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Saturday 14, June 2025

कृष्ण पक्ष तृतीया, जेष्ठ 2025




पंचांग 14/06/2025 • June 14, 2025

आषाढ़ कृष्ण पक्ष तृतीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), ज्येष्ठ | तृतीया तिथि 03:47 PM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र उत्तराषाढ़ा 12:21 AM तक उपरांत श्रवण | ब्रह्म योग 01:12 PM तक, उसके बाद इन्द्र योग | करण विष्टि 03:47 PM तक, बाद बव 03:52 AM तक, बाद बालव |

जून 14 शनिवार को राहु 08:49 AM से 10:33 AM तक है | 05:38 AM तक चन्द्रमा धनु उपरांत मकर राशि पर संचार करेगा |

 

सूर्योदय 5:20 AM सूर्यास्त 7:14 PM चन्द्रोदय 10:06 PM चन्द्रास्त 8:38 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म

 

  1. विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत - आषाढ़
  4. अमांत - ज्येष्ठ

तिथि

  1. कृष्ण पक्ष तृतीया   - Jun 13 03:19 PM – Jun 14 03:47 PM
  2. कृष्ण पक्ष चतुर्थी   - Jun 14 03:47 PM – Jun 15 03:51 PM

नक्षत्र

  1. उत्तराषाढ़ा - Jun 13 11:20 PM – Jun 15 12:21 AM
  2. श्रवण - Jun 15 12:21 AM – Jun 16 12:59 AM

 



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समाज के प्रति हमारे कर्त्तव्य क्या होने चाहिए ? Samaj Ke Parti Hamare Kartavya Kya Hone Chahiye

समाज के प्रति हमारे कर्त्तव्य क्या होने चाहिए ? Samaj Ke Parti Hamare Kartavya Kya Hone Chahiye

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सद्विचार सत अध्ययन से जन्मते है | Sadvichar Satat Adhyayan Se Janamte Hai | Shantikunj Rishi Chintan

सद्विचार सत अध्ययन से जन्मते है | Sadvichar Satat Adhyayan Se Janamte Hai | Shantikunj Rishi Chintan

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन

गायत्री माता
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गायत्री माता - अखंड दीपक
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गुरुजी माताजी
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चरण पादुका
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सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा (समाधि स्थल)
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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शिव मंदिर - शांतिकुंज
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हनुमान मंदिर - शांतिकुंज
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)

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आज का सद्वाक्य

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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन


!! शांतिकुंज दर्शन 14 June 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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अमृतवाणी: में तुम्हे क्या बनाना चाहता हूँ पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश



रूहानी बल, आत्मा का बल, संकल्प का बल — इतना हमारा प्रखर और इतना प्रचंड होना चाहिए, जिससे हम अपने व्यक्तिगत जीवन के दुश्मनों को निपट सकने में समर्थ हो सकें।
अपने स्वभाव और आदतों में शामिल दुश्मनों को हम मिटाने में समर्थ हो सकें।
अपने ऊपर छाए हुए कुसंस्कारों को हम चुनौती दे सकें और कह सकें — आइए दोस्त, दो-दो हाथ करके दिखाएँगे।
आइए, आइए, आइए — ज़रा अखाड़े में आप भी आइए और हम भी चलते हैं।
देखिए कौन की टक्कर होती है।
मारिए टक्कर इसमें — किसमें?
अपने अहंता से लेकर के तृष्णा तक, वासना से लेकर के और यह आलस्य और प्रमाद तक।
टक्कर, टक्कर, टक्कर।

तो आप क्या चाहते हैं, बेटे?
मैं वही चाहता हूँ कि ब्रह्मक्षत्र, ब्रह्मक्षत्र पराक्रम एक ओर — और संवेदना, दया की, करुणा, कोमलता, क्षमा, भक्ति।
मैं चाहता हूँ — यह हमारे दिव्य, दिव्य संस्कार ज़िंदा रहें।
मैं चाहता हूँ — हर आदमी के अंदर सोया हुआ भगवान सत्यम के रूप में, शिवम् के रूप में, सुंदरम् के रूप में जिए और जगे।
मैं चाहता हूँ — हर आदमी की जीवात्मा सत्यम का अवलोकन करे, चित् शिवम् का अनुभव करे, सुंदरम् का अनुभव करे, सत् का अनुभव करे, चित् का अनुभव करे, आनंद का अनुभव करे।
मैं चाहता हूँ — मैं चाहता हूँ कोमलता के सत् ज़िंदा रहें।

लेकिन मैं यह भी चाहता हूँ कि हमारे बगीचे के आसपास नागफनी की, नागफनी की इसकी जो है, बाड़ लगी रहे।
ताकि हमारे कमल के फूल और हमारे चंदन के फूल और हमारे अंगूर की बेलें — ऐसे ही ख़राब न हो जाएँ।

मैं यह भी चाहता हूँ।
इसलिए मैं चाहता हूँ कि तेजस्, वर्चस्, वर्चस् की उपासना करना आपको सिखाता हूँ।
और मैं एक नई पीढ़ी बनाता हूँ — जिसका नाम है ब्रह्मक्षत्र।
ब्रह्मक्षत्र — नई पीढ़ी बनाता हूँ।

