
फिर अपने गाँवों को
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भारत ग्राम प्रधान देश है। अभी भी 70 प्रतिशत से अधिक आबादी
गाँवों में रह रही है। यदि वास्तव में देश को खुशहाल बनाना है
तो हमें गाँवों को खुशहाल बनाने के लिए संकल्प पूर्वक प्रयास
करने होंगे।
स्थाई- फिर अपने गाँवों को- हम स्वर्ग बनायेंगे।
अपने अन्दर सोया- देवत्व जगायेंगे॥
देवता स्वच्छता और सुव्यवस्था को प्रेम करते हैं। गंदगी और अस्त व्यस्तता पसन्द नहीं। हमारे अंदर देवत्व जागे इसका पहला प्रमाण यही है कि हम गंदगी को सहन न करें। स्वच्छ रहें स्वच्छता फैलायें।
अ. 1- गाँवों की गलियाँ क्यों गन्दी रहने देंगे।
गन्दगी नरक जैसी अब क्यों सहने देंगे॥
सहयोग और श्रम से यह नरक हटायेंगे॥
जब बाहर का मैल साफ करने की हमारी कुशलता बढ़ेगी तो फिर हम अपने मनों का मैल भी पहचान सकेंगे- उसे हटा सकेंगे। मन का मैल हटाते ही भेदभाव का भूत भागने लगता है। आत्मीयता के प्रभाव से भाई- चारा बढ़ने लगता है।
अ. 2- रहने देंगे बाकी अब मन का मैल नहीं।
अब भेदभाव का हम खेलेंगे खेल नहीं॥
सब भाई- भाई हैं, सब मिलकर गायेंगे॥
देवताओं जैसा रूप तो कालनेमी- रावण भी बना लेते हैं। देवत्व की असली पहचान उनका चिंतन- चरित्र एवं व्यवहार होता है। जहाँ मन निर्मल होंगे सद्भाव विकसित होगा। वहाँ सुख- दुःख परस्पर बँटने लगेगें। ध्यान रहे दुःख बँटा लेने से घटते हैं तथा सुख बाँट देने से बढ़ते हैं।
अ. 3- देवों जैसा होगा चिन्तन व्यवहार चलन।
सद्भाव भरे होंगे सबके ही निर्मल मन॥
फिर तो सबके सुख दुःख सबमें बँट जायेंगे॥
आज जो शोषण- उत्पीड़न, पीड़ा- पतन का माहौल दिख रहा है। वह हमारी मन की मलीनता तथा सद्भावों की कमी से ही है। जैसे- जैसे मन साफ होंगे सद्भाव बढ़ेंगे वैसै- वैसे समता सहयोग के आधार पर सुख- सम्पदा भी बढ़ेगी। भारत फिर अपनी महानता प्राप्त कर लेगा।
अ. 4- शोषण उत्पीड़न का फिर नाम नहीं होगा।
फिर पीड़ा और पतन का काम नहीं होगा॥
सोने की चिड़िया हम फिर से कहलायेंगे॥
आज भौतिक चकाचौंध में अंधा होकर युवावर्ग शहरों की तरफ भागता चला जा रहा है।
घर अपना भारत तो है अपना हिन्दुस्तान कहाँ।
वह बसा हमारे गाँवों में गाँव तो भारत के दिल है॥
किन्तु आज गाँवों की गंदगी को देखकर लगता है कि समूचे भारत को हॉर्ट- अटैक न आ जाए इसलिए हमें संकल्प लेना है कि हम प्रायः मनुष्य के देवत्व को जगाकर इस धरती को स्वर्ग बनायेंगे। अपने सामूहिक श्रम से गाँवों की नारकिय गंदगी को हटा देंगे। गाँवों में एकता- समता के बीज बोयेंगे। भेदभाव के भूत को भगाकर सद्भाव की गंगा सभी के मनों में बहा देंगे। शोषण, उत्पीड़न, जाति- पाति, मृत्युभोज, व्यसन को हटाकर गाँवों में पुनः भाईचारे और धर्म- कर्म की स्थापना होगी। फिर से स्थाई पद गायें... दुहरवायें।
