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Saturday 31, May 2025

शुक्ल पक्ष पंचमी, जेष्ठ 2025




पंचांग 31/05/2025 • May 31, 2025

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पंचमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), ज्येष्ठ | पंचमी तिथि 08:15 PM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र पुष्य 09:07 PM तक उपरांत आश्लेषा | वृद्धि योग 10:43 AM तक, उसके बाद ध्रुव योग | करण बव 08:43 AM तक, बाद बालव 08:15 PM तक, बाद कौलव |

मई 31 शनिवार को राहु 08:48 AM से 10:31 AM तक है | चन्द्रमा कर्क राशि पर संचार करेगा |

 

सूर्योदय 5:21 AM सूर्यास्त 7:08 PM चन्द्रोदय 9:16 AM चन्द्रास्त 11:31 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म

 

  1. विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
  4. अमांत - ज्येष्ठ

तिथि

  1. शुक्ल पक्ष पंचमी   - May 30 09:23 PM – May 31 08:15 PM
  2. शुक्ल पक्ष षष्ठी   - May 31 08:15 PM – Jun 01 07:59 PM

नक्षत्र

  1. पुष्य - May 30 09:29 PM – May 31 09:07 PM
  2. आश्लेषा - May 31 09:07 PM – Jun 01 09:36 PM


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हमारे अंदर असीम ऊर्जा है Hamare Anadar Asim Urja Hai आद डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी

हमारे अंदर असीम ऊर्जा है Hamare Anadar Asim Urja Hai आद डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी

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चरित्र को निखारती हैं कठिनाइयाँ कठिनाइयों से डरिए नहीं लड़िए (भाग 05) पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

चरित्र को निखारती हैं कठिनाइयाँ कठिनाइयों से डरिए नहीं लड़िए (भाग 05) पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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इन दिनों का प्रजनन विपत्ति का आमन्त्रण | बिना पानी पिए लिखे हुए फोल्डर-पत्रक से

इन दिनों का प्रजनन विपत्ति का आमन्त्रण | बिना पानी पिए लिखे हुए फोल्डर-पत्रक से

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लोभ और मोह से परे जीवन | जीवन को सार्थक बनाया जाय या निरर्थक गँवाया जाय | बिना पानी पिए

लोभ और मोह से परे जीवन | जीवन को सार्थक बनाया जाय या निरर्थक गँवाया जाय | बिना पानी पिए

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WhatsApp Video 2025-05-31 at 15.53.31.mp4

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युग निर्माण आंदोलन का प्रयोजन, Yug Nirman Aandolan Ka Prayojan

युग निर्माण आंदोलन का प्रयोजन, Yug Nirman Aandolan Ka Prayojan

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सेवा ही सच्ची पूजा है | Seva Hi Sacchi Pooja Hai

सेवा ही सच्ची पूजा है | Seva Hi Sacchi Pooja Hai

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अमृतवाणी:- गुण कर्म स्वभाव का विकास: भाग 3 | Pujay Gurudev Pt Shriram Sharma Acharya

अमृतवाणी:- गुण कर्म स्वभाव का विकास: भाग 3 | Pujay Gurudev Pt Shriram Sharma Acharya

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन

गायत्री माता
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गायत्री माता - अखंड दीपक
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गुरुजी माताजी
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चरण पादुका
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सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा (समाधि स्थल)
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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शिव मंदिर - शांतिकुंज
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हनुमान मंदिर - शांतिकुंज
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)

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आज का सद्वाक्य

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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन


!! शांतिकुंज दर्शन 31 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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अमृत सन्देश: केसा हो ज्ञान और बल के समन्वय का नवीनतम रूप गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश



  द्रोणाचार्य की लिवास और पोशाक को देखकर के लोगों ने एक सवाल किया, "क्यों महाराज जी, यह क्या मामला है, क्या बात है? आप यह वेदों की पुस्तकें बगल में दबाए फिरते हैं, धर्म का व्याख्यान करते हैं, धर्म का उपदेश करते हैं, और यह कंधे के ऊपर धनुष-बाण टांगे फिरते हैं, यह क्या मामला है, यह क्या मामला है?"

