AKHAND JYOTI
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गुरु पूर्णिमा-’युग निर्माण योजना’ का अवतरण पर्व (भाग १)
हमारी वास्तविकता को परखने फिर आ पहुँचा
‘युग-निर्माण योजना’ की जन्म तिथि गुरु पूर्णिमा है। इसी दिन इस युग के इस महान अभियान का शुभारम्भ उस परम प्रेरक दिव्य शक्ति के द्वारा किया गया था। बसन्त पंचमी के दिन अखण्ड-ज्योति प्रारम्भ हुई और गुरु पूर्णिमा के दिन ‘युग-निर्माण योजना’। अपने परिवार के लिए ये दो कौटुम्बिक पर्व हैं। यों इनका व्यापक महत्व है। भारतीय संस्कृति की सुविस्तृत प्रक्रिया इन दो के ऊपर निर्भर है। ज्ञान और कर्म के यह दो पुनीत पर्व हैं। माता सरस्वती का जन्म दिन हमारा ज्ञान पर्व है और उस ज्ञान को कर्म रूप में परिणित करने की प्रेरणा देने वाले परम गुरु भगवान व्यास का जन्म दिन-गुरु पूर्णिमा-कर्म पर्व है। ज्ञान और कर्म का मानव जीवन में असाधारण मह...
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हमारी वास्तविकता को परखने फिर आ पहुँचा (भाग २)
जो जितना प्रबुद्ध है उसकी उतनी ही अधिक जिम्मेदारी है। ईश्वर, आत्मा और समाज के सामने उनके उत्तरदायित्व बहुत कुछ बढ़े-चढ़े होते हैं। मूढ़ता और पशुता की स्थिति में पड़े हुए मनुष्यों की न कोई भर्त्सना है और न महिमा। वे जीते भर हैं। खाने और कमाने भर तक उनकी गतिविधियाँ सीमित रहती हैं। ऐसे लोग कुछ बड़ी बात सोच नहीं पाते, इसलिए कुछ बड़ा काम कर सकना भी उनके लिए संभव नहीं होता। संसार उनकी इस विवशता को जानता है इसलिए उन्हें कुछ श्रेय, दोष भी नहीं देता। पर जिन्हें भगवान ने विचारणा दी है, उनकी स्थिति भिन्न है। प्रबुद्ध लोग यदि अपने समय की समस्याओं की उपेक्षा करने लगें तो उनका अपराध अक्षम्य माना जायगा। फौजी अधिकारियों की छोटी-सी भूल राष्ट्रीय स्वाधीनता को खतरे में डाल सकती है। इसलिए उनसे अधिक सतर्कता ए...
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गुरु पूर्णिमा-’युग निर्माण योजना’ का अवतरण पर्व (भाग ३)
राजनैतिक स्वाधीनता के लिए आत्माहुति देने वाले पिछली पीढ़ी के शहीद अपनी जलाई हुई मशाल हमारे हाथों में थमा कर गये हैं। जिनने अपने प्राण, परिवार, शरीर, धन आदि का मोह छोड़कर भारत माता को पराधीनता पाश से मुक्त करने के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया, उनकी आत्माएं भारतीय राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य की आशा लेकर इस संसार से विदा हुई हैं। उन्हें विश्वास था कि अगली पीढ़ी हमारे छोड़े हुए काम को पूरा करेगी। नैतिक क्रान्ति, बौद्धिक क्रान्ति और सामाजिक क्रान्ति की अभी तीन मंजिलें पार करनी हैं। राजनैतिक क्रान्ति की अभी एक ही मंजिल तो पार हुई है। तीन चौथाई काम करना बाकी पड़ा है। यदि वैयक्तिक स्वार्थपरता तक सीमित रह कर हम उन सार्वजनिक उत्तरदायित्वों को उठाने से इनकार करेंगे, बहाने बनायेंगे तो निश्चय ही यह उ...
