
पण्डावाद और सामंतवाद—दो कारण गिरावट के
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जिस प्रकार से पण्डावाद के द्वारा विचार के क्षेत्र में हानि हुई है, उसी प्रकार राजसत्ता जिनके हाथ में रही, जिनको सामंत कहते हैं, राजा कहते हैं, उनको हम डाकू कहते हैं। उन लोगों ने सिर्फ अपने महल, अपनी ऐय्याशी और विलासिता के लिए सोचा। समाज का शोषण किया और बराबर यह कोशिश कि कहीं ऐसा न हो जाए कि विचारशीलता फैल जाए और लोगों में अनीति के विरुद्ध बगावत का भाव पैदा हो जाए। न्याय की भावना की बात उदय हो जाए कि हम लोग इनका समर्थन क्यों करें? इसी बात की कोशिश पण्डावाद ने भी की कि लोग समझदार न होने पाएँ। लोग समझदार हो जाएँगे तो हमारे चंगुल से, हमारे हाथ से शिकार निकल जाएँगे। इसी बात की कोशिश सामंतवाद ने भी की कि आदमी को घटिया किस्म से विचार करना सिखाया जाए। अगर विचारशील, समझदार और चरित्रवान लोग हो जाएँगे तो उन पर हावी होना और अपनी मनमानी करना हमारे लिए मुमकिन नहीं होगा।
मित्रो! दोनों ही तरीकों से बराबर यह कोशिश की गई कि आदमी के विचार करने की शैली गिरा दी जाए और घटिया बना दी जाए। यही कारण था कि हम हजार वर्षों तक गुलाम हो करके रहे, इसकी वजह क्या थी? पंद्रह सौ मुसलमान हिंदुस्तान में आए और एक हजार वर्ष तक बुरी तरह से हमारे हुकूमत करते रहे कैसे कैसे नृशंस अत्याचार करते रहे, जैसे कि दुनिया की रवायत में कहीं कभी दिखाई नहीं पड़ते, लेकिन हम बुजदिलों के तरीके से, कायरों के तरीके से, मरे हुए लोगों के तरीके से उनके अत्याचारों को सहते रहे। हम जरा भी सिर ऊँचा नहीं उठा सके, कुछ कर नहीं सके। ज्यादा से ज्यादा जी में आया तो भक्ति की बात कह दी, मीरा जी का गीत गा दिया और रावण जी का गीत गा दिया-बस, खेल खत्म हो गया। हम कुछ भी नहीं कर सके, क्यों? क्योंकि आदमी के विचार करने का स्तर गिरा हुआ है, घटिया है, जिसने हमें मुद्दतों तक गुलाम रखा। हम अभी भी बौद्धिक गुलामी में बुरे तरीके से जकड़े हुए हैं। राजनीतिक गुलामी दूर हो गई तो क्या, बौद्धिक गुलामी जहाँ की तहाँ है। अक्ल की दृष्टि से हम बुरे तरीके से गुलाम हैं।
मित्रो! दोनों ही तरीकों से बराबर यह कोशिश की गई कि आदमी के विचार करने की शैली गिरा दी जाए और घटिया बना दी जाए। यही कारण था कि हम हजार वर्षों तक गुलाम हो करके रहे, इसकी वजह क्या थी? पंद्रह सौ मुसलमान हिंदुस्तान में आए और एक हजार वर्ष तक बुरी तरह से हमारे हुकूमत करते रहे कैसे कैसे नृशंस अत्याचार करते रहे, जैसे कि दुनिया की रवायत में कहीं कभी दिखाई नहीं पड़ते, लेकिन हम बुजदिलों के तरीके से, कायरों के तरीके से, मरे हुए लोगों के तरीके से उनके अत्याचारों को सहते रहे। हम जरा भी सिर ऊँचा नहीं उठा सके, कुछ कर नहीं सके। ज्यादा से ज्यादा जी में आया तो भक्ति की बात कह दी, मीरा जी का गीत गा दिया और रावण जी का गीत गा दिया-बस, खेल खत्म हो गया। हम कुछ भी नहीं कर सके, क्यों? क्योंकि आदमी के विचार करने का स्तर गिरा हुआ है, घटिया है, जिसने हमें मुद्दतों तक गुलाम रखा। हम अभी भी बौद्धिक गुलामी में बुरे तरीके से जकड़े हुए हैं। राजनीतिक गुलामी दूर हो गई तो क्या, बौद्धिक गुलामी जहाँ की तहाँ है। अक्ल की दृष्टि से हम बुरे तरीके से गुलाम हैं।