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Books - तप और योग के मार्मिक पक्ष

Media: TEXT
Language: HINDI
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इष्ट हमारे लक्ष्य-ध्येय के प्रतीक

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मित्रो! हनुमान से लेकर प्रत्येक देवता एक-एक इष्ट के प्रतीक हैं, एक-एक लक्ष्य के प्रतीक हैं। आपके जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए? जो भी आपका लक्ष्य हो, चाहे उसे आप सिद्धांत मान लीजिए चाहे उसकी शक्ल बना दीजिए। शक्ल बनने से, चेहरा बना लेने से कुछ बनता-बिगड़ता नहीं है। शक्ल तो ध्यान की सुगमता के लिए बना दी गई है। इस बात से मैं बहुत सहमत हूँ कि देवताओं के बारे में जो इष्टदेव बना दिए गए थे, वे इसलिए बना दिए गए थे कि आदमी यह समझे कि हमको कहाँ पहुँचना है? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है? लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमको किस प्रकार की गतिविधियाँ अपनानी चाहिए? लेकिन पीछे क्या कर दिया गया कि देवता, जो इष्ट के रूप में बनाए गए थे, उनके साथ में हमने सांसारिक मनुष्य के सिद्धांत को जोड़ दिया। इससे अध्यात्म में विसंगतियाँ पैदा हो गईं, विकृतियाँ पनपने लगीं। इष्टदेवता के साथ जहाँ मनुष्यों के तरीके से उनके साथ में इतिहास जोड़ दिए गए हैं, उनको इष्टदेव मानना हमारे लिए मुसीबत पैदा करता है ।

उदाहरण के लिए जब भगवान श्रीकृष्ण को अपना इष्ट देवता मान लेते -हैं तो ठीक है। जहाँ तक गीता के योगेश्वर श्रीकृष्ण का संबंध है, इनको इष्टदेव मानने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन जहाँ उनके गृहस्थ जीवन की वात आ जाती है उसको मानने से हमारे ऊपर बुरा असर पड़ता है। कृष्ण जी का मनुष्य जीवन का इतिहास जानकर हम मुसीबत में फँस जाते हैं। कृष्ण जी के सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ थीं। एक पत्नी थी। उसका नाम था रुक्मिणी। रुक्मिणी के बाद थीं सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ। उनके कितने बाल-बच्चे थे? एक-एक औरत के अगर आठ-आठ बच्चे मान लिए जाएँ तो कितने हो गए-१६, १०८ * ८ = १, २८, ८६४ अर्थात एक लाख से भी ज्यादा बाल-बच्चे हो गए श्रीकृष्ण भगवान के। तो फिर अब आपको क्या करना चाहिए हम तो आपको फेमिली प्लानिंग की सलाह दे रहे हैं। नहीं साहब! अभी तो हमारे चार ही बच्चे हैं, श्रीकृष्ण के बराबर तो हो जाएँ कम से कम आठ-नौ बच्चे तो हो जाएँ। न जाने और क्या-क्या इतिहास में भरा पड़ा है। श्रीकृष्ण इसकी बहन का अपहरण कर लाए उसका अपहरण कर लाए। जाने क्या-क्या बवाल भर दिया है। इसलिए हम किसी ऐसे भगवान को अपना इष्टदेव नहीं मानेंगे, जो किसी व्यक्ति की तरह व्यवहार करता है ।
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