Monday 28, July 2025
शुक्ल पक्ष चतुर्थी, श्रवण 2025
पंचांग 28/07/2025 • July 28, 2025
श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्थी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), श्रावण | चतुर्थी तिथि 11:24 PM तक उपरांत पंचमी | नक्षत्र पूर्व फाल्गुनी 05:35 PM तक उपरांत उत्तर फाल्गुनी | परिघ योग 02:53 AM तक, उसके बाद शिव योग | करण वणिज 10:58 AM तक, बाद विष्टि 11:24 PM तक, बाद बव |
जुलाई 28 सोमवार को राहु 07:19 AM से 09:01 AM तक है | 12:00 AM तक चन्द्रमा सिंह उपरांत कन्या राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:38 AM सूर्यास्त 7:09 PM चन्द्रोदय 8:50 AM चन्द्रास्त 9:29 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु वर्षा
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - श्रावण
- अमांत - श्रावण
तिथि
- शुक्ल पक्ष चतुर्थी
- Jul 27 10:42 PM – Jul 28 11:24 PM
- शुक्ल पक्ष पंचमी
- Jul 28 11:24 PM – Jul 30 12:46 AM
नक्षत्र
- पूर्व फाल्गुनी - Jul 27 04:23 PM – Jul 28 05:35 PM
- उत्तर फाल्गुनी - Jul 28 05:35 PM – Jul 29 07:27 PM

अमृतवाणी:- नए युग का निर्माण कैसे होगा | Naye Yug ka Nirman Kaise Hoga पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

परमसिद्धि का राजमार्ग | Param Siddhi Ka Rajmarg | Guru Gita, Rishi Chintan, Gayatri Pariwar
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 28 July 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: आत्म-विकास और सुधार की प्रक्रिया पं श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
सारी की सारी सिद्धियाँ और चमत्कार, जिनको आप तलाश करते हैं, बाहर-बाहर नहीं हैं। वो हमारे भीतर निवास करती हैं।
जिन चीजों की आपको तलाश है और जिन चीजों को आप चाहते हैं, जिन चीजों को आप चाहते हैं, कस्तूरी का हिरण चाहता है हमको सुगंध मिले। भागता तो है, दौड़ तो लगाता है, लेकिन वो खाली हाथ रह जाता है। उसकी इच्छा तब पूरी होती है, जब अपनी नाक को अपनी नाभि से लगाकर के चैन के साथ में देखता है कि खुशबू तो हमारे भीतर से आ रही थी। बेटे, हमारे भीतर से आती है, भीतर से आती है।
सही मायने में मुसीबत हमारे भीतर से आती है। बीमारियाँ हमारे भीतर से आती हैं। हमारे क्लेश हमारे भीतर से आते हैं। द्वेष हमारे भीतर से आते हैं। रोष हमारे भीतर से आते हैं। निंदा हमारे भीतर से आती है। प्रतिक्रियाएँ हैं हमारी ये। जिन चीजों को आप ये समझते हैं कि ये मुसीबत है, ये मुसीबत नहीं है। यह प्रतिक्रियाएँ हैं। बीमारी क्या है? हमारे भीतर की, हमारे भीतर की गंदगी की प्रतिक्रिया है। मच्छर क्या है?
मक्खी क्या है? चूहे क्या हैं? बिलार क्या है? कुछ भी नहीं। गंदगी की प्रतिक्रिया है। गंदगी बनी रहेगी, मच्छर जरूर पैदा होंगे, मक्खियाँ जरूर पैदा होंगी, कीड़े जरूर पैदा होंगे, दूसरी चीजें जरूर पैदा होंगी। गंदगी जब तक तेरे पास कायम है, तब तक बेटे, तेरे खिलाफ वाली प्रतिक्रिया जरूर आती रहेंगी। उसे कोई नहीं रोक सकता। अगर रोकना है, तो अपने आप को साफ कर। अपने आप को ठीक कर।
बाहर की परिस्थितियाँ सुधार दे बेटे, हम सुधार देंगे। लेकिन भीतर वाली परिस्थितियाँ अगर तेरी ज्यों की त्यों बनी रही, तो बाहर वाली सहायता और बाहर वाले सहकार से तेरा कैसे भला हो सकता है? जो-जो मदद भगवान शंकर जी ने भगीरथ को की थी, वही मदद भस्मासुर को की थी। जो मदद शंकर जी ने अन्य किसी लोगों की की होगी, ऋषियों को की होगी, वही मदद शंकर भगवान ने रावण की भी की।
रावण की भी मनोकामना पूरी करने के लिए आशीर्वाद माँगे थे। आप आशीर्वाद माँगिए और हम दे देंगे। तो अब तो हमारा उद्धार हो जाएगा? नहीं बेटे, अभी उद्धार नहीं होगा। तूने जो सुराख जो करता था, वो बंद कर दिए हैं।
सुराख बंद करने से ही तो काम चलेगा? नहीं। तेरे बर्तन में कुछ सामान भी तो होना चाहिए। सुराख बंद कर दिया, अरे सुराख तो बंद कर दिया, यह तो अच्छा है, पर उसमें कुछ जमा भी तो कर। कुछ जमा भी तो करो उसमें। नहीं साहब, पहले जो हम शराब पीते थे, वो बंद कर दी। तो बेटे, बड़ी अच्छी बात है। अब शराब पीने से, शराब पीने से तेरा स्वास्थ्य खराब होता होगा, नहीं होगा।
अब तूने दूध पीना शुरू किया कि नहीं? और तूने व्यायाम करना शुरू किया कि नहीं?
