Sunday 18, May 2025
कृष्ण पक्ष पंचमी, जेष्ठ 2025
पंचांग 18/05/2025 • May 18, 2025
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष पंचमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | पंचमी तिथि 05:58 AM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र उत्तराषाढ़ा 06:52 PM तक उपरांत श्रवण | शुभ योग 06:42 AM तक, उसके बाद शुक्ल योग | करण तैतिल 05:58 AM तक, बाद गर 06:09 PM तक, बाद वणिज |
मई 18 रविवार को राहु 05:19 PM से 07:00 PM तक है | चन्द्रमा मकर राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:26 AM सूर्यास्त 7:00 PM चन्द्रोदय 12:07 AM चन्द्रास्त 10:44 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
- अमांत - बैशाख
तिथि
- कृष्ण पक्ष पंचमी
- May 17 05:13 AM – May 18 05:58 AM
- कृष्ण पक्ष षष्ठी
- May 18 05:58 AM – May 19 06:11 AM
नक्षत्र
- उत्तराषाढ़ा - May 17 05:44 PM – May 18 06:52 PM
- श्रवण - May 18 06:52 PM – May 19 07:29 PM

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन











आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

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!! शांतिकुंज दर्शन 18 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: शादगी से ही समाज बदला जा सकता हैं | पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
47 हमारे घर में होली, दिवाली होती है, तीज-त्योहार होते हैं, और उसी तरीके से पाँच आदमी उस पक्ष के आ जाएं, पाँच पक्ष के हों, यहाँ घर के हों, अपना छोटा सा घर में हवन कर लिया जाए और अपने शांति के साथ में ब्याह कर दिया जाए, दूसरे दिन विदा कर दिया जाए।
तो इस तरह के ब्याह बहुत कम दाम में हो सकते हैं। किसी को दहेज ही देना हो तो अपनी बेटी के लिए फिक्स डिपॉजिट में कोई रकम जमा कर सकता है, जो पाँच साल में दुनी हो जाएगी।
इस तरह के ब्याह चलाना भी हमारा इस वक्त का कार्यक्रम है। यह हिंदू समाज के कोढ़ है, यह हिंदू समाज के कलंक है। फिर इसको दूर करने के लिए आप लोगों को इन्हीं दिनों कार्यक्रम का प्रयास करना पड़ेगा और इन्हीं यज्ञों के साथ में इन दो कार्यक्रमों को भी मिलाना पड़ेगा।
ब्याह-शादियों का एक और तरीका है कि हमारे ज्यादा तर यह होता है कि मोहल्ले वाले, पड़ोसी, यार, दोस्त, मित्र और संबंधी कहते हैं, "नहीं साहब, नाक कट जाएगी, बात बिगड़ जाएगी।" ऐसा तो नहीं होना चाहिए।
और ऐसी धूमधाम तो होनी चाहिए। देखिए, मोहल्ले में फलाने का इतना बड़ा ब्याह हुआ था, आपको क्यों नहीं करना चाहिए?
जहाँ इस तरह की मुसीबतें हो और जहाँ इस तरह के गिद्ध-कौवे चारों ओर घिरे हुए हों, आपको यह मालूम पड़ता हो कि इस मुसीबत से निकलने का कोई रास्ता नहीं है, तो हम आपको निमंत्रित करते हैं कि आप कन्या को ले आइए, लड़के को ले आइए, पाँच-पाँच आदमी दोनों पक्षों के आ जाइए, और यहाँ शांतिकुंज में आप बड़े मजे में ब्याह कर लीजिए, बिना खर्च के।
इसीलिए इस तरह के विवाहों का मेरी समझ से यह ज्यादा अच्छा है कि आप इस रिवाज को फैलाने के लिए और स्थानीय स्तर पर सफल नहीं हो पाते हैं, तो आप इसमें तो बड़े आसानी से सफल हो जाएंगे कि हमारे जो विवाह होंगे वो हमारे गुरुद्वारे में होंगे और वो शांतिकुंज में होंगे।
शांतिकुंज में विवाहों का यह प्रचलन चले तो यह तीर्थ स्थान भी है, देवताओं का यहाँ निवास भी है, नित्य यज्ञ भी होता है। ऐसे शुभ स्थान पर किया गया जैसे कि शुभ मुहूर्त की बात सोची जाती है, आप शुभ स्थान की बात सोचिए, मुहूर्त की बात मत सोचिए।
आप कभी भी ले आइए, यहाँ हमेशा ब्याह हो जाता है। चूंकि शुभ वातावरण है, शुभ भूमि है, शुभ पुनीत है, पुनीत स्थान है, इसीलिए यहाँ मुहूर्त की जरूरत नहीं है।
