
गायत्री का व्याख्या विस्तार
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गायत्री महामंत्र के 24 अक्षरों में इतना ज्ञान- विज्ञान भरा हुआ है कि उसका अन्वेषण करने से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है ।। ब्रह्माजी ने गायत्री के चार चरणों की व्याख्या स्वरूप चार मुखों से चार वेदों का वर्णन किया ।।
महर्षि वाल्मीकि ने अपनी वाल्मीकि रामायण की रचना करते हुए एक- एक हजार श्लोकों के बाद क्रमशः गायत्री के एक- एक अक्षर से आरंभ होने वाले श्लोक बनाये ।। इस प्रकार वाल्मीकि रामायण में प्रत्येक एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री के एक- एक अक्षर का सम्पुट लगा हुआ है ।। महर्षि वाल्मीकि गायत्री के महत्त्व को जानते थे उन्होंने अपने महाकाव्य में एक प्रकार का सम्पुट लगाकर अपने ग्रंथ की महत्ता में और भी अधिक अभिवृद्धि कर ली ।।
श्रीमद्भागवत पुराण की भी गायत्री महामंत्र की व्याख्या स्वरूप ही रचना हुई ।। श्री धरी टीका में इस रहस्य को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है ।।
सत्यं परं धीमहि- तं धीमहि इति गायत्र्या प्रारम्भेण गायत्र्याख्य ब्रह्मविद्या रूपभेत्पुराण इति ।। (श्री धरी)
वेद व्यास जी ने गायत्री प्रतिपाद्य सत्यं परं धीमहि तत्व में ही भागवत् का प्रारंभ मूल है ।। गायत्री के ही दो अक्षरों की व्याख्या में एक- एक स्कन्ध बनाकर 12 स्कन्ध पूरे किये हैं ।।
देवी भागवत् पुराण के सम्बन्ध में भी यही मान्यता है कि उसकी रचना गायत्री मंत्र के अक्षरों में निहित तत्वों का उद्घाटन करने के लिए ही की गई है ।। मत्स्य पुराणों में इस तथ्य का स्पष्ट उल्लेख है ।।
यत्राधिकृत्य गायत्री वर्णयन्ते धर्म विस्तरः ।।
वृत्रासुरवधोपेतं तद् भागवत् मुच्यते ॥ मत्स्य पुराण 53/20
जिसमें गायत्री के माध्यम से धर्म का विस्तार पूर्वक वर्णन है ।। जिसमें वृत्तासुर वध का वृतान्त है, वह भागवत् ही कही जाती है ।।
देवी भागवत् पुराण का आरंभ गायत्री के रहस्योद्घाटन के रूप में ही होता है ।।
ॐ सर्व चैतन्य रूपां तामाद्यां विद्यां च धीमहि ।। बुद्धियों नः प्रचोदयात् ।। (देवी भागवत्)
जो आदि अन्त रहित, सर्व चैतन्य स्वरूप वाली, ब्रह्म विद्या स्वरूपिणी आदि शक्ति है उसका हम ध्यान करते हैं ।। वह हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करे ।।
देवी भागवत्, बारहवें स्कन्ध के अन्त में समाप्ति का श्लोक भी गायत्री तत्व के सम्पुट के साथ ही पूर्ण हुआ है ।।
सच्चिदानंद रूपां ता गायत्री प्रतिपिदताम् ।।
नमामि ह्रीं मयि देवी धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
उन ह्रीं मयि सच्चिदानंद स्वरूपा गायत्री शक्ति को प्रणाम है ।। वे हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें ।।
चारों वेद, रामायण, श्रीमद् भागवत्, देवी भागवत् ही नहीं- न जाने कितने बड़े ज्ञान- भण्डार का प्रणयन, गायत्री के आधार पर हुआ है ।। वस्तुतः भारतीय धर्म का सारा ज्ञान- विज्ञान गायत्री रूपी सूर्य के सामने छोटे- बड़े ग्रह- उपग्रहों के रूप में भ्रमण करता है ।।