द्रोणाचार्य ने उसकी बात का जवाब दिया और यह कहा — "अग्रतारू चतुरो वेदाः, पश्चातारू चतुरं धनुर्धरः। इदं ब्राम्हमं, इदं क्षात्रं, शास्त्ररूपं जपिसरादपि।"

दोनों उद्देश्यों से हम इंसान भगवान और शैतान, दोनों का मुकाबला करते हैं। मनुष्य के भीतर भगवान भी रहता है और शैतान भी रहता है। भगवान का हम ज्ञान से पूजन करेंगे, लोगों को उपदेश देंगे, ब्रह्मविद्या सिखाएंगे, रामायण की बात सिखाएंगे, अनुष्ठान की बात सिखाएंगे, जप की बात सिखाएंगे, सोहम साधना की बात सिखाएंगे, खेचरी मुद्रा की बात सिखाएंगे।

जहां तक भगवान का ताल्लुक है, वहां तक — क्यों साहब? भगवान ही अकेला नहीं है बेटे, एक और बैठा हुआ है मक्कार। कौन बैठा हुआ है? वह शैतान बैठा हुआ है हर आदमी के भीतर। तो क्यों महाराज जी, वह ब्रह्मविद्या से मान सकता है? नहीं बेटे, वह नहीं मानेगा। वह नहीं मानेगा, वह किसी की नहीं मानेगा।

अगर आपको काटने के लिए भेड़िया आए आपके पास और आप प्रार्थना करें, और प्रार्थना करें — "क्षमा कर दे", क्षमा करेगा? नहीं करेगा। अच्छा, वह भेड़िए की बात जाने दीजिए। आपके सिर में जुएं हो जाएं, और आपके खाट में खटमल हो जाएं, रोज प्रार्थना करना — "देव शांति, अंतरिक्ष शांति, खटमल शांति, बिछू शांति, मच्छर शांति" — शांत हो जाएं तो आप मान लेना। आप प्रयोग कर लीजिए।

आपको रीछ के और बाघ के ऊपर प्रयोग करने के लिए नहीं कह सकता। क्यों साहब? रीछ का प्रयोग कीजिए — वह तो बड़ा महंगा पड़ेगा बेटे। और मैं शेर के लिए कहूं — तो शेर से मुकाबला करना बेटे, वह भी बड़ा महंगा पड़ेगा।

तू प्रयोग यहां से कर — अगर तेरा खटमल मान जाए तो जान लेना बात ठीक है। सारे का सारा ब्रह्मविद्या का गुण मिल जाएगा।

एक और चीज है। इसके लिए उन्होंने कहा — "आगे-आगे हम वेद को लेकर चलते हैं, पीछे-पीछे धनुष-बाण को लेकर चलते हैं।"

यह प्राचीन हमारी परंपरा है, नवीन परंपरा नहीं है। नवीन परंपरा नहीं है बेटे, प्राचीन परंपरा है। और हम नवीन उसका रूप देते हैं। नवीन हम रूप दे रहे हैं कि ज्ञान के हिसाब से बल का समन्वय, ज्ञान के हिसाब से बल का समन्वय आवश्यक है।

शक्ति — शक्ति के बिना भक्ति की रक्षा नहीं हो सकती। शक्ति और भक्ति, दोनों का समन्वय होना चाहिए।

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अखण्ड-ज्योति से




 जैसा मनुष्य का स्वभाव होता है उसी के अनुरूप उसकी मनोदशा बनती रहती है और जब वही आदत अपने जीवन का अंग बन जाती है तो उसे संस्कार मान लेते हैं। शराब पीना प्रारम्भ में एक छोटी सी आदत दीखती है किन्तु जब वही आदत गहराई तक जक जाती है, तो शराब के सम्बन्ध में अनेकों प्रकार की विचार रेखायें मस्तिष्क में बनती चली जाती हैं जो एक स्थिति समाप्त हो जाने पर भी प्रेरणा के रूप में मस्तिष्क में उठा करती हैं। जैसे कोई कामुक प्रवृत्ति का मनुष्य स्वास्थ्य सुधार या किसी अन्य कारण से प्रभावित होकर ब्रह्मचर्य रहना चाहता है। इसके लिये वह तरह-तरह की योजनायें और कार्यक्रम भी बनाता है तो भी उसके पूर्व जीवन के कामुक विचार उठने से रुकते नहीं और वह न चाहते हुये भी उस प्रकार के विचारों और प्रभाव से टकराता रहता है।

