
उद्देश्य
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उद्देश्य:-
१) प्रार्थनायुक्त ध्यान का महत्व समझ में आए।
२) ध्यान की विधि याद हो जाए, ध्यान में चिन्तन क्या करना है? स्पष्ट हो।
३) शिविरार्थी ध्यान को दिनचर्या को आवश्यक अंग बनाएँ। नित्य प्रति अपने घर पर ध्यान करें। लाभ उठाएँ।
ध्यान व ध्यान में चिन्तन
वज्रासन, पद्मासन या सुखासन में आँख बंद करके बैठें (समय 10 से 15 मिनट) शरीर शिथिल, रीढ़ की हड्डी सीधी, मन मस्तिष्क शान्त, कन्धे तनाव रहित, स्वाभाविक रूप से श्वास लेते रहें। श्वास अन्दर बाहर जाने तथा पेट को फैलने व सिकुडऩे की प्रक्रिया पर मन एकाग्र करें........ फिर लम्बी गहरी श्वांस लेकर ओंकार का लम्बा उच्चारण 3 बार हमारे साथ-साथ करें। ओं ऽऽऽऽऽऽ म्। ओंऽऽऽऽऽऽ म्। ओं ऽऽऽऽऽऽ म्। सांसों पर ध्यान रखें।
अब मन ही मन चिन्तन करें-मैं हिमालय की मनोरम पहाडिय़ों के बीच या किसी सुन्दर रमणीय वातावरण में ध्यानमग्र बैठा/बैठी हूँ, सूर्योदय हो रहा है, चारों ओर लालिमा छाई हुई है, वातावरण दूर-दूर तक एकदम शान्त है, पक्षियों की तरह-तरह की आवाजें आ रही है, मैं अबोध बालक के समान हूँ, अपने ईश्वर की गोद में, माँ गायत्री की गोद में, निश्चिन्त बैठा हूँ बैठी हूँ। पूर्व दिशा से स्वर्णिम सविता देवता सूर्य का उदय हो रहा है। सूर्य देवता मनोरम दृष्य के सा मुझे निहार रहे हैं उनकी दिव्य किरणें मेरे भीतर..... मेरे शरी के भीतर रोम-रोम में उतर रही है। शरीर के विकार भस्म होते जा रहे हैं, हर बीमारी खत्म हो रही है, शरीर निर्मल होता जा रहा है, प्रकाश की किरणें एक झरने की तरह मुझ पर बरस रही है, मुझे अनन्त शान्ति व शक्ति का अनुभव हो रहा है, सविता देवता से आ रही शक्तिशाली किरणें मेरे अन्त:करण में प्रवेश कर रही है, मन के विकार व बुराईयाँ भस्म होती जा रही है, पुराना स्वभाव, पुराने संस्कार बाहर निकल रहे हैं, दूर अन्तरिक्ष में विलीन होते जा रहे हैं, सुख व आनन्द का अनुभव हो रहा है।
श्वांस का चलना, पुख के बोल, शरीर के कर्म, मन के विचारों को बारीकी से चेक करते रहें। बार-बार मन में यह भाव लाएँ मैं शांत हूँ , मैं खुश हूँ, मै स्वस्थ हूँ पवित्र हूँ, आनंदमय हूँ..... प्रेमस्वरूप शक्तिस्वरूप हूँ...... साक्षी भाव से देखें .......... मन ही मन गायत्री मन्त्र का जप चलता रहे।
मस्तिष्क को शिक्षित अनुभव करें..... श्वास छोडऩे व लेने पर ध्यान एकाग्र करें....... श्वास के बाहर निकालने के साथ-साथ मेरे बुरे विचार, कमियाँ, बुराईयाँ भी निकली जा रही है... श्वास लेने के साथ दूर अन्तरिक्ष से प्रकाश स्वरूप प्राणतत्व खींचा चला आ रहा है..... मेरे अंग-अंग में समा रहा है....... मेरा तन अन्त:करण निर्मल होता जा रहा है..........।
हे प्रभु! यह जीवन आपका दिया हुआ परम प्रसाद है...... हमारे कष्ट कठिनाईयों में भी आपका मंगल विधान समाया हुआ है.........आप तो सदा सर्वदा सबके लिए परम कल्याणकारी हैं.......... जो कुछ मेरे दु:ख दर्द हैं, वह तो मेरे अपने ही कर्मफल है.. जिन्हें मुझे धीरज और साहस पूर्वक पाठ करना है.. हे प्रभु? मुझे शक्ति दें ताकि मै मजबूत बनूँ।
