Tuesday 23, September 2025
शुक्ल पक्ष द्वितीया, आश्विन 2025
पंचांग 23/09/2025 • September 23, 2025
आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), आश्विन | द्वितीया तिथि 04:51 AM तक उपरांत तृतीया | नक्षत्र हस्त 01:40 PM तक उपरांत चित्रा | ब्रह्म योग 08:22 PM तक, उसके बाद इन्द्र योग | करण बालव 03:51 PM तक, बाद कौलव 04:52 AM तक, बाद तैतिल |
सितम्बर 23 मंगलवार को राहु 03:09 PM से 04:39 PM तक है | 02:56 AM तक चन्द्रमा कन्या उपरांत तुला राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:10 AM सूर्यास्त 6:09 PM चन्द्रोदय 7:16 AM चन्द्रास्त 6:52 PM अयन दक्षिणायन
द्रिक ऋतु शरद
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आश्विन
- अमांत - आश्विन
तिथि
- शुक्ल पक्ष द्वितीया
- Sep 23 02:56 AM – Sep 24 04:51 AM
- शुक्ल पक्ष तृतीया
- Sep 24 04:51 AM – Sep 25 07:06 AM
नक्षत्र
- हस्त - Sep 22 11:24 AM – Sep 23 01:40 PM
- चित्रा - Sep 23 01:40 PM – Sep 24 04:16 PM
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 23 September 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!ew.mp4
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
अखण्ड-ज्योति से
परमसत्ता को माँ के रूप में देखने और उस रूप में उसकी आराधना करने का प्रचलन भारतीय संस्कृति की एक मौलिक विशेषता है, जि की मिसाल विश्व के अन्य धर्मों या आस्था-परंपराओं में खोज पाना दुर्लभ है। वहाँ ईश्वर को पिता या जगत् के स्वामी के रूप में ही देखा और पूजा जाता है, माँ के रूप में नहीं। श्री अरविंद की दृष्टि में यह भारत की ही विशेषता है। नवरात्रि के रूप में तो इसकी आराधना का विशिष्ट पर्व मनाया जाता है। इसे शक्ति पर्व भी कहा जाता है। भारत में आदिकाल से चला आ रहा शक्ति पूजा का यह पर्व आज भी अगम्य आस्था के साथ जारी है। हमारी संस्कृति का प्रत्येक कालखंड इसकी चर्चा, विवेचना एवं साधना से भरा पड़ा है।
भारतीय संस्कृति के आदि ग्रंथ ऋग्वेद के दशम मंडल में एक पूरा सूक्त शक्ति उपासना पर है, जिसमें शक्ति की व्यापकता का सुंदर विवेचन किया गया है, "मैं ही ब्रह्मद्वेषी को मारने के लिए रुद्र का धनुष चढ़ाती हूँ। मैं ही सेनाओं को मैदान में लाकर खड़ा करती हूँ। मैं ही आकाश और पृथ्वी में सर्वत्र व्याप्त हूँ। मैं ही संपूर्ण जगत् की अधीश्वरी हूँ। मैं परब्रह्म को अपने से अभिन्न रूप में जानने वाली पूजनीय देवताओं में प्रधान हूँ। संपूर्ण भूतों में मेरा प्रवेश है।" इसी तरह ऋग्वेद के देवी सूक्त, उषा सूक्त तथा सामवेद के रात्रि सूक्त में शक्ति साधना का उल्लेख आता है।
कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध' आरंभ होने से पूर्व भगवान् श्रीकृष्ण ने दुर्गा की उपासना की थी, ताकि युद्ध में अर्जुन विजयी हो। भगवान् राम द्वारा दुर्गा उपासना का उल्लेख अनेक रामकथाओं में मिलता है। बौद्ध धर्म में मातृ शक्ति की पूजा विविध रूपों में प्रचलित रही है। बौद्ध तंत्रों में तो शक्ति को शीर्ष स्थान प्राप्त रहा है। पुराणों में शक्ति उपासना की महिमा का विस्तार से वर्णन है।
देवी भागवत में शक्ति के लिए अनन्य भक्ति भाव प्रदर्शित किया गया है। मार्कण्डेय पुराण में शक्ति की व्यापकता का उल्लेख तीन रूपों में किया गया है, महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती। महादुर्गा आसुरी शक्तियों की संहारक हैं, अहंकार का नाश करती हैं और ज्ञान की खड्ग से अज्ञान को नष्ट करती हैं। महासरस्वती विवेक की देवी हैं। विद्या, साहित्य, संगीत, विवेक और ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। महालक्ष्मी ऐश्वर्य की देवी हैं। मार्कण्डेय पुराण में देवी माहात्म्य की विशद विवेचना को 'दुर्गा सप्तशती' नाम दिया गया है। स्कंद पुराण में दुर्गा के आविर्भाव का वर्णन है।
ब्रह्मपुराण-ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में भी देवी के अवतरण का उल्लेख मिलता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, ब्रह्माजी मार्कण्डेय ऋषि को कहते हैं कि देवी का पहला रूप शैलपुत्री है। इस क्रम में अन्य रूप ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं। इन रूपों को नौ दुर्गा के रूप में पूजा जाता है। दुर्गा की उत्पत्ति के संदर्भ में शिव पुराण में रुद्र संहिता के पंचम अध्याय में सुंदर आख्यान मिलता है।।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 2000
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