
तप और करुणा से भरे हैं, महिलाओं के व्रत-त्योहार
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कहते हैं महर्षि अगत्स्य ने विशाल महासागर को सिर्फ दो चुल्लू में पी लिया था इसी तरह यदि भारतीय नारी के समूचे व्यक्तित्व को सिर्फ दो शब्दों में मापना हो तो वे दो शब्द होंगे -’तप’ एवं ‘करुणा’। इन दो शब्दों में निहित भावनाओं से बचपन से ही उसका अस्तित्व ओत-प्रोत रहता है। जैसे-जैसे वह बड़ी होती जाती है। ये भावनाएँ भी परिपक्व एवं प्रगाढ़ होती जाती हैं। इस परिपक्वता एवं प्रगाढ़ता में उसका तप प्रखर होता है, करुणा उदात्त बनाती है। भारतीय नारी के जीवन में ये दोनों ही अन्योन्याश्रित हैं। उसके तप का प्रेरणा स्त्रोत है करुणा ओर करुणा की अभिवृद्धि होती है, दिन पर दिन बढ़ने वाले तप की प्रखरता से ।
उसकी यह तप, करुणा ही उसके द्वारा अनुष्ठित व्रत-उपवासों में दिखाई देती है। महिलाओं के द्वारा किया जाने वाला हर व्रत किसी न किसी विशेष तप से अनिवार्य रूप से सम्बन्ध है। वे व्रत उसकी कोरी भावुकता नहीं है। इसके पीछे ऋषि प्रणीत विज्ञान है। उत्तरायण, दक्षिणायन की गोलार्द्ध स्थिति, चन्द्रमा की घटती-बढ़ती कलाएँ, नक्षत्रों का भूमि पर आने वाला प्रभाव, सूर्य की अंश किरणों का मार्ग, इन सबका महिलाओं की शरीरगत ऋतु अग्नियों के साथ सम्बन्ध होने से विशिष्ट परिणाम को ध्यान में रखकर ही इनका निर्धारण किया गया है।
बदलते समय के बावजूद महिलाओं के हर व्रत की अपनी विशेषता है। जो संवत्सर के प्रारम्भ से ही शुरू हो जाते हैं। चैत्र की नवरात्रियों के बाद महिलाएँ वैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी का व्रत करके शीतला देवी का पूजन करती हैं। महिलाएँ पवित्र मन से शीतला अष्टमी का व्रत करके शीतला देवी को प्रसन्न करती हैं। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को सावित्री पूजन किया जाता है। महिलाएँ अपने अखण्ड सुहाग के प्रतीक के रूप में यह व्रत करती हैं।
कोकिला व्रत अषाढ़ माह की पूर्णिमा को दक्षिण भारत में मनाया जाता है। लड़कियाँ सुयोग्य वर की प्राप्ति हेतु इस व्रत को किया करती हैं। सावन माह का प्रत्येक मंगलवार मंगला गौरी पूजन के नाम से जाना जाता है। इसी तरह सावन मास के सोमवार को व्रत कुँआरी लड़कियां अपने उत्तम वर की प्राप्ति के लिए करती हैं। लड़कियों एवं महिलाओं के लिए करती हैं। लड़कियों एवं महिलाओं के लिए इसी श्रावण मास की पूर्णिमा का विशेष महत्त्व है। इस दिन रक्षा-बन्धन के रूप में भाई के सुखद जीवन की मंगलकामना करती हैं।
भादों बदी तृतीया मिर्जापुर जिले में कजरी तीज, विशेष उत्सव के रूप में मनायी जाती है। ग्रामीण बालाएँ वर्षा ऋतु के इस दिन अपने पति के सुखद जीवन के लिए गीत गाती हैं। इसी महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी का माताएँ पुत्रों की रक्षा हेतु बहुला चौथ का व्रत करती हैं। इसी के दो दिन बाद हलपष्ठी का व्रत होता है, जो पुत्र और सुहाग की रक्षार्थ महिलाओं द्वारा किया जाता है। हरतालिका तीज इस महीने का सुप्रसिद्ध व्रत है। यह व्रत इस महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है। इसे कुँआरी और विवाहिता दोनों ही करती हैं। शिव-पार्वती के पूजन के साथ इसे उत्तर वर की प्राप्ति एवं सुखद दाम्पत्य के लिए सम्पन्न किया जाता है। भादो बदी अष्टमी को राधालक्ष्मी एवं महाअष्टमी व्रत दोनों ही किए जाते हैं। इसे करने पर महिलाओं की अपनी छोटी-मोटी भूल का प्रायश्चित हो जाता है।