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गुरु पूर्णिमा-’युग निर्माण योजना’ का अवतरण पर्व (अंतिम भाग)
एक घंटा समय किस कार्य में लगाया जाय? इसका उत्तर यही है- ‘जन जागृति में’-विचार क्रान्ति का अलख जगाने में। बौद्धिक कुण्ठा ही राष्ट्रीय अवसाद का एकमात्र कारण है। भावनाएं जग पड़े तो सब ओर जागृति ही जागृति होगी। सर्वत्र प्रकाश ही प्रकाश दृष्टिगोचर होगा। अन्तःकरण न जगे तो बाहरी हलचलें कुछ ही दिन चमक कर बुझ जाती हैं। जो भीतर से प्रकाशवान है वह आँधी तूफान में भी ज्योतिर्मय बना रहता है, इसलिये हमें दीपक से दीपक जलाने की धर्म परम्परा प्रचलित करने के लिये अपने समय दान का सदुपयोग करना चाहिये। अपने मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों, परिचित-अपरिचितों के नामों में से छाँटकर एक लिस्ट ऐसे लोगों की बनानी चाहिये जिनमें विचारशीलता एवं सद्भावना के बीजाँकुर पहले से ही किसी अंश में मौजूद हैं। उन लोगों...
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पहले भूमि तैयार करनी पड़ेगी
युग−निर्माण की दिशा में हमें पहला कार्य एक ही करना होगा कि जन−मानस में स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज के निर्माण की आवश्यकता अनुभव करावें। लोगों को यह बतावें कि इन विभूतियों के बिना मानव जीवन निरर्थक जैसा है, ऐसे अर्धमृत जीवन में साँसों की गिनती पूरी कर लेने में क्या सार है? यदि जीना है तो इंसान की तरह क्यों न जियें, यदि मनुष्य का सुरदुर्लभ शरीर पाया है तो इसे सार्थक क्यों न करें? बीमार शरीर, मलीन मन, पतित समाज में रहना नरक के समान दुखदायी ही रहता है। सो जब उसे बदल सकना संभव है तो उस संभावना को सार्थक क्यों न किया जाय? इस प्रकार के प्रश्न जब जन−मानस के अन्तःकरण में उठने लगेंगे तो वह कुछ सोचने और कुछ करने के लिए भी तत्पर होगा। ऐसा जन−जागरण ही हमारा आज का प्रधान...
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नवयुग का आगमन अतिनिकट है।
जो संकट इन दिनों सामने खड़े दृष्टिगोचर हो रहे हैं, विज्ञजनों ने जिन सम्भावनाओं का अनुमान लगाया है, वे काल्पनिक नहीं हैं। विभीषिकाएँ वास्तविक हैं, इतने पर भी विश्वासियों को यह विश्वास करना चाहिए कि समय चक्र को बदला जायेगा और जो संकट सामने खड़े दीखते हैं, उन्हें उलटा जायेगा।
सामान्य स्तर के लोगों की इच्छा शक्ति भी काम करती है। जनमत का भी दबाव पड़ता है। जिन लोगों के हाथ में इन दिनों विश्व की परिस्थितियाँ बिगाड़ने की क्षमता है, उन्हें जागृत लोकमत के सामने झुकना ही पड़ेगा। लोकमत को जागृत करने का अभियान “प्रज्ञा आन्दोलन” द्वारा चल रहा है। यह क्रमशः बढ़ता और सशक्त होता जायेगा। इसका दबाव हर प्रभावशाली क्षेत्र के समर्थ व्यक्तियों पर पड़ेगा और उनका मन बदलेगा कि अपने कौशल, च...
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प्रज्ञा परिजनों का स्तर
प्रज्ञा परिजनों का स्तर जन साधारण की दृष्टि से कहीं ऊंचा है। दूसरे लोग पेट-प्रजनन के अतिरिक्त जहाँ दूसरी बात सोचते ही नहीं वहाँ प्रज्ञा पुत्रों ने लोभ, मोह और अहंकार के त्रिविध भव-बंधन तोड़े नहीं तो ढीले अवश्य किये हैं। निजी आवश्यक कार्यों के साथ-साथ उन्होंने जन-जागृति के, युग परिवर्तन के कार्य को भी महत्व दिया है। यह साधारण बात नहीं, असाधारण बात है। अन्यान्य संस्था संगठनों की तुलना में प्रज्ञा परिवार का स्तर ऊंचा नहीं तो नीचा भी नहीं कहा जा सकता। इतने पर भी हमें शिकायत रही कि साधु, ब्राह्मण परम्परा का निर्वाह करने वाले देव मानव स्तर के लोगों की संख्या विस्तार, आत्मबल, त्याग, बलिदान और पवित्रता, प्रखरता एक दृष्टि से उतनी ऊंची नहीं उठ पायी जितनी कि हम उनसे चाहते थे। जो युग परिवर्तन के हनुम...
