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Tuesday 19, August 2025

कृष्ण पक्ष एकादशी, भाद्रपद




पंचांग 19/08/2025 • August 19, 2025

भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), श्रावण | एकादशी तिथि 03:32 PM तक उपरांत द्वादशी | नक्षत्र आद्रा 01:07 AM तक उपरांत पुनर्वसु | वज्र योग 08:29 PM तक, उसके बाद सिद्धि योग | करण बालव 03:33 PM तक, बाद कौलव 02:43 AM तक, बाद तैतिल |

अगस्त 19 मंगलवार को राहु 03:35 PM से 05:13 PM तक है | चन्द्रमा मिथुन राशि पर संचार करेगा |

 

सूर्योदय 5:51 AM सूर्यास्त 6:50 PM चन्द्रोदय1:16 AM चन्द्रास्त 4:17 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु वर्षा 

 

  1. विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत - भाद्रपद
  4. अमांत - श्रावण

तिथि

  1. कृष्ण पक्ष एकादशी   - Aug 18 05:22 PM – Aug 19 03:32 PM
  2. कृष्ण पक्ष द्वादशी   - Aug 19 03:32 PM – Aug 20 01:58 PM

नक्षत्र

  1. आद्रा - Aug 19 02:06 AM – Aug 20 01:07 AM
  2. पुनर्वसु - Aug 20 01:07 AM – Aug 21 12:27 AM


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काम के प्रति समर्पण | Kam Ke Prati Samrpan

काम के प्रति समर्पण | Kam Ke Prati Samrpan

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सुर दुर्लभ काया का सार्थक एवं सुनियोजित उपयोग हो | बिना पानी पिए लिखे हुए फोल्डर-पत्रक से

सुर दुर्लभ काया का सार्थक एवं सुनियोजित उपयोग हो | बिना पानी पिए लिखे हुए फोल्डर-पत्रक से

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन

गायत्री माता
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अखंड दीपक
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चरण पादुका
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सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा (समाधि स्थल)
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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हनुमान मंदिर - शांतिकुंज
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)

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आज का सद्वाक्य

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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन


!! शांतिकुंज दर्शन 19 August 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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Reel_5 भजन यानी सेवा 1.mp4

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश



जो आप भजन करते हैं, भजन करते हैं, यह तो दांत साफ करने के बराबर है और बालों में कंघी करने के बराबर है। भगवान पर कोई एहसान नहीं है और भगवान ने मनुष्य का जीवन इसलिए नहीं दिया कि आप भजन करना हमारे लिए। भजन कोई चीज नहीं है। भजन तो बेटे अपने मन की मलीनता की सफाई है। इसके द्वारा हमारी जीवात्मा का कोई पोषण नहीं मिल सकता। पोषण अगर मिला होता तो यह संत बाबा जी यह बैठे रहते हैं गंगा, यमुना के उस पार और पंडित लोग भी भीख मांगते रहते हैं। सारे दिन रामायण का पाठ करते रहते हैं। इनके अंदर कोई तेज दिखाई पड़ता है। कोई अंदर वर्चस्व दिखाई पड़ता है। कोई इनके अंदर गौरव दिखाई पड़ता है। कोई इनके अंदर जीवन दिखाई पड़ता है। कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता इनके अंदर। तो कैसे कह सकते हैं? राम के नाम की बात नहीं कहता हूं। मैं तो यह कहता हूं कि हमारी आत्मा की खुराक जिसको हम संतोष कहते हैं। एक होता है सुख, एक होती है शांति। सुख वह होता है जो हमारे शरीर को मिलता है। शरीर को मिलता है, शरीर उठाता है सुख। जब हम जीभ से मीठी चीजें खाते हैं तो सुख मिलता है हमको और सिनेमा देखने के लिए जाते हैं सुख मिलता है। सुख किसको मिलता है? शरीर को मिलता है। और शरीर को मौज मिलती रहती है, शरीर को फायदा मिलता रहता है, शरीर को खुशी मिलती रहती है। वासना हमारी पूरी होती रहती है, तृष्णा हमारी पूरी होती रहती है। लेकिन हमको शांति और संतोष ये कैसे मिलता है? संतोष कैसे मिल सकता है? संतोष बेटे भजन से नहीं मिलता है। श्रेष्ठ काम करने से मिलता है। आदर्शों को जीवन में ढालने से मिलता है। ऐसे काम करने से मिलता है जिससे हमारी जिंदगी दूसरों के सामने नमूने की जिंदगी बन सके। उससे हमें संतोष मिलता है। उससे हमारा जीवात्मा गौरव अनुभव करता है कि सारे के सारे लोग जहां गंदे लोग, घटिया लोग, निकम्मे लोग जिंदगी जी रहे थे तो हमने मुसीबतों के बीच भी, कठिनाइयों के बीच भी एक ऐसी जिंदगी जी जो प्रकाश स्तंभ जो समुद्र में खड़ा प्रकाश स्तंभ समुद्र में खड़ा रहता है, बेचारा अकेला खड़ा रहता है लेकिन वहां से लाइट फेंकता रहता है ताकि समुद्र में जाने वाली नावें और समुद्र में जाने वाले जहाज डूबने न पाए। इशारा करता है यहां मत आइए, चट्टान है। यहां यहां मत आइए, चट्टान है। दूर चलिए, यहां से दूर रहिए। और वह खड़ा हुआ है प्रकाश स्तंभ। लाइट हाउस रात भर बताता रहता है। आदमी का ये गर्व है और आदमी का ये गौरव है और आदमी की ये शान है और आदमी की ये इज्जत है कि बाकी लोगों ने यहां सब लोगों ने ईमान गंवा दिए, सब लोगों ने अपने सिद्धांत गंवा दिए तो हमने गरीबी के रहते हुए भी दुखियारे होते हुए भी कंगाली का मुकाबला करते हुए भी हमने ऐसी नेक और शरीफ जिंदगी जी, जिसको देख कर के, जिसको देख कर के हमारे पीछे आने वाले आदमी अपनी राह तलाश कर सकते हैं। ऐसी हमने जिंदगी जी।

