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Books - व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर - 2

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युग निर्माण योजना - एक परिचय

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    आप लोगों ने योजना या निर्माण से मिलता जुलता बहुत से शब्द सुना होगा जैसे ग्राम्य विकास योजना, सामुदायिक विकास योजना, राष्ट्रीय सेवा योजना, शहरीकरण् योजना, जवाहर रोजगार योजना, रोजगार गारन्टी योजना आदि।

    ये सभी योजनाएं सीमित दायरे में निर्माण सम्बन्धी योजनाएं हैं, जो मनुष्य कृ त है तथा जिसे सरकारी या गैर सरकारी तन्त्र द्वारा संचालित किया जाता है। इसी भांति ‘‘युग निर्माण योजना’’ पूरे विश्व निर्माण से सम्बन्धित है, जिसका उद्देश्य पुन: भारतवर्ष को जगद्गुरु के पद पर प्रतिष्ठित करना है, सम्पूर्ण विश्व में एक नए युग का सूत्रपात करना है।

    ‘‘युग निर्माण योजना’’ अतीत के गौरव को पुन: वापिस लाने के पुरुषार्थ का नाम है। आत्म निर्माण के व्यापक आन्दोलन का नाम युग निर्माण है। आत्म निर्माण का दूसरा नाम भाग्य नर्माण है। इस युग निर्माण योजना की झांकी प्रस्तुत करते हुए इसके संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि अधर्म और असुप्ता की बढ़ोतरी और धर्म तथा देवत्व के पराभव (पतन ) का जब असन्तुलन होता है तो इसे सुधारने के लिए भगवान समय-समय पर किसी सुधारवादी प्रचण्ड प्रक्रिया के रूप मे अवतार लेते हैं। आज की परिस्थितियां भी ठीक इसी के उपयुक्त है। धन, बुद्धि और विज्ञान की वृद्धि के साथ-साथ असंयम, अनाचार, अविवेक भी बढ़ा है, फलत: जहां साधनों की बढ़ोतरी से सुख सुविधाएं बढऩी चाहिए थी वहां रोग, शोक और कष्ट कलह की विपत्तियां घुमडने लगी है। ऐसी विषम परिस्थितियों में गीता में दिया हुआ भगवान का असन्तुलन सुधारने का आश्वासन ‘सम्भावामि युगे युगे’ क्रियान्वित होने जा रहा है। अर्थात् ध्वंस की चुनौती को सृजन ने स्वीकार कर ली है और असुरता को सर्वभक्षी सर्वनाशाी न होने देने के लिए देवत्व ने प्रतिरोध के लिए कमर कस लिया है। ईश्वर अपनी सुन्दर कृति पृथ्वी को नष्ट नहीं होने देेंगें अब दुनिया पहले से श्रेष्ठतर बनेगी। इन्ही दिव्य प्रयत्नों की एक झांकी युग निर्माण योजना अभियान के रूप में देखी जा सकती है।

    सूक्ष्म जगत की एक दिव्य प्रेरणा के अनुसार इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए युग निर्माण आन्दोलन की नींव रखी गई। मोटी दृष्टि से इस प्रयास को मनुष्यकृत समझा जा सकता है परन्तु उसके पीछे अति मानवीय शक्तियां काम कर रही हैं।

    युग निर्माण योजना संगठन, संस्थाओं जैसा नहीं, परिवार स्तर का है। केन्द्र (शान्तिकुंज) द्वारा संचालन तो होता है परन्तु केन्द्र से प्रेरणा भर दी जाती है। कार्यकलाप की पूछताछ, नैतिक प्रोत्साहन, मार्गदर्शन भर मिलता है। अन्य कोई नियंत्रण शाखा संगठनों पर नहीं है। सदस्यगण अपना स्थानीय संगठन बनाते हैं। मात्र एक कार्यवाहक नियुक्त करते हैं और बिना पदों की आपाधापी किए निर्धारित सेवा साधना में संलग्र रहते हैं।

