
शत सूत्री योजना और उसका कार्य क्षेत्र
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शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक आदि विभिन्न क्षेत्रों में समस्त परिजनों को क्या करना चाहिए-इसके लिए परम पूज्य गुरुदेव ने सौ कार्यक्रमों की एक संक्षिप्त रूपरेखा बनाकर जून 1963 में प्रकाशित की थी। इन्हीं कार्यक्रमों को ‘शतसूत्री योजना’ का नाम दिया गया है।
यह योजना विश्वव्यापी है। सभी वर्गों, सभी जातियों, सभी धर्मों और सभी देशों के लिए है। इसलिए इसका मूल आधार एक रहते हुए भी स्थिति के अनुरूप इसके कार्यक्रमों में थोड़ा हेर-फेर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए इस योजना में समाज सुधार की दृष्टि से दहेज प्रथा, मृत्यु भोज आदि का वर्णन है। ये हिंदू समाज की समस्याएं हैं। अतः हिंदू ही इनके उन्मूलन का प्रयास करेंगे। ईसाई वर्ग के लोग इन्हें छोड़ दें और अपने समाज में प्रचलित कुरीतियों को दूर करने की कोशिश में लगें। इसी प्रकार गायत्री मंत्र की जो महिमा हिंदी धर्म में है, वही महिमा मुसलमानों में ‘कलमा शरीफ’ की है। अतः वे उसी मंत्र को भावनापूर्वक जप सकते हैं। इसी प्रकार अन्य बातों में भी देश, काल, पात्रानुसार परिवर्तन एवं संशोधन किया जा सकता है।
शत सूत्री योजना के संबंध में समस्त परिजनों का मार्गदर्शन करते हुए पूज्य गुरुदेव लिखते हैं-‘‘लंबी चौड़ी, असंभव और झूठी प्रतिज्ञाएं करने की किसी को भी आवश्यकता नहीं है। आज जो संभव है हम उतना ही सोचें और उतना ही करें। भविष्य में जब जैसी परिस्थितियां सामने आवें, अपनी कार्य पद्धति को और भी तेज किया जा सकता है।’’
पूज्य गुरुदेव के इन शब्दों को हमें सदा ध्यान रखना है-‘‘युग निर्माण यज्ञ हमारे जीवन का अंतिम एवं अत्यधिक महत्वपूर्ण ज्ञान यज्ञ है। इसमें श्रद्धा और भावना पूर्वक भाग लिए बिना एक भी परिजन बाकी न रहेगा-ऐसा हमें विश्वास है’’
परम पूज्य गुरुदेव के उक्त कथनों को उद्धृत करने का हमारा आशय इतना ही है कि आज ऐसी परिस्थितियां आ गई हैं जब हमें अपनी कार्य पद्धति को तेज करना ही पड़ेगा। कार्यक्रमों की भीड़ में जहां हमें एक ओर शतसूत्री योजना को नहीं भूलना चाहिए वहीं नये-नये कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में भी प्राणपण से जुट जाना चाहिए। वस्तुतः सभी कार्यक्रम एक दूसरे के पूरक हैं और सभी की एक ही दिशा है- युग निर्माण, इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य। क्या अभी हाथ में लेना है, क्या भविष्य के लिए छोड़ना है- यह तो कार्यकर्ता की, परिजनों की, श्रद्धा संपन्न भावनाशीलों की शक्ति सामर्थ्य, रुचि, विवेक आदि पर निर्भर करता है। संकल्प लेकर आगे आयेंगे, कार्य में जुट जायेंगे तो इक्कीसवीं सदी का भविष्य तो उज्ज्वल बनेगा ही, स्वतः आपका भविष्य भी उज्ज्वल बन जायेगा।
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