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प्राणि परिवार में सहयोग सद्भाव बढ़ाया जाय

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पशु-पक्षी भी मनुष्य के समान ही जीवधारी हैं। उन्हें भी परमेश्वर ने पैदा किया हुआ है उनका पोषण भी हमारी ही तरह धरती माता से मिलता है। सब प्राणियों का एक पिता है—परमेश्वर और एक ही माता है—धरती। इसलिए थोड़ा विशाल दृष्टि से देखें तो प्रतीत होगा कि सभी प्राणी आपस में भाई-भाई ही हैं। विकसित अविकसित का अन्तर तो मनुष्य-मनुष्य के बीच भी पाया जाता है इससे उनके सम्मान एवं अधिकार में कोई अन्तर नहीं आता। मानव मात्र के प्रति जिस प्रकार उदार व्यवहार और सद्भाव बरतने की आवश्यकता समझी जाती है उसी प्रकार उस ममता, आत्मीयता का विकास क्रमशः समस्त जीव-जगत में होना चाहिए। आत्मा का समग्र विकास और विस्तार मनुष्यों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए वरन् उसे प्राणिमात्र तक व्यापक होना चाहिए।

पशु-पक्षियों को पालतू और प्रशिक्षित बनाने का प्रयास किया जाय तो वे हमारे लिए बाधक न रहेंगे वरन् सहयोगी के रूप में काम करके हमारी समृद्धि और शांति में सहायता प्रदान करेंगे। उन्हें नष्ट करने पर उतारू न रह कर यदि मानवी प्रयत्न अन्य प्राणियों को प्रशिक्षित करने में लग जायं तो न केवल प्राणिमात्र के बीच सद्भावना का विस्तार हो सकता वरन् विश्वव्यापी चेतना तत्व को अधिक गति से विकास की दिशा में बढ़ चलने का अवसर भी मिल सकता है। प्राणियों को प्रशिक्षित करने के लिए जहां भी प्रयत्न हुए हैं वहां आशाजनक सफलता मिली है।

संसार के विभिन्न भागों में विभिन्न आकृति-प्रकृति के वानर पाये जाते हैं। अफ्रीका का गुयेरेजा कोलोवस बन्दर शरीर में तो तीन फुट ही होता है पर उसकी पूंछ शरीर से भी अधिक लम्बी अर्थात् साड़े तीन फुट होती है। हाथी जो काम सूंड़ से लेता है लगभग वैसा ही यह पूंछ से लेता है। दक्षिणी अमेरिका के हाडलर वानर का स्वर बहुत तीखा होता है दो मील दूर तक उसकी आवाज सुनी जाती है और क्रोध, हर्ष, पीड़ा, कामोन्माद आदि की अनुभूतियां उसकी वाणी से सहज ही पहचानी जा सकती हैं। दक्षिणी अमरीका के अमेजन क्षेत्र में पाये जाने वाले सिवाइड्स वानर, गिलहरी और उल्लू की आकृतियों के सम्मिश्रण से बने हुए अपने ढंग के अनोखे प्रतीत होते हैं।

निशाचर डोरोकोलिस, लम्बी वाला साकी, देखने में सुन्दर और अकल का पुतला केपूचिन मनुष्य के साथ कुत्ते की तरह ही घुल-मिल जाता है बर्तन धोना, कपड़े सुखाना, झाड़ू लगाना, बिखरी चीजों को संभाल कर रखना, पंखा झलना, घर की रखवाली जैसे छोटे-मोटे घरेलू काम करने में मालिकों की सहायता करता है। ड्रॉइंग का अभ्यास करा दिया जाय तो वह खड़िया हाथ में लेकर सीखी हुई आकृति बिलकुल सही बना देता है। वूली बन्दर पर भेड़ जैसी ऊन होती है। मकड़ी की तरह हाथ पैर और पूंछ के सहारे यह एक डाली से दूसरी डाली पर उलटी सीधी चाल से चढ़ता उतरता और उछलता रहता है इसलिए इस वानर का नाम स्पाइडर मंकी पड़ा है। गले की अतिरिक्त थैली में ढेरों फालतू आहार भर कर फिरते रहने वाले बन्दर बोर्नियो में अधिक होते हैं। पूर्वीय गोलार्ध में पाये जाने वाले मैकेक और रहसीस जीवनी शक्ति और सन्तुलित मानसिक क्षमता वाले होते हैं अन्तरिक्ष उड़ान में एक समय इन्हीं का उपयोग किया गया था कुत्ते के जैसे मुंह लेवा बेवून अरब देशों में पाये जाते हैं वे पेड़ पर चढ़ने की अपेक्षा जमीन पर रहने में सुख, सरलता अनुभव करते हैं।