  यह संस्कार जैसे भी बन जाते है वैसा ही मनुष्य का व्यवहार होगा। यहाँ यह न समझना चाहिये कि यदि पुराने संस्कार बुरे पड़ गये हैं, विचारों में केवल हीनता भरी है, तो मनुष्य सद्व्यवहार नहीं कर सकता। यदि पूर्व जीवन के कुसंस्कार जीवन सुधार में किसी प्रकार का रोड़ा अटकाते है तो भी हार नहीं माननी है। चूँकि अब तक अच्छे कर्म नहीं किये थे इसलिये यह पुराने कुविचार परेशान करते हैं किन्तु यदि अब विचार और व्यवहार में अच्छाइयों का समावेश करते हैं तो यही एक दिन हमारे लिए शुभ संस्कार बन जायगा। तब यदि कुकर्मों की ओर बढ़ना चाहेंगे तो एक जबर्दस्त प्रेरणा अन्तःकरण में उठेगी और हमें बुरे रास्ते में भटकने से बचा लेगी।  
   
 महर्षि वाल्मीकि, सन्त तुलसीदास, भिक्षु अंगुलिमाल, गणिका, अजामिल आदि अनेकों कुसंस्कारों में ग्रसित व्यक्ति भी जब सन्मार्ग पर चलने लगे तो उनका जीवन पुण्यमय, प्रकाशमय बन गया। मनुष्य संस्कारों का गुलाम हो जाय, अपने स्वभाव में परिवर्तन न कर सके, यह असम्भव नहीं है। मनुष्य के विचार गीली मिट्टी और संस्कार उस मिट्टी से बने बर्तन के समान होते है। पिछले कुसंस्कारों का बड़ा तोड़कर नये विचारों की मिट्टी से नव-जीवन घट का निर्माण कर सकते हैं। इसमें राई-रत्ती भर भी सन्देह न करना चाहिये।

 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
 अखण्ड ज्योति जनवरी 1965 पृष्ठ 12

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व्यासजी ने जनमेजय से कहा-एक बार पंद्रह वर्षों तक वर्षा नहीं हुई इस अनावृष्टि के कारण भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। असंख्य प्राणी भूख से तड़प कर मर गये। उनकी लाशें घरों में सड़ने लगी। तब सज्जनों ने इकट्ठे होकर विचार किया कि गायत्री के परम उपासक तपोनिष्ठ गौतम ऋषि के पास चलना चाहिए, वे इस विपत्ति को दूर सकेंगे। वे तब सब मिलाकर गौतम ऋषि के पास गये और कष्ट सुनाया।

आगन्तुकों को सम्मानपूर्वक आश्वासन देकर गौतम ऋषि ने सर्व शक्तिमान गायत्री से उस संकट के निवारण के लिए प्रार्थना की। जगन्माता गायत्री ने प्रसन्न होकर गौतम ऋषि को समस्त प्राणियों का पोषण कर सकने में समर्थ एक पूर्ण पात्र दिया और कहा-इससे तुम्हारी समस्त अभीष्ट कामनाएँ पूर्ण हो जाया करेंगी। यह कहकर वेदमाता अन्तर्ज्ञान हो गयी और उस पात्र की कृपा से अन्न के पर्वतों जैसे ढेर लगे गये।

 अखण्ड ज्योति नवंबर 1997 पृष्ठ 44

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इन्द्र देवता की सहायता के लिए दशरथ जी अपना रथ लेकर गये थे। पहिया गड़बड़ाने लगा तो कैकेयी ने अपनी अंगुली लगाकर विपत्ति का समाधान किया था। ठीक इसी प्रकार एक और वर्णन यह मिलता है कि अर्जुन इन्द्र की सहायता करने गये थे, प्रसन्न होकर इन्द्र ने अर्जुन को उर्वशी का उपहार दिया था, जिसे उसने अस्वीकार कर दिया था। जहाँ मनुष्यों का आवागमन सम्भव हो सके, ऐसा स्वर्ग धरती पर ही हो सकता है।

इन्द्र और चन्द्र देवताओं का गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से छल करना धरती पर ही सम्भव है। दधीचि ने अपनी अस्थियाँ याचक देवताओं को प्रदान की थीं, आदि-आदि अगणित उपाख्यान ऐसे हैं जिसमें देवताओं और मनुष्यों के पारस्परिक घनिष्ठ सहयोग की चर्चा है। इन पर विवेचनात्मक दृष्टि से विचार करें तो इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है कि स्वर्ग कहीं भूमि पर होना चाहिए। यह क्षेत्र उत्तराखण्ड देवात्मा हिमालय का हृदय-क्षेत्र ही है।

 अखण्ड ज्योति नवंबर 1997 पृष्ठ 29

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Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

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