• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • परिवार का दर्शन (अवधारणा)
    • परिवार को सफल बनाने के लिये सच्ची पारिवारिक भावना जरूरी
    • परिवार परम्परा का विराट् उद्देश्य : व्यक्तित्व निर्माण
    • हमारा परिवार तथा भिन्न- भिन्न संबंध
    • परिवार को सुसंस्कृत बनाएँ
    • परिवार निर्माण के स्वर्णिम सूत्र
    • स्वच्छता एवं सुव्यवस्था परिवार भर को सिखाएँ
    • परिवार और हमारे कर्तव्य
    • परिवार निर्माण की धुरी- नारी
    • पारिवारिक जीवन की समस्याएँ व समाधान
    • संयुक्त परिवार- सौभाग्य और समुन्नति का द्वार
    • परिवार निर्माण के लिए मानसिक पोषण भी आवश्यक है
    • परिवारों का पुनर्निर्माण- एक अनिवार्य उपयोगी आवश्यकता
    • परिवार की आन्तरिक व्यवस्था
    • सुख का आधार सम्पन्नता नहीं आत्मीयता
    • साधारण गृहस्थी के खर्च विभाग
    • व्यक्ति, परिवार और समाज निर्माण के लिए त्रिविध आयोजन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • परिवार का दर्शन (अवधारणा)
    • परिवार को सफल बनाने के लिये सच्ची पारिवारिक भावना जरूरी
    • परिवार परम्परा का विराट् उद्देश्य : व्यक्तित्व निर्माण
    • हमारा परिवार तथा भिन्न- भिन्न संबंध
    • परिवार को सुसंस्कृत बनाएँ
    • परिवार निर्माण के स्वर्णिम सूत्र
    • स्वच्छता एवं सुव्यवस्था परिवार भर को सिखाएँ
    • परिवार और हमारे कर्तव्य
    • परिवार निर्माण की धुरी- नारी
    • पारिवारिक जीवन की समस्याएँ व समाधान
    • संयुक्त परिवार- सौभाग्य और समुन्नति का द्वार
    • परिवार निर्माण के लिए मानसिक पोषण भी आवश्यक है
    • परिवारों का पुनर्निर्माण- एक अनिवार्य उपयोगी आवश्यकता
    • परिवार की आन्तरिक व्यवस्था
    • सुख का आधार सम्पन्नता नहीं आत्मीयता
    • साधारण गृहस्थी के खर्च विभाग
    • व्यक्ति, परिवार और समाज निर्माण के लिए त्रिविध आयोजन
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - परिवार निर्माण

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


साधारण गृहस्थी के खर्च विभाग

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 15 17 Last
       तीन लम्बे लिफाफे लीजिये और उन पर यह लिखियेः- (१) चालू खर्च का रुपया (२) अचानक खर्च (३) प्रासंगिक खर्च। आपकी आमदनी के हिसाब से इन तीनों मदों में पृथक्- पृथक् रुपया डालिये। चालू खर्च में सर्वाधिक व्यय होगा, पर प्रति मास आपको ५- ५ प्रतिशत अन्य दोनों मदों में भी व्यय करना होगा। यहाँ हम तीनों खर्चों की पूरी सूची देते हैं-

चालू व्ययः- यह व्यय प्रतिमास करना होगा। इसमें कमी नहीं हो सकती। इसमें भोजन का बजट, मकान का किराया, बच्चों की फीस, नौकरों का खर्चा, वस्त्रों का व्यय, चिरागबत्ती, धोबी, साइकिल का व्यय, बीमा पॉलसी, गाय- भैंस का खर्च, सूद इत्यादि। टैक्स, टायलेट (तेल साबुन, बाल कटाना), पोस्टेज, चाय, लकड़ी, कोयला इत्यादि। मसाले, पुस्तकालय का चन्दा, पानी- बिजली का खर्च साबुन कपड़ा धोने के लिये, बच्चों का पाकेट- खर्च, कर्ज की अदायगी, ताँगा खर्च आदि।

