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Magazine - Year 1998 - Version 2

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युगसन्धि का आरम्भ, मध्य और अन्त प्रसिद्ध ज्योतिर्विदों की दृष्टि में

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First 8 10 Last
युगसंधि की अवधि में कितनी ही उथल पुथल होने की सम्भावना है। इस संदर्भ में प्रख्यात ज्योतिषियों ने कुछ महत्वपूर्ण अभिमत व्यक्त किये है। इनमें से कई समयानुसार सही सिद्ध हो चुके। कुछ ऐसे है जिनका सम्बन्ध भविष्य से है। कुछ अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों से सम्बन्ध रखते है कुछ भारत से। समय आने पर ही विदित होगा कि भूतकाल की तरह उनके भविष्य कथन भी सही सिद्ध होते है या नहीं।

इन कथनों में से जिनका भारत से सीधा सम्बन्ध है उन्हें देखते हुये इस नतीजे पर पहुँचना पड़ता है कि अगले दिन भारी कठिनाइयों के है। इन से भारत को भी बहुत कुछ सहना पड़ेगा। साथ ही एक तथ्य यह भी उभर कर आता है कि समस्त विश्व को नया प्रकाश देने और सृजनात्मक सत्प्रवृत्तियों को अग्रगामी बनाने में भारत की भूमिका असाधारण रहेगी। भूतकाल में भी विश्व शान्ति के लिए मानवी प्रगति एवं समृद्धि के लिये भारत ने बहुत कुछ किया है। अब फिर उसी की पुनरावृत्ति होने जा रही है। यहाँ की ऋषिकल्प आत्माएँ प्राचीनकाल की तरह लोक कल्याण के लिये बहुत कुछ करने की तैयारी में जुटी हुई हैं समय बताएगा कि इन प्रयासों के फलस्वरूप सृजन को कितना बल मिला और संकटों

को टालने में इस तत्परता ने कितना चमत्कार उत्पन्न किया। इस सन्दर्भ में प्रख्यात ज्योतिर्विदों के कुछ कथन नीचे प्रस्तुत किये जा रहे है।

सितम्बर 72 में दुनिया के प्रमुख ज्योतिषियों का एक सम्मेलन हुआ। कोरिया के स्यूल नगर में सम्पन्न हुये इस सम्मेलन 104 भविष्यवक्ता सम्मिलित हुये थे, सबने सहमति से अपने ज्योतिष ज्ञान के अनुसार जो भविष्य कथन कहे उनमें से कुछ इस प्रकार है।

सन् 1984 के आसपास अमेरिका और रूस में युद्ध संभावना होगी, किन्तु सन् 1984 के पूर्व उनमें आपसी चर्चा द्वारा ऐसा वातावरण निर्मित होगा जिसके आधार पर विश्वास दृढ़ हो सकेगा कि इन बात की संभावना नहीं है।

आज जो राष्ट्र महाशक्तियों द्वारा विभक्त कर दिये गये है जैसे जर्मनी कोरिया और

वियतनाम वह भविष्य में पुनः संयुक्त हो जायेंगे उनकी सरकारें दो न होकर एक होंगी, राष्ट्रवादी ओर बाह्य शक्तियों के दबाव में आये बिना काम करने वाली होगी।

व्यापार धन धान्य कृषि गौ विद्या विज्ञान तकनीकी क्षेत्र का एशियाई प्रभुत्व भारतवर्ष में आ सकता है।

चीन काफी समय तक जोड़ तोड़ की राजनीति में कामयाब रहेगा और प्रबल शत्रुओं को भी धोखा देने तथा मित्रता का नाटक रचने में वह सफल होगा किन्तु उसकी पोले जल्दी ही खुलेंगी। अपने आन्तरिक विग्रह के कारण ही वह विनाश के गर्त में जा सकता है। विश्व के कई राजनेताओं की हत्याओं के योग है।

