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Thursday 22, May 2025

कृष्ण पक्ष दशमी, जेष्ठ 2025




पंचांग 22/05/2025 • May 22, 2025

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष दशमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | दशमी तिथि 01:12 AM तक उपरांत एकादशी | नक्षत्र पूर्वभाद्रपदा 05:47 PM तक उपरांत उत्तरभाद्रपदा | विष्कुम्भ योग 09:49 PM तक, उसके बाद प्रीति योग | करण वणिज 02:21 PM तक, बाद विष्टि 01:12 AM तक, बाद बव |

मई 22 गुरुवार को राहु 01:56 PM से 03:38 PM तक है | 12:08 PM तक चन्द्रमा कुंभ उपरांत मीन राशि पर संचार करेगा |

 

सूर्योदय 5:24 AM सूर्यास्त 7:03 PM चन्द्रोदय 1:48 AM चन्द्रास्त 1:54 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म

 

  1. विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
  2. शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
  3. पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
  4. अमांत - बैशाख

तिथि

  1. कृष्ण पक्ष दशमी   - May 22 03:22 AM – May 23 01:12 AM
  2. कृष्ण पक्ष एकादशी   - May 23 01:12 AM – May 23 10:30 PM

नक्षत्र

  1. पूर्वभाद्रपदा - May 21 06:58 PM – May 22 05:47 PM
  2. उत्तरभाद्रपदा - May 22 05:47 PM – May 23 04:02 PM


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आप हनुमान की तरह जो कार्य कर रहे हैं। गुरुदेव के पत्र स्नेह | Gurudev Ke Patra Sneh

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गुरु का निर्णय त्याग का प्रतीक हैं | Guru Ka Nirnay Tyag Ka Pratik Hai

गुरु का निर्णय त्याग का प्रतीक हैं | Guru Ka Nirnay Tyag Ka Pratik Hai

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन

गायत्री माता
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गायत्री माता - अखंड दीपक
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गुरुजी माताजी
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चरण पादुका
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सजल श्रद्धा - प्रखर प्रज्ञा (समाधि स्थल)
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परम् पूज्य गुरुदेव व वंदनीय माताजी कक्ष
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प्रज्ञेश्वर महादेव - देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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शिव मंदिर - शांतिकुंज
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हनुमान मंदिर - शांतिकुंज
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आज का सद्चिंतन (बोर्ड)

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आज का सद्वाक्य

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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन


!! शांतिकुंज दर्शन 22 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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!! अखण्ड दीपक Akhand_Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 22 May 2025 !!

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!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 22 May 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

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अमृतवाणी: ब्रह्मलोक कंही बहार नही भीतर हे1 पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश



शंकराचार्य नाचीज़ आदमी थे। परिस्थितियों के हिसाब से जिस खानदान में पैदा हुए थे, छोटे खानदान से, छोटी हैसियत में थे। लेकिन उनके भीतर का जीवात्मा जब उछलकर के ऊपर आ गया, तो कहाँ से कहाँ जा पहुँचे।

हमको उछालना गेंद को आता है, सँभालना हमको चेहरे को आता है। साबुन से हम अपने कपड़े को धो सकते हैं, पर ऐसी कोई साइंस और ऐसी फिलॉसफी किसी ने हमको बताई, समझाई नहीं है कि हमारे भीतर वाला जो माद्दा है — इतना ताकतवर है, इतना शक्तिशाली है, इतना प्रचंड, इतना प्रखर — जो हमारे भीतर दबा पड़ा है, इस चिंगारी को हम कैसे बढ़ा सकते हैं, इसकी हम कैसे सफाई कर सकते हैं।

इस चीज़ का नाम Science of Soul है। इसी को ब्रह्मविद्या कहते हैं। हमारे ऋषियों की सबसे बड़ी दौलत है और सबसे बड़ा आविष्कार — कि हम अपने बारे में जान पाए। Know thyself. अपने आपको जानो। आत्मा वारे ज्ञातव्य, श्रुतव्य, निदिध्यास्तव्य।

अरे मूर्खों! अपने आप को जानो, अपने आप को देखो, अपने आप को समझो। अपने आप को देख नहीं पाते, अपने आप को समझ नहीं पाते, अपने आप को जान नहीं पाते। दुनिया भर की चीज़ों का पता लगाते रहते हैं। बायोलॉजी कैसे होती है? ला बेटे, हम बता सकते हैं। क्यों साहब, यह कैसे होती है? फलानी बात कैसे होती है? बहुत-सी बातें बता सकते हैं, लेकिन अपने बारे में नहीं जानते।

अपने बारे में जानने की कोशिश कर। अपने बारे में जानने की आदमी कोशिश करे, तो अपनी ज़िंदगी को इतनी मीठी, इतनी सुरस, इतनी मधुर, इतनी शक्तिशाली बना सकता है — मजा आ सकता है।

