
काया में तुम बँधे नहीं
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
काया में तुम बँधे नहीं
काया में तुम बँधे नहीं, शाश्वत विचार हो तुम।
एक शब्द में परिभाषित अनवरत प्यार हो तुम।।
ज्ञान रूप है केवल लघु- सा अंश तुम्हारा।
अखिल विश्व में फैला अपना वंश तुम्हारा।।
एक सहज अपनेपन को आधार बनाया।
प्यार बाँटकर एक बड़ा परिवार बनाया।।
अगणित सुमनवृंद से सुरभित कण्ठहार हो तुम।।
जिसे तुम्हारी मिली प्यार- ममता की छाया।
निज जीवन में अभयदान उसने है पाया।।
अनायास ही शौर्य, शक्ति, साहस वह पाता।
पूर्ण आत्मविश्वास, आत्मबल से हो जाता।।
मिथ्या भय से मुक्ति दिलाते सिंहद्वार हो तुम।।
नहीं मिलोगे कहीं प्रदर्शन- ऐश्वर्यों में।
विस्मित करते चमत्कार या आश्चर्यों में।।
पल- पल प्रेरक होता है सान्निध्य तुम्हारा।
शब्द- शब्द से मिलता जीवन- लक्ष्य हमारा।।
प्राणशक्ति के अंतहीन अक्षय प्रसार हो तुम।।
अस्थि- चर्म के तुम न आवरण हो अस्थाई।
नहीं शिरा- संचरित रक्त की हो अरुणाई।।
तुम कारण सत्ता से हो सुनियोजन करते।
अन्तरिक्ष से सबका सतत् नियंत्रण करते।।
जो कुछ है उत्कृष्ट, उसी के सघन सार हो तुम।।
काया में तुम बँधे नहीं, शाश्वत विचार हो तुम।
एक शब्द में परिभाषित अनवरत प्यार हो तुम।।
ज्ञान रूप है केवल लघु- सा अंश तुम्हारा।
अखिल विश्व में फैला अपना वंश तुम्हारा।।
एक सहज अपनेपन को आधार बनाया।
प्यार बाँटकर एक बड़ा परिवार बनाया।।
अगणित सुमनवृंद से सुरभित कण्ठहार हो तुम।।
जिसे तुम्हारी मिली प्यार- ममता की छाया।
निज जीवन में अभयदान उसने है पाया।।
अनायास ही शौर्य, शक्ति, साहस वह पाता।
पूर्ण आत्मविश्वास, आत्मबल से हो जाता।।
मिथ्या भय से मुक्ति दिलाते सिंहद्वार हो तुम।।
नहीं मिलोगे कहीं प्रदर्शन- ऐश्वर्यों में।
विस्मित करते चमत्कार या आश्चर्यों में।।
पल- पल प्रेरक होता है सान्निध्य तुम्हारा।
शब्द- शब्द से मिलता जीवन- लक्ष्य हमारा।।
प्राणशक्ति के अंतहीन अक्षय प्रसार हो तुम।।
अस्थि- चर्म के तुम न आवरण हो अस्थाई।
नहीं शिरा- संचरित रक्त की हो अरुणाई।।
तुम कारण सत्ता से हो सुनियोजन करते।
अन्तरिक्ष से सबका सतत् नियंत्रण करते।।
जो कुछ है उत्कृष्ट, उसी के सघन सार हो तुम।।