
घर- घर अलख जगायेंगे
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टिप्पणी- हम जिन अच्छाइयों से भरा- पुरा समाज चाहते हैं, वे सब
अच्छाइयाँ मनुष्य के अंदर है। परिवर्तन के लिए जो शक्ति सामर्थ्य
चाहिए वह भी मनुष्य के अंदर छिपी है। लोग उन्हें देख- समझ कर
जगा नहीं पा रहे हैं। जन- जन को उसके संदर्भ में जागरूक करना
उन्हें अपनी सामर्थ्य का बोध कराना जरूरी है। इसी प्रक्रिया को
अलख जगाना कहते हैं। इसी अलख जगाने से युग परिवर्तन का प्रभाव
आगे बढ़ेगा।
स्थाई- घर अलख जगायेंगे, हम बदलेंगे जमाना।
यह सृष्टि ईश्वर के संकल्प से बनी है। संकल्प शक्ति परमात्मा ने मनुष्य को भी दी है। यदि वह दृढ़ संकल्प पक्का निश्चय करके बढ़े तो फिर रूकावट आ तो सकती है- टिक नहीं सकती।
अ. 1- निश्चय हमारा, ध्रुव- सा अटल है।
काया की रग- रग में, निष्ठा का बल है।
जागृति शंख बजायेंगे, हम बदलेंगे जमाना॥
हर अच्छे बदलाव को लोग ठीक तो कहते हैं, किन्तु उसे परिस्थतियों वश अन्य अव्यवहारिक मानकर बैठ जाते हैं। लेकिन जिसने परिवर्तन के प्रयोग अपने ऊपर सफलता पूर्वक किए है उसके अंदर एक नया विश्वास और नई शक्ति जागती है। इसका अनुकरण हजारों लोग करने लगते हैं। हमे भी यही क्रम अपनाना है।
अ. 2- बदली है हमने, अपनी दिशायें।
मंजिल नयी तय, करके दिखायें।
धरती को स्वर्ग बनायेंगे, हम बदलेंगे जमाना॥
एक सूत्र वाक्य है ‘‘परिश्रम के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।’’ हजार योजनाएँ हजार तरह के सहयोग भी। बिना श्रम के फलित नहीं हो सकते। श्रम को लोग छोटा मानते हैं उनकी प्रगति रुक जाती है। हमें सृजनशील श्रम की प्रतिष्ठा फिर से बढ़ानी है।
अ. 3- श्रम से बनायेंगे, माटी को सोना।
जीवन बनेगा, उपवन सलोना।
मंगल सुमन खिलायेंगे, हम बदलेंगे जमाना॥
आज समाज में फैले पीड़ा- पतन को देखकर सभी दुखी और चिंतित है। इसका कारण एक ही है कि मनुष्य संकीर्ण स्वार्थ की जंजीरों में जकड़ा पड़ा है। यदि संकीर्ण की जंजीरे टूटे तो मनुष्य की संवेदनाएँ फिर से खुले और भेदभाव के ऊपर ममता एवं समता का प्रभाव फिर से दिखने लगे।
अ. 4- पीड़ा पतन की, तोड़ेंगे कारा।
ममता की निर्मल, बहायेंगे धारा।
समता का दीप जलायेंगे, हम बदलेंगे जमाना॥
पत्ते सीचने से वृक्ष की सेहत नही सुधरती। उसके जड़ में ही खाद पानी डालना पड़ता है। मनुष्य के अंदर की बुरी प्रवृत्तियों को हटाया जाय, अच्छी प्रवृत्तियों को जगाया जाय तो ज्योति से ज्योति व्यक्ति से व्यक्ति के जागृत होने का क्रम चल पड़े।
अ. 5- दुष्प्रवृत्तियाँ ठुकरायेंगे,
सत्प्रवृत्तियाँ अपनायेंगे,
ज्योति से ज्योति जगायेंगे, हम बदलेंगे जमाना॥
स्थाई- घर अलख जगायेंगे, हम बदलेंगे जमाना।
यह सृष्टि ईश्वर के संकल्प से बनी है। संकल्प शक्ति परमात्मा ने मनुष्य को भी दी है। यदि वह दृढ़ संकल्प पक्का निश्चय करके बढ़े तो फिर रूकावट आ तो सकती है- टिक नहीं सकती।
अ. 1- निश्चय हमारा, ध्रुव- सा अटल है।
काया की रग- रग में, निष्ठा का बल है।
जागृति शंख बजायेंगे, हम बदलेंगे जमाना॥
हर अच्छे बदलाव को लोग ठीक तो कहते हैं, किन्तु उसे परिस्थतियों वश अन्य अव्यवहारिक मानकर बैठ जाते हैं। लेकिन जिसने परिवर्तन के प्रयोग अपने ऊपर सफलता पूर्वक किए है उसके अंदर एक नया विश्वास और नई शक्ति जागती है। इसका अनुकरण हजारों लोग करने लगते हैं। हमे भी यही क्रम अपनाना है।
अ. 2- बदली है हमने, अपनी दिशायें।
मंजिल नयी तय, करके दिखायें।
धरती को स्वर्ग बनायेंगे, हम बदलेंगे जमाना॥
एक सूत्र वाक्य है ‘‘परिश्रम के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।’’ हजार योजनाएँ हजार तरह के सहयोग भी। बिना श्रम के फलित नहीं हो सकते। श्रम को लोग छोटा मानते हैं उनकी प्रगति रुक जाती है। हमें सृजनशील श्रम की प्रतिष्ठा फिर से बढ़ानी है।
अ. 3- श्रम से बनायेंगे, माटी को सोना।
जीवन बनेगा, उपवन सलोना।
मंगल सुमन खिलायेंगे, हम बदलेंगे जमाना॥
आज समाज में फैले पीड़ा- पतन को देखकर सभी दुखी और चिंतित है। इसका कारण एक ही है कि मनुष्य संकीर्ण स्वार्थ की जंजीरों में जकड़ा पड़ा है। यदि संकीर्ण की जंजीरे टूटे तो मनुष्य की संवेदनाएँ फिर से खुले और भेदभाव के ऊपर ममता एवं समता का प्रभाव फिर से दिखने लगे।
अ. 4- पीड़ा पतन की, तोड़ेंगे कारा।
ममता की निर्मल, बहायेंगे धारा।
समता का दीप जलायेंगे, हम बदलेंगे जमाना॥
पत्ते सीचने से वृक्ष की सेहत नही सुधरती। उसके जड़ में ही खाद पानी डालना पड़ता है। मनुष्य के अंदर की बुरी प्रवृत्तियों को हटाया जाय, अच्छी प्रवृत्तियों को जगाया जाय तो ज्योति से ज्योति व्यक्ति से व्यक्ति के जागृत होने का क्रम चल पड़े।
अ. 5- दुष्प्रवृत्तियाँ ठुकरायेंगे,
सत्प्रवृत्तियाँ अपनायेंगे,
ज्योति से ज्योति जगायेंगे, हम बदलेंगे जमाना॥