Saturday 05, July 2025
शुक्ल पक्ष दशमी, आषाढ़ 2025
पंचांग 05/07/2025 • July 05, 2025
आषाढ़ शुक्ल पक्ष दशमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आषाढ़ | दशमी तिथि 06:59 PM तक उपरांत एकादशी | नक्षत्र स्वाति 07:51 PM तक उपरांत विशाखा | सिद्ध योग 08:35 PM तक, उसके बाद साध्य योग | करण तैतिल 05:46 AM तक, बाद गर 06:59 PM तक, बाद वणिज |
जुलाई 05 शनिवार को राहु 08:54 AM से 10:38 AM तक है | चन्द्रमा तुला राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:26 AM सूर्यास्त 7:17 PM चन्द्रोदय 2:40 PM चन्द्रास्त 1:22 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतुवर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - आषाढ़
तिथि
- शुक्ल पक्ष दशमी
- Jul 04 04:32 PM – Jul 05 06:59 PM
- शुक्ल पक्ष एकादशी
- Jul 05 06:59 PM – Jul 06 09:15 PM
नक्षत्र
- स्वाति - Jul 04 04:50 PM – Jul 05 07:51 PM
- विशाखा - Jul 05 07:51 PM – Jul 06 10:41 PM

बड़प्पन की बात निर्माण में है विनाश में नहीं | Badappan Ki Baat Nirman Mein Hai Vinash Mai Nahi

अमृतवाणी:- संत एकनाथ और गधे की कथा | Sant Eknath Aur Gadhe Ki Katha
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 05 July 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन | पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
संघर्ष की वृत्ति हमको सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन करने के लिए अपने परिवारों में से ही विकसित करनी चाहिए।जाति बिरादरी के मामले भी इसी तरह के हैं जिसमें पुरातनपंथी लोग आज भी जाल में बुरी तरह से फँसे हुये हैं। हम तो कान्यकुब्ज हैं। और कान्यकुब्ज में अठारह बिश्वा के हैं और हम तो बाजपेयी हैं। हम तो अपनी बिरादरी में ब्याह करेंगे और हम तो किसी बात सुनेंगे नहीं, किसी का छुआ खायेंगे नहीं। ये कोई बात है? ख्वामखाह के पागल आदमी!इस तरीके से बेवकूफ और वाहियात लोगों की बातों को मान कर के हम किस तरह से न्याय और इंसाफ की हत्या कर सकते हैं? हमें इनके विरुद्ध बगावतें खड़ी करनी पड़ेगीं। और आगे चलकर हमको उन आवांछनीय तत्वों के विरुद्ध जिन्होंने की समाज को बिगाड़ने का ठेका ले रखा है और जो समाज को तबाह कर रहे हैं, उनके विरुद्ध हमको गाँधी जी के उन हथियारों का इस्तेमाल करना पड़ेगा जिनको सत्याग्रह कहते थे, जिनको असहयोग कहते थे।असहयोग और सत्याग्रह अब आगे आकर धीरे-धीरे विकसित होने लगा और उसकी प्रक्रिया घेराव के रूप में परिणत होने लगी है। अब सत्याग्रह यह नहीं है कि हम खड़े होंगे और आप छाती पर से निकल जाइये। उसमें दबाव भी रहता है कि हम आपको नहीं बढ़ने देंगे और नहीं निकलने देंगे। पहले सत्याग्रह का अलग स्वरूप था, अहिंसक सत्याग्रह था कि हम आपके दरवाजे पर पड़े हुये हैं और हमारी छाती पर पाँव रखकर के आप निकल जाइये और ऐसे बेशरम लोग भी होते थे जो छाती पर पाँव रखकर निकल जाते थे। अब ऐसे आदमियों को ज्यादा शह नहीं दी सकती। उनके कदमों पर देर तक नहीं चला जा सकता। हिंसात्मक और अहिंसात्मक सत्याग्रह के बीच की एक नयी चीज निकल पड़ी है उसका नाम है -घेराव। आदमी को दो हजार आदमी घेरकर के बैठ जाते हैं कि साहब आप अब आप यहाँ रहिये, हम आपको बाहर नहीं घर से निकलने देंगे। हम आपको मजबूर करेंगे। मजबूर करेंगे-ये घेराव का एक नया तरीका है, उसको इस्तेमाल किया जाना चाहिए। जहाँ अवांछनीय बातें होती हों, जहाँ रिश्वतखोरी होती हो, जहाँ मिलावट की बात होती हो, जहाँ बेइंसाफी होती हो, जहाँ बेईमानी होती हों, वहाँ लोगों को इस तरीके से मजबूर करना चाहिए और रोका जाना चाहिए। रोकने और मजबूर करने के लिए हमें एक ऐसी सेना- संघर्ष सेना खड़ी करनी पड़ेगी युग निर्माण सेना खड़ी करनी पड़ेगी जिसकी ताकत इस तरह के लोगों को डराने में समर्थ हो।
अखण्ड-ज्योति से
रावण की विद्वता संसार प्रसिद्ध है। उसके बल की कोई सीमा नहीं थी। ऐसा नहीं सोचा जा सकता कि उसमें इतनी भी बुद्धि नहीं थी कि वह अपना हित अहित न समझ पाता। वह एक महान बुद्धिमान तथा विचारक व्यक्ति था। उसने जो कुछ सोचा और किया, वह सब अपने हित के लिए ही किया। किन्तु उसका परिणाम उसके सर्वनाम के रूप में सामने आया। इसका कारण क्या था? इसका एकमात्र कारण उसका अहंकार ही था। अहंकार के दोष ने उसकी बुद्धि उल्टी कर दी। इसी कारण उसे अहित से हित दिखलाई देने लगा। इसी दोष के कारण उसके सोचने समझने की दिशा गलत हो गई थी और वह उसी विपरीत विचार धारा से प्रेरित होकर विनाश की ओर बढ़ता चला गया।
ऐसा कौन सा अकल्याण है, जो अहंकार से उत्पन्न न होता हो। काम, क्रोध, लोभ आदि विकारों का जनक अहंकार ही को तो माना गया है। बात भी गलत नहीं है, अहंकारी को अपने सिवाय और किसी का ध्यान नहीं रहता, उसकी कामनायें अपनी सीमा से परे-परे ही चला करती है। संसार का सारा भोग विलास और धन वैभव वह केवल अपने लिए ही चाहता है। अहंकार की असुर वृत्ति के कारण वह बड़ा विलासी और विषयी बना रहता है। उसकी विषय-वासनाओं की तृष्णा कभी पूरी नहीं होती।
कितना ही क्यों न भोगा जाय, विषयों की तृप्ति नहीं हो सकती। इसी अतृप्ति एवं असंतोष के कारण मनुष्य के स्वभाव में क्रोध का समावेश हो जाता है। वह संसार और समाज को अपने अराँतोपका हेतु समझने लगता है और बुद्धि विषय के कारण उनसे शत्रुता मान बैठता है। वैसा ही व्यवहार करने लगता है। जिसके फलस्वरूप उसकी स्वयं की अशाँति तो स्थायी बन ही जाती है, संसार में भी अशाँति के कारण उत्पन्न करता रहता है।
क्रमशः जारी
श्री भारतीय योगी
अखण्ड ज्योति 1969 जून पृष्ठ 58
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