अखण्ड-ज्योति से
शिक्षित, सम्पन्न और सम्मानित होने के बावजूद भी कई बार व्यक्ति के सम्बन्ध में गलत धारणाएँ उत्पन्न हो जाती हैं और यह समझा जाने लगता है कि योग्य होते हुए भी अमुक व्यक्ति के व्यक्तित्व में कमियाँ हैं। इसका कारण यह है कि शिक्षित और सम्पन्न होते हुए भी व्यक्ति के आचरण से, उसके व्यवहार से कहीं न कहीं ऐसी फूहड़ता टपकती है जो उसे सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी अशिष्ट कहलवाने लगती है। विश्व स्तर पर एक बड़ी संख्या में लोग सम्पन्न और शिक्षित भले ही हों, किन्तु उनके व्यवहार में यदि शिष्टता और शालीनता नहीं है, तो उनका लोगों पर प्रभाव नहीं पड़ता। उनकी विभूतियों की चर्चा सुनकर लोग भले ही प्रभावित हो जायें, परन्तु उनके सम्पर्क में आने पर अशिष्ट आचरण की छाप उस प्रभाव को धूमिल कर देती है।
इसलिए शिक्षा, सम्पन्नता और प्रतिष्ठा की दृष्टि से कोई व्यक्ति ऊँचा हो और उसे हर्ष के अवसर पर हर्ष, शोक के अवसर पर शोक की बातें करना न आये, तो लोग उसका मुँह देखा सम्मान भले ही करें, परन्तु मन में उसके प्रति कोई अच्छी धारणाएँ नहीं रख सकेंगे। शिष्टाचार और लोक-व्यवहार का यही अर्थ कि हमें समयानुकूल आचरण तथा बड़े छोटों से उचित बर्ताव करना आये। यह गुण किसी विद्यालय में प्रवेश लेकर अर्जित नहीं किया जा सकता। इसका ज्ञान प्राप्त करने के लिए सम्पर्क और पारस्परिक व्यवहार का अध्ययन तथा क्रियात्मक अभ्यास ही किया जाना चाहिए।
अधिकांश व्यक्ति यह नहीं जानते कि किस अवसर पर, कैसे व्यक्ति से, कैसा व्यवहार करना चाहिए? कहाँ, किस प्रकार उठना-बैठना चाहिए और किस प्रकार चलना-रुकना चाहिए। यदि खुशी के अवसर पर शोक और शोक के समय हर्ष की बातें की जाएँ, या बच्चों के सामने दर्शन और वैराग्य तथा वृद्धजनों की उपस्थिति में बालोचित या युवजनोचित्त शरारतें, हास्य विनोद भरी बातें की जायें अथवा गर्मी में चुस्त, गर्म, भडक़ीले वस्त्र और शीत ऋतु में हल्के कपड़े पहने जायें, तो देखने सुनने वालों के मन में आदर नहीं, उपेक्षा और तिरस्कार की भावनाएँ ही आयेंगी।
कोई भी क्षेत्र क्यों न हों? हम घर में हों या बाहर कार्यालय में। दुकान पर और मित्रों-परिचितों के बीच हों अथवा अजनबियों के बीच। हर पल व्यवहार करते समय शिष्टाचार ही जीवन का वह दर्पण है जिसमें हमारे व्यक्तित्व का स्वरूप दिखाई देता है। इसके द्वारा मनुष्य का समाज से प्रथम परिचय होता है। यह न हो तो व्यक्ति समाज में रहते हुए भी समाज से कटा-कटा सा रहेगा और किसी प्रकार आधा-अधुरा जीवन जीने के लिए बाध्य होगा। जीवन साधना के साधक व उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को यह शोभा नहीं देता। उसे जीवन में पूर्णता लानी ही चाहिए। अस्तु, शिष्टाचार को भी जीवन में समुचित स्थान देना ही चाहिए।
शिष्टता मनुष्य के मानसिक विकास का भी परिचायक है। कहा जा चुका है कि कोई व्यक्ति कितना ही शिक्षित हो, किन्तु उसे शिष्टï और शालीन व्यवहार न करना आये, तो उसे अप्रतिष्ठा ही मिलेगी, क्योंकि पुस्तकीय ज्ञान अर्जित कर लेने से तो ही बौद्धिक विकास नहीं हो जाता। अलमारी में ढेरों पुस्तकें रखी होती हैं और पुस्तकों में ज्ञान संचित रहती हैं।
इससे आलमारी ज्ञानी और विद्वान तो नहीं कही जाती। वह पुस्तकीय ज्ञान केवल मस्तिष्क में आया मस्तिष्क की तुलना आलमारी से ही की जायेगी। उस कारण यह नहीं कहा जा सकता कि व्यक्ति मानसिक दृष्टि से विकसित है। मानसिक विकास अनिवार्य रूप से आचरण में भी प्रतिफलित होता है। व्यवहार की शिष्टïता और आचरण में शालीनता ही मानसिक विकास की परिचायक है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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