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Books - जीवन साधना प्रयोग और सिद्धियां-

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Language: HINDI
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शिष्टाचार के सामान्य नियम

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First 8 10 Last
निस्संदेह अब की स्थिति प्राचीन काल की परिस्थितियों से भिन्न है। पहले आवागमन के सुविधापूर्ण साधन नहीं थे इससे लोग एक ही स्थान पर रहते हुए तदनुरूप व्यवहार और रहन सहन की मर्यादाओं का पालन कर लेते थे और शिष्टाचार के नियमों पर दूसरों का प्रभाव नहीं पड़ पाता था। अब सड़कों, रेल, मोटरों, जहाज वायुयान आदि साधनों की प्रगति से संसार भर के लोगों का हर जगह आना जाना सम्भव हो गया है। इस कारण यात्रा, पर्यटन, लेन-देन और पारस्परिक व्यवहार भी बहुत बढ़ा है, फलतः शिष्टाचार के सर्वमान्य नियम निर्धारित नहीं किये जा सकते। क्योंकि जो व्यवहार एक स्थान पर शिष्टाचार समझा जाता है, वही दूसरे देश में शिष्टता विरुद्ध समझा जाता है। उदाहरण के लिए हमारे यहां नंगे पैर रहना साधुओं का लक्षण समझा जाता है और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी नंगे पैरों टहलने को लाभदायक बतलाया गया है, पर अंग्रेजों में नंगे पैर रहना, विशेषतया किसी स्त्री के सामने नंगे पैर जाना बहुत बड़ी असभ्यता का चिन्ह माना जाता है। इसी प्रकार योरोप अमरीका में भोजन के पश्चात थोड़ी सी शराब पी लेना रहन-सहन का साधारण अंग माना जाता है पर भारतीय संस्कृति में इसकी गिनती महापापों में की गई है, और कम से कम यहां का कोई सम्माननीय व्यक्ति प्रकट रूप में इस कार्य को अपनी मर्यादा के अनुकूल नहीं समझता। फिर भी भारतीय संस्कृति के आदर्शों के अनुरूप पिछली शताब्दियों में संसार की विभिन्न सभ्यताओं के निकट आने पर कुछ ऐसी सर्वमान्य मर्यादायें निकल आयी हैं जिनका सर्वत्र निर्वाह किया जा सकता है। इन मर्यादाओं का सर्वत्र पालन किया जाना चाहिए। कोई भी स्थान ऐसा नहीं कहा जा सकता जहां कि शिष्टाचार अनावश्यक लगे। मनुष्य को समाज में रहते हुए हर घड़ी अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में रहना पड़ता है। भले ही वह घर में हो अथवा बाहर। प्रत्यक्ष रूप से किसी के सम्पर्क में आने पर हमारे व्यवहार या आचरण की शिष्टता अशिष्टता दूसरों पर अपनी छाप छोड़ती है। किसी प्रकार सम्पर्क या निकटता न रहने पर भी कई कृत्य ऐसे हो जाते हैं जिनका दूसरों पर प्रभाव पड़ता है और वे अनजाने ही हमारे प्रति बुरी धारणा बना लेते हैं। जैसे राह चलते हुए किसी ने केला खाया और खाकर छिलका वहीं फेक दिया। उसी रास्ते पर चलने वाले दूसरे किसी व्यक्ति का पैर उस छिलके पर पड़ा और वह फिसल कर गिर गया तो उसे जो पीड़ा या कष्ट पहुंचा उसके लिए छिलका फेंकने वाला दोषी है। वैसे भी सार्वजनिक स्थानों पर गन्दगी फैलाना अनागरिकता की निशानी है। उदाहरण का अर्थ यहां इतना भर है कि हमारा