Monday 07, July 2025
शुक्ल पक्ष द्वादशी, आषाढ़ 2025
पंचांग 07/07/2025 • July 07, 2025
आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वादशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आषाढ़ | द्वादशी तिथि 11:10 PM तक उपरांत त्रयोदशी | नक्षत्र अनुराधा 01:11 AM तक उपरांत ज्येष्ठा | शुभ योग 10:02 PM तक, उसके बाद शुक्ल योग | करण बव 10:16 AM तक, बाद बालव 11:10 PM तक, बाद कौलव |
जुलाई 07 सोमवार को राहु 07:10 AM से 08:54 AM तक है | चन्द्रमा वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:27 AM सूर्यास्त 7:17 PM चन्द्रोदय 4:35 PM चन्द्रास्त 2:41 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - आषाढ़
तिथि
- शुक्ल पक्ष द्वादशी
- Jul 06 09:15 PM – Jul 07 11:10 PM
- शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
- Jul 07 11:10 PM – Jul 09 12:38 AM
नक्षत्र
- अनुराधा - Jul 06 10:41 PM – Jul 08 01:11 AM
- ज्येष्ठा - Jul 08 01:11 AM – Jul 09 03:15 AM

आवश्यकता है दृढ़ विवेकयुक्त आस्था की | Avashyakta Hai Drdh Vivekayukt Astha Ki | जीवन पथ के प्रदीप

अमृत सन्देश:- हृदयवान की आवश्यकता क्यों है ? | Hridaywan Ki Avashyakta Kyun Hai
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 07 July 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: संघर्ष के लिए तैयार रहें | पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
प्रखर आंदोलन चले इन गंदे रिवाजों के विरुद्ध जहाँ कहीं भी हो सके, हमें सत्याग्रह करना चाहिए और जेल जाना चाहिए। भले ही इससे थोड़ा सा नुकसान हो और कानून का उल्लंघन हो, हम नहीं जानते कहाँ कानून होता है, कहाँ नहीं होता पर अगर कानून न्याय के और इंसाफ के विरुद्ध बाधक होता है, तो हम कानून को भी देखेंगे और कानून को तोड़ने का जो खामियाजा उठाना पड़ता है, उस नुकसान को भी उठायेंगे और बर्दास्त करेंगे। न्याय बड़ा है, कानून बड़ा नहीं है। कानून बड़ा नहीं है। अगर कानून यह कहता है कि बूढ़े आदमी के साथ में छोटी बच्ची का ब्याह करने में कोई कानूनी रुकावट नहीं है और अगर बच्ची का बाप छोटी बच्ची का बूढ़े आदमी के साथ शादी कर रहा है और कानूनी रुकावट नहीं है, तो हम कानून की परवाह नहीं करेंगे और हम कानून को तोड़ेंगे।इस तरीके से लोगों में बगावत का भाव पैदा किया ही जाना चाहिए और वो बात पैदा की जानी चाहिए जो समाज के लिए अत्यंत आावश्यक है। धर्म के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है, जितना पैसे का अपव्यय हो रहा है हमको उसके लिए संघर्ष करना पड़ेगा। हमको ये कहना पड़ेगा कि निहित स्वार्थवश जिन्होंने महंत और गद्दी के नाम पर इतना अकूत धन जमा करके रखा है और जो व्यक्तियों के सुविधा के लिए खर्च किया जा रहा है, उसको हमें समाज के लिए खर्च करना चाहिए। हमें ऐसे मंदिरों में धन नहीं देना चाहिए। ऐसे पुजारियों और महंतों को जो करोड़पति और अरबपति बने हुये हैं और राजा और महाराजाओं के बाप बने हुये हैं और इस तरीके से विलासी जीवन जी रहे हैं, जिस तरह का कोई करोड़पति ही जी सकता, इस तरह के विलासी लोगों को हम कहेंगे कि आप धर्माचार्य नहीं हो सकते और हम आपको धर्माचार्य नहीं रहने देंगे। अगर आप धर्माचार्य हैं तो आपको संत के तरीके से जीना चाहिए और जो आपके पास धन सम्पति है उसे लोक मंगल के लिए खर्च किया जाना चाहिए इस पिछड़े हुये समाज में।अगर वो नहीं मानते या उनके निहित स्वार्थ ऐसे हैं, जो हमारी बात स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते हैं तो हमको संघर्ष करना पड़ेगा।और संघर्ष के क्या तरीके होते हैं वह समय पर बताये जायेंगे।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
अखण्ड-ज्योति से
अकारण अहंकार करने वाले व्यक्ति तो एक प्रकार से अभागे ही होते है। वे अपनी इस अहैतुक विषाग्नि में यों ही जलते रहते है। कोई शक्ति नहीं, कोई सम्पत्ति नहीं, कोई पुरुषार्थ नहीं तब भी शिर पर दम्भ का भार लिए फिरते है। बात बात में ऐंठते रहते है, बात बात में जान बधारते है- ऐसे निरर्थक अहंकारी पग-पग पर असहनीय और तिरस्कार पाते रहते है। अपनी सीमित परिधि में ही जिस पिटकर नष्ट हो जाते हैं न शाँति पा पाते है, और न सन्तोष योग्य कोई स्थिति। विस्तार व्यक्तियों का अहंकार न केवल विकार ही होता है, बल्कि वह एक रोग भी होता है, जो जीवन के विकास पर धरना देकर बैठ जाता है सारी प्रगतियों के द्वार बन्द कर देता है।
इसी प्रकार के निस्तार अहंकारी प्रायः अपराधी बन जाया करते है। प्रगति तो उनकी अपने इस रोग के कारण नहीं होती है और दोश ये समाज के मत्थे मड़ा करते हैं। बुद्धि भ्रम के कारण क्रोध करते हैं और संघर्ष उत्पन्न कर उसमें फँस जाते है। ऐसे अहंकारियों की कामनायें बड़ी चढ़ी होती हैँ, उनकी पूर्ति की क्षमता होती नहीं, वही निदान अपराध पथ पर बढ़ जाया करते है। अकारण अहंकार करने वाला व्यक्ति अपनी जितनी हानि किया करता है, उतनी शायद एक पागल व्यक्ति भी नहीं करता।
किन्तु साधन-सम्पन्न व्यक्ति भी अहंकार की आग में भस्म हुए बिना नहीं रहते। साधनहीन व्यक्ति यदि अहंकार को प्रश्रय देता है तो उसकी हानि उसकी भावी उन्नति की सम्भावना तक ही सीमित रहती है। पर साधन सम्पन्न व्यक्ति जब अहंकार को ग्रहण करता है, तब उसका भविष्य तो भयानक बनता ही है, वर्तमान भी ध्वस्त हो जाता है। इस दोष के कारण समाज का असहयोग होते ही सारे रास्ते बन्द हो जाते है। सम्पत्ति निकम्मी होकर पड़ी रहती है, किसी काम नहीं आती। सम्पत्ति की सक्रियता भी तो समाज के सहयोग पर ही निर्भर रहती है। जब समाज का सहयोग ही उठ जायेगा तो सम्पत्ति ही क्या काम बना सकती है? जीवन में आयात का मार्ग बन्द होते ही निर्यात आरम्भ हो जाता है, ऐसा नियम है। निदान धीरे धीरे सारी सम्पत्ति निकल जाती है। इस प्रकार वर्षों का संचय किया हुआ, अतीत का फल भी नष्ट हो जाता है।
क्रमशः जारी
श्री भारतीय योगी
अखण्ड ज्योति 1969 जून पृष्ठ 59
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