जर्मन प्राणिशास्त्री कोलर ने अपने पालतू चिंपैंजी ‘सुलतान’ की बुद्धिमत्ता बढ़ाने के लिये उसे कितनी ही गुत्थियां सुलझा सकने और अड़चनों का सही हल निकालने के लिए प्रशिक्षित किया था। वह अलमारी खोलकर अपने काम की चीजें निकालता और फिर उसे बन्द कर देता था। लम्बे बांस के सहारे ऊंची टंगी हुई चीजें उतारना उसे अच्छी तरह आता था ऐसे ही वह और भी कई बुद्धिमानी के काम करता था।

मैडम कोट्क का पालतू चिंपैंजी रंगों के भेद उपभेद समझता था और प्रायः तीस तरह के हलके गहरे रंगों का वर्गीकरण कर लेता था। रेखागणित की आकृतियों को पहचान लेने में भी उसने कुशलता प्राप्त करली थी। क्यूबा में बादाम अब्रू के पास एक विनोदी चिम्पांजी था। वह जब पुरुषों को पास आते देखता तो अपनी मादा को फौरन छिपा लेता, किन्तु कोई स्त्री पास आती तो मादा को प्रसन्नता पूर्वक फिरने देता।

गोरिल्ला वनमानुषों में अग्रणी है। उसकी ऊंचाई छह फुट होती है किन्तु दोनों हाथों को मिलाकर लम्बाई नौ फुट तक जा पहुंचती है। वजन 400 से 600 पौण्ड। यह दो-ढाई इन्च मोटी लोहे की छड़ आसानी से तोड़-मरोड़ कर फेंक सकता है। इसकी पकड़ में किसी जानवर का कोई अंग आ जाय तो उसे एक ही झटके में उखाड़ कर फेंक सकता है। संसार प्रसिद्ध फिल्म ‘किंग कांग’ में प्रमुख करतब एक भीम काय गोरिल्ला का है। इस फिल्म को अत्यधिक ख्याति मिली।

इस जाति का दूसरा वानर चिंपैंजी अपेक्षाकृत अधिक बुद्धिमान होता है उसकी हर क्रिया से बुद्धिमत्ता और विचारशीलता टपकती है। अकारण उसे बेतुकी हरकतें करने नहीं पाया जायगा। परिवार भी उसका व्यवस्थित रहता है। एक नर के साथ कई मादाएं सुख और सुरक्षा पूर्वक जीवनयापन करती हैं। पालतू चिंपैंजी के साथ कभी पेचीदगी भरी स्थिति उपस्थित करदी जाय तो वह सहज ही सुलझा लेता है।

जर्मनी में कुछ समय पूर्व एक विश्वविख्यात घोड़ा था—‘क्लेवर हान्स’ वह जर्मन भाषा में पूछे गये गणित के छोटे-छोटे प्रश्नों का उत्तर टाप के खटके मार कर देता था और दर्शक उसकी गणितज्ञ बुद्धि को देखकर चकित रह जाते थे। अमेरिका और फ्रांस में भी इस तरह के कई घोड़े हो चुके हैं। इनकी बुद्धिमत्ता जांचने के लिए पशु मनोविज्ञानी थर्नडाइक ने गम्भीर अध्ययन किये हैं कि बुद्धि पर मनुष्य की ही वपौती नहीं है, वह बीज रूप में दूसरे जीवों के भीतर भी मौजूद है और यदि उन्हें उपयुक्त अवसर मिले तो वे भी अपनी बुद्धिमत्ता को बड़ी हद तक विकसित कर सकते हैं।