आइये समझें युग निर्माण योजना क्या है? -

1. युग निर्माण योजना के उद्घोषक और संस्थापक हैं युग ऋषि वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा (आचार्य जी की सहधर्मिणी) इस योजना हेतु शक्ति ईश्वर की है, मनुष्य की नहीं। सम्पूर्ण योजना में अनुशासन एवं संरक्षण ऋषियों का है तथा इसे क्रियान्वयन करने का पुरुषार्थ जागृत आत्माओं का शरीरधारी सत्पुरुषों का है।

2. युग निर्माण का उद्देश्य एवं लक्ष्य :-
* मनुष्य में देवत्व का उदय हो, धरती पर स्वर्ग का अवतरण हो।
* आत्मवत सर्वभूतेषु    * वसुधैव कुटुम्बकम्
   अर्थात् सभी के पति अपनेपन का भाव। सारा विश्व अपना घर-परिवार प्रतीत हो और भाषा, देश, धर्म, संस्कृति जैसे आधारों पर कोई अलगाव न बरता जाए, सबको विकास का समान सुअवसर मिले।
* स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन व सभ्य समाज का निर्माण करना।

3. युग निर्माण योजना (विचार क्रान्ति अभियान) के तीन कार्यक्रम हैं -
* व्यक्ति निर्माण :- युग निर्माण का अर्थ है व्यक्ति निर्माण और व्यक्ति निर्माण का अर्थ है - गुण, कर्म, स्वभाव की दृष्टि से मानवीय विशेषताओं से परिपूर्ण व्यक्तित्व का विकास। युग निर्माण आरम्भ पर उपदेश से नहीं बल्कि आत्म सुधार से होगा। व्यक्ति निर्माण ही युग निर्माण की आधार शिला है, इसके अन्तर्गत व्यक्ति के भीतर उसके गुण कर्म स्वभाव में घुसी हुई अवांछनीयता को, दुष्प्रवृत्तियों को हटाया जाना है। व्यक्ति निर्माण के सूत्र है:- उपासना, आत्म साधना, लोक आराधना, समयदान व अंशदान।  जन्मदिन मनाना, संस्कार करना, बाल संस्कार शाला में बच्चों को पढ़ाना, प्रौढ़ शिक्षा शाला के द्वारा प्रौढ़ों को शिक्षित करना, युवाओं हेतु युवा शिविर लगाना, स्वाध्याय करना, उपासना करना, आदि व्यक्ति निर्माण के निमित्त किए जाने वाले कार्य हैं। इन आधारों पर व्यक्तित्व का परिष्कार और निर्माण होता है।

* परिवार निर्माण:- दूसरा कार्यक्रम परिवार निर्माण। व्यक्ति निर्माण होगा उन्ही से उनके परिवारों को भी निर्माण होगा। इसके लिए परिवारिक स्तर पर-सामूहिक उपासना, सामूहिक स्वाध्याय, परिवार में संस्कार परम्परा की स्थापना, पारिवारिक गोष्ठी, विवाहितों के विवाह दिवस संस्कार आदि के माध्यम से परिवार निर्माण किये जाने की प्रक्रिया चल रही है।

* समाज निर्माण :- श्रेष्ठ व्यक्ति तथा सुसंस्कारित परिवारों के संयोग से आदर्श समाज निर्माण का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। उसके लिए दो अभियान है - 1. दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन 2. सत्प्रवृत्ति संवद्र्धन। धर्म तन्त्र आधरित विविध माध्यमों से लोक शिक्षण करना, गायत्री सामूहिक विवेकशीलता एवं यज्ञ-सहकारिता युक्त सत्कर्म द्वारा सातों आन्दोलनों के माध्यम से सामूहिक स्तर पर किए जाने वाले कार्यो द्वारा समाज निर्माण का प्रयास हो रहा है।

