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Friday 23, May 2025

कृष्ण पक्ष एकादशी, जेष्ठ 2025




पंचांग 23/05/2025 • May 23, 2025

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | एकादशी तिथि 10:30 PM तक उपरांत द्वादशी | नक्षत्र उत्तरभाद्रपदा 04:02 PM तक उपरांत रेवती | प्रीति योग 06:36 PM तक, उसके बाद आयुष्मान योग | करण बव 11:55 AM तक, बाद बालव 10:30 PM तक, बाद कौलव |

मई 23 शुक्रवार को राहु 10:31 AM से 12:14 PM तक है | चन्द्रमा मीन राशि पर संचार करेगा |

 

सूर्योदय 5:24 AM सूर्यास्त 7:04 PM चन्द्रोदय 2:19 AM चन्द्रास्त 2:59 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म

 

  1. विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
  4. अमांत - बैशाख

तिथि

  1. कृष्ण पक्ष एकादशी   - May 23 01:12 AM – May 23 10:30 PM
  2. कृष्ण पक्ष द्वादशी   - May 23 10:30 PM – May 24 07:20 PM

नक्षत्र

  1. उत्तरभाद्रपदा - May 22 05:47 PM – May 23 04:02 PM
  2. रेवती - May 23 04:02 PM – May 24 01:48 PM


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गायत्री का वैज्ञानिक आधार Gayatri Mantra Ka Vaigyanik Aadhar

गायत्री का वैज्ञानिक आधार Gayatri Mantra Ka Vaigyanik Aadhar

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शिष्ट एवं सभ्य व्यवहार जरूरी है,  Shist Evm Sabhya Vyavhar Jaruri Hai

शिष्ट एवं सभ्य व्यवहार जरूरी है, Shist Evm Sabhya Vyavhar Jaruri Hai

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युग परिवर्तन का उद्घोष Yug Parivartan Ka Udghosh आद डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी

युग परिवर्तन का उद्घोष Yug Parivartan Ka Udghosh आद डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी

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देश में बदलाव कैसे आया ? : परिस्थितियाँ बदलने लगीं | चेतना की शिखर यात्रा | डॉ. प्रणव पण्ड्या जी

देश में बदलाव कैसे आया ? : परिस्थितियाँ बदलने लगीं | चेतना की शिखर यात्रा | डॉ. प्रणव पण्ड्या जी

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प्रकृति के अनुसार जीवन जिएँ | प्रकृति का अनुसरण | गायत्री के 24 अक्षरों की व्याख्या

प्रकृति के अनुसार जीवन जिएँ | प्रकृति का अनुसरण | गायत्री के 24 अक्षरों की व्याख्या

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आपके अंदर छिपी दिव्य शक्तियाँ क्या हैं

आपके अंदर छिपी दिव्य शक्तियाँ क्या हैं

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हम रुकें नहीं हैं, बस दिशा बदली है | Ham Ruke Nhi Hai Bas Disha Badal Di Hai

हम रुकें नहीं हैं, बस दिशा बदली है | Ham Ruke Nhi Hai Bas Disha Badal Di Hai

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Ep:- 18/21 अंतःशक्ति जागृत करें | महाकाल और युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया |

Ep:- 18/21 अंतःशक्ति जागृत करें | महाकाल और युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया |

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन

गायत्री माता
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गायत्री माता - अखंड दीपक
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गुरुजी माताजी
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चरण पादुका
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सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा (समाधि स्थल)
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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शिव मंदिर - शांतिकुंज
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हनुमान मंदिर - शांतिकुंज
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)

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आज का सद्वाक्य

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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन


!! शांतिकुंज दर्शन 22 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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अमृतवाणी: हमारे जीवात्मा का स्तर ऊँचा होना चाहिए पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश



एक राजकुमार था, नाम था जिसका सिद्धार्थ। सिद्धार्थ था, उसने अपने आप की धुलाई मज़ाई शुरू कर दी, और धुलाई मज़ाई शुरू करने के बाद में मज़ा आ गया उसको। हमने भगवान कहा, बुद्धा अवतारे। बुद्ध को हम अवतार मानते हैं, उसके लिए प्रणाम करते हैं और यह करते हैं।

छोटे-छोटे आदमी, छोटे-छोटे आदमी कहाँ से पैदा हुए थे? बहुत से अवतार पैदा हुए थे। कोई कच्छ पैदा हुआ, कोई मच्छ पैदा हुआ, कोई परशुराम पैदा हो गए, कौन-कौन रामचंद्र जी, किशन चंद्र जी पैदा हो गए। लोगों ने अपने आप को इस स्तर तक विकसित कर लिया कि हम उनको भगवान कहते हैं और भगवान का रूप देंगे।

भगवान आप क्यों कहते हैं बेटे? हम भगवान ही कहेंगे और भगवान की सारी की सारी विशेषताएँ जिनके भीतर पाई जा सकती हैं, हम क्यों भगवान न कहें? यह ब्रह्मविद्या, मैं समझता हूँ, इस संसार की सबसे बड़ी विद्या होनी चाहिए — जो आदमी के व्यक्तित्व को उछालती है, व्यक्तित्व को उभारती है, व्यक्तित्व को परिष्कृत करती है, व्यक्तित्व को श्रेष्ठ और शालीन बनाती है।