तंजानिया (अफ्रीका) में पशु अभियन्ता मि. जार्ज के मकान के पास ही पेड़ पर एक घोंसला बना रखा था। संसर्ग के प्रभाव से इस गिलहरी ने अपने में ऐसी आदतें उत्पन्न करली थीं जिसमें देखने वालों को बड़ा कौतूहल होता था। शराब का चस्का उसे लग गया था। वह चुपके से आती और घर में रखी शराब की बोतलों के कार्क खोलकर मद्य पान का आनन्द लेती। यह गिलहरी प्रायः अपना भोजन इस परिवार से ही प्राप्त करती थी अस्तु उसे समय और स्वाद का अभ्यास हो गया था। नियत समय ही वह भोजन करती और जो वस्तुयें खाने की शिक्षा दी गई थीं उन्हें ही चुनकर ग्रहण करती। उसने कमोड में ही टट्टी जाना सीख लिया था। जब भी उसे मल त्यागना होता नियत स्थान पर जाकर अपनी हाजत पूरी करती इधर-उधर मल विसर्जन करते उसे कभी नहीं देखा गया।

मास्को के एक इंजीनियर अनातोली वाइकोव ने दो कबूतरों को मशीनों के अच्छे और खराब पुर्जे पहचानने और उसका अन्तर बता सकने की शिक्षा दी। इस पहचान का आधार तुष्टि पूर्ण पुर्जों से अलग ढंग के ऐसे कम्पनों का निकलता था जो बहुत ही संवेदनशील मशीनों से पहचाने जा सकते थे। कबूतर उस अन्तर को समझने में अभ्यस्त हो गये और अपने पालने वालों की अच्छी सहायता करने लगे।

वाइकोव ने लिखा है—प्रशिक्षित कबूतर जिस बारीकी से यांत्रिक खराबी को पकड़ सकते हैं उतनी जानकारी देने वाले निर्देश उपकरण बहुत ही कठिनता से बनाये जा सकेंगे। शिशुमार नामक मत्स्य जाति का जल का बहुत ही प्रेमी और सहयोगी प्रकृति का होता है। प्रयत्न करने पर वह मनुष्य के साथ हिलमिल जाता है और खुशी से पालतू बनकर रहने लगता है। जापानी मत्स्य विशेषज्ञ मसाइकी नहाजमा का कथन है कि ‘‘यदि शिशुमार थल चर होते तो वे मनुष्य के लिये कुत्तों से भी अधिक स्नेही, सहयोगी सिद्ध होते।’’ वे अपने परिवार के साथ बहुत ही सज्जनता भरा व्यवहार करते हैं।

शिशुमार कोई तीस तरह की ध्वनियां अपने मुख से निकाल सकते हैं और उनके आधार पर अपनी मनःस्थिति का दूसरों को परिचय दे सकते हैं। शिकार पकड़ने के लिए दौड़ते समय वे कुत्ते की तरह भौंकते हैं। सफल होने पर बिल्ली की भांति म्याऊ-म्याऊ करके खुशी जाहिर करते हैं। पेट भरने पर वे डकार लेते हैं। चटाख की ध्वनि के साथ होठ चाटते हैं। विरोधियों को डराने के लिए पटाखा चलने जैसी आवाज करते हैं।

सिखाने पर वे कई तरह के खेल करते हैं। सीटी बजाने पर उसका जवाब सीटी बजाकर देते हैं। शिशुमार को सिटासियन वंश का ह्वेल जातीय समझा जाता है। दिशा बोध और शब्द ज्ञान की उसे अच्छी जानकारी होती है। 25 गज दूरी से फेंकी हुई वस्तु को वह इस तेजी से पकड़ सकता है मानो उस वस्तु के साथ ही वह उड़कर आया हो। समुद्री खोज के लिए गहरे सागर तल में बने हुए अमेरिका खोज केन्द्र—सीलैब-2 के लिए एक कुशल कार्यकर्ताओं के रूप में पालतू शिशुमार ‘टैफी’ ने असाधारण सहायता की थी। थके हुए गोताखोरों को उनकी कमर में बंधी रस्सी मुंह से पकड़ कर जहाज तक पहुंचा देने में भी पालतू शिशुमार बड़ा कौशल दिखाते हैं। वे मनुष्य की तरह हंस भी सकते हैं। ब्रिटिश नौ सेना से रिटायर होकर नीरेफौक के विचिंगहम स्नान में फिलिप वेयरेने अपने आठ एकड़ के खेत में घरेलू चिड़ियाघर बनाया। उसका उद्देश्य पशु-पक्षियों की प्रकृति का अध्ययन और उनकी नस्लों को सुन्दर सुविकसित बनाने का मार्ग खोजना था। अपने विषय में रुचि पूर्वक तन्मय हो जाने के कारण वेयरे ने दुर्लभ पशु-पक्षी प्राप्त किये और उनकी प्रकृति के बारे में नई-नई जानकारियां की। चिड़ियाघर की ख्याति फैली तो दर्शकों के झुण्ड भी अपने कौतुहल की तृप्ति के लिए वहां आने लगे और टिकिट की आमदनी से चिड़िया घर का खर्च चलने में सहायता मिलने लगी।