आचरण भले ही वह किसी के प्रति न किया गया हो दूसरों को अनिवार्य रूप से प्रभावित करता है। अतः शिष्टता और शालीनता का मर्यादाओं—नियमों का प्रत्येक परिस्थितियों में पालन करना चाहिए। शिष्टता और शालीनता हमारे छोटे छोटे क्रिया कलापों से व्यक्त होती है, जैसे कहीं बैठे हैं और आसपास दो-चार व्यक्ति और बैठे हैं। उस समय जम्हाई ली, छींक या खांसी आयी और उस समय अपने मुंह के सामने रूमाल लगा लिया तो इससे पास बैठने वाले व्यक्ति अनुभव करेंगे कि हम किसी सभ्य व्यक्ति के साथ बैठे हुए हैं और छींक या खांसी आने पर मुंह के सामने रुमाल न रखा गया और सामने बड़े लोगों पर थूक उड़ गया तो रूमाल न रखने वालों पर असभ्यता, अशिष्टता का प्रभाव पड़ेगा। बात छोटी सी है किन्तु उससे व्यक्ति का समस्त प्रभाव धूमिल पड़ जायगा। इसी तरह की बहुत छोटी-छोटी बातें व्यक्ति का प्रभाव बढ़ाती और घटाती हैं। कई समझदार और शिक्षित कहे जाने वाले व्यक्ति तक उन छोटी-छोटी बातों को भूल जाते हैं या इन पर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझते। जैसे घर में कोई आया हुआ हो तो उस समय भी बहुत से लोग अपने बच्चों, आश्रितों, या नौकरों को डांटने फटकारने लगते हैं। उन्हें इसी में अपनी शान बढ़ती अनुभव होती है। बहुत से व्यक्ति अपने घर आये व्यक्ति से स्नेह पूर्वक बातचीत तो करते हैं, कुशल क्षेम भी पूछते हैं पर उनके बैठने उठने का ढंग इतना बेहूदा होता है कि लगता है वे अतिथि को अपने से काफी छोटा और हीन समझ रहे हों। भले ही उनके मन में ऐसी कोई बात न हो परन्तु शिष्टाचार के सामान्य ज्ञान का अभाव अतिथि के मन में अच्छा प्रभाव नहीं छोड़ता। कभी-कभी सहानुभूति व्यक्त करने का ढंग भी इसी प्रकार का हो जाता है कि उससे सामने वालों को सान्त्वना सहयोग मिलने की अपेक्षा उसका अनिष्ट ही ज्यादा होता है। बहुत से लोग रोगी व्यक्ति के पास सम्वेदना जताने—कुशलक्षेम पूछने के लिए जाते हैं तो प्रायः रोगी को रोग बढ़ा चढ़ाकर बताते हैं, जिससे रोगी को सान्त्वना मिलने, स्वस्थ होने की आशा बांधने के स्थान पर निराशा ही मिलती है। व्यवहार में ही नहीं बातचीत और रहन-सहन में भी शिष्टता शालीनता का ध्यान रखना चाहिए। घनिष्ठ मित्र हो अथवा सर्वथा अपरिचित व्यक्ति बातचीत में सभ्यजनोचित मर्यादाओं का तो ध्यान रखना ही चाहिए बहुत से लोगों को बातचीत में तकिया कलाम—किसी शब्द को बार-बार दोहराने की आदत पड़ जाती है। कई व्यक्ति बात करते-करते बीच-बीच मैं गालियां-अपशब्दों का भी प्रयोग करते जाते हैं। बहुधा इस प्रकार की त्रुटियां आदत में इस कदर शुमार हो जाती है कि कब वे त्रुटियां हो जाती हैं कि इसका पता नहीं चलता। सुनने वालों को भी इसमें बुरा लगता है और कहने वाले को भी जब इस पर ध्यान जाता है तो उसे भी लज्जा और संकोच का अनुभव होता है। बातचीत में होने वाली इस प्रकार की त्रुटियां अभ्यास द्वारा रोकी जानी चाहिए और बात करते समय दूसरों के प्रति सम्मान व्यक्त करना चाहिए। इसी प्रकार किसी की बातों