इन भविष्यवाणियों में अधिकाँश का समय 1980 के बाद का बताया गया है। इस सम्मेलन के अध्यक्ष जा स्वयं भी कोरिया के विश्व प्रसिद्ध देवज्ञ है श्री हर्सारोंअसानों ने उस सम्मिलित विज्ञप्ति को प्रसारित करते हुये लिखा है कि इसमें केवल उन्हीं भविष्यवक्ताओं को सम्मिलित किया गया है जिनकी भविष्यवाणियाँ 80 प्रतिशत से भी अधिक सत्य हुई हैं। इस सम्मेलन के समाचार और ये भविष्यवाणियाँ दुनिया के प्रायः सभी अखबारों में विवरण सहित प्रकाशित हुई। भारत में भी यह विवरण इण्डियन एक्सप्रेस दैनिक के 12 सितम्बर 72 में साररूप में छपा था। इसमें उपरोक्त घटनाक्रमों की चर्चा के अतिरिक्त विश्वव्यापी बौद्धिक परिवर्तनों का भी संकेत है। घोषणा में कहा गया है कि अगले दिनों एशिया में भारी उथल पुथल होगी। यह उथल पुथल एक और विचारक्रान्ति के रूप में परिलक्षित होगी तो दूसरी तरफ एक बार भयंकर अकाल पड़ेगा। तीन भयंकर भूकम्प आयेंगे।

विचारक्रान्ति का असर सारी दुनिया पर पड़ेगा। सन् 2000 से पूर्व ही बौद्धिक क्रान्ति की यह लहर न केवल दक्षिण पंथी वरन् कम्यूनिस्ट देशों में भी फैल जाएगी। क्रान्ति का स्वरूप आध्यात्मिक धार्मिक विचार होगा। मतमतान्तरों के वर्ण सम्प्रदाय के भाषा भेष के भेद मिट जाएँगे और लोगों में धार्मिक समभाव तथा भाईचारे की भावना का व्यापक विस्तार होगा।

परिवर्तन जब एक सुनिश्चित विधान के अनुसार होगा तो उसका सूत्रपात और सूत्र संचालन कौन करेगा इस बात पर भी विश्व के भविष्यवक्ताओं में विचार विमर्श हुआ। द्रष्टा इस मामले में एक मत थे कि एशिया के किसी देश में जन्मा एक महान संत विश्व में भारी परिवर्तन लाने के लिए कार्यरत है। इस शताब्दी के अंत तक इस सन्त का प्रयास इतना सफल होगा कि उसकी गरिमा का मूल्याँकन करने के लिये उपयुक्त कल्पना नहीं की जा सकती।

प्रसिद्ध भविष्यवक्ता कीरो जो ज्योतिष शास्त्र के आधार पर भविष्यवाणियाँ करते थे ने वर्तमान परिस्थितियों के बारे में कहा था यूरोप की ईसाई जातियाँ एक बार फिर से यहूदियों को पैलेस्टाइन में बसाएँगीं जिसके कारण अरब राष्ट्र और उनके इस्लामी मित्र भड़क उठेंगे द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी आदि देशों से खदेड़े गये यहूदियों को पैलेस्टाइन में बसाया गया और एक नया राष्ट्र इजराइल अस्तित्व में आया। वे बार बार इंग्लैण्ड अमेरिका आदि के विरुद्ध उत्तेजक नारे बुलन्द करेंगे। यहूदियों से उनकी टक्कर भी होगी। इन सबके बावजूद यहूदियों की शक्ति बढ़ेगी। कम संख्या में होते हुये भी यहूदी अरबों को पीटेंगे और उनका बहुत-सा प्रदेश अपने कब्जे में कर लेंगे। 1980 के बाद कभी भी एक बार बहुत ही भयानक टक्कर होगी, जिसमें अरब राष्ट्र बुरी तरह तहस नहस होंगे। यह विनाश पूर्ण होने के बाद एक नई सनातन सभ्यता का अभ्युदय होगा और सारे विश्व में उसका प्रसार होगा।

कीरो ने यह पंक्तियाँ सन् 1927 में लिखी थी तब किसी को इजराइल की कल्पना भी नहीं थी। करीब बीस वर्षों में ही दुनिया भर के यहूदी पैलेस्टाइन में आये सचमुच ईसाइयों ने उन्हें मदद दी और इस तरह एक छोटा-सा किन्तु बाघ और बाज़ की तरह इजराइल एक सशक्त राष्ट्र के रूप में उठ खड़ा हुआ और एक ही धमाके में उसने जोर्डन की कमर तोड़ दी तथा वहाँ मिश्र का सारा सिनाई प्रान्त ही हड़प लिया।