नहीं महाराज जी, वो तो मैं नहीं करता। शराब पीना बंद कर दिया, तेरा नुकसान होना बंद हो जाएगा, बस। जो तेरी उन्नति होनी चाहिए, वो कहाँ से होगी? इसीलिए हमने हमेशा यह सिखाया है कि अपने व्यक्तित्व का एक हिस्सा — वो जिसमें हमारे अंदर कमियाँ भरी पड़ी हैं, और गंदगियाँ भरी पड़ी हैं, और दोष और दुर्गुण भरे पड़े हैं — उनको हमको दूर करने के लिए अपने आप से लोहा लेना चाहिए और अपने आप से लड़ाई लड़नी चाहिए।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
जीवन एक वन है जिसमें फूल भी है और कांटे भी; जिसमें हरी-भरी सुरम्य घाटियाँ भी हैं और ऊबड़-खाबड़ जमीन भी। अधिकतर वनों में वन्य-पशुओं और वनवासियों के आने-जाने से छोटी-मोटी पगडण्डियाँ बन जाती हैं। देखने में तो यह सुव्यवस्थित रास्ते प्रतीत होते हैं किन्तु यह जंगलों में जाकर लुप्त हो जाते हैं। आसानी और शीघ्रता के लिए बहुधा यात्री इन पगडंडियों को पकड़ लेते हैं और सही रास्ते को छोड़ देते हैं।
जीवन-वन में ऐसी पगडंडियाँ बहुत हैं जो छोटी दीखती हैं, पर गंतव्य स्थान तक पहुँचती नहीं है। जल्दबाज लोग पगडंडियाँ ही ढूंढ़ते हैं, किन्तु उनको यह मालूम नहीं होता है कि ये अन्त तक नहीं पहुँचती और जल्दी काम बनने का लालच दिखाकर दल-दल में फँसा देती है। ये रास्ते वास्तव में बड़े ही आकर्षक होते हैं।
पाप और अनीति का मार्ग जंगल की पगडंडी, मछली की वंशी और चिड़ियों के जाल की तरह है। अभीष्ट कामनाओं की जल्दी से जल्दी, अधिक से अधिक मात्रा में पूर्ति हो जाये, इस लालच से लोग वह काम करना चाहते हैं जो जल्दी ही सफलता की मंजिल तक पहुँचा दे। जल्दी और अधिकता दोनों ही वाँछनीय हैं, पर उतावली में उद्देश्य को ही नष्ट कर देना, बुद्धिमत्ता नहीं माना जायगा।
जीवन-वन का राजमार्ग सदाचार और धर्म है। उस पर चलते हुए लक्ष्य तक पहुँचना समय-साध्य तो हैं, पर जोखिम उसमें नहीं है। ईमानदारी के राजमार्ग पर चलते हुए मंजिल देर में पूरी होती है, उसमें सीमा और मर्यादाओं का भी बन्धन है, पर अनीति का वह दल-दल, वन की वह कँटीली झाड़ियाँ और ऊबड़-खाबड़ जमीन राजमार्ग में कहाँ ? जिनमें फँसकर जीवनोद्देश्य ही नष्ट हो जाता है। हम पगडंडियों पर न चलें, राजमार्ग ही अपनावें। देर में सही, थोड़ी सही, पर जो सफलता मिलेगी, वह स्थायी भी होगी और शान्तिदायक भी।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति-फरवरी 1975 पृष्ठ 3
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