Tuesday 10, June 2025
शुक्ल पक्ष चतुर्दशी, जेष्ठ 2025
पंचांग 10/06/2025 • June 10, 2025
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्दशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), ज्येष्ठ | चतुर्दशी तिथि 11:35 AM तक उपरांत पूर्णिमा | नक्षत्र अनुराधा 06:01 PM तक उपरांत ज्येष्ठा | सिद्ध योग 01:44 PM तक, उसके बाद साध्य योग | करण वणिज 11:36 AM तक, बाद विष्टि 12:27 AM तक, बाद बव |
जून 10 मंगलवार को राहु 03:45 PM से 05:29 PM तक है | चन्द्रमा वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:20 AM सूर्यास्त 7:13 PM चन्द्रोदय 6:44 PM चन्द्रास्त 4:46 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
- अमांत - ज्येष्ठ
तिथि
- शुक्ल पक्ष चतुर्दशी
- Jun 09 09:36 AM – Jun 10 11:35 AM
- शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
- Jun 10 11:35 AM – Jun 11 01:13 PM
नक्षत्र
- अनुराधा - Jun 09 03:31 PM – Jun 10 06:01 PM
- ज्येष्ठा - Jun 10 06:01 PM – Jun 11 08:10 PM

परिष्कृत दृष्टिकोण ही स्वर्ग है | Pariskrit Dristikon Hi Swarg Hai | Pt Shriram Sharma Acharya

अमृतवाणी:- उपासना का क्रियात्मक स्वरूप : भाग 2 | त्रिपदा गायत्री के तीन चरण Upasana Ka Kriyatmak Swaroop Part 2 परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी

भर्गो पाप ताप दुःख रहता, जग हितकारी ॐ। हे देवस्य देवगण दायक मंगलकारी ॐ। ॐ नमः नमोकार, ॐ नमः नमोकार।

सफलता की कुंजी आत्मविश्वास | Safalta Ki Kunji Aatamvishwas पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

सफलता की कुंजी आत्मविश्वास | Safalta Ki Kunji Aatamvishwas पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

