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Books - व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर - 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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स्वाध्याय जीवन की अनिवार्य आवश्यकता

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व्याख्यान का उदेश्य :-

1.    स्वाध्याय का महत्व समझ में आ जाए।

2.    ‘स्वाध्याय द्वारा ज्ञान पाने एवं जीवन की विसंतियों व समस्याओं को दूर करने की क्षमता पैदा होती है’ इस पर विश्वास जागे।

3.    सत्साहित्य के अध्ययन से लाभ, जीवन निर्माण तथा गंदे, अश्लील निरर्थक साहित्य के अध्ययन से होने वाली हानियों को समझ सकें।

4.    दिनचर्या में न्यूनतम आधा घन्टा नियमित स्वाध्याय की प्रक्रिया को दृढ़ संकल्पपूर्वक आरम्भ कर सके।

व्याख्यान क्रम :-

    ‘‘न ही ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।’’  - गीता

रोटी कपड़ा प मकान की भांति पुस्तकें मनुष्य जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।

1. आत्मा का नेत्र ‘ज्ञान’ है। ज्ञान के अभाव में व्यक्ति की स्थिति नेत्रहीन जैसी हो जाती है। संसार के सारे दु:ख अज्ञान और अशक्ति से ही पैदा होते हैं। अज्ञानी व्यक्ति पाप प्रलोभनों में व वासना तृष्णा के गर्त में गिरता है। भौतिक जीवन की सफलता एवं आत्मिक जीवन की पूर्णता के लिए सबसे प्रथम सोपान ज्ञान की प्राप्ति है।

    भगवान राम को गुरु महर्षि वशिष्ठ द्वारा दिया गया उपदेश - ‘‘हे राम! ज्ञान से ही दु:ख दूर होते हैं, ज्ञान से ही अज्ञान का निवारण होता है, ज्ञान से ही सिद्धि प्राप्त होती है और किसी उपाय से नहीं।’’

‘‘इस संसार में मनुष्य का एक ही शत्रु है - अज्ञान। इसके अतिरिक्त उसका और कोई शत्रु नहीं है। इस अज्ञान के कारण ही मनुष्य दारूण कर्म करने लगता है।’’

‘‘शारीरिक दु:खों को व्याधि और मानसिक दु:खों को आधि कहते हैं। ये दोनों मूर्खता से उत्पन्न होती है और ज्ञान से नष्ट हो जाती है।’’ (1,2,3, - योग वशिष्ठ ग्रंथ)

2. मनुष्यता का गौरव है ज्ञान। पशु योनि से मानव योनि उसके ज्ञान के कारण ही श्रेष्ठ है। भगवान कृष्ण के अनुसार स्वाध्याय तप है। भीष्म पितामह के अनुसार स्वाध्याय ‘‘धर्म’’ है।

3. जीवन के लिए शिक्षा ही नहीं विद्या भी आवश्यक है जो कि स्वाध्याय से ही सम्भव है।

4. स्वाध्याय की आवश्यकता एवं लाभ :-

1.    स्वयं के विचार परिवर्तन एवं संसार परिवर्तन (युग निर्माण) का आधार ज्ञान व स्वाध्याय ही। दृष्टांत - हैरिक स्टो की कृति - ‘टाम काका की कुटिय’ , कार्ल माक्र्य के ‘दास के केपिटल’ एवं पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के - 3200 युग साहित्य विचार क्रांति के आधार बने।

2.    स्थूल शरीर के समान सूक्ष्म शरीर (मन मस्तिष्क) को भी पोषण की आवश्यकता होती है। उसे स्वाध्याय द्वारा श्रेष्ठ चिन्तन सामग्री की आपूर्ति की जाती है, अन्यथा मन उल्टे सीधे, आधे औंधे विचारों दुश्चिन्तन में उलझा रहता है। विचारों से ही मनुष्य मोक्ष या पतन को प्राप्त करता है। परिष्कृत विचार स्वाध्याय से ही बनते है। स्वाध्याय नैतिक व चारित्रिक पतन से बचाता है।