(गायत्री महाविद्या का तत्त्वदर्शन पृ. 1.35)
महर्षि वाल्मीकि ने अपनी वाल्मीकि रामायण की रचना करते हुए एक- एक हजार श्लोकों के बाद क्रमशः गायत्री के एक- एक अक्षर से आरंभ होने वाले श्लोक बनाये ।। इस प्रकार वाल्मीकि रामायण में प्रत्येक एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री के एक- एक अक्षर का सम्पुट लगा हुआ है ।। महर्षि वाल्मीकि गायत्री के महत्त्व को जानते थे उन्होंने अपने महाकाव्य में एक प्रकार का सम्पुट लगाकर अपने ग्रंथ की महत्ता में और भी अधिक अभिवृद्धि कर ली ।।
श्रीमद्भागवत पुराण की भी गायत्री महामंत्र की व्याख्या स्वरूप ही रचना हुई ।। श्री धरी टीका में इस रहस्य को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है ।।
सत्यं परं धीमहि- तं धीमहि इति गायत्र्या प्रारम्भेण गायत्र्याख्य ब्रह्मविद्या रूपभेत्पुराण इति ।। (श्री धरी)
वेद व्यास जी ने गायत्री प्रतिपाद्य सत्यं परं धीमहि तत्व में ही भागवत् का प्रारंभ मूल है ।। गायत्री के ही दो अक्षरों की व्याख्या में एक- एक स्कन्ध बनाकर 12 स्कन्ध पूरे किये हैं ।।
देवी भागवत् पुराण के सम्बन्ध में भी यही मान्यता है कि उसकी रचना गायत्री मंत्र के अक्षरों में निहित तत्वों का उद्घाटन करने के लिए ही की गई है ।। मत्स्य पुराणों में इस तथ्य का स्पष्ट उल्लेख है ।।
यत्राधिकृत्य गायत्री वर्णयन्ते धर्म विस्तरः ।।
वृत्रासुरवधोपेतं तद् भागवत् मुच्यते ॥ मत्स्य पुराण 53/20
जिसमें गायत्री के माध्यम से धर्म का विस्तार पूर्वक वर्णन है ।। जिसमें वृत्तासुर वध का वृतान्त है, वह भागवत् ही कही जाती है ।।
देवी भागवत् पुराण का आरंभ गायत्री के रहस्योद्घाटन के रूप में ही होता है ।।
ॐ सर्व चैतन्य रूपां तामाद्यां विद्यां च धीमहि ।। बुद्धियों नः प्रचोदयात् ।। (देवी भागवत्)
जो आदि अन्त रहित, सर्व चैतन्य स्वरूप वाली, ब्रह्म विद्या स्वरूपिणी आदि शक्ति है उसका हम ध्यान करते हैं ।। वह हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करे ।।
देवी भागवत्, बारहवें स्कन्ध के अन्त में समाप्ति का श्लोक भी गायत्री तत्व के सम्पुट के साथ ही पूर्ण हुआ है ।।
सच्चिदानंद रूपां ता गायत्री प्रतिपिदताम् ।।
नमामि ह्रीं मयि देवी धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
उन ह्रीं मयि सच्चिदानंद स्वरूपा गायत्री शक्ति को प्रणाम है ।। वे हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें ।।
चारों वेद, रामायण, श्रीमद् भागवत्, देवी भागवत् ही नहीं- न जाने कितने बड़े ज्ञान- भण्डार का प्रणयन, गायत्री के आधार पर हुआ है ।। वस्तुतः भारतीय धर्म का सारा ज्ञान- विज्ञान गायत्री रूपी सूर्य के सामने छोटे- बड़े ग्रह- उपग्रहों के रूप में भ्रमण करता है ।।
(गायत्री महाविद्या का तत्त्वदर्शन पृ. 1.35)