Tuesday 29, July 2025
शुक्ल पक्ष पंचमी, श्रवण 2025
पंचांग 29/07/2025 • July 29, 2025
श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), श्रावण | पंचमी तिथि 12:46 AM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र उत्तर फाल्गुनी 07:27 PM तक उपरांत हस्त | शिव योग 03:04 AM तक, उसके बाद सिद्ध योग | करण बव 12:01 PM तक, बाद बालव 12:47 AM तक, बाद कौलव |
जुलाई 29 मंगलवार को राहु 03:46 PM से 05:27 PM तक है | चन्द्रमा कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:39 AM सूर्यास्त 7:08 PM चन्द्रोदय 9:46 AM चन्द्रास्त 9:56 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु वर्षा
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - श्रावण
- अमांत - श्रावण
तिथि
- शुक्ल पक्ष पंचमी
- Jul 28 11:24 PM – Jul 30 12:46 AM
- शुक्ल पक्ष षष्ठी
- Jul 30 12:46 AM – Jul 31 02:41 AM
नक्षत्र
- उत्तर फाल्गुनी - Jul 28 05:35 PM – Jul 29 07:27 PM
- हस्त - Jul 29 07:27 PM – Jul 30 09:53 PM

अमृतवाणी:- धर्म की स्थापना क्यो आवश्यक है ? | Dharam Ki Sthapna Kyun Avashayak Hai पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

अध्यात्मवाद की उपयोगिता समझी जाय | Adhyatmawad Ki Upyogita Samjhi Jaye
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 29 July 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: व्यक्तित्व विकास और भगवान की पूजा पं श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
हमारा आध्यात्मिक जीवन, जिन श्रेष्ठ गुणों की वजह से, जिन शालीनताओं की वजह से, जिन विशेषताओं की वजह से उन्नतिशील नहीं हो पा रहा है, इनको हमको कैसे पूरा करना चाहिए? यह दोनों हिस्से अध्यात्म के हैं। अगर दोनों हिस्से आपके अध्यात्म के पूरे कर रहे हैं, अर्थात दोष-दुर्गुणों का निवारण और श्रेष्ठ सत्प्रवृत्तियों का अभिवर्द्धन — आपके यह दोनों कदम धीरे-धीरे बढ़ते हुए चले जाएंगे और आप इन्हीं दोनों कदमों के सहारे लेफ्ट-राइट करते हुए, बड़ी से बड़ी, लंबी से लंबी मंज़िल को पार करने में समर्थ हो सकेंगे।
यह कह रहा था आध्यात्मिकता के संबंध में — कि आप भौतिक जीवन में उन्नति प्राप्त करने के इच्छुक हों।
जो कीमती वाले देवता आपके पास शरीर और मन के रूप में मिले हुए हैं, शरीर और मन — दोनों का सम्मिश्रण है प्राण।
प्राण, शरीर और मन दोनों का सम्मिश्रण है — चेतना का एक भाग है। अपने शरीर और मन को ठीक कीजिए, उन्नतिशील बनिए, सही व्यक्तित्व का विकास कीजिए, और उन्नति के रास्ते पर चलिए। देखिए, दुनिया आपकी सहकार करती है कि नहीं, और सहायता करती है कि नहीं, और आपको आगे बढ़ाती है कि नहीं, और आपकी मदद करती है कि नहीं।
आपका व्यक्तित्व इस लायक होगा, तो जबरदस्ती आप लोगों से सहयोग पाना चाहेंगे — बेटे, काठ की हांडी कई दिन तक चलेगी?
कागज की नाव कितने दिन तक चलेगी? इसी तरीके से आप चालाकी और जालसाजी से दूसरों का सम्मान पा भी लें, और दूसरों का सहयोग पा भी लें — टिकेगा कब तक? वो टिकेगा कब तक? ठहर नहीं सकता, खत्म हो जाएगा, खत्म हो जाएगा।
इसमें ठहरने की दम नहीं है। चालाकियों में और सब बातों में अच्छाई यह है कि वो देर तक ज़िंदा नहीं रहती, देर तक ज़िंदा नहीं रह सकती।
यह तो अच्छा ही है कि आप अच्छाई के रास्ते से और ईमानदारी के रास्ते से उन्नति पूरा करने में समय लेंगे।
लेकिन आप बेईमानी के रास्ते से, चालाकी के रास्ते से अपेक्षाकृत जल्दी फ़ायदा उठा सकते हैं।
पर कमी एक ही है, बस एक ही कमी है — कि वो ठहर नहीं सकती।
बस, उसमें ठहरने का नहीं है गुण। बस हवा की तरह, हवा में गायब हो जाती है और थोड़े दिनों में वास्तविकता निखर कर आ जाती है।
हम अपनी कमजोरियों को, अपनी चालाकियों और बेईमानियों को देर तक छुपा नहीं सकते।
कुछ दिन तक हम छुपा सकते हैं, देर तक नहीं छुपा सकते।
वो खुलती है, वो खुलकर के आदमी को ख़त्म कर देती है या पहले से भी ज़्यादा नीचे गिरा देती है।
इसीलिए बेटे, मैं यह कह रहा था — भौतिक उन्नति, कि आप लोगों में से किसी की इच्छा हो, और वो टिकाऊ इच्छा हो, टिकाऊ की बात हो, तब तो इसी रास्ते पर चलना पड़ेगा। टिकाऊ की ना हो, तो बेटे फिर आपकी मर्ज़ी। तब वो रास्ता भी ठीक हो सकता है — कौन सा वाला?