        अचानक व्ययः- दैनिक स्थायी व्यय के अतिरिक्त कुछ ऐसी बातें भी हैं, जिनमें मनुष्य को व्यय करना होता है। ये खर्चे अचानक मनुष्य पर टूट पड़ते हैं, यदि हमारे पास इस मद में रुपया न हो तो कर्ज की नौबत आ सकती है। इस मद में निम्रलिखित व्यय हैं- बीमारी, मेहमानदारी, अचानक कहीं जाना पड़े, तब उस यात्रा का खर्च। कोई अन्य आपत्ति आ पड़े जैसे- मुकदमेबाजी, किसी को कर्ज देना पड़े, किसी की मृत्यु हो जाय उसका व्यय, मकान गिर पड़े उसकी मरम्मत इत्यादि के लिये, घर में चोरी हो जाय उसके लिए व्यय। उसके अतिरिक्त जीवन की अनेक दुर्घटनाएँ हैं, जिनके लिये आपको रुपये की जरूरत पड़ सकती है।

      प्रासंगिक खर्च तथा बचतः- तिथि, त्यौहार, भोज, मानता, श्राद्ध, शादी- विवाह, दान, यात्राएँ, उत्सव, धर्मादाएँ, आभूषण इत्यादि बनवाना। आमदनी को इन तीनों विभागों में बाँट कर बचत करनी चाहिए। जिसके पास बचा हुआ रुपया जमा नहीं है, वह कभी सुख की नींद नहीं सो सकेगा। चाहे थोड़ी ही सही ,, बचत के मद में कुछ न कुछ अवश्य रखना बुद्धिमानी है। बचत को सदैव नकद रुपयों के रूप में ही रखना चाहिए। चाहे एक समय भूखे रहें, किन्तु कुछ न कुछ अवश्य बचाकर अपने पास रखें।

संकट के समय में खर्च

        संकट के समय में ज्यों- ज्यों आमदनी कम हो, त्यों- त्यों अपने खर्चे कम करने के लिये प्रस्तुत रहिए। अपनी आदत बनाना आपके हाथ की बात है। अपनी कृत्रिम आवश्यकताओं, मनोरंजनों, आमोद- प्रमोद, वासनाओं की तृप्ति, जिह्वा के स्वाद, फैशनपरस्ती, दान, यात्राएँ आदि, कम आमदनी होने पर काट देने के लिये आपको तैयार रहना चाहिए।

        सबसे पहले अपने मनोरंजन के व्यय को कम कीजिए। किसी क्लब के मेम्बर हों, तो छोड़ दीजिए, सिनेमा जाना बन्द कर दीजिए, स्वाद के लिए चाट, पकौड़ी, फल, सिगरेट, मद्यपान, सुपाड़ी छोड़ दीजिए, फैशन में कमी कीजिए। यदि फिर भी बजट ठीक न बैठे तो फुटकर खर्चों को कम कीजिए, नौकर छुड़ाकर स्वयं घर का काम कीजिए। यदि घर के आस- पास कुछ जमीन है तो शारीरिक परिश्रम से उसमें शाक- भाजी, इत्यादि उगाइए। बच्चों को स्वयं पढ़ाइए। वस्त्र स्वयं धो लिया कीजिए। रोशनी में कमी कर सकते हैं। दिन में काम कर लीजिए। जल्दी सोना जल्दी जगना स्वास्थ्यप्रद है। यदि फिर भी खर्च कम न हों, तो मकान बदल करके सस्ता मकान लेना होगा, लेकिन मकान हवादार और स्वच्छ स्थान पर होना चाहिए। बीमार न पड़ना होगा। बीमारी बड़ी महँगी बैठ जायेगी। वस्त्रों तथा जूते को सावधानी से रखकर अधिक से अधिक चलाना होगा। जितना ही आर्थिक संकट होगा, उतना ही मर्यादित और मितव्ययी आपको बनना होगा। मितव्यय, आत्म संयम और इन्द्रिय निग्रह के समान सुख देने वाला कोई गुण संसार में नहीं है। वा. ४८/५.९