4. हमारे सात आन्दोलन

1. साधना आन्दोलन - अपनी साधक प्रवृत्ति को विकसित करना। मन्त्र लेखन, मन्त्रजप साधना, अपने दुर्गुणों का क्रमश: परिष्कार(जीवन साधना)। इन कार्यों का सामाजिक स्तर पर व्यापक विस्तार।

2. शिक्षा आन्दोलन - बाल संस्कार शाला, प्रौढ़ शिक्षा शाला, रात्रिकालीन पाठशाला, भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा, व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर, कन्या शिविर के द्वारा संस्कार एवं संस्कृतिजन्य शिक्ष हेतु प्रयास।

3. स्वास्थ्य आन्दोलन :- स्वास्थ्य शिविर, योग शिविर, घर-घर योग व स्वास्थ्य के सूत्रों की स्थापना, गोष्ठियों के माध्यम से आहार विहार के प्रति जागरूकता, आयुर्वेद का प्रचार एवं स्थापना, बीमार पडऩे के पहले ही उपचार के सूत्र हृद्यंगम कराना।

4. स्वालम्बन आन्दोलन :- स्वदेशी से स्वावलम्बी व्यक्ति, गांव एवं राष्ट्र के निर्माण हूतु स्वावलम्बन शिविर द्वारा मार्गदर्शन देना।

5. नारी जागरण :- नारी को समर्थ व सशक्त बनाने हेतु प्रयास करना। उसे व्यक्तित्व निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण के कार्य में प्रशिक्षित करके उसकी प्रतिभा व योग्यता का पूरा लाभ उठाना इस हेतु उसे संस्कारगत शिक्षा, गोष्ठियों, सभा सम्मेलनों के माध्यम से आगे लाना। उसे यज्ञ संस्कार व रचनात्मक कार्यक्रमों की जिम्मेदारी सौपना।

6. पर्यावरण संरक्षण आन्दोलन :- पर्यावरण बचाने हेतु पौधे लगाना, नर्सरी तैयार करना, स्वच्छता सफाई अपनाना, पॉलीथिन, डिस्पोजेबल वस्तुओं का विरोध करना, वायु, जल, भूमि का संरक्षण।

7. व्यसन मुक्ति व कुरीति उन्मूलन आन्दोलन :- व्यसन एवं कुरीति मुक्त समाज हेतु रैली, गोष्ठि, प्रदर्शनी, व्याख्यान आदि के माध्यम से प्रयास। लक्ष्य- व्यसन मुक्त वयक्ति एवं व्यसन व कुरीति मुक्त समाज की स्थापना।

* हमारा प्रतीक है - लाल मशाल
युग निर्माण योजना के कार्य के 5 केन्द्रों से संचालित होते हैं वे पाँच महत्वपूर्ण स्थापनाएं निम्नलिखित हैं -

1. युगतीर्थ आँवलखेड़ा :- पूज्यवर का जन्म स्थान ‘आँवलखेड़ा’ अब युगतीर्थ बन चुका है। पू. गुरुदेव ने माता दानकुंवरि इंटर कॉलेज की स्थापना की। सन् 1979-80 में गायत्री शक्तिपीठ एवं राजकीय इंटर कॉलेज का शुभारम्भ किया। 1995 में प्रथम पूर्णाहुति समारोह सम्पन्न हुआ, जिसमें 50 लाख लोगों ने भाग लिया। माता भगवती देवी शर्मा सामुदायिक चिकित्सालय की स्थापना हुई। इस अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री ने एक कीर्तिस्तम्भ का लोकार्पण किया व आँवलखेड़ा को आदर्श ग्राम घोषित किया।