जिसको हम चोरी और बेईमानी का रास्ता कहते हैं। शायद वो भी काम दे जाए, अगर आप पकड़ में न आ जाएँ।
तो पकड़ में आ जाएँगे, तो बेवकूफी का वो भी कहलाएगा। लेकिन सही रास्ता, जिसमें कोई जोखिम नहीं है और जिसका परिणाम निश्चित रूप से हो सकता है — वो है व्यक्तित्व का विकास। मैंने कल, परसों में कितने ढेरों उदाहरण आप लोगों को दिए — कि हमको शरीर और मन, जो अपना व्यक्तित्व है, इसको हम ठीक तरीके से परिष्कृत करें, तो यह भगवान की पूजा से किसी तरीके से कम नहीं है।
भगवान सत्कर्म के रूप में और सद्भाव के रूप में हमारे भीतर विद्यमान है।
अगर हम सत्कर्मों का और सद्भावों का पोषण ठीक तरीके से करते हुए चले जाते हैं — तो बेटे, यह पूजा है भगवान की।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
वर्तमान की समस्त समस्याओं का एक सहज सरल निदान है- ‘अध्यात्मवाद’। यदि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक जैसे सभी क्षेत्रों में अध्यात्मवाद का समावेश कर लिया जाये, तो समस्त समस्याओं का समाधान साथ-साथ होता चले और आत्मिक प्रगति के लिए अवसर एवं अवकाश भी मिलता रहे। विषयों में सर्वथा भौतिक दृष्टिकोण रखने से ही सारी समस्याओं का सूत्रपात होता है। दृष्टिïकोण में वांछित परिवर्तन लाते ही सब काम बनने लगेगें।
अध्यात्मवाद का व्यावहारिक स्परूप है, संतुलन, व्यवस्था एवं औचित्य। शारीरिक समस्या तब पैदा होती है, जब शरीर को भोग साधन समझ कर बरता जाता है। आहार-विहार और रहन-सहन को विचार परक बना लिया जाता है। इसी अनौचित्य एवं अनियमितता से रोग उत्पन्न होने लगते हैं और स्वास्थ्य समाप्त हो जाता है। विभिन्न शारीरिक समस्याओं का आसानी से हल निकल सकता है, यदि इस संदर्भ में दृष्टिïकोण को आध्यात्मिक बना लिया जाय। पवित्रता अध्यात्मवाद का पहला लक्षण है। यदि शरीर को पूरी तरह पवित्र और स्वच्छ रखा जाय, आत्म संयम और नियमितता द्वारा शरीर धर्म का पालन करते रहा जाय, तो शरीर पूरी तरह स्वस्थ बना रहेगा तथा शारीरिक संकट की संभावना ही न रहेगी। वह सदा स्वस्थ और समर्थ बना रहेगा।
शारीरिक स्वास्थ्य की अवनति या बीमारियों की चढ़ाई अपने आप नहीं होती, वरन्ï उसका कारण भी अपनी भूल है। आहार में असावधानी, प्राकृतिक नियमों की उपेक्षा, शक्तियों का अधिक खर्च, स्वास्थ्य में गिरावट के प्रधान कारण होते हैं। जो लोग अपने स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देते हैं, उसके नियमों का ठीक-ठीक पालन करते हैं, वे सुदृढ़ एवं निरोग बने रहते हैं।
मनुष्य का मन शरीर से भी अधिक शक्तिशाली साधन है। इसके निद्र्वन्द रहने पर मनुष्य आश्चर्यजनक उन्नति कर सकता है, किंतु यह खेद का विषय है कि आज लोगों की मनोभूमि बुरी तरह विकारग्रस्त बनी हुई है। चिंता, भय, निराशा, क्षोभ, लोभ एवं आवेगों का भूकंप उसे अस्त-व्यस्त बनाये रखता है। यदि इस प्रचण्ड मानसिक पवित्रता, उदार भावनाओं और मन:शांति का महत्त्व समझ लिया जाय और नि:स्वार्थ, निर्लोभ एवं निर्विकारिता द्वारा उसको सुरक्षित रखने का प्रयत्न कर लिया जाय, तो मानसिक विकास के क्षेत्र में बहुत दूर तक आगे बढ़ा जा सकता है।
सुदृढ़ स्वास्थ्य, समर्थ मन, स्नेह-सहयोग क्रिया-कौशल, समुचित धन, सुदृढ़ दाम्पत्य, ससुंस्कृत संतान, प्रगतिशील विकास क्रम, श्रद्धा, सम्मान, सुव्यवस्थित एवं संतुष्टï जीवन का एकमात्र सुदृढ़ आधार अध्यात्म ही है। आत्म-परिष्कार से संसार परिष्कृत होता चला जाता है। अपने को सुधारने से सारी समस्याओं का समाधान होता चला जाता है। अपने को ठीक कर लेने से आसपास के वातावरण के ठीक बनने में देर नहीं लगती। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि जो अपना सुधार नहीं कर सका, अपनी गतिविधियों को सुव्यवस्थित नहीं कर सका, उसका भविष्य अंधकार मय ही बना रहेगा। इसीलिए मनीषियों ने मनुष्य की सबसे बड़ी बुद्धिमत्ता उसकी आध्यात्मिक प्रवृत्ति को ही माना है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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