प्राचीन काल के ऋषियों ने इसी साइंस को समझा था। यह ब्रह्मविद्या की साइंस है — अपनी ज़िंदगी क्या हो सकती है, हम स्वयं क्या हो सकते हैं, हमारी संभावनाएँ क्या हैं, और हमारे काम करने के तरीके, काम करने के रास्ते क्या होने चाहिए, हमारी समझ और हमारे सोचने के ढंग क्या होने चाहिए, हमारे व्यवहार में क्या शालीनता समन्वित होनी चाहिए — जिसका नाम ब्रह्मविद्या है।

ब्रह्मविद्या ब्रह्मलोक की बात कहती है। हाँ बेटे, यही ब्रह्मलोक है। तुझे बताते तो हैं, हमारा जो जीवात्मा है, यही ब्रह्मलोक है। यही ब्रह्मलोक है।

नहीं साहब, वहाँ से बहुत दूर है और हज़ार-लाख मील है?
बेटे, हमें कुछ पता नहीं है। और लाख मील वाले ब्रह्मलोक के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। कोई भी जानकारी हो, तो बता देंगे। हम तो इसी लोक की बात कहते हैं — जो हमारा लोक भीतर है।

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अखण्ड-ज्योति से



जहाँ एक पत्रिका अखण्ड-ज्योति ही मँगाई जाती है वहाँ प्रयत्न करके युग निर्माण योजना मँगाना भी आरम्भ कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि युग परिवर्तन के महान अभियान का मार्ग दर्शन एवं स्वरूप उसी के प्रकाश में जाना जा सकता है। जो मँगाते नहीं हैं उन्हें भी यह प्रयत्न करना चाहिए कि कहीं से माँग कर पढ़ लें। अब उस की उपयोगिता भी अखण्ड-ज्योति जितनी हो गई है।

 जो पचास वर्ष के हो गये। जिनके बड़े बच्चे अपने छोटे भाई बहिनों का उत्तरदायित्व संभालने में समर्थ हो गये अथवा जिनके पास गुजारे के लिए दूसरे साधन मौजूद हैं उन्हें अधिक कमाने और बेटे पोतों के लिये अधिक संग्रह करने की ललक छोड़ देनी चाहिए। यह लिप्सा अब बहुत पीछे युग की बात रह गई। समाजवाद का युग बिलकुल निकट आ गया। संग्रहीत पूँजी का लाभ कोई न उठा सकेगा। हर किसी को रोज कुँआ खोदना और रोज पानी पीना पड़ेगा। 

अमीरी अब गये गुजरे जमाने की बात हो चली। राजाओं के राज गये-जमींदारों की जमींदारी-महन्तों की महन्ती भर रही है। समानता की लहरें आकाश-चूम रही हैं। धनी और हरामखोर व्यक्ति अगले दिनों सम्मान नहीं तिरस्कार प्राप्त करेंगे। घृणित समझे जायेंगे और बुरी तरह मरेंगे। इसीलिए समय रहते उस विपत्ति भरी कुरुचि को समय से पूर्व ही छोड़ देना चाहिए और जो समय लोभ एवं मोह की पूर्ति में लगाया जा रहा है, उसे लोक मंगल के लिये नियोजित करने की बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता दिखानी चाहिए। समर्थ व्यक्तियों को ऐसी ही हिम्मत दिखाने की आवश्यकता है।

 जहाँ कला, प्रतिभा, बुद्धि, कुशलता, सम्पदा जैसी ईश्वर प्रदत्त अतिरिक्त विभूतियाँ हैं उनकी जिम्मेदारी और भी अधिक है। इस ईश्वरीय अमानत को वे गुलछर्रे उड़ाने के लिए नहीं विश्व मानव को सुविकसित समुन्नत बनाने के लिये पवित्र धरोहर समझें और उसका उसी रूप में प्रयोग करें। न करेंगे तो सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा ऐसे विभूतिवान व्यक्ति ईश्वर के दरबार में अधिक बड़े अपराधी ठहराये जायेंगे और अधिक दण्ड के भागी बनेंगे। भावी पीढ़ियाँ भी उन्हें घृणास्पद ही मानेंगी।

 समाज को ईश्वर की प्रत्यक्ष प्रतिमा मानना चाहिए और अपने पुण्य परमार्थ की सत्प्रवृत्ति को भावनात्मक नव निर्माण की श्रेष्ठतम युग साधना में नियोजित करना चाहिये। न्यूनतम समय एक घण्टा और न्यूनतम राशि - ही इस कार्य के लिए अनिवार्य मानी गई है। प्रयत्न यह करना चाहिए कि 8 घण्टे सोने 8 घण्टे आजीविका उपार्जन और 4 घण्टा फुटकर कामों में खर्च करने के उपरान्त 4 घण्टा प्रतिदिन लोक मंगल के लिए लगाये जायें और महीने में एक एक दिन की आमदनी नव निर्माण के लिए लगाने के उदारता दिखाई जाय।

.... क्रमशः जारी
 माता भगवती देवी शर्मा
 अखण्ड ज्योति, मई 1972 पृष्ठ 43

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