मित्रो! उपदेश तो बहुत पा चुके Mitrao! Updesh to Bahut Pa Chuke

व्यक्ति के स्वभाव और गुण का संवर्धन | Vyakti Ke Swabhav Aur Gun Ka Samvardhan

कन्याओं के विवाह की समस्या को कैसे दूर करें? Kanyaon Ke Vivah Ki Samasya Ko Kaise Dur Kare परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 10 June 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: इन्द्रियों के अपव्यय से बचें पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
तीन चुड़ैलें ऐसी हैं। दो तो ये थे भूत, कौन से? बताएँ — भूत आलस्य और प्रमाद। और तीन चुड़ैलें ऐसी, छुप के बैठ जाती हैं। पता ही नहीं चलता है इनका। तो ये भूत तो भी दिखाई पड़ जाते हैं। शरीर में दिखाई पड़ते हैं और अक़ल में दिखाई पड़ते हैं। इनका तो पता भी लगा सकते हैं। इनका तो पता ही नहीं चलता है कहाँ बैठी हैं। ऐसी बैठी रहती हैं और ऐसी बैठी रहती हैं, बस आँखें चमकाती रहती हैं और खट — गायब हो जाती हैं। आँखें चमकाती और गायब हो जाती हैं। पर हैं ऐसी कि बस खून पी जाती हैं।
कौन-कौन सी हैं तीन? जिसको मैंने आपसे बताया था — वासना एक, तृष्णा दो, अहंता तीन। यह हमारी ज़िंदगी के मूल्यवान रस को सब पी गईं। तीन चीज़ों पर सब हमने निछावर कर दिया। जो कुछ भी था, कुछ बचा नहीं बेटे। हमारा सब छूछ हो गया और हम खाली हो गए।
हमारे पास सामर्थ्य थी, शरीर था। हमारे पास बल था, पराक्रम था। और हमारी वासना ने खा लिया। जीभ ने खा लिया, कामेन्द्रिय ने खा लिया, आँखों ने खा लिया और विलासों ने खा लिया। और हम बिलकुल छूछ हैं और हमारे पास कुछ नहीं है। शरीर में केवल लिफाफा लिए बैठे हैं। ये चुड़ैलें हमारा खून चूस गईं और हम अब किसी काम के नहीं। ज़िंदा तो हैं, पर मरे हुए से भी ज़्यादा हैं।
इसको क्या करना पड़ेगा, बेटे? इसके लिए वही करना पड़ेगा जैसे वह करता है ना जादूगर। क्या करता है? भूतनी को पकड़ता है। कैसे पकड़ता है? वह गुर्दे खिलाता है। मिट्टी का एक कुल्हड़ पकड़ता है, भूत फिर क्या करता है? उसको बंद कर देता है — किसको? भूतनी को। फिर क्या करता है? चारों तरफ से इसको ढक्कन बंद करता है। फिर क्या करता है? चौराहे पे ले जाता है। चौराहे पे क्या करता है फिर? फिर गड्ढा खोदता है। फिर क्या करता है? गड्ढे में मुर्गी का अंडा और वो रख करके, और उसमें दीया रखता है। और वो रखता है — दाल उड़द की। रखता है, गड्ढे में गाड़ देता है — किसको? भूतनी को।
नहीं महाराज जी, भूतनी को अगर वैसे करेगा — हाथ जोड़ेगा — "भूतनी जी, तुम क्षमा कर दो", तो करेगी नहीं बेटे। बिना कुल्हड़ में गाड़े बिना मानेगी नहीं। गाड़ी भूतनी, वह ज़िंदा नहीं रह सकती।
ये कौन सी हैं भूतनी? जिन्होंने हमारे शरीर को खा लिया है। हमारे शरीर में कोई जान नहीं है। हमारे शरीर में बेजान है। सारा हमारा पेट खा लिया, सब चीज़ खाली इन वासनाओं ने। अगर हमने इंद्रियों के सुराखों में से अपने शक्तियों को खर्च न किया हो तो मज़ा आता।
हमारी आँखें चमकती होतीं प्रकाश जैसी। और हमारी वाणी कड़कती होती बिजली जैसी। और हमारे हाथ फड़कते होते — ऐसे फड़कते होते कि जैसे कोई तलवार फड़कती है।
अखण्ड-ज्योति से
आज जिस नारी को हमने घर की वंदनीय, परदे की प्रतिमा और पैरों की जूती बनाकर रख छोड़ा है और जो मूक पशु की तरह सारा कष्ट, सारा क्लेश, विष घूँट की तरह पीकर स्नेह का अमृत ही देती है उस नारी के सही स्वरूप तथा महत्व पर निष्पक्ष होकर विचार किया जाये तो अपनी मानवता के नाते सहधर्मिणी होने के नाते, राष्ट्र व समाज की उन्नति के नाते उसे उसका उचित स्थान दिया ही जाना चाहिये। अधिक दिनों उसके अस्तित्व, व्यक्तित्व तथा अधिकारों का शोषण राष्ट्र का ऐसे गर्त में गिरा सकता है जिससे निकल सकना कठिन हो जाएगा। अतः कल्याण तथा बुद्धिमत्ता इसी में है कि समय रहते चेत उठा जाये और अपनी इस भूल को सुधार ही लिया जाय।
नारी का सबसे बड़ा महत्व उसके जननी पद में निहित हैं यदि जननी न होती तो कहाँ से इस सृष्टि का सम्पादन होता और कहाँ से समाज तथा राष्ट्रों की रचना होती! यदि माँ न हो तो वह कौन-सी शक्ति होती जो संसार में अनीति एवं अत्याचार मिटाने के लिये शूरवीरों को धरती पर उतारती। यदि माता न होती तो बड़े-बड़े वैज्ञानिक, प्रचण्ड पंडित, अप्रतिम साहित्यकार, दार्शनिक, मनीषी तथा महात्मा एवं महापुरुष किस की गोद में खेल-खेलकर धरती पर पदार्पण करते। नारी व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र की जननी ही नहीं वह जगज्जननी हैं उसका समुचित सम्मान न करना, अपराध है पाप तथा अमनुष्यता है।
नारी गर्भ धारण करती, उसे पालती, शिशु को जन्म देती और तब जब तक कि वह अपने पैरों नहीं चल पाता और अपने हाथों नहीं खा पता उसे छाती से लगाये अपना जीवन रस पिलाती रहती है। अपने से अधिक संतान की रक्षा एवं सुख-सुविधा में निरत रहती है। खुद गीले में सोती और शिशु को सूखे में सुलाती है। उसका मल-मूत्र साफ करती है। उसको साफ-सुथरा रखने में अपनी सुध-बुध भूले रहती है। इस सम्बन्ध में हर मनुष्य किसी न किसी नारी का ऋणी हैं। ऐसी दयामयी नारी का उपकार यदि तिरस्कार तथा उपेक्षा से चुकाया जाता है तो इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है।
पत्नी के रूप में उसका महत्व कुछ कम नहीं हैं नारी पुरुष की अर्धांगिनी हैं पत्नी के बिना पति का व्यक्तित्व पूरा नहीं होता। उसी की महिमा के कारण पुरुष गृहस्थ होने का गौरव पाता है और पत्नी ही वह माध्यम है जिसके द्वारा किसी की वंश परम्परा चलती है। यह पत्नी की ही तो उदारता है कि वह पुरुष के पशुत्व को पुत्र में बदल कर उसका सहारा निर्मित कर देती है। पुरुष के प्यार, स्नेह तथा उन्मुक्त आवेगों को अभिव्यक्त करने में पत्नी का कितना हाथ है इसे सभी जानते है।
.... क्रमशः जारी
अखण्ड ज्योति 1995 अगस्त पृष्ठ 25
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
Newer Post | Home | Older Post |