प्रो. कीरो कीरो ने कहा था अरबों की नील नदी यहूदियों का आदाब बजाएगी। सो भी सच हुआ और अब उस भविष्यवाणी के उत्तरार्द्ध की प्रतीक्षा की जा रही है। प्रो. कीरो की भविष्यवाणियों की सत्यता का अनुमान किसी को करना हो तो वह सन् 1943 की अखण्ड ज्योति का जनवरी अंक उठाकर देखे जिसमें पृष्ठ 23 पर छपा है इंग्लैण्ड भारत को स्वतन्त्र कर देगा पर मजहबी फिसाद के कारण भारत तबाह हो जायेगा। यहाँ तक कि हिन्दू बौद्ध और मुसलमानों में बराबर बराबर विभक्त हो जायेगा।

जिन दिनों यह भविष्यवाणी प्रकाशित हुई थी उन दिनों ब्रिटिश दमन चक्र अपने पूरे जोर पर था। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। कि भारत स्वतन्त्र होगा पर प्रो. कीरो का कथन था भारत वर्ष का सूर्य ग्रह बलवान है और कुम्भ राशि पर है परन्तु उसका अभ्युदय संसार की कोई ताकत नहीं रोक सकती। यह कथन सच ही होकर रहा पर दूसरी भविष्यवाणी जिसमें इस देश के बंट जाने की बात थी उस पर तो किसी का कतई विश्वास नहीं था फिर भी सारी दुनिया ने देखा कि भारत के ही बहुत से मतावलम्बी अंग अलग हो गये पाकिस्तान बना और आज तक वह भारत के लिये सिरदर्द पैदा कर रहा हैं।

बरार के विद्वान ज्योतिषी श्री गोपीनाथ शास्त्री चुलैट ने एक रात स्वप्न देखा कि नये युग का आविर्भाव सन्निकट है। उठकर उन्होंने उस स्वप्न समय की कुण्डली बनाई।

इस लग्न कुण्डली को बनने और अध्ययन के बाद इन निष्कर्ष पर पहुँचने बाद इन निष्कर्ष के बाद शास्त्री जी ने युगपरिवर्तन नामक एक पुस्तक लिखी जो अकोला महाराष्ट्र से प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में उन्होंने ज्योतिष गणना के आधार पर बताया है कि इन्हीं दिनों युगपरिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है और इस समय युगसंधि चल रही है जिसमें पिछले अज्ञानान्धकार का अन्त और नवयुग की अरुणिमा निरन्तर बढ़ती ही जायेगी। यह समय एक ओर जहाँ भारतवर्ष के लिये तीव्र हलचलों उथल पुथल और परिवर्तनों का है वही सारे विश्व के लिये भी कम कष्टप्रद नहीं है। शास्त्री जी द्वारा समय समय पर की गई भविष्यवाणियाँ सही सिद्ध होती रही है। इस आधार पर उनका युगपरिवर्तन कथन भी विश्वसनीय ही माना जा सकता है।

सन् 1945 और 1950 के मध्य भारतवर्ष के स्वतंत्र होने की जो भविष्यवाणी की थी वह सच हुई। उन्होंने सन् 1938 में ही महात्मागाँधी की मृत्यु का ठीक ठीक समय बता दिया था, यह भी सही सिद्ध हुआ शास्त्री ने भविष्यवाणी की थी कि सन् 1970 के आस पास अमेरिका का कोई मनुष्य चन्द्रमा की परिक्रमा करेगा। कलिवर्ज्य प्रकरण में पृथ्वी की प्रदक्षिणा नहीं करनी चाहिये, इसका खण्डन करते हुये शास्त्री जी ने लिखा था कि भारतीय विमान आदिकाल से ही पृथ्वी और अन्य ग्रहों की प्रदक्षिणा करते हुये उड़ते तथा वहाँ की यात्रा करते रहे है। निकट भविष्य में यह स्थिति भी देखने में आएगी जब सन् 1970 तक अमेरिका निवासी चन्द्रमा पर उतर जायेगी। इसलिए हम भारतीयों को भी प्रदक्षिणा अंतरिक्ष विज्ञान की शोध करनी चाहिये। शास्त्री जी की अनेक भविष्यवाणियों में उत्तरी सीमान्त से आक्रमण चीन के हमले आदि की भविष्यवाणी भी सही सिद्ध हो चुकी है ऐसी दशा में उनका युगपरिवर्तन सम्बन्धी वक्तव्य विश्वस्त समझा जा सकता है।