स्वर्णिम सूर्य के तेजस्वी प्रकाश किरणों से हमारा शरीर स्वस्थ प्राणवान बन गया है..... मन बुद्धिमान पवित्र ज्ञानवान बन गया है....... अंत:करण श्रद्धावान, संवेदना से ..... प्रेम से भर गया है। मै निर्मल पवित्र संस्कारवान बन गया हूँ।
असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय॥
मृत्योर्मा अमृतंगमय॥ शान्ति:। शान्ति:। शान्ति:॥
दोनों हाथों को घर्षण करें, आँखों की सेंक करें, चेहरों की मालिश करें, परमात्मा को प्रणाम करते हुए आज के मंगलमय प्रभात हेतु धन्यवाद करें।
प्रतिदिन ध्यान कराने से पहले टुकड़े- टुकड़े में ध्यान के विषय में ५-७ मिलट चर्चा करें जिसमें ध्यान का अर्थ, भावना, क्रिया, ध्यान के प्रकार के बारे में सामान्य जानकारी हो शिविरार्थी जो भी करें समझ कर करें केवल यन्त्रवत क्रिया न करें।
ध्यान सम्बन्धी चर्चा व क्रिया आरम्भ करने से पहले वे आवश्यकतानुसार लघु शंका से निवृत्त हो जाएँ क्योंकि प्रात:काल योगासन के अभ्यास में पर्याप्त समय हों चुका होता है, ध्यान समाप्ति के पश्चात १० मिनट गम्भीर व भावनात्मक बातें करें जिससे उनसे आत्मीयता बने एवं मिशन सम्बन्धी जानकारी बढ़े। चर्चा अनौपचारिक प्रकृति की हो। तत्पश्चात शान्तिपाठ करें। (ध्यान से सम्बन्धित अन्य जानकारी के लिए पृष्ठ ........... देखें)
१) प्रार्थनायुक्त ध्यान का महत्व समझ में आए।
२) ध्यान की विधि याद हो जाए, ध्यान में चिन्तन क्या करना है? स्पष्ट हो।
३) शिविरार्थी ध्यान को दिनचर्या को आवश्यक अंग बनाएँ। नित्य प्रति अपने घर पर ध्यान करें। लाभ उठाएँ।
ध्यान व ध्यान में चिन्तन
वज्रासन, पद्मासन या सुखासन में आँख बंद करके बैठें (समय 10 से 15 मिनट) शरीर शिथिल, रीढ़ की हड्डी सीधी, मन मस्तिष्क शान्त, कन्धे तनाव रहित, स्वाभाविक रूप से श्वास लेते रहें। श्वास अन्दर बाहर जाने तथा पेट को फैलने व सिकुडऩे की प्रक्रिया पर मन एकाग्र करें........ फिर लम्बी गहरी श्वांस लेकर ओंकार का लम्बा उच्चारण 3 बार हमारे साथ-साथ करें। ओं ऽऽऽऽऽऽ म्। ओंऽऽऽऽऽऽ म्। ओं ऽऽऽऽऽऽ म्। सांसों पर ध्यान रखें।
अब मन ही मन चिन्तन करें-मैं हिमालय की मनोरम पहाडिय़ों के बीच या किसी सुन्दर रमणीय वातावरण में ध्यानमग्र बैठा/बैठी हूँ, सूर्योदय हो रहा है, चारों ओर लालिमा छाई हुई है, वातावरण दूर-दूर तक एकदम शान्त है, पक्षियों की तरह-तरह की आवाजें आ रही है, मैं अबोध बालक के समान हूँ, अपने ईश्वर की गोद में, माँ गायत्री की गोद में, निश्चिन्त बैठा हूँ बैठी हूँ। पूर्व दिशा से स्वर्णिम सविता देवता सूर्य का उदय हो रहा है। सूर्य देवता मनोरम दृष्य के सा मुझे निहार रहे हैं उनकी दिव्य किरणें मेरे भीतर..... मेरे शरी के भीतर रोम-रोम में उतर रही है। शरीर के विकार भस्म होते