आपको मैं ब्राह्मण बनाना चाहता हूँ और क्षत्रिय बनाना चाहता हूँ।
आपको मैं तपस्वी बनाना चाहता हूँ और योगी बनाना चाहता हूँ।
आपको मैं ज्ञानी बनाना चाहता हूँ और विज्ञानी बनाना चाहता हूँ।
आपको मैं दयालु, आपको मैं अध्यात्मवादी बनाना चाहता हूँ और धर्मात्मा बनाना चाहता हूँ।
आपको दिव्य संस्कारवान बनाना चाहता हूँ, कर्तव्यनिष्ठ बनाना चाहता हूँ।

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अखण्ड-ज्योति से




  सोने की परीक्षा आग में डालकर कसौटी पर कसने से होती है। मनुष्य का व्यक्तित्व एवं स्तर इस कसौटी पर रखा जाता है कि वह दूसरों के सम्पर्क में आने पर किस प्रकार का आचरण करता है। एकाकी मनुष्य के बारे में दूसरा कोई कुछ नहीं जानता कि वह क्या है- कैसा है। पर जब दूसरों के संपर्क में आता है तो कुछ प्रतिक्रिया होती है और यह पता चलता कि वह कितना सभ्य और सुसंस्कृत है। जिन्हें दूसरों के साथ सज्जनोचित व्यवहार करना नहीं आता उनकी गवार असभ्य आदि संबोधनों से निन्दा की जाती है। ऐसे लोग अप्रमाणिक माने जाते है और किन्हीं महत्वपूर्ण कार्यों के लिए अयोग्य समझे जाते है। सामूहिक कार्यों में उन्हें सदा पिछली पंक्ति में रखा जाता है ताकि अपने असभ्य आचरणों से कोई विक्षेप उत्पन्न न करें।    
          प्रत्येक मनुष्य सम्माननीय है। हर किसी का जन्मजात अधिकार है कि वह दूसरों से सम्मान एवं सद्व्यवहार की अपेक्षा करें साथ ही दूसरों के साथ वैसा ही शालीन व्यवहार करना उसका कर्तव्य है जैसा कि दूसरों से अपने लिए अपेक्षा करता है। इस सज्जनोचित सद्व्यवहार के आदान-प्रदान का नाम शिष्टाचार है। यदि समाज में रहना तो समाज व्यवस्था की प्रथम आचार संहिता शिष्टाचार का पालन सीखना ही चाहिए। जो इससे अनभिज्ञ अथवा अनभ्यस्त है वह समाज का प्रामाणिक सदस्य न माना जा सकेगा उसे असभ्य अविकसित विक्षिप्त या उद्दण्ड कहलाने की भर्त्सना सहनी पड़ेगी। ऐसे लोग दूसरों का सम्मान एवं सहयोग प्राप्त करने से वंचित रहते है। और अन्य गुणों के रहते हुए भी केवल इसी एक कमी के कारण सदा तिरस्कृत उपेक्षित रहना पड़ता है।  

  आदम काल में मनुष्यों का पारस्परिक व्यवहार कुछ ठीक रहा है। संपर्क में सबसे पहले कुटुम्बी जन आते है जीवन का अधिकाँश समय उन्हीं के साथ रहकर व्यतीत करना पड़ता है। उसे अपने सज्जनता का विकास अभ्यास परिपक्व करने के लिये परिवार क्षेत्र में ही सर्वप्रथम शिष्टाचार पालन करना चाहिए। इसका श्री गणेश बालकपन से ही आरम्भ कर देना चाहिए अन्यथा बड़े होने पर गंवारपन की आदत पड़ जड़ पकड़ लेती है और उसका छूटना कठिन हो जाता है। समझा जाता है कि अपने तो अपने है। उनके साथ कैसा भी व्यवहार करने से हर्ज नहीं, शिष्टाचार तो बाहर वालों से बरतना चाहिए।                 

  घर में बराबर वाले छोटे और बड़े तीन वर्ग के लोग रहते है। तीनों ही समान रूप से दूसरे का सम्मान प्राप्त करने के अधिकारी हैं। समझा जाता है। कि मात्र छोटों को बड़ों का सम्मान करना चाहिए। बड़े छोटों के साथ असभ्यता बरत सकते है। “बराबर वाले तो बराबर वाले ठहरे उन पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है। “ यह मान्यता गलत है। छोटे बड़े या बराबर वाले होने से अंतर नहीं आता है।

आयु या रिश्तों के छोटे-बड़े होने से पारस्परिक सम्मान या सद्भाव प्रदर्शन में कोई अन्तर नहीं आता है। छोटे को तो बड़ों के साथ विनम्र होना ही चाहिए पर बड़ों को यह छूट नहीं हैं कि किसी को इसलिए तिरस्कार करें कि वह छोटा है। छोटा होना कोई कसूर रूप से सहन करना पड़े। बराबर वाले यदि अपनी प्रतिष्ठा चाहते है तो बराबरी की हैसियत के कारण सत्कर्म और भी अधिक बरतनी पड़ेगी। एक ओर से असभ्यता बरतनी पड़ेगी। एक ओर से असभ्यता बरती गई तो दूसरी से भी उसकी प्रतिक्रिया होगी। छोटी बड़े का प्रतिबंध न होने से वह प्रतिक्रिया और भी स्वाभाविक ही जायेगी। इसलिये उनके साथ सम्मान बरतना प्रकार में अपने सम्मान को सुरक्षित रखने की एक महत्वपूर्ण शर्त ही समझनी पड़ेगी। 

  ... क्रमशः जारी
अखण्ड ज्योति 1995 अगस्त पृष्ठ 28
 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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