Wednesday 09, July 2025
शुक्ल पक्ष चतुर्दशी, आषाढ़ 2025
पंचांग 09/07/2025 • July 09, 2025
आषाढ़ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आषाढ़ | चतुर्दशी तिथि 01:37 AM तक उपरांत पूर्णिमा | नक्षत्र मूल 04:49 AM तक उपरांत पूर्वाषाढ़ा | ब्रह्म योग 10:08 PM तक, उसके बाद इन्द्र योग | करण गर 01:11 PM तक, बाद वणिज 01:37 AM तक, बाद विष्टि |
जुलाई 09 बुधवार को राहु 12:22 PM से 02:06 PM तक है | चन्द्रमा धनु राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:28 AM सूर्यास्त 7:17 PM चन्द्रोदय 6:28 PM चन्द्रास्त 4:26 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु वर्षा
V. Ayana दक्षिणायन
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - आषाढ़
तिथि
- शुक्ल पक्ष चतुर्दशी
- Jul 09 12:38 AM – Jul 10 01:37 AM
- शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
- Jul 10 01:37 AM – Jul 11 02:06 AM
नक्षत्र
- मूल - Jul 09 03:15 AM – Jul 10 04:49 AM
- पूर्वाषाढ़ा - Jul 10 04:49 AM – Jul 11 05:56 AM

सविता महान आपसे वरदान मांगते है | Savita Mahan Aapse Vardaan | Mata Bhagwati Devi Bhajan

अमृत सन्देश:- करुणा और उदारता का महत्व | Karuna Aur Udarata Ka Mehtav
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 09July 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: जब समाज जागेगा, तब अत्याचार रुकेगा | पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
गुंडातत्व इसलिए जिंदा हैं कि वो समझते हैं कि हमारा कोई मुकाबला करने वाला नहीं है और हम चाहे जो काम कर करते हैं। इन गुंडा तत्वों को जब ये मालूम पड़ेगा कि समाज में से वो तत्व उठकर खड़े हो गये हैं जो हमारा मुकाबला करेंगे और हमारे गलत काम और उच्छृंखलता के विरुद्ध लोहा लेंगे, इस तरह की उनको जब जानकारी होगी तो उनके हौसले पस्त हो जायेंगे। गुंडा गर्दी आजकल इस लिए हावी होती जा रही है कि एक आदमी का नुकसान होता है तो दूसरा आदमी उसके बारे में आवाज नहीं उठाता। ये कहता है कि हम क्यों उस मुसीबत में फँसें, इससे तो और मुसीबतें आयेंगी। लेकिन जिन लोगों ने अपना सिर हथेली पर रख लिया है, जिन्होंने मुसीबतों को ही आमंत्रण दिया है, जो मुसीबत के लिए ही उठकर खड़े हो गये हैं और जिन्होंने अपना जीवन और जान को ऐसी चुनौतियाँ स्वीकार करने के लिए ही समर्पित कर दिया है, ऐसी लोकसेना उठकर खड़ी हो जाये तो बात बन जाये। तब वे लोग जो अपने आप को अकेला अनुभव करते हैं, जो ये ख्याल करते हैं कि हम अकेले क्या कर सकते हैं, हमको कुचल दिया जायेगा और हमारे विरोधी बहुत हो जायेंगे, गुंडे हमको तंग करेंगे इसलिए वे मन मारकर चुप बैठ जाते हैं; उनके हौसले चौगुने और सौैगुने हो जायेंगे। तब अनीति का मुकाबला करने के लिए न केवल लोकवाहिनी सेना बल्कि असंख्य लोग उनके साथ में उठकर खड़े हो जायेंगे और एक ऐसी क्रांति उत्पन्न होगी जिसमें व्यक्ति-व्यक्ति के बीच, समाज-समाज के बीच, वर्ग-वर्ग के बीच और अवांछनीय-वांछनीय तत्वों के बीच जो विग्रह की आग सुलग रही है, उस आग को या तो इधर कर दिया जायेगा या उधर कर दिया जायेगा।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
भावनाशील प्रतिभाओं को खोजना, एक सूत्र में बाँधना और उन्हें मिल जुलकर सृजन के लिए कुछ करने में जुटाना- सतयुग की वापसी का शिलान्यास है। इसी के उपरान्त नवयुग का, उज्ज्वल भविष्य का भव्य भवन खड़ा हो सकने का विश्वास किया जा सकता है। इसलिए इसे सम्पन्न करने के लिए इस आड़े समय में किसी भी प्राणवान को निजी कार्यों की व्यस्तता की आड लेकर बगलें नहीं झाँकनी चाहिए। युग धर्म की इस प्रारम्भिक माँग को हर हालत में, हर कीमत पर पूरा करना ही चाहिए।
इन्हीं दिनों उठने वाला दूसरा चरण है “आद्यशक्ति का अभिनव अवतरण” नारी-जागरण। आज की स्थिति में नारी-नर की तुलना में कितनी पिछड़ी हुई है। इसे हर कोई हर कहीं नजर पसार कर अपने इर्द गिर्द ही देख सकता है। उसे रसाईदारिन-चौकीदारिन, धोबिन और बच्चे जनने की मशीन बन कर अपनी जिन्दगी गुजारनी पड़ती है। दासी की तरह जुटे रहने और अन्न वस्त्र पाने के अतिरिक्त और भी महत्वाकाँक्षा सँजोने के लिए उस पर कड़ा प्रतिबन्ध है। परम्परा निर्वाह के नाम पर उसे बाधित और प्रतिबंधित रहने के लिए कोई ऐसी भूमिका निभाने की गुँजाइश नहीं है जिससे उसे एक समग्र मनुष्य कहलाने की स्थिति तक पहुँचने का अवसर मिले।
संसार में आधी जनसंख्या नारी की है। इस वर्ग का पिछड़ी स्थिति में पड़े रहना समूची मनुष्य जाति के लिए एक अभिशाप है। इसे अर्धांग-पक्षाघात पीड़ित जैसी स्थिति भी कहा जा सकता है ऐ पहिया टूटा और दूसरा साबुत हो तो गाड़ी ठीक प्रकार चलने और लक्ष्य तक पहुँचने में कैसे समर्थ हो सकती है? एक हाथ वाले, एक पैर वाले निर्वाह भर कर पाते है। समर्थों की तरह बड़े काम सफलता पूर्वक कर सकना उनसे कहाँ बन पड़ता है? आधी जनसंख्या अनपढ़ स्थिति में रहे और दूसरा आधा भाग उसे गले के पत्थर की तरह लटकाए फिरे तो समझना चाहिए कि इस स्थिति में किस प्रकार समय को पूरा किया जा सकेगा किसी महत्वपूर्ण प्रगति की सम्भावना बन पड़ना तो दुष्कर ही रहेगा।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1988 पृष्ठ 58
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