
मानवीय चेतना-विचारणा ही है विशेषता
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मित्रो! मनुष्य के पास जो कुछ भी विशेषता और महत्ता है, जिसके कारण वह स्वयं उन्नति करता जाता है और समाज को ऊँचा उठा ले जाता है वह उसके अंतर की विचारधारा है। जिसको हम चेतना कहते हैं, अंतरात्मा कहते हैं, विचारणा कहते हैं। यही एक चीज है, जो मनुष्य को ऊँचा उठा सकती है और महान बना सकती है। शांति दे सकती है और समाज के लिए उसे उपयोगी बना सकती है। मनुष्य की चेतना, जिसको हम विचारणा कह सकते हैं, किस आदमी का विचार करने का क्रम कैसा है? बस, असल में वही उसका स्वरूप है। आदमी लंबाई-चौड़ाई के हिसाब से छोटा नहीं होता, वरन जिस आदमी के मानसिक स्तर की ऊँचाई कम है, वह आदमी ऊँचे सिद्धांत और ऊँचे आदर्शों को नहीं सुन सकता। जो व्यक्ति सिर्फ पेट तक और संतान पैदा करने तक सीमाबद्ध रहता है, वह छोटा आदमी है। उसे अगर एक इंच का आदमी कहें तो कोई अचंभे की बात नहीं है। उसकी तुलना कुएँ के मेंढक से करें, तो कोई अचंभे की बात नहीं है। कीड़े-मकोड़ों में उसकी गिनती करें तो कोई बात नहीं है।
साथियो! मनुष्य का स्तर और मनुष्य का बोध उसके ऊँचे विचारों पर टिका हुआ है। जब कभी भी मनुष्य के ऊँचे विचार होते हैं तो उसका जीवन देवत्व जैसा दिखाई पड़ता है। गरीब हो तो क्या? अमीर हो तो क्या? गरीबी से आदमी का क्या बनता-बिगड़ता है? अमीरी में गेहूँ की रोटी खा सकता है और गरीबी में मक्का की रोटी खा सकता है। इससे क्या बनता-बिगड़ता है? अमीर आदमी रेशमी कपड़े पहन सकता है तो कौन खास बात है? और गरीब आदमी मोटे-झोटे कपड़े पहन सकता है तो कौन सी खास बात है? आदमी में एक कानी-कौड़ी के बराबर भी कोई खास फरक नहीं आता है। मनुष्य का स्तर जब बढ़ता है तो उसके विचार करने के क्रम और सोचने के तरीके के ऊपर टिका रहता है। मनुष्य की महानता उसी के ऊपर टिकी रहती है। मनुष्य की शांति भी उसी पर टिकी हुई है। गौरव भी उसी पर टिका हुआ है। परलोक भी उसी पर टिका हुआ है और समाज के लिए उपयोगिता-अनुपयोगिता भी उसी पर टिकी हुई है। इसलिए हमको अपना सारा ध्यान इसी बात पर रखना चाहिए कि विचार करने का तरीका और सोचने का तरीका बदल जाए।
पिछले दिनों जब हमारे देश के नागरिकों की विचारणा का स्तर बहुत ऊँचा था, तब शिक्षा के माध्यम से और अन्य वातावरणों के माध्यम से, धर्म और अध्यात्म के माध्यम से यह प्रयत्न किया जाता था कि आदमी ऊँचे किस्म का सोचने वाला हो एवं उसके विचार, उसकी इच्छा, आकांक्षा और महत्त्वाकांक्षाएँ नीच श्रेणी के जानवरों जैसी न होकर महापुरुषों जैसी हों। जब ये प्रयास किए जाते थे तो अपना देश कितना ऊँचा था! यहाँ के नागरिक देवताओं की श्रेणी में गिने जाते थे और यह राष्ट्र दुनिया के लोगों की आँखों में स्वर्ग जैसा दिखाई पड़ता था। इस महानता और विशेषता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए धर्म और अध्यात्म का सारा ढाँचा खड़ा किया गया है।
साथियो! मनुष्य का स्तर और मनुष्य का बोध उसके ऊँचे विचारों पर टिका हुआ है। जब कभी भी मनुष्य के ऊँचे विचार होते हैं तो उसका जीवन देवत्व जैसा दिखाई पड़ता है। गरीब हो तो क्या? अमीर हो तो क्या? गरीबी से आदमी का क्या बनता-बिगड़ता है? अमीरी में गेहूँ की रोटी खा सकता है और गरीबी में मक्का की रोटी खा सकता है। इससे क्या बनता-बिगड़ता है? अमीर आदमी रेशमी कपड़े पहन सकता है तो कौन खास बात है? और गरीब आदमी मोटे-झोटे कपड़े पहन सकता है तो कौन सी खास बात है? आदमी में एक कानी-कौड़ी के बराबर भी कोई खास फरक नहीं आता है। मनुष्य का स्तर जब बढ़ता है तो उसके विचार करने के क्रम और सोचने के तरीके के ऊपर टिका रहता है। मनुष्य की महानता उसी के ऊपर टिकी रहती है। मनुष्य की शांति भी उसी पर टिकी हुई है। गौरव भी उसी पर टिका हुआ है। परलोक भी उसी पर टिका हुआ है और समाज के लिए उपयोगिता-अनुपयोगिता भी उसी पर टिकी हुई है। इसलिए हमको अपना सारा ध्यान इसी बात पर रखना चाहिए कि विचार करने का तरीका और सोचने का तरीका बदल जाए।
पिछले दिनों जब हमारे देश के नागरिकों की विचारणा का स्तर बहुत ऊँचा था, तब शिक्षा के माध्यम से और अन्य वातावरणों के माध्यम से, धर्म और अध्यात्म के माध्यम से यह प्रयत्न किया जाता था कि आदमी ऊँचे किस्म का सोचने वाला हो एवं उसके विचार, उसकी इच्छा, आकांक्षा और महत्त्वाकांक्षाएँ नीच श्रेणी के जानवरों जैसी न होकर महापुरुषों जैसी हों। जब ये प्रयास किए जाते थे तो अपना देश कितना ऊँचा था! यहाँ के नागरिक देवताओं की श्रेणी में गिने जाते थे और यह राष्ट्र दुनिया के लोगों की आँखों में स्वर्ग जैसा दिखाई पड़ता था। इस महानता और विशेषता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए धर्म और अध्यात्म का सारा ढाँचा खड़ा किया गया है।