साँझी का त्यौहार आसोज लगते ही पूर्णमासी से अमावस्या तक मनाया जाता है। कुँआरी लड़कियाँ अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए इसे अपनाती हैं। आशा मँगौती का व्रत श्राद्धो के दिन की आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी से प्रारम्भ कर लगातार आठ दिनों तक किया जाता है। इस व्रत को कुँआरी लड़कियाँ ही करती हैं।
आश्विन कृष्ण नवमी को मातृनवमी कहा जाता है। जिस प्रकार पुत्र अपने पिता, पितामह आदि पूर्वजों के निमित्त पितृ पक्ष में तर्पण करते हैं। उसी प्रकार सुगृहणियाँ भी अपनी दिवंगत सास, माता आदि के निमित्त इस दिन तर्पण आदि करती हैं।
कार्तिक कृष्ण पक्ष को चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को करवा चौथ किया जाता है। यह स्त्रियों का मुख्य व्रत है। इस दिन का उपवास दाम्पत्य प्रेम को बढ़ाने वाला हाता है। क्योंकि उस दिन की गोलार्द्ध स्थिति, चन्द्रकलाएँ, नक्षत्र प्रभाव एवं सूर्यमार्ग का सम्मिश्रण शरीरगत अग्नि के साथ समन्वित होकर शरीर एवं मन की स्थिति को ऐसा उपयुक्त बना देता है, जो दाम्पत्य सुख को सुदृढ़ और चिरस्थायी बनाने में बड़ा सहायक होता है। इसी महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीय को भैया दूज मनायी जाती है। इसमें बहिनें भाई के सुखद जीवन के लिए मंगलकामना करती हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य षष्ठी का व्रत महिलाएँ सूर्योपासना के साथ सम्पन्न करती हैं। इस व्रत का धन- धान्य एवं पति-पुत्र की समृद्धि के लिए विशेष महत्व हैं। इस महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व कार्तिक स्नान करने वाली महिलाओं के लिए विशिष्ट है।
शीतला षष्ठी व्रत माघ कृष्ण पक्ष की षष्ठी को महिलाएँ करती हैं। इसे करने से आयु तथा सन्तान की कामना फलवती है। इसका महत्व ज्यादातर बंगाल में है जैसे बिहार में सूर्य षष्ठी को अति विशिष्ट माना जाता है। इन व्रतों अतिरिक्त जिस अमावस्या को सोमवार हो, उसी दिन सोमवती अमावस्या का व्रत विधान होता है। यह भी नारियों का प्रमुख व्रत है। प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी को महिलाएँ सन्तान कामना के लिए प्रदोषव्रत का भी पालन करती हैं।
इन सारे व्रतों में प्रायः अधिकांश को भारतीय नारियों, द्वारा पूरा करते देखा जा सकती है। कठोर तप-तितीक्षा, छलकती संवेदना से भर हृदय के लिए वह स्वयं को तिल-तिल करके गलाती रहती है। अपने तप के द्वारा घर की समस्त आपदाओं विपदाओं, संकटों को शमन करती रहती है। उसकी इसी तपश्चर्या के कारण भारत की परिवार संस्था इन विषम परिस्थितियों में भी अपना अस्तित्व बनाए हुए है और आगामी दिनों में यही उज्ज्वल भविष्य का आधार बनेगी।