3.    हम बदलेंगे - युग बदलेगा स्वयं की समीक्षा से ही सम्भव है। ‘मनुज देवता बने, बने यह धरती स्वर्ग समान’ का संकल्प विचार परिवर्तन से ही सम्भव है। दृष्टान्त - भर्तृहरि का सन्त बनना, गांधी जी का सत्यवादी होना। गांधी जी के पे्ररणा स्त्रोत - श्रीकृष्ण (गीता), ईसा (बाइबिल), सन्त टालस्टाय, दार्शनिक रस्किन के ग्रन्थ।

4.    बुरे साहित्य एवं सत्साहित्य के अध्ययन के प्रभाव -

    दृष्टांत-1- तीन विद्यार्थियों द्वारा परिक्षा के प्रश्न पत्रों की चोरी, किताब से प्रेरणा लेकर करना।

 2. महात्मा गांधी के पुस्तकों की प्रदर्शनी से चोर द्वारा ‘अस्तेय’ पुस्तक की चोरी कर हृदय परिवर्तन होना।

5    स्वाध्याय जीवन व्यवहार सिखाता है (रामायण की चौपाई से गीता के श्लोक से जीवन विद्या का शिक्षण।)

6.    अहंकार से बचाता है।

7.    युक्त मना भवति (मन अधान होता है।)

8.    सुखपूर्वक रात्रि विश्राम होता है।

9.    जीवन लक्ष्य प्राप्ति कराता है।

10.    अहरह अर्थान् साधयति (धन की प्राप्ति कराता है।)

11.    लोक व्यवहार सिखाता है।

12.    मस्तिष्क की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है।

13.    व्यक्ति का रुपांतरण ज्ञान व स्वाध्याय से ही होता है। (दृष्टांत - शंकराचार्य - पुस्तकें मानव के श्रेष्ठ मित्र है। इससे स्वभाव में परिवर्तन होता है।

5. स्वाध्याय कैसे करें :-

1.    तल्लीनतापूर्वक स्वाध्याय अध्ययन करना चाहिए।

    दृष्टांत - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की उत्तर पुस्तिका से पे्ररणा, सरोजनी नायडु द्वारा 13 वर्ष की उम्र में 1300 पंक्तियों की कविता की रचना। स्वामी विवेकानन्द, बाल गंगाधर तिलक - ‘‘मुझे नरक में भी भेज दो तो मैं वहाँ भी स्वर्ग बना दूँगा यदि पास पुस्तकें हों।’’

2.    जिज्ञासापूर्वक, अध्यवसायपूर्वक, युधिष्ठिर की भांति (सत्यंवद् धर्मंचर के श्लोक को युधिष्ठिर ने जीवन में उतार लिया तभी गुरु जी से सुनाया।) स्वाध्याय करें।

3.    पहले ध्यान से एक बार पढ़ें, फिर दूसरी बार महत्वपूर्ण शब्दों व वाक्यों को अंडर लाईन करें, उसे मनन चिन्तन करें, उन सूत्रों को जीवन में उतारने की योजना बनाएं। एक ही वाक्य, पृष्ठ को बारम्बार पढ़े। स्वयं की आवश्यकता एवं स्थिति के अनुसार समीक्षा करते हुए उसे जीवन में उतारने की बात सोचें, संकल्प करें।

6. क्या पढ़ें क्या न पढ़ें? (किसका स्वाध्याय करें)

1.    क्या पढ़ें - गीता, अखण्ड ज्योति, युगनिर्माण योजना आदि में जीवन की समस्याओं व रहस्यों का समाधान है। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी की 3200 पुस्तकें, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद के साहित्य, वेद उपनिषद्, रामायण की प्रगतिशील प्रेरणाएं, बाल समस्याएं व अन्य सत्साहित्य। ‘‘पुस्तकालय सच्चे देवालय होते हैं।’’ ‘‘अच्छे साहित्य के अध्ययन से तत्काल प्रकाश व उल्लास मिलता है।’’

2.    क्या न पढ़ें - अश्लील कामुक साहित्य, निरर्थक समाचार न पढ़ें, कामिक्स, हल्के स्तर की किताबें पढ़ते रहने से मस्तिष्क की ग्रहण क्षमता ढीली पड़ जाती है, जिससे गूढ़ बातों को समझने में मस्तिष्क अक्षम हो जाता है।

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