रीछ और भेड़िये किस प्रकार सज्जन बनाये जा सकते हैं और बिदकने वाले पशुओं को विश्वस्त एवं स्नेही कैसे बनाया जा सकता है इस प्रयोग में उन्होंने आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की है।

वेयरे की तत्परता ने उन्हें संसार के अनुभवी प्राणि विशेषज्ञों की पंक्ति में ला बिठाया है। ऐग्लिवां टेलीविजन कम्पनी में प्राणि विशेषज्ञ की भूमिका में कितने ही कौतुहल वर्धक कार्यक्रम देते रहते हैं। ‘विन्ड इन दी रीडस्’ नामक प्रख्यात फिल्म में उन्होंने प्रागैतिहासिक काल से लेकर अब तक प्राणियों के विकास और विनाश का महत्वपूर्ण चित्रण किया है, वेयरे मात्र नहीं हैं, वरन् ‘‘प्राणिमात्र के साथ मनुष्यों को अधिक अच्छा व्यवहार करना चाहिए।’’ योरोप में इस आन्दोलन के सूत्रधार भी हैं। उनकी पत्नी ‘पैट’ इस कार्य में उनका भरपूर सहयोग करती है।

मत्स्य विशेषज्ञ स्टेटर ने विभिन्न प्रकार के संगीत के मछलियों पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों का पर्यवेक्षण किया है। कुछ ध्वनियां तो मछलियों को इतनी प्रिय लगीं कि वे उन्हें सुनकर उछलने-कूदने और नाचने लगतीं। कुछ ध्वनियां उन्हें बिलकुल पसन्द न आई और वे जब बजतीं तो उपेक्षा पूर्वक मुंह मोड़कर अन्यत्र चली जातीं। संगीत की विभिन्न ध्वनियों ने उनके शरीर पर भी भिन्न और विचित्र प्रभाव डाले। एक प्रकार के संगीत ने तो उनका वजन और विस्तार बढ़ाने में बहुत सहायता की। एक ध्वनि के कारण उनकी प्रजनन क्रिया दूरी हो गई तथा कहीं अधिक अण्डे दिये।

डा. फ्रेंक वाडन ने मछलियों को रंग पहचानना सिखाया और यातायात के नियमों का अभ्यास कराया, वे अपने मालिक और दर्शक का अन्तर करना सीख गई। मिनो जाति की मछलियां यह समझने लगी कि किस प्रकार की आवाज सुनकर उन्हें क्या आचरण करना चाहिए।

प्रो. जे. पी. फ्रोलोक ने मछलियों को संगीत सुनने का शौकीन बनाने में सफलता प्राप्त की है। वे तालाब में बिजली के तार डालते और संगीत के रिकार्ड बजाते रहे। आरम्भ में मछलियों ने थोड़ा ही ध्यान उस ओर दिया किन्तु धीरे-धीरे उसकी पूरी शौकीन हो गई जैसे ही संगीत की ध्वनि होती वे चारों ओर से वहीं इकट्ठी हो जाती और ध्वनि केन्द्र को लपकने का प्रयत्न करतीं।

उन्होंने एक तालाब में कुछ मछलियां पाली। भोजन नियत समय पर दिया जाता और चारा डालने से पूर्व घंटी बजाई जाती। थोड़े दिन में घण्टी और चारे का सम्बन्ध वे समझ गई और जब भी समय कुसमय घण्टी बजती तभी वे चारे के लिए दौड़ कर इकट्ठी हो जातीं।

पशु-पक्षियों को अपने ही प्राणि परिवार का सम्मानित सदस्य समझ कर उन्हें सुखी-समुन्नत और प्रशिक्षित बनाने की दिशा में यदि हमारी प्रवृत्ति मुड़ सके तो न केवल जीव जगत का उपकार होगा वरन् मानवी उदारता और सद्भावना का एक सुखद अध्याय प्रारम्भ होगा। विश्व चेतना में सदाशयता की वृद्धि करने के प्रयास करके मनुष्य घाटे में नहीं वरन् नफे में ही रहेगा। नये सहयोगियों का नया सद्भाव पाकर मानवी प्रगति में नया उभार ही आवेगा।
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