Wednesday 21, May 2025
कृष्ण पक्ष नवमी, जेष्ठ 2025
पंचांग 21/05/2025 • May 21, 2025
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष नवमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | नवमी तिथि 03:22 AM तक उपरांत दशमी | नक्षत्र शतभिषा 06:58 PM तक उपरांत पूर्वभाद्रपदा | वैधृति योग 12:34 AM तक, उसके बाद विष्कुम्भ योग | करण तैतिल 04:13 PM तक, बाद गर 03:22 AM तक, बाद वणिज |
मई 21 बुधवार को राहु 12:13 PM से 01:56 PM तक है | चन्द्रमा कुंभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:25 AM सूर्यास्त 7:02 PM चन्द्रोदय 1:17 AM चन्द्रास्त 12:50 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
- अमांत - बैशाख
तिथि
- कृष्ण पक्ष नवमी
- May 21 04:55 AM – May 22 03:22 AM
- कृष्ण पक्ष दशमी
- May 22 03:22 AM – May 23 01:12 AM
नक्षत्र
- शतभिषा - May 20 07:32 PM – May 21 06:58 PM
- पूर्वभाद्रपदा - May 21 06:58 PM – May 22 05:47 PM

मानवता बचेगी तभी धरती बचेगी | Manavata Bachegi Tabhi Dharti Bachegi

नव निर्माण के सपने साकार होंगे। गुरुदेव के पत्र स्नेह | Gurudev Ke Patra Sneh
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 21 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: भगवान हर जगह पर व्याप्त हें | पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
मित्रों, सारी की सारी ज़िंदगी की मूलभूत समस्याएँ हमारे भीतर से उत्पन्न होती हैं और भीतर ही होकर के समाधान होती हैं। हमारे मुँह से आवाज़ निकलती है और वह ब्रह्मांड में घूम कर के चक्कर काट के हमारे पास आ जाती है। खत्म कब होगी आवाज़? हमारे पास टक्कर खाकर आती होगी। हमारे भीतर से संवेदनाएँ निकलती हैं और वस्तुओं से टक्कर मार कर के उनकी प्रतिक्रियाएँ, उनके रिफ्लेक्शन लौट के हमारे पास आ जाते हैं।
कैसी है साहब दुनिया? बड़ी बुरी है? हाँ साहब, बड़ी बुरी है, क्योंकि हमारा चिंतन बड़ा बुरा था। चक्कर काट कर के आ गया और यह खबर लेकर के आया कि दुनिया बड़ी बुरी है। और हमने यह विचार किया कि दुनिया की रग-रग में और नस-नस में भगवान भरा हुआ पड़ा है। हमारे विचार से प्रत्येक चीज के पास में जवाब तलब करते रहे और पूछते रहे — "कहिए साहब, आप में भगवान है कि नहीं?" "हाँ साहब, भगवान है हमारे भीतर।" हर चीज़ ने जवाब दिया और लौट कर वो यह खबर लेकर के आए — यह सब हमें पता चला कि हर चीज़ में भगवान है।
बेटे, यह भगवान का सलीका है। बेटे, हमको कुछ नहीं पता। हमारे विचार घूम कर के आ जाते हैं। यह Science of Soul है। यह इतनी बड़ी Soul है, इतनी बड़ी Science है — मैं नहीं समझता कि इससे भी बड़ी कोई साइंस होगी।
पदार्थ की साइंस बड़ी है — मैं कब कहता हूँ कि इसकी कोई क़ीमत नहीं है? मैंने किससे कहा कि केमिस्ट्री का कोई मतलब नहीं होता? यह सब चीज़ें अपनी जगह पर ठीक हैं, मुबारक हैं और ताक़तवर हैं।
लेकिन एक ऐसी साइंस है — एक ऐसी साइंस है जो हमारे स्वयं के संबंध में है। स्वयं के संबंध की साइंस अगर समझ में आ जाए तो मज़ा आ जाए ज़िंदगी में। और जो चीज़ें हैं दबी हुई हमारे भीतर, समझ में न आ सकीं — हमारे भीतर — वह उछल कर के और उभर कर के बाहर आ जाएँ।
अगर हमारे भीतर की चीज़ें हैं, उछल के और उभर के बाहर आ सकें — तो मज़ा आ जाए।
अखण्ड-ज्योति से
अखण्ड-ज्योति परिवार के प्रत्येक सदस्य के नाम संदेश देते हुए गुरु देव ने कहा-प्रत्येक परिजन को पेट और प्रजनन की पशु प्रक्रिया से ऊँचे उठकर उन्हें दिव्य जीवन की भूमिका सम्पादित करने के लिये कुछ सक्रिय कदम बढ़ाने चाहिएं। मात्र सोचते विचारते रहा जाय और कुछ किया न जाय तो काम न चलेगा। हममें से प्रत्येक को अधिक ऊँचा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और कर्तव्य में ऐसा हेर-फेर करना चाहिए जिसके आधार में परमार्थ प्रयोजनों को अधिकाधिक स्थान मिल सके। उपलब्ध विभूतियों और सम्पदाओं को अपने शरीर और अपने परिवार के लिए सीमित नहीं कर लेना चाहिए वरन् उनका एक महत्व पूर्ण अंश लोक मंगल के लिये नियोजित करना चाहिए।
हर एक को यह समझ लेना चाहिए कि दृष्टिकोण के परिष्कार गुण, कर्म, स्वभाव की उत्कृष्टता और परमार्थ प्रयोजनों में तत्परता अपनाये बिना कभी किसी की आत्मिक प्रगति सम्भव नहीं। ईश्वर उपासना और साधनात्मक गति विधियाँ अपनाने का प्रभाव परिणाम भी इन्हीं सत्प्रवृत्तियों का विकास होना चाहिए अन्यथा वह जप भजन भी एक चिह्न पूजा बनकर रह जायगा और उससे कुछ प्रयोजन सिद्ध न होगा।
उपासना एवं जीवन साधना का श्रेष्ठ किन्तु सरल रूप क्या हो सकता है इसकी चर्चा पिछले पृष्ठों पर हो चुकी है। उस दिशा में एक-एक कदम हर किसी को उठाना चाहिये और ‘इन दोनों गति विधियों को अपने जीवन क्रम में अविच्छिन्न रूप से सम्मिलित कर लेना चाहिए।
गुरु देव ने कहा-प्रत्येक जागृत आत्मा को क्रमबद्ध रूप से इस संगठन सूत्र में आबद्ध हो जाना चाहिए। युग-निर्माण परिवार की नियमित सदस्यता स्वीकार कर लेनी चाहिए और भावनात्मक नव निर्माण के लिए एक घण्टा समय और दस पैसा (उस समय के हिसाब से, आज के समय में एक रुपया) जैसे प्रतीकात्मक अनुदान को नियमित रूप से बिना किसी ढील-पोल के आरम्भ कर देना चाहिए। इस क्रम में व्यतिरेक न आने पाये इसलिए ‘ज्ञान घट’ की स्थापना आवश्यक है। उस बन्धन के सहारे नियमितता टूटने नहीं पायेगी और परिवार की सदस्यता के साथ आत्मिक प्रगति का क्रम यथावत् चलता रहेगा।
.... क्रमशः जारी
माता भगवती देवी शर्मा
अखण्ड ज्योति, मई 1972 पृष्ठ 43
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