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अखण्ड-ज्योति से



आकर्षक लगने वाली सभी वस्तुएं उपयोगी नहीं होतीं। सर्प, बिच्छू, काँतर, कनखजूरे जैसे प्राणी देखने में सुन्दर लगते हैं पर उनके गुणों को देखने पर पता चलता है  कि वे समीप आने वाले को कितना त्रास देते हैं ? प्रथम पहचान में ही न किसी का मित्र बनना चाहिए और न किसी को बनाना चाहिए। चरित्र के बारे में बारीकी से देखना, समझना और परखना चाहिए। मात्र शालीनता के प्रति आशा रखने वाले और आदर्शों का दृढ़तापूर्वक अवलम्बन करने वाले ही इस योग्य होते हैं कि उनसे घनिष्टता का सम्बन्ध स्थापित किया जाए।

बड़ी बात दुर्जनों को समझाकर सज्जनता के मार्ग पर लाना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि उनके गिरोह को छिन्न-भ्न्न करने से लेकर घात लगाने की चलती प्रक्रिया में कारगर अवरोध खड़े कर देना। इसके लिए जनसाधारण को साहस जगाने वाला प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, प्रतिरोध कर सकने वाली साहसिक मंडलियों का गठन किया जाना चाहिए और सरकरी तंत्र तक यह आवाज पहुँचाई जानी चाहिए कि उसके भागीदार अधिकारी कर्मचारी उस कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करें जिसके लिए उन्होंने जिम्मेदारी कंधे पर उठाई है। इस कार्य में उन्हें जहाँ भी कठिनाई अनुभव हो रही हो, उसे दूर करने के लिए जागरूक नागरिकों को समुचित प्रयत्न करना चाहिए। जनता का साहस, सुरक्षा बलों का पराक्रम और सरकारी तंत्र का समुचित योगदान यदि मिलने लगे तो गुंडा गर्दी का उन्मूलन उतना कठिन न रहेगा जितना अब है।

हर व्यक्ति अपने को ऐसा चुस्त-दुरुस्त रखे जिससे प्रतीत हो कि वह किसी भी आक्रमण का सामना करने के लिए तैयार है। यह कार्य प्राय: एकाकी होने पर नहीं बन पड़ता, समूह में अपनी शक्ति होती है। मिल-जुलकर रहने और एक-दूसरे की क्षमता बनाए रहने पर आधी मुसीबत टल जाती है। आक्रमण अपना हाथ रोक लेते हैं और बढ़ते कदमों को पीछे हटा लेने पर विवश होते हैं।

निजी हौसला बुलन्द रखने के अतिरिक्त अपने जैसे ही साहसी लोगों का संगठन बना लेना चाहिए और उनके साथ-साथ रहने,  साथ-साथ उठने-बैठने के अवसर बनाते रहने चाहिए। बर्रों के छत्ते में हाथ डालने में डर लगता है, पर यदि वह अकेली पास आ डटे तो उसका कचूमर निकालने के लिए कोई भी तैयार हो जाता है। मधुमक्खियों के छ्त्ते से आमतौर से लोग बचकर ही निकलते हैं। बन्दर समूह में रहते हैं और एक को छेड़ने पर दूसरे भी उनकी सहायता के लिए इकट्ठे हो जाते हैं – इस कारण लोग बन्दरों के झुंड को छेड़ते नहीं वरन् उससे बचकर ही निकलने में अपनी भलाई देखते हैं।

.... समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

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