जा रहे हैं, हर बीमारी खत्म हो रही है, शरीर निर्मल होता जा रहा है, प्रकाश की किरणें एक झरने की तरह मुझ पर बरस रही है, मुझे अनन्त शान्ति व शक्ति का अनुभव हो रहा है, सविता देवता से आ रही शक्तिशाली किरणें मेरे अन्त:करण में प्रवेश कर रही है, मन के विकार व बुराईयाँ भस्म होती जा रही है, पुराना स्वभाव, पुराने संस्कार बाहर निकल रहे हैं, दूर अन्तरिक्ष में विलीन होते जा रहे हैं, सुख व आनन्द का अनुभव हो रहा है।
श्वांस का चलना, पुख के बोल, शरीर के कर्म, मन के विचारों को बारीकी से चेक करते रहें। बार-बार मन में यह भाव लाएँ मैं शांत हूँ , मैं खुश हूँ, मै स्वस्थ हूँ पवित्र हूँ, आनंदमय हूँ..... प्रेमस्वरूप शक्तिस्वरूप हूँ...... साक्षी भाव से देखें .......... मन ही मन गायत्री मन्त्र का जप चलता रहे।
मस्तिष्क को शिक्षित अनुभव करें..... श्वास छोडऩे व लेने पर ध्यान एकाग्र करें....... श्वास के बाहर निकालने के साथ-साथ मेरे बुरे विचार, कमियाँ, बुराईयाँ भी निकली जा रही है... श्वास लेने के साथ दूर अन्तरिक्ष से प्रकाश स्वरूप प्राणतत्व खींचा चला आ रहा है..... मेरे अंग-अंग में समा रहा है....... मेरा तन अन्त:करण निर्मल होता जा रहा है..........।
हे प्रभु! यह जीवन आपका दिया हुआ परम प्रसाद है...... हमारे कष्ट कठिनाईयों में भी आपका मंगल विधान समाया हुआ है.........आप तो सदा सर्वदा सबके लिए परम कल्याणकारी हैं.......... जो कुछ मेरे दु:ख दर्द हैं, वह तो मेरे अपने ही कर्मफल है.. जिन्हें मुझे धीरज और साहस पूर्वक पाठ करना है.. हे प्रभु? मुझे शक्ति दें ताकि मै मजबूत बनूँ।
स्वर्णिम सूर्य के तेजस्वी प्रकाश किरणों से हमारा शरीर स्वस्थ प्राणवान बन गया है..... मन बुद्धिमान पवित्र ज्ञानवान बन गया है....... अंत:करण श्रद्धावान, संवेदना से ..... प्रेम से भर गया है। मै निर्मल पवित्र संस्कारवान बन गया हूँ।
असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय॥
मृत्योर्मा अमृतंगमय॥ शान्ति:। शान्ति:। शान्ति:॥
दोनों हाथों को घर्षण करें, आँखों की सेंक करें, चेहरों की मालिश करें, परमात्मा को प्रणाम करते हुए आज के मंगलमय प्रभात हेतु धन्यवाद करें।
प्रतिदिन ध्यान कराने से पहले टुकड़े- टुकड़े में ध्यान के विषय में ५-७ मिलट चर्चा करें जिसमें ध्यान का अर्थ, भावना, क्रिया, ध्यान के प्रकार के बारे में सामान्य जानकारी हो शिविरार्थी जो भी करें समझ कर करें केवल यन्त्रवत क्रिया न करें।
ध्यान सम्बन्धी चर्चा व क्रिया आरम्भ करने से पहले वे आवश्यकतानुसार लघु शंका से निवृत्त हो जाएँ क्योंकि प्रात:काल योगासन के अभ्यास में पर्याप्त समय हों चुका होता है, ध्यान समाप्ति के पश्चात १० मिनट गम्भीर व भावनात्मक बातें करें जिससे उनसे आत्मीयता बने एवं मिशन सम्बन्धी जानकारी बढ़े। चर्चा अनौपचारिक प्रकृति की हो। तत्पश्चात शान्तिपाठ करें। (ध्यान से सम्बन्धित अन्य जानकारी के लिए पृष्ठ ........... देखें)