हरियाणा के प्रसिद्ध सन्त बांगड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा है-

संवत् बीसा द्वौ बीघा कूं। अस जोग अनोखा आवै सै।

नौ ग्रह मिलसी एक राशि पर। गुरु दशा विचलावें सै।

फाल्गुणमासै सूर्यग्रहण दृश्य दिखावे से। राजा प्रजा को घणा दुःखनू सौ, कोहराम मचावै सै।

पड़सी विकट अकाल बाद सूँ। अनावृष्टि दिखलावै है। धरती फटै, आकाश टूटि के, महाणास समहावै है।

असा वखत नो ज्योति प्रगट्या, सबको राह यह दिखावै है। कह बांगड़ की बात झूंठ ना, कतै कणै है पावै है।

लड़सी दयाख्या गोरा तुरकां, राज राजसा धणी धणी। तुरक तबारा मिटसी देखी, अमरीसा घेर छणी।

उसै जंगड़ी जंग चबारा, धरणी कोय देखावेणी। दुःख पर दुःख पावसी दुणियाँ धुन्ध कोण ली छावैसी।

अकबर के समकालीन इस महान संत का उल्लेख ‘फरमान ए रशीदी’ पुस्तक में भी मिलता है। उपर्युक्त छन्द में जो स्थितियाँ बताई गई हैं, उनकी संगति वर्तमान परिस्थितियों से बहुत मिलती-जुलती है। लोकश्रुति के रूप में प्रचलित यह पंक्तियाँ कई पुराने लोगों को कंठाग्र है और ‘फरमान ए रशीदी’ में भी संत बांगड़ की इसी तरह की भविष्यवाणियाँ मिलती है। मनुष्यकृत उत्पातों और प्राकृतिक विपदाओं के कारण कई देशों के तहस-नहस हो जाने तथा जन जीवन के बुरी तरह अस्त व्यस्त होने की बात उपरोक्त पंक्तियों में स्पष्ट कही गई है। संत के अनुसार यह शुरुआत ही है, किन्तु बीस वर्षों में परिवर्तन तेजी से होगा।

पटना की ‘खुदाबख्त औरियण्टल लाइब्रेरी में फारसी कसीदों (कविता) की पुस्तक है, जो बुखारा के सुप्रसिद्ध सन्त शाहनिया मतुल्ला वल्ली साहब की लिखी हुई है। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है, जापान और रूस में युद्ध होगा (1904 में रूस और जापान में युद्ध हुआ भी)। इस तरह उनकी एक भी भविष्यवाणी अभी तक गलत नहीं हुई है।

भारत के प्रसंग में वल्ली साहब ने लिखा है, मुसलमानों के हाथ से यह मुल्क विदेशियों के हाथ चला जाएगा, फिर हिन्दू-मुसलमान मिलकर उनके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे। विदेशी यहाँ से चले तो जाएँगे, पर हिन्दुस्तान को दो टुकड़ों में बाँट जाएँगे। तृतीय विश्वयुद्ध के सम्बन्ध में वल्ली साहब ने लिखा है, यह युद्ध बड़ा भयंकर होगा। श्वेत जातियाँ बहुत कमजोर पड़ जाएँगी। भारत का अभ्युदय जिससे संसार में सीधे सच्चे लोगों की प्रतिष्ठा बढ़ेगी और अमन चैन फैलता चला जाएगा।

मिश्र की एक बहुत प्राचीन मीनार पर यह भविष्यवाणी अंकित है, जिसमें कहा गया है कि चौदहवाँ सदी बीत जाने पर (हिजरी सन् के अनुसार चौदहवीं सदी अब बीत चुकी है) कयामत आएगी अर्थात् भीषण विनाश और संघर्ष उत्पन्न होगा। इसी मीनार पर जल्द ही नया जमाना आने की बात भी लिखी है, इस नये युग का आरम्भ थोड़े से लोगों क द्वारा किए जाने की भविष्यवाणी भी उस मीनार पर अंकित है।

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