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विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग १)
संसार में अवाँछनीयता कम और उत्कृष्टता अधिक है। तभी तो यह संसार अब तक जीवित है। यदि पाप अधिक और पुण्य स्वल्प रहा होता तो अब तक यह दुनिया श्मशान बन गई होती। यहाँ सत्य, शिव और सुन्दर इन तीनों में से एक का भी अस्तित्व जीवित न रहा होता। आग दुनिया में बहुत है, पर पानी से अधिक नहीं। इतने पर भी हम देखते हैं कि अनाचार घटता नहीं, बढ़ता ही जाता है। सरकारी प्रयत्न रोकथाम के लिए काफी बढ़ाये गये हैं, पर उनकी पकड़ में दुष्टता की पूँछ भर आती है। सारा कलेवर जो जहाँ का तहाँ जमा बैठा रहता और अपना विस्तार करने में संलग्न रहता है। आश्चर्य इस बात का है कि सज्जनता का स्पष्ट बहुमत होते हुए भी दुष्टता क्यों पनपती और फलती-फूलती चली जाती है? रोकथाम की सर्वजनीन आकाँक्षा क्यों फलवती नहीं होती? असुरता की शक्ति क्यों अ...
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विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग २)
दिन-दहाड़े सरे-बाजार गुण्डागर्दी होती रहती है और यह भले बनने वाले लोग चुपचाप उस तमाशे को देखते रहते हैं। गुण्डों की हिम्मत बढ़ती है और वे आये दिन दूने उत्साह से वैसी ही हरकतें करते हैं। यदि देखने वाली भीड़ ने जोर से एक साथ शोर ही मचा दिया होता तो सरे आम गुण्डागर्दी करने वालों के पैर उखड़ सकते थे और दुर्घटना बच सकती थी। अनाचार की घटनाएँ घटती हैं, पुलिस छानबीन करती है, पर प्रत्यक्षदर्शी भले मानुसों में से गवाही देने एक भी नहीं जाता। झंझट से बचने में ही जिन्हें खैर दीखती है वे अनाचार का सामना करने में जो थोड़ी बहुत कठिनाई उठानी पड़ती है, उसका झंझट क्यों मोल लें? इस भीरुता पर प्रत्यक्ष रूप से गुण्डागर्दी का लाँछन तो नहीं लगाया जा सकता, पर प्रत्यक्ष रूप से अनीति को खाद-पानी देने की जिम्मेदारी ...
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विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग ३)
भगवान बुद्ध ने तत्कालीन अनाचारों के- मूढ़ मान्यताओं के विरुद्ध प्रचण्ड क्रान्ति खड़ी की थी, इसी संघर्ष से जूझने के लिए उन्होंने जीवधारी भिक्षुओं और श्रवणों की सेना खड़ी की थी। स्वार्थ के लिए तो सभी संघर्ष करते हैं, किन्तु परमार्थ के लिए लड़ना मात्र आदर्शवादी लोगों के लिए ही सम्भव होता है इसलिए बुद्ध शिक्षा में साधना और संघर्ष का समन्वय है। इसी आधार पर उनने अपने साधनों से सारे विश्व में नव-युग का शंख बजाया और नये जागरण का वातावरण बनाया। उनके न रहने पर अनुयायियों ने अहिंसा की पूजा-पाठ की सस्ती लकीर पीटते रहना तो जारी रखा किन्तु अनीति से लड़ने की कष्टसाध्य प्रक्रिया की ओर से मुँह मोड़ लिया। फलतः बौद्ध धर्म भारत-मध्य एशिया से चढ़ दौड़ने वाले डाकुओं द्वारा देखते-देखते पद-दलित कर दिया गया। शौर्...