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Books - युग गायन पद्धति

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जीवन बड़ा महान

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टिप्पणी :- मनुष्य शरीर भगवान की अनोखी कृति है। पाँच तत्वों के इस पुतले में जीवन की महानतम संभावनाएँ समाई हुई हैं। जिन्होनें उसे समझा और जगाया, वे महानपुरुष, देवपुरुष, अवतारी स्तर तक जा पहुँचे। आईये हम भी अपने जीवन के महत्व को समझे और उसका लाभ उठाने के लिए संकल्पित हो।

स्थाई- जीवन बड़ा महान भाइयों, जीवन बड़ा महान।
इस काया में ही जन्में हैं, राम- कृष्ण भगवान्॥

मनुष्य की काया के साथ जीवन सम्पदा का बहुमूल्य खजाना जु़ड़ा हुआ है। किन्तु हम उसे न पहचान पाते हैं न उसका काम ले पाते है। हमारी स्थिति उस भिखारी बालक जैसी है जिसके गले में हीरे का कंठा पड़ा था और वह उससे अनजान दीनहीन जी रहा था। जीवन के जौहरी महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा, लेकर हम जीवन सम्पदा का मूल्य समझें तो बात बनें।

अ.1- किन जन्मों के पुण्य फले जो, मिली मनुज की काया।
इस काया में हमने- तुमने, कितना वैभव पाया॥
नहीं खोजकर निरखा- परखा, हीरा जन्म गँवाया।
जीवन के जौहरी जागते, पाते मूल्य सवाया॥
अपनी ही कीमत की हमको, अभी नहीं पहचान॥

हीरा भी जब खदान से निकलता है तो कंकड़ जैसा सामान्य ही दिखता है। जब उसकी सफाई करके उसे छीला चमकाया जाता है तो वह बेशकीमती हो जाता है। जीवन को बहुमूल्य बनाने वाली इसी प्रकिया को युग ऋषि ने जीवन साधना कहा है। इसे समझदारी से समझें ईमानदारी से आचरण में लाये और जिम्मेदार बनकर प्रयोग करें तो हमारा जीवन भी सोने हीरे की खदान सिद्ध हो सकता है।

अ. 2- चिन्तन और चरित्र आचरण, में परिवर्तन लाओ।
श्रेष्ठ शक्तियाँ सुप्त हैं अन्दर, उनको भी विकसाओ॥
समझदार ईमानदार, औ जिम्मेदार जवानों।
करो वक्त का मूल्य समझ से, अपने को पहचानों॥
तुम माटी ही नहीं तुम्हीं, सोने हीरे की खान॥

अक्सर लोग कहते हैं- साधना तो बुढ़ापे में करेंगे। यह भ्रम है। जीवन साधना जीवन के प्रारंभ से ही की जाती है। जब जीवन अनपढ़ ढंग से बीत ही गया तब क्या करेंगे? सोना आदि बहुमूल्य धातुएँ- प्रारंभ में अनगढ़ ही दिखती है। उनका शोधन होता है तब कीमत समझ में आती है। दशरथ ने अपने प्रिय पुत्रों को तपस्वी ऋषियों के हवाले कर दिया तो वे अवतारी बन गये थे। हम भी गुरु निर्देशों का अनुसरण करे तो हमारे अंदर भी ईश्वर अंश जागृत हो सकता है।

अ. 3- यही समय है सोना तपकर, कुन्दन बन जायेगा।
तुम बबूल समझे जो जिसको, चन्दन बन जायेगा॥
जन्म तुम्हारा तपकर दशरथ, नन्दन बन जायेगा।
गुरू कौशिक को सौंप प्राण, रघुनन्दन बन जायेगा॥
निश्चर हीन बनाने धरती, तुम भी लो प्राण ठान॥

जिनके इतिहास लिखे गये है वे कहीं न कही किसी समर्थ के निर्देशन में तप द्वारा चमकाये हैं। जो अपनी क्षमताओं को लोक मंगल के लिए लगाने के लिए कमर कस लेते है, उन्हें प्रकृति के समर्थ सत्ता के दिव्य अनुदान भी मिलने लगते हैं।

अ. 4- कौन जानता हरिशचन्द्र को, कौन जानता राम।
अगर न विश्वामित्र तपाकर, उनसे लेते काम॥
कौन जानता हनुमान को, वानर ही कहलाते।
मिलता क्यों सम्मान नहीं जो, राम काज कर पाते॥
सेवा- धर्म साधने वाले, पाते हैं वरदान॥

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