Monday 09, June 2025
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, जेष्ठ 2025
पंचांग 09/06/2025 • June 09, 2025
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), ज्येष्ठ | त्रयोदशी तिथि 09:36 AM तक उपरांत चतुर्दशी | नक्षत्र विशाखा 03:31 PM तक उपरांत अनुराधा | शिव योग 01:08 PM तक, उसके बाद सिद्ध योग | करण तैतिल 09:36 AM तक, बाद गर 10:38 PM तक, बाद वणिज |
जून 09 सोमवार को राहु 07:04 AM से 08:48 AM तक है | 08:50 AM तक चन्द्रमा तुला उपरांत वृश्चिक राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:20 AM सूर्यास्त 7:12 PM चन्द्रोदय 5:46 PM चन्द्रास्त 4:02 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
- अमांत - ज्येष्ठ
तिथि
- शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
- Jun 08 07:18 AM – Jun 09 09:36 AM
- शुक्ल पक्ष चतुर्दशी
- Jun 09 09:36 AM – Jun 10 11:35 AM
नक्षत्र
- विशाखा - Jun 08 12:42 PM – Jun 09 03:31 PM
- अनुराधा - Jun 09 03:31 PM – Jun 10 06:01 PM

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!! शांतिकुंज दर्शन 09 June 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: तप का अर्थ क्या हैं पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
तप का अर्थ क्या है? तप का अर्थ है अनुशासन। प्रत्येक चीज़ के ऊपर, अपनी हर चीज़ के ऊपर अनुशासन — उसका नाम है तप। तप में हम तपते हैं और प्रत्येक चीज़ को हम चैलेंज करते हैं। चैलेंज करते हैं सोने को, चैलेंज करते हैं जागने को। मौन रहते हैं, ज़मीन पे सोने की कोशिश करते हैं। जाने कितनी बार तो उपवास करते हैं। मन में क्या सोचते रहते हैं? फलानी बात कहते हैं — यह क्या बात है? यह अपने आप से लड़ाई है और क्या बात है? अपने आप से लड़ाई। अपने आप से। शरीर कहता है — कपड़ा दीजिए। नहीं, हम नहीं देंगे। तो आप ऐसे ही तंग करेंगे शरीर को? नहीं बेटे, हम तंग नहीं करेंगे। तंग क्यों करेंगे? तंग हम उतने समय तक करेंगे, जब तक घोड़ा तांगे में चलना नहीं सीखता। तंग हम उतने समय तक करेंगे, जब तक बैल हमारा कहना नहीं मानता। तंग हम उतने समय तक करेंगे, जब तक कि हमारा रीछ तमाशा दिखाना नहीं सीखता। तब तक हम तंग करेंगे उसको, जब तक कि हमारा बंदर हमारी डुगडुगी के सामने उछलना नहीं शुरू कर देता। बस, इतने समय तक तंग करेंगे। फिर क्या करेंगे? फिर बंदर को मिठाई खिलाएंगे। फिर बंदर को रोटियां खिलाएंगे। फिर बंदर को सब काम करेंगे। बंदर को सब काम करेंगे। फिर आप मारेंगे तो नहीं? नहीं बेटे, फिर नहीं मारेंगे। जब बंदर कहना मान लेगा, तो फिर क्यों मारेंगे? इससे हमें कोई बैर है? कोई दुश्मनी है बंदर से कि आप पिटाई करें? पिटाई करेंगे तो आप उससे कमाई कैसे खाएंगे? इसलिए हम पिटाई नहीं करेंगे। कमा के खिलाएगा यह हमको। कमा के खिलाने वाला है — इसको हम प्यार करेंगे, मोहब्बत करेंगे। लेकिन जब तक इसकी यह परिस्थिति बनी हुई है कि हमारे मन को और हमारी जीवात्मा को और हमारे सिद्धांतों को चैलेंज करता रहेगा — तब तक हम इसकी पिटाई करेंगे, और इसकी मारकाट करेंगे, और इसको ठीक करेंगे। यह क्या चीज़ है? तप। तप किसे कहते हैं? तड़प को कहते हैं। तप किसे कहते हैं? जीवट को कहते हैं। तप किसे कहते हैं? हिम्मत को कहते हैं। तप किसे कहते हैं? संघर्ष को कहते हैं। किससे संघर्ष करना पड़ता है? अपने आप से संघर्ष करना पड़ता है बेटे। यही तो है। यही तो है संघर्ष। इसी का नाम तो आध्यात्मिक जीवन है। बहिरंग जीवन में अपनी मनोवृत्तियों से हमको संघर्ष करना पड़ता है।
अखण्ड-ज्योति से
सूर्य की बिखरी किरणें मात्र गर्मी और रोशनी उत्पन्न करती हैं। किन्तु जब उन्हें छोटे से आतिशी शीशे द्वारा एक बिन्दु पर केन्द्रित किया जाता है। तो देखते-देखते चिनगारियाँ उठती हैं और भयंकर अग्नि काण्ड कर सकने में समर्थ होती है। बिखरी हुई बारूद आग लगने पर भक् से जलकर समाप्त हो जाती है, किन्तु उसे बन्दूक की नली में सीमाबद्ध किया जाय तो भयंकर धमाका करती है और गोली से निशाना बेधती है। भाप ऐसे ही जहाँ-तहाँ से गर्मी पाकर उठती रहती है, पर केन्द्रित किया जा सके तो प्रेशर कुकर पकाने और रेलगाड़ी चलाने जैसे काम आती है।
अर्जुन मत्स्य बेध करके द्रौपदी स्वयंवर इसीलिए जीत सका था कि उसने एकाग्रता की सिद्धि कर ली थी। इसी के बलबूते विद्यार्थी अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होते, निशानेबाज लक्ष्य बेधते और सरकस वाले एक से एक बढ़कर कौतूहल दिखाते हैं। संसार के सफल व्यक्तियों की, एक विशेषता अनिवार्य रूप से रही है, कि वे अपने मस्तिष्क पर काबू प्राप्त किये रहे हैं। जो निश्चय कर लिया उसी पर अविचल भाव से चलते रहे हैं, बीच में चित्त को डगमगाने नहीं दिया है। यदि उनका मन अस्त-व्यस्त डाँवाडोल रहा होता तो कदाचित ही किसी कार्य में सफल हो सके होते।
योगाभ्यास में मनोनिग्रह को आत्मिक प्रगति की प्रधान भूमिका बताया गया है। इन्द्रिय संयम वस्तुतः मनोनिग्रह ही है। इन्द्रियां तो उपकरण मात्र हैं। वे स्वामिभक्त सेवक की तरह सदा आज्ञा पालन के लिए प्रस्तुत रहती हैं। आदेश तो मन ही देता है। उसी के कहने पर ज्ञानेन्द्रियां, कर्मेन्द्रियां ही नहीं, समूची काया भले बुरे आदेश पालन करने के लिए तैयार रहती है। अस्तु संयम साधना के लिए मन को साधना पड़ता है। संयम से शक्तियों का बिखराव रुकता है और समग्र क्षमता एक केन्द्र बिन्दु पर एकत्रित होती है। फलतः उस मनःस्थिति में जो भी काम हाथ में लिया जाय, सफल होकर रहता है।
ध्यानयोग सांसारिक सफलताओं में भी आश्चर्यजनक योगदान प्रस्तुत करता है। उसके आधार पर अपना भी भला हो सकता है और दूसरों का भी किया जा सकता है।
~ समाप्त
अखण्ड ज्योति 1986 नवम्बर पृष्ठ 5
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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