2. अखण्ड ज्योति संस्थान मथुरा :- पू. गुरुदेव अखण्ड दीपक के साथ यहीं रहने लगे। यहीं से अपने क्रान्तिकारी चिन्तन के विस्तार की प्रक्रिय ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका के माध्यम से सम्पन्न होने लगी। इसी घीयामण्डी की छोटी कोठरी में परमपूज्य गुरुदेव के 24-24 लाख के 24 महापुश्चरण की साधना सम्पन्न हुई। यहीं से अखण्ड ज्योति पत्रिका व युग निर्माण योजना पत्रिकाओं का सम्पादन हुआ करता था। सम्पूर्ण आर्ष साहित्य (वेद,उपनिषद,पुराण,दर्शन,गायत्री साहित्य) का सृजन एवं युग निर्माण योजना ‘मिशन’ का सूत्रपात आचार्य जी ने यहीं से किया।

3. गायत्री तपोभूमि मथुरा :- दुर्वासा ऋषि की तपस्थली यह प.पू. गुरुदेव के 24 महापुश्चरणों की पूर्णाहुति पर की गई स्थापना है। जिसे गायत्री परिवार संगठन के विस्तार के लिए निर्मित किया गया। इसकी स्थापना से पूर्व 2400 तीर्थों के जल व रज को संग्रहीत करके पूजन कर एक छोटी किन्तु भव्य यज्ञशाला में अखण्ड अग्नि स्थापित की गई। यहीं पर 108 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ 1953 में पहली बार पूज्यवर ने साधकों को दीक्षा दी। तपोभूमि मथुरा में युग निर्माण  के शतसूत्री कार्यक्रम एवं सत्संकल्प की तथा युग निर्माण विद्यालय के एक स्वालम्बन प्रधान शिक्षा देने वाले तन्त्र को आरम्भ किया गया। सम्पूर्ण युग निर्माण साहित्य का वितरण-विस्तार तन्त्र यहां देखा जा सकता है।

4. गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार :- ऋषि परम्परा के बीजारोपण के केन्द्र के रूप में 1971 में स्थापित किया गया। 24 कुमारी कन्याओं के साथ 240 करोड़ गायत्री मंत्र का अखण्ड अनुष्ठान परम वन्दनीया माता जी ने यहीं किया। पूज्य गुरुदेव ने प्राण प्रत्यावर्तन सत्र, जीवन साधना सत्र आदि के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय कार्य करने वाले कार्यकर्ता गढ़े।
शांतिकुंज को गायत्री तीर्थ का रूप देकर सप्त ऋषियो की मूर्तियों की स्थापना 1978-79 मे की गई। देवात्मा हिमालय निर्मित किया गया। यहां नित्य 24 कुंडीय यज्ञ, सभी संस्कार, विवाह, श्राद्ध तर्पण आदि चलते हैं। नियमित रूप से 9 दिवसीय साधना सत्र तथा एक मासीय युगशिल्पी सत्र, 42 दिवसीय रचनात्मक प्रशिक्षण सत्र तथा एक मासीय परिव्राजक सत्र चलाये जाते हैं। यहाँ सजल श्रद्धा प्रखर प्रज्ञा की स्थापना पूज्यवर ने अपने सामने की। स्वावलम्बन विद्यालय, एक विशाल चौके का निर्माण, गायत्री विद्यापीठ से लेकर भारत के सभी सरकारी विभागों के प्रशिक्षण के तन्त्र की स्थापना यहाँ पर की गई है। यह जीता जागता तीर्थ है।

5. ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान हरिद्वार :- यहाँ पर आध्यात्म और विज्ञान के समन्वय का अभिनव शोध कार्य चल रहा है। इसे 1979 की गायत्री जयन्ती पर आरम्भ किया गया है। गंगा जी के तट पर भूतल पर विज्ञान के उपकरणों से सुसज्जित एक यज्ञशाला विनिर्मित है तथा चौबीस कक्षों में गायत्री महाशक्ति की चौबीस मूर्तियां है। प्रथम तल पर वैज्ञानिक प्रयोगशाला जहां साधना से पूर्व एवं पाश्चात्य, यज्ञादि मंत्रोचारण के पूर्व व पश्चात् क्या-क्या परिवर्तन शरीर एवं मन पर होते हैं देखे जाते हैं। द्वितीय तल पर विशाल ग्रन्थागार है, जहाँ विश्वभर के शोध प्रबंध वैज्ञानिक आध्यात्मवाद पर एकत्रित किए गए हैं। यहाँ लगभग 45000 से अधिक ग्रन्थ हैं।