      बीमारियों में हमें अनाप- शनाप व्यय करना होता है। पास पैसा नहीं होता तो ऋ ण लेकर व्यय करना होता है। बीमार पड़ना अत्यन्त महँगा है। अन्य चीजें इतनी महँगी नहीं है, जितनी बीमारियाँ। अतःआपको अधिक से अधिक अपने स्वास्थ्य की देख- रेख करनी होगी। संकट में सबसे पूर्व अपने स्वास्थ्य की चिंता कीजिए। यदि बीमार पड़ियेगा, तो आपकी सारी मितव्ययिता का बजट रखा रह जायगा। बजट तभी कम रहेगा, जब आपके सब घर वाले स्वस्थ और प्रसन्न हों, आत्मनिग्रह और संयम कर सकें। बीमारियों से सावधान रहिये। वा. ४८/५.१०

सही बजट बनाइये

        प्रत्येक परिवार के लिए यह उचित है कि वह अपनी आय और परिवार के सदस्यों के हिसाब से कुछ बचत अवश्य करे। बचत से मनुष्य में अज्ञान- आपत्तियों को सहने की सामर्थ्य प्राप्त होती है। मनुष्य बुढ़ापे, बीमारी या अंग- भंग हो जाने पर कमाने के लिए अयोग्य हो जाता है, बेरोजगारी, व्यापार में घाटा या मुख्य कमाने वाले के मर जाने पर आर्थिक संकट से घिर जाता है।

     बचत इन सब में हमारी सहायता करती है। बच्चों की शिक्षा, विवाह, यात्रा तथा सामाजिक रीति- रिवाजों के लिए संचित धन की आवश्यकता होती है। फिजूलखर्च लोग वृद्धावस्था में दाने- दाने को मुहताज हो जाते हैं। फिजूलखर्चों को सामाजिक सम्मान नहीं मिलता, उसकी आय में वृद्धि नहीं होती, कभी कोई पूँजी इकट्ठी नहीं कर पाता। बचत से देश व समाज को भी लाभ पहुँचता है। बचत से देश में पूँजी की वृद्धि होती है और देश का आर्थिक विकास होता है। बचत से आय बढ़ती है और रहन- सहन का स्तर ऊँचा उठता है। धीरे- धीरे बचत करने वाले की कार्यक्षमता में भी वृद्धि हो जाती है। अतः फिजूलखर्चों को छोड़कर बजट बनाकर ही खर्च करना चाहिए।

    सबसे पहले भोजन पर व्यय कीजिए। वे सभी आवश्यक वस्तुएँ जैसे अनाज, सब्जी, घी, तेल, गुड़, चीनी, मसाले आदि खरीद लीजिए। प्रकाश और लकड़ी, ईंधन आदि का प्रबन्ध कीजिए। फिर वस्त्रों और मकान के लिए व्यय कीजिए। शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन की मद में खर्च कीजिए। शेष बचाइये, आपकी आर्थिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है। व्यय और बचत दोनों में विवेकपूर्ण संतुलन हो। यदि मनुष्य विवेकपूर्ण नीति से पौष्टिक पदार्थों, कार्यक्षमतावर्द्धक वस्त्रों, अच्छे मकानों, बच्चों की शिक्षा, अच्छी पुस्तकों पर व्यय करता है तो स्वयं उसकी तथा उसके परिवार वालों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। इससे व्यक्ति, परिवार और समाज सुखी व सम्पन्न बनता है।