में हस्तक्षेप करना, सामने वालों की बात अधूरी काट कर अपनी बात कहने लगना सामान्य शिष्टाचार के विरुद्ध है। ऐसा करने पर जिनसे बात की जा रही है वे सोचने लगते हैं कि यह व्यक्ति कितना घटिया और अशिष्ट है। स्वयं अपनी बात को किसी के द्वारा काटने पर कितना बुरा लगता है। इसे लोग अपने सम्मान के विरुद्ध समझते हैं किन्तु वह लोग जब दूसरों की बात काटकर अपनी कहने लगते हैं तो उन्हें दूसरों की भावना का जरा भी ख्याल नहीं रहता। इसी प्रकार खान-पान, वेषभूषा, चलने-खड़े होने, उठने बैठने और कहीं आने जाने में शिष्टाचार बरतना आवश्यक है। शिष्टता व्यक्ति के अंग-अंग और छोटे से छोटे कार्यों में व्यक्त होनी चाहिए। अर्थात् क्षण-क्षण शिष्टाचार का ध्यान रखना चाहिए। मानवीय सभ्यता के स्तर को बनाये रखने का उत्तरदायित्व हम कितनी कुशलता के साथ निभा रहे हैं यह हमारे आचरण और व्यवहार में बरते गये शिष्टाचार से ही जाना जा सकता है। लेकिन शिष्टाचार की कोई सर्वांगपूर्ण परिभाषा नहीं की जा सकती क्योंकि उसका क्षेत्र बहुत व्यापक है। वह व्यक्ति द्वारा प्रतिपल होने वाली क्रियाओं का नियमन करता है और उसके स्वरूप का निर्धारण करता है। फिर भी उस सम्बन्ध में यह मानकर चला जा सकता है कि दूसरों के द्वारा हम जिस प्रकार सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं उसी प्रकार दूसरों के प्रति स्वयं भी व्यवहार करना चाहिए। जिन कारणों से हमें अपनी भावनाओं पर ठेस लगती अनुभव हो उन कारणों को स्वयं भी दूसरों के लिए प्रस्तुत न किया जाय। कहा जा चुका है कि शिष्टाचार का पालन छोटे-छोटे कार्यों और सामान्य व्यवहारों में किया जाना चाहिए। यों समाज में रहने के कारण व्यक्ति थोड़े बहुत शिष्टता के नियम तो सीख ही जाता है। सुसंस्कृत परिवारों में शिष्टता की शिक्षा बचपन से ही मिलने लगती है। परिवार के सदस्यों को भी अपनी छोटी से छोटी क्रियाओं पर पैनी नजर रखनी चाहिए और देखना चाहिए कि हम कहीं अनजाने दूसरों की भावनाओं पर आघात तो नहीं पहुंचाते अथवा हमारा कौनसा आचरण शिष्टाचार के विरुद्ध है। जहां कहीं भी अपने आचरण व्यवहार में शिष्टता का अभाव दिखाई दे वहीं उस कमी को दूर करने के लिए तत्सम्बन्धी शिष्टाचार का अभ्यास करना चाहिए यह नहीं सोचना चाहिए कि इन छोटी-छोटी बातों में इतनी बारीकियों तक जाने की क्या आवश्यकता? मनुष्य का व्यक्तित्व छोटे-छोटे क्रियाकलापों से ही उजागर होता है। उदाहरण के लिए किसी को पुकारते समय उसके नाम के आगे ‘श्री’ लगाना कोई विशेष महत्व नहीं रखता। एक शब्द, एक अक्षर का ही अधिक उच्चारण करना पड़ता है। किन्तु ‘श्री’ शब्द का प्रयोग करने में जो शील और शालीनता व्यक्त होती है वह केवल नाम लेकर दण्डवत प्रणाम करने से भी नहीं होती। कहने का अर्थ यह है कि अपने व्यक्तित्व की छाप दूसरों पर अच्छी पड़े, अपना स्वरूप सौम्य बनकर उभरे इसके लिए व्यवहार और आचरण में शिष्टता का समावेश किया ही जाना चाहिए। 
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