फिर अपने गाँवों को- हम स्वर्ग बनायेंगे।
अपने अन्दर सोया- देवत्व जगायेंगे॥
स्थाई- फिर अपने गाँवों को- हम स्वर्ग बनायेंगे।
अपने अन्दर सोया- देवत्व जगायेंगे॥
देवता स्वच्छता और सुव्यवस्था को प्रेम करते हैं। गंदगी और अस्त व्यस्तता पसन्द नहीं। हमारे अंदर देवत्व जागे इसका पहला प्रमाण यही है कि हम गंदगी को सहन न करें। स्वच्छ रहें स्वच्छता फैलायें।
अ. 1- गाँवों की गलियाँ क्यों गन्दी रहने देंगे।
गन्दगी नरक जैसी अब क्यों सहने देंगे॥
सहयोग और श्रम से यह नरक हटायेंगे॥
जब बाहर का मैल साफ करने की हमारी कुशलता बढ़ेगी तो फिर हम अपने मनों का मैल भी पहचान सकेंगे- उसे हटा सकेंगे। मन का मैल हटाते ही भेदभाव का भूत भागने लगता है। आत्मीयता के प्रभाव से भाई- चारा बढ़ने लगता है।
अ. 2- रहने देंगे बाकी अब मन का मैल नहीं।
अब भेदभाव का हम खेलेंगे खेल नहीं॥
सब भाई- भाई हैं, सब मिलकर गायेंगे॥
देवताओं जैसा रूप तो कालनेमी- रावण भी बना लेते हैं। देवत्व की असली पहचान उनका चिंतन- चरित्र एवं व्यवहार होता है। जहाँ मन निर्मल होंगे सद्भाव विकसित होगा। वहाँ सुख- दुःख परस्पर बँटने लगेगें। ध्यान रहे दुःख बँटा लेने से घटते हैं तथा सुख बाँट देने से बढ़ते हैं।
अ. 3- देवों जैसा होगा चिन्तन व्यवहार चलन।
सद्भाव भरे होंगे सबके ही निर्मल मन॥
फिर तो सबके सुख दुःख सबमें बँट जायेंगे॥
आज जो शोषण- उत्पीड़न, पीड़ा- पतन का माहौल दिख रहा है। वह हमारी मन की मलीनता तथा सद्भावों की कमी से ही है। जैसे- जैसे मन साफ होंगे सद्भाव बढ़ेंगे वैसै- वैसे समता सहयोग के आधार पर सुख- सम्पदा भी बढ़ेगी। भारत फिर अपनी महानता प्राप्त कर लेगा।
अ. 4- शोषण उत्पीड़न का फिर नाम नहीं होगा।
फिर पीड़ा और पतन का काम नहीं होगा॥
सोने की चिड़िया हम फिर से कहलायेंगे॥
आज भौतिक चकाचौंध में अंधा होकर युवावर्ग शहरों की तरफ भागता चला जा रहा है।
घर अपना भारत तो है अपना हिन्दुस्तान कहाँ।
वह बसा हमारे गाँवों में गाँव तो भारत के दिल है॥
किन्तु आज गाँवों की गंदगी को देखकर लगता है कि समूचे भारत को हॉर्ट- अटैक न आ जाए इसलिए हमें संकल्प लेना है कि हम प्रायः मनुष्य के देवत्व को जगाकर इस धरती को स्वर्ग बनायेंगे। अपने सामूहिक श्रम से गाँवों की नारकिय गंदगी को हटा देंगे। गाँवों में एकता- समता के बीज बोयेंगे। भेदभाव के भूत को भगाकर सद्भाव की गंगा सभी के मनों में बहा देंगे। शोषण, उत्पीड़न, जाति- पाति, मृत्युभोज, व्यसन को हटाकर गाँवों में पुनः भाईचारे और धर्म- कर्म की स्थापना होगी। फिर से स्थाई पद गायें... दुहरवायें।
फिर अपने गाँवों को- हम स्वर्ग बनायेंगे।
अपने अन्दर सोया- देवत्व जगायेंगे॥