्टजर्ज विश्वविद्यालय न्यूजर्सी के साइको एंडोक्राइनोलजिस्ट डॉ0 रयनिश ने दीर्घ काल तक मस्तिष्क पर चोट खाए नर-नारियों का अध्ययन किया। उनके द्वारा निकाले गए निष्कर्ष सम्बन्धित विषयों पर और अधिक प्रकाश डालते हैं। डा0रायनिश के अनुसार स्त्री तथा पुरुष के मस्तिष्क की क्रियाओं में भिन्नता होती है। पुरुष की कुछ क्रियाएँ मस्तिष्क के वाम गोलार्द्ध तथा कुछ दक्षिणी गोलार्द्ध से नियन्त्रित होती हैं। दोनों के बीच परस्पर उतना समायोजन नहीं हो पाता, जितना कि नारियों में। महिलाओं में क्रिया नियन्त्रण व्यवस्था दोनों गोलार्द्धों में समान रूप से बँटी होती है। पुरुषों में इस सन्तुलन कि चरम परिणति गम्भीर मस्तिष्कीय चोटों के समय दिखायी पड़ती है। अपने सहयोगियों के साथ डॉ0 रायनिश ने अनेक केसों में देखा कि अधिकाँश पुरुषों के वाम मस्तिष्क में चोट लगने तथा क्षतिग्रस्त होने पर उनकी बोलने की क्षमता नष्ट हो जाती है और यदि दाहिने भाग पर चोट पहुँचती है तो देखने की क्षमता नष्ट हो जाती है, जबकि महिलाओं में ऐसा प्रायः कम ही होता है। दोनों के बीच इस अन्तर के कारण को उपरोक्त वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क बताया हैं।

कनाडा में एलवर्ट विश्वविद्यालय के सुविख्यात मनो चिकित्सा विज्ञानी प्रो0 पीयर क्लोर हेनरी ने स्त्री- पुरुष की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विशिष्टताओं को बड़ी गहराई से निरखा, परख है। उनके द्वार किए गए परीक्षणों से एक ही तथ्य हाथ लगा है कि मस्तिष्क के दायें-बायें भाग का क्रमिक एवं सन्तुलित विकास होने के फलस्वरूप ही स्त्रियों में आक्रामक एवं हिंसात्मक प्रवृत्तियाँ नहीं भड़कती। दोनों का समान रूप से नियन्त्रण रह सकने के कारण ही वे मानसिक दृष्टि से स्वस्थ एवं तनावमुक्त पायी जाती है। पुरुष का एक मात्र दांया भाग ही अधिक सक्रिय होता पाया गया है, जिसकी वजह से किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए वह अत्यधिक बेचैनी प्रकट करता और अपने पुरुषत्व का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए तुरन्त करने में लग जाता है। मस्तिष्क के बायें भाग पर उसका नियन्त्रण कम ही रहता है। जबकि वाणी में शालीनता और सामाजिक प्रवृत्तियों को प्रभावित करने की क्षमता इसी भाग में अधिक होती हैं।

अमेरिकी नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ मेण्टल हेल्थ’ के एक मनःचिकित्सक के अनुसार मस्तिष्क के दायें एवं बायें गोलार्द्ध की इसी नियन्त्रण क्षमता के कारण नारियाँ में परिस्थितियों से समायोजन करने की क्षमता पुरुषों से लगभग पाँच गुनी अधिक होती है। महिलाओं में अन्तर्ज्ञानात्मक प्रतिभा भी अधिक पायी जाती है । समस्याओं का समाधान भी स्त्रियाँ पुरुष से अधिक शीघ्रता से ढूंढ़ लेती है। असन्तुलनजन्य मनःविक्षेप पुरुष को ही अधिक परेशान करते हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि विश्व में नारियों की तुलना में पुरुष मानसिक रोगियों का अनुपात चार गुना है।

इसी कारण वैज्ञानिकों ने यह घोषित किया है महिला होना प्रकृति का सबसे बड़ा अनुदान है। लेब्रास्का विश्वविद्यालय के डॉ0 डेविड परतीलो एवं एक अन्य वैज्ञानिक मार्टिन के अनुसार, महिलाओं में एक्स क्रोमोसोम्स का होना प्राकृतिक उपहार हैं। इनका कहना है कि पुरुषों में ‘वाई’ क्रोमोसोम्स होने के कारण ही वे कम उम्र के होते हैं। एक्स क्रोमोसोम, वाई की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होता है। इसी लिए महिलाओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिकतम होती है। यही वजह है कि आधुनिक विश्व में अलग-अलग देशों में संस्कृतियां, अहार, जीवन-शैली तथा बीमारियों के कारण भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन एक बात सभी देशों में समान है कि महिलाएँ पुरुष से अधिक जीती है। अस्सी वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं की संख्या पुरुषों से लगभग दो गुनी है।

‘वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन’ की रिपोर्टानुसार सामान्यतया संसार में लड़कियों की अपेक्षा पैदा होने वाले लड़कों का अनुपात अधिक होता है। पर कुछ ही दिनों में उनमें से कितने ही लड़के मर जाते हैं। मृत्यु का यह अनुपात लड़कों में लड़कियों की तुलना में अधिक है। एक अध्ययन के अनुसार अकेले भारत में औसतन 140 लड़कों के मुकाबले 100 लड़कियां पैदा होती है। 15-16 के बाद यह अन्तर 100-100 का हो जाता है। अर्थात् 15-16 वर्ष की उम्र के पश्चात् 33 से 35 प्रतिशत लड़कों की मृत्यु हो जाती है। इससे भी स्पष्ट होता है कि महिलाओं में प्रतिरक्षा प्रणाली पुरुषों से अधिक सामर्थ्यवान है।

शारीरिक, मानसिक वरिष्ठता के साथ नारी की भावनात्मक विशेषताओं के विषय में जितना भी गुणगान किया जाय कम ही होगा। जिस आन्तरिक संवेदनशीलता की प्राप्ति के लिए विविध प्रकार के साधनात्मक उपचार किए जाते हैं, उसे वह जन्मजात प्राप्त है। अपना यौवन निचोड़कर शिशु को पिलाने वाली, शिशु की एक मुसकान पर बलिहारी हो जाने वाली, अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाली माँ भावनात्मक विशेषताओं का भला किन शब्दों में वर्णन किया जाय ? नारी हर तरह का त्याग-बलिदान करने में बेमिसाल है। भाव सम्पदा की दृष्टि से तो पुरुष नारी से सैकड़ों मील पीछे छूट जाता है। ये सभी तथ्य एक स्वर से यही स्पष्ट करते हैं, नारी तरह से पुरुष से श्रेष्ठ है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि सामाजिक प्रगति भी उसी के नेतृत्व में अधिक अच्छी तरह होगी । उसके वर्चस्व एवं नेतृत्व का भावी युग हर तरह से कल्याणकारी होगा।

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