इतना शालीन बना सकती है कि हम इंसान की काया में भगवान का साक्षात्कार कर सकते हैं, देवता का साक्षात्कार कर सकते हैं। इसी काया के भीतर हम ऋषि का साक्षात्कार कर सकते हैं, और इसी काया के अंदर महात्मा और परमात्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं।

ऐसी विद्या, ऐसी स्नायु, ऐसी साइंस के लिए मैं क्या कह सकता हूँ? फिलॉसफी के लिए क्या कह सकता हूँ? यह ब्रह्मविद्या हमारी संपदा है। इसी ने नर रत्नों को गढ़ा। जगह-जगह से, प्रत्येक खदान में से, प्रत्येक कुटुंब में से, नवरत्न निकल के आते थे किसी ज़माने में। यह किसका चमत्कार था, किसका जादू था बेटे? यह ब्रह्मविद्या का जादू था जिसमें कि आदमी सोचता था — हम मर नहीं सकते, और मरने वाले का माद्दा हमारे भीतर नहीं है।

शरीर को हम बदलते हैं और हम किस तरीके से मर सकते हैं? मरने वालों ने हँसते हुए कहा — आत्मा हूँ, बदल डालूँगा यह फ़ौरन चोला। कैसे आ जाएगी अगर मेरी कजा जाएगी? कजा को, कजा को हँसते हुए और हँसाते हुए, गीता की पुस्तक को कलेजे से चिपका करके लोग फाँसी के फंदे पर झूल गए।

मित्रों, यह साइंस और यह फिलॉसफी हमारी महत्वपूर्ण फिलॉसफी थी। इसमें मनुष्य ने अपने शरीर की दृष्टि से विचार ही नहीं किया कभी। शरीर को खाना कब मिलेगा तो क्या? कपड़ा कब मिलेगा तो क्या? शरीर को विषय कब मिलेंगे तो क्या? भोग मिलेगा तो क्या? इससे क्या बनता है?

हमारी जीवात्मा का स्तर और हमारा स्वाभिमान ऊँचा उठा रहना चाहिए।

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अखण्ड-ज्योति से



 जहाँ थोड़े भी परिवार हैं वहाँ उन्हें संगठित हो जाना चाहिए। युग निर्माण परिवार बना लेना चाहिए और यदि न्यूनतम संख्या ही है तो भी उन्हें टोली बनाकर जन संपर्क के लिये निकलना चाहिये और नये युग की विचारणा एवं प्रक्रिया से सर्व साधारण को परिचित कराने के लिये निकलना चाहिये।

 शाखा संगठन के उद्देश्य, स्वरूप और कार्यक्रमों की अगले पृष्ठों पर चर्चा है। प्रयत्न हर जगह यह होना चाहिये कि सामूहिकता का विकास हो, और संगठित परिजन उन क्रिया कलापों को आगे बढ़ाने में पूरा उत्साह और सहयोग दिखायें। 

संघ शक्ति के बिना युग परिवर्तन जैसे महान अभियान में प्रगति नहीं हो सकती इसलिए एकाकी कुछ टुन मुन करते रहने की अपेक्षा हमें सुसंगठित ही होना चाहिए और अपने आपको सृजन सेना का सदस्य मानकर नव निर्माण की दिशा में कुछ चिन्तन और कुछ प्रयत्न निरन्तर करते रहना चाहिए।

 एक से दस का कर्त्तव्य ध्यान में रखा जाना चाहिए। पत्रिकायें जहाँ भी पहुँचती हैं- जिनके पास भी पहुँचती हैं वहाँ यह कर्त्तव्य समझा जाना चाहिये कि इन्हें पढ़ने या सुनने का लाभ कम से कम दस व्यक्ति तो उठा ही लिया करें। इसके लिये थोड़ी दौड़ धूप और चेष्टा हर किसी को करनी चाहिये।

यह प्राथमिक कसौटी है जिस पर कस कर किसी परिजन की अध्यात्म निष्ठा को परखा जा सकेगा और यह समझा जा सकेगा कि उस अभियान के संचालक के साथ उनका मोह ही नहीं प्रेम भी है। मोह दर्शन लाभ करने मात्र से तृप्त हो जाता है पर प्रेम तो कुछ अनुदान माँगता है जो कुछ न दे सके, उचित अनुरोध आग्रह पर भी ध्यान न दे सके उसे कुछ भले ही कहा जाय ‘प्रेमी’ तो नहीं ही कहा जायगा। गुरु देव अपने मार्ग दर्शक के प्रति अपने श्रद्धा भरे प्रेम का परिचय आजीवन देते चले आये हैं

 वे चाहते हैं कि उनके साथ बँधे हुए लोग भी अपनी भावनात्मक गहराई का एक ही प्रमाण परिचय प्रस्तुत करें। सघन अनुदान-सक्रिय मार्ग दर्शन और शक्ति प्रत्यावर्तन के लिये भी अधिकारी पात्रों को कब से तलाश कर रहे हैं। अब तो वह तलाश व्याकुलता में परिणत हो गई है। पर परिजनों में पात्रता का अभाव उन्हें इतना कष्टकारक होता है कि वे कभी-कभी रो पड़ते हैं।

 परिजनों को आत्मिक प्रगति की दिशा में कहने लायक प्रगति करने के लिये उपरोक्त कसौटियों पर अपनी पात्रता सिद्ध करनी चाहिए।

        समाप्त
 माता भगवती देवी शर्मा
अखण्ड ज्योति, मई 1972 पृष्ठ 43

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