       यदि मनुष्य विलासिता की वस्तुओं पर अधिक व्यय कर देता है जैसे सिनेमा, ताश, मोटरकार, रेडियो, फैशन, दिखावा आदि, तब उसे दूध, दही, घी तथा अच्छी भोज्य सामग्री का सुख प्राप्त नहीं हो पाता। यदि किसी व्यक्ति के गलत उपयोग से स्वयं उसको या समाज को हानि की सम्भावना है, तब इस स्थिति में समाज अथवा सरकार को अवश्य हस्तक्षेप करना चाहिए। यदि एक उपभोक्ता दूसरे उपभोक्ताओं के सामने व्यय का एक अच्छा उदाहरण उपस्थित कर सकता है, तो वह अनुकरणीय है। विलासिता के उपभोग से क्रियाशीलता और कार्यक्षमता में कोई वृद्धि नहीं होती। आज देश की जो पूँजी विलासिताओं की वस्तुओं में व्यय की जा रही है, वह मनुष्य की अनिवार्यताओं और आरामदायक वस्तुओं के उत्पादन में व्यय होना चाहिए। विलासिताएँ, सामाजिक दृष्टिकोण से हानिकारक और अवांछनीय हैं। यह वर्ग- विषमता फैलाती है। अमीर और गरीब के बीच द्वेष, जलन तथा घृणा फैलती है और पूरे समाज में द्वेष फैल जाता है। धनी व्यक्तियों को विलासिता की वस्तुओं का उपयोग करते देखकर गरीब भी उनकी अंधी नकल करने लगते हैं, इस अनुकरण का भयंकर परिणाम होता है। विलासिताओं के उपयोग से आदमी आलसी, विलासी और चरित्रहीन बन जाते हैं। उसका स्वास्थ्य, सौन्दर्य और यौवन नष्ट हो जाता है। उपभोक्ता व्यभिचारी और चरित्रहीन हो जाता है। स्मरण रखिए, समाज में जो सम्मान हमें प्राप्त होता है, वह केवल ऊपरी ठाठ- बाट से नहीं, प्रत्युत ईमानदारी, सज्जनता और व्यवस्थित जीवन से होता है। इन्द्रियों को विलासिता की ओर आकृष्ट करने से कौन बड़ा बना है? उलटे विलासी जीवन से स्वार्थपरता, बेईमानी, शोषण, निष्ठुरता, लोभ, अनुदारता, आलस्य और अज्ञान फैलता है। फिजूलखर्ची का घुन बड़े- बड़े परिवारों और अमीरों को धीरे- धीरे नष्ट कर देता है। एक को टीपटाप तथा फैशनपरस्त देखकर अन्य भी इसी दिशा में उसका अनुकरण करते हैं और समाज में बुराई का विष फैलता है। हमें व्यवस्थित जीवन का ही अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। आदर्श जीवन जीने में नेतृत्व करना चाहिए।

          जीवन में जरूरतें भी बहुत हैं और शायद हर एक ही आवश्यक भी हैं, लेकिन हमें अपने तथा परिवार के लिए अधिक उपयोगिता और कम उपयोगिता को ध्यान में रखकर पहले बेहद जरूरी वस्तुओं पर ही व्यय करना चाहिए।

पैसा पास रखने फिजूल की चीजों में व्यय करने को जी चाहता है। पास न रखने से इच्छाएँ दबी रहती हैं। मन संयत रहता है और विवेकशीलता अधिक काम करती है। इसलिए या तो पैसे को ठोस और जीवनोपयोगी वस्तुओं में बदल दीजिए। अनाज इत्यादि वर्षभर के लिए रख लीजिए अथवा बीमा, बैंक या नेशनल सेविंग सर्टीफिकेट में लगा दीजिए। आँखों से दूर रहने पर आपकी फिजूलखर्ची की आदत बहुत कुछ कम हो जायेगी। मन से विलासिता और झूठी शौकीनी के उथले विचार निकाल देने पर मनुष्य का विवेक जाग्रत होता है और वह फैशनपरस्ती की व्याधि से बचता है। वा. ४८/५.१८