6. देव संस्कृति विश्वविद्यालय, गायत्री कुंज हरिद्वार :- प्राचीन गुरुकुल परम्परा पर आधारित ऋषियों की प्राप्त ऊर्जा एवं सांस्कृतिक चेतना से ओतप्रोत महामानव गढऩे हेतु संकल्पित एक स्थापना है। नालन्दा, तक्षशिला की तरह यहाँ से निकले विद्यार्थी सम्पूर्ण भारत एवं विश्व में देवसंस्कृति की संवेदना का विस्तार करते हैं।

हमारा उद्घोष है :-
* हम बदलेंगे-युग बदलेगा। हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा।।
हमारा संविधान है :-
* युग निर्माण सत्संकल्प के 18 सूत्र।
हमारी तीन आधारभूत क्रांतियाँ :-
* नैतिक क्रांति * बौद्धिक क्रांति * सामाजिक क्रांति
हमारा प्रतीक :-
* लाल मशाल - लाल मशाल के प्रतीक में कुल पाँच घटक हैं।

 1) जन समुदाय - युग सृजन के श्रेष्ठ भावना और विचार वाले सभी वर्गों के कर्मठ नर-नारी। 2) उनकी समन्वित शक्ति का प्रतीक हाथ। 3) सृजन के  संकल्प के रूप में हाथ में थामी हुई मशाल। 4) सृजन की क्षमता, उमंग सामथ्र्य के रूप में 36 वीं ज्वाला तथा 5) परमात्मा के समर्थन-संरक्षण का प्रतीक प्रभा मण्डल।
    युग निर्माण के साथ जुड़े हुए कार्यकर्ताओं व अपने शिष्यों को उनके सौभाग्य की सराहना करते हुए पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है कि- ‘‘ हमारा युग निर्माण आन्दोलन मनुष्यकृत आन्दोलन नहीं जो आज चले कल ठप्प हो जाए। जिन लोगों ने हमारे महाप्रयास में भाग लेने की तड़पन अनुभव की है उन्हें समझ लेना चाहिए, कि यह कोई बहकावा या भावावेश नहीं है। यह आत्मा का निर्देश और ईश्वर का संकेत है। उसे उन्होंने एक साधारण सौभाग्य के रूप में उपलब्ध किया है। रामावतार में जो श्रेय अंगद, हनुमान और नल नील को मिला, उससे दूसरों को वंचित ही रहना पड़ा। युग परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में जिन्हें घसीटा या धकेला गया है उन्हें अपने को आत्मा का, परमात्मा का प्रिय भक्त ही अनुभव करना चाहिए और धैर्यपूर्वक उस पथ पर चलने की तैयारी करनी चाहिए।’’
वाङमय 66 पृष्ठ 126।
   
 ‘‘जो शिक्षा साधारण व्यक्ति को जीवन संग्राम में समर्थ नहीं बना सकती जो मनुष्य में चरित्र बल, परहित भावना तथा सिंह के समान साहस नहीं ला सकती, वह भी कोई शिक्षा है? जिस शिक्षा के द्वारा जीवन में अपने पैरों पर खड़ा हुआ जाता है वही है सच्ची शिक्षा।’’
                    - स्वामी विवेकानन्द
‘‘शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व को ऊँचा उठाना है। मानव जाति को इस योग्य बनाना है कि परस्पर आत्मीयता का भाव विकीसत हो।’’
                    - शिक्षाशास्त्री रस्क

   
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