
भारतीय संस्कृति की मान्यताएँ
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मूर्तिपूजा- प्रतीकों की उपासना के पीछे क्या वैज्ञानिकता है तथा शिखा- सूत्र, तिलक- माला आदि के पीछे क्या रहस्य छिपे पड़े हैं जो हमारे ऋषियों ने उन्हें इतना महत्त्व दिया, यह विवेचन पाठकगण इसमें पढ़ सकेंगे मूर्तिपूजा- प्रतीकों की उपासना के पीछे क्या वैज्ञानिकता है तथा शिखा- सूत्र, तिलक- माला आदि के पीछे क्या रहस्य छिपे पड़े हैं जो हमारे ऋषियों ने उन्हें इतना महत्त्व दिया, यह विवेचन पाठकगण इसमें पढ़ सकेंगे ।। षोड़ष संस्कारों से लेकर पर्व त्यौहारों तक तथा तीर्थ यात्राओं, मेलों से लेकर कथा पारायण तक देवसंस्कृति का विस्तृत फैलाव है ।। इन सभी के स्वरूप को एक पाठक को जैसे प्रारंभिक कक्षा के छात्र को पढ़ाया जाता है, पूज्यवर ने समझाया है ।। बहुदेव वाद क्या है- हमें इसके माध्यम से एक पर ब्रह्म की उपासना के मार्ग तक कैसे पहुँचाना है, यह समग्र तत्त्व दर्शन तथा श्राद्ध- तर्पण आदि मान्यताओं की वैज्ञानिक व्याख्या भी इस में है ।।
अंतिम अध्याय में पूज्यवर ने चारों वर्णों व चारों आश्रमों के विभिन्न पक्षों को विस्तार से लिखा है ।। वर्णाश्रम पद्धति हमारी संस्कृति की विशेषता है एवं समाज की सुव्यवस्था की एक सुदृढ़ आधार शिला है ।। आज इस संबंध में अनेकानेक भ्रान्तियाँ फैला दी गयी हैं पर वस्तुतः यह सारी विधि व्यवस्था मानवी जीवन को व उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों को एक निर्धारित क्रम में बाँधने के लिए बनी थीं ।। इसी सामाजिक पक्ष में संस्कृति के खान- पान, जाति- पाँति, ऊँच- नीच, भाषा वेश, गुण- कर्म की परिष्कार से समाज की आराधना जैसे अनेकानेक पक्ष आ जाते हैं इनका वर्णन विस्तार से हुआ है ।। गुरु, गायत्री, गंगा, गौ व गीता ये पाँच हमारी संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आधार स्तम्भ माने जाते हैं ।। इनके प्रति श्रद्धा रख हम अपनी सांस्कृतिक गौरव गरिमा का अभिवर्धन करते हैं एवं इनके माध्यम से अनेकानेक अनुदान भी दैनन्दिन जीवन में पाते हैं ।।
अंतिम अध्याय में पूज्यवर ने चारों वर्णों व चारों आश्रमों के विभिन्न पक्षों को विस्तार से लिखा है ।। वर्णाश्रम पद्धति हमारी संस्कृति की विशेषता है एवं समाज की सुव्यवस्था की एक सुदृढ़ आधार शिला है ।। आज इस संबंध में अनेकानेक भ्रान्तियाँ फैला दी गयी हैं पर वस्तुतः यह सारी विधि व्यवस्था मानवी जीवन को व उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों को एक निर्धारित क्रम में बाँधने के लिए बनी थीं ।। इसी सामाजिक पक्ष में संस्कृति के खान- पान, जाति- पाँति, ऊँच- नीच, भाषा वेश, गुण- कर्म की परिष्कार से समाज की आराधना जैसे अनेकानेक पक्ष आ जाते हैं इनका वर्णन विस्तार से हुआ है ।। गुरु, गायत्री, गंगा, गौ व गीता ये पाँच हमारी संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आधार स्तम्भ माने जाते हैं ।। इनके प्रति श्रद्धा रख हम अपनी सांस्कृतिक गौरव गरिमा का अभिवर्धन करते हैं एवं इनके माध्यम से अनेकानेक अनुदान भी दैनन्दिन जीवन में पाते हैं ।।