पारिवारिक व्यय के लिए कुछ सुझाव

          सब कमाने वाले सदस्यों को सम्पूर्ण आय मुख्य व्यक्ति के पास जमा करनी चाहिए। वह पूरी आय का योग कर परिवार की आवश्यकताएँ नोट करता जाय और बजट तैयार करे। उसमें प्रत्येक छोटे कुटुम्ब को कुछ हाथ खर्च दें। यदि सम्भव हो तो जेब खर्च सबके लिए रखा जाय। सर्वप्रथम स्थायी व्ययों- अनाज, पानी, रोशनी, लकड़ी, मिर्च- मसाले, दूध का विधान रखा जाय। तत्पश्चात् वस्त्रों की योजना रहे, दृष्टिकोण यह रहे कि कम से कम सबको तन ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र मिल जायें। दफ्तर में काम करने वाले बाबू तथा विद्यार्थियों को कुछ विशेष वस्त्र बाहर के लिए अतिरिक्त प्रदान किए जा सकते हैं। वर्ष के प्रारंभ में ही बिछौना, दरियों, रजाइयों का प्रबन्ध कर लेना चाहिए। मकान का प्रश्न आजकल बहुत जटिल हो गया है, किन्तु अपनी आय, मर्यादा, स्वास्थ्य की दृष्टि से मकान का चुनाव हो। यदि मकान घर का हो तो उसकी टूट- फूट का प्रतिवर्ष अच्छा इन्तजाम रहे। फुटकर खर्च जैसे बच्चों का अध्ययन, डॉक्टर की फीस, दवाइयाँ, देनदारी, टॉयलेट, मनोरंजन, नौकर, सफर इत्यादि का खर्च बहुत सम्हालकर रखा जाय। विलासिता के व्यय से बड़ा सतर्क रहा जाय। बीमा, विवाह- शादियों, मृत्यु, बीमारी, मकान, मुकदमेबाजी तथा परिवार पर आने वाले आकस्मिक खर्चों के लिए सावधानी से एक अलग खाता रखा जाय।

         परिवार का प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को संयमित करे और पूरे परिवार के लाभ को देखे। जिन परिवारों में एक विद्यार्थी को पढ़ाने के लिए सब अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को तिलांजलि देते हैं, सामूहिक उन्नति में विश्वास करते हैं, वह उत्तरोत्तर विकसित होता है। वा. ४८/५.३६
       मिल- जुलकर रहने, योग्यतानुसार कमाने, आवश्यकतानुसार खर्च करने की आदर्शवादिता परिवार का मेरुदण्ड है। अध्यात्म की दृष्टि से अधिक लोगों का आत्मीयता के बन्धनों में बँधना सुख- दुःख को मिल- बाँटकर वहन करना, अधिकार को गौण और कर्तव्य को प्रमुख मानकर चलना पारिवारिकता है। वा. ४८/२.२





First 15 17 Last


Other Version of this book



परिवार निर्माण
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग सृजन का आरम्भ परिवार निर्माण से
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग सृजन का आरम्भ परिवार निर्माण से
Type: TEXT
Language: HINDI
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

स्फूर्ति और मस्ती से भरा बुढ़ापा
Type: SCAN
Language: EN
...

स्फूर्ति और मस्ती से भरा बुढ़ापा
Type: SCAN
Language: EN
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Articles of Books

  • परिवार का दर्शन (अवधारणा)
  • परिवार को सफल बनाने के लिये सच्ची पारिवारिक भावना जरूरी
  • परिवार परम्परा का विराट् उद्देश्य : व्यक्तित्व निर्माण
  • हमारा परिवार तथा भिन्न- भिन्न संबंध
  • परिवार को सुसंस्कृत बनाएँ
  • परिवार निर्माण के स्वर्णिम सूत्र
  • स्वच्छता एवं सुव्यवस्था परिवार भर को सिखाएँ
  • परिवार और हमारे कर्तव्य
  • परिवार निर्माण की धुरी- नारी
  • पारिवारिक जीवन की समस्याएँ व समाधान
  • संयुक्त परिवार- सौभाग्य और समुन्नति का द्वार
  • परिवार निर्माण के लिए मानसिक पोषण भी आवश्यक है
  • परिवारों का पुनर्निर्माण- एक अनिवार्य उपयोगी आवश्यकता
  • परिवार की आन्तरिक व्यवस्था
  • सुख का आधार सम्पन्नता नहीं आत्मीयता
  • साधारण गृहस्थी के खर्च विभाग
  • व्यक्ति, परिवार और समाज निर्माण के लिए त्रिविध आयोजन
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj