विचार करें
हमारे व्यक्तित्व के श्रेष्ठतर विकास की जरूरत समझने के लिए नीचे लिखे बिन्दुओं पर विचार करना होगा
1. हम पत्रिकाओं के ग्राहक बना लेते हैं, किन्तु उन्हें क्रमशः पाठक, साधक और सैनिक के रूप में विकसित करने की जिम्मेदारी चाहकर भी उठा नहीं पा रहे हैं।
2. हम बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को दीक्षा दिलवा देते हैं, किन्तु उन्हें क्रमशः उपासना, साधना और आराधना में कुशल बनाने, समयदान और अंशदान में निष्ठापूर्वक आगे बढ़ाने के प्रयास ठीक से नहीं कर पा रहे हैं।
3. हम युग साहित्य के मेले लगाते हैं, उसका विक्रय बढ़ाते हैं, लेकिन युगविचार से युगरोगों के उपचार की प्रेरणा जन- जन तक नहीं पहुँचा पा रहे हैं।
4. हम साधना से सिद्धि की बातें दुहराते हैं, किन्तु स्वयं को उस साधना में आगे नहीं बढ़ाते जिससे हम सच्चे अग्रदूत सिद्ध हो सकें।
5. हम अपने आयोजनों और प्रबुद्ध वर्ग की गोष्ठियों में विभिन्न वर्गों और संगठनों के प्रतिभावानों को शामिल तो कर लेते हैं, किन्तु उन्हें युग निर्माण के सूत्रों को अपने प्रभाव क्षेत्र में लागू करने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रहे हैं।
6. हम सभी सम्प्रदायों और संगठनों को युग सृजन में भागीदार बनाना चाहते हैं, लेकिन उन्हीं के विश्वास के अनुसार उनमें प्रेरणा भरने योग्य स्वयं को ढाल नहीं पा रहे हैं।
उक्त सब तथ्यों पर विचार करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अगले कार्यों को सम्पन्न करने के लिए अपने व्यक्तित्वों को ऊँचा बनाने में हम कहीं पिछड़ रहे हैं।
सम्पादकीय प्रज्ञा आभियान 16 जनवरी 2014 Page 2
Recent Post
विचारणीय
मुफ्त में अनुदान-वरदान पाने की अपेक्षा, किसी को भी, किसी से भी नहीं करनी चाहिए। देवताओं से वरदान और धन-कुबेरों से अनुदान प्राप्त करने के लिए अपनी पात्रता का परिचय देना पड़ता है। मुफ्तखोरों के लिए तो...
महान कैसे बनें?
मित्रो ! तुम्हें ऐसे व्यक्तियों का प्रेमपात्र बनने का सदैव प्रयत्न करते रहना चाहिए जो कष्ट पडऩे पर तुम्हारी सहायता कर सकते हैं और बुराइयों से बचाने की एवं निराशा में आशा का संचार करने की क्षमता रख्...
संघर्षों की विजयादशमी (Kavita)
संघर्षों की विजयादशमी चढ़ आई है,
तज कर तन्द्रा, आ पंचशील के राम, उठो!
तुम भटक चुके हो नाथ, बहुत दण्डक वन में,
तुम बिलख चुके हो हृदय-विदारक क्रन्दन में,
नीरव आँसू से ...
साहस और संकल्प का महापर्व : विजयादशमी
शहरों, कस्बों और गाँवों में रावण के पुतलों को जलाने की तैयारियाँ देखकर दशहरा के आगमन का अनुमान होने लगा है। 12 अक्टूबर 2024 को विजयादशमी के मनाए जाने की खबर सभी को लग गयी है। इस दिन बाँसों की खपच्च...
शक्ति और मर्यादा की समन्वित सिद्धि
रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथों में शक्ति पूजा का उल्लेख नहीं आता। देवी भागवत और दूसरे पुराणग्रंथों में ही कहा गया है कि लंका विजय से पहले नवरात्र अनुष्ठान किया था और शक्ति ने स्वयं प्रकट होकर राम को व...
शक्ति -उपासना से ही राष्ट्र समर्थ−सशक्त हो सकेगा
देवभूमि भारत में आदिशक्ति के प्रति आस्था अत्यंत प्राचीन है। भारत में पूर्वपाषाणकाल और नवपाषाणकाल में शक्ति −उपासना के संकेत मिलते हैं। इतिहासविदों के अनुसार नवपाषाणकाल में कृषि−क्राँति ...
आनन्द की खोज
मित्रो! आनन्द की खोज में भटकता हुआ इन्सान, दरवाजे-दरवाजे पर टकराता फिरता है। बहुत-सा रुपया जमा करें, उत्तम स्वास्थ्य रहे, सुस्वाद भोजन करें, सुन्दर वस्त्र पहनें, बढिय़ा मकान और सवारियाँ हों, नौकर-च...
श्रेष्ठ जीवन
मित्रो ! भगवान के दो हाथ हैं। एक हाथ से वह पीडि़त होकर के माँगता है, पतित होकर के माँगता है। आप पतितों की सहायता कीजिए, पीडि़तों की सहायता कीजिए। पीडि़तों की और पतितों की आप सहायता न करें तब?...
राष्ट निर्माण
मजबूत राष्ट निर्माण के लिए सर्वप्रथम चरित्रवान नागरिकों को गढऩे की आवश्यकता है। चरित्रवान नागरिक ही किसी राष्ट की बुनियाद से लेकर गुंबद तक के निर्माण में सहायक होते हैं। इसके लिए उनके अंदर पव...
तीसरा चरण संघर्षात्मक
मित्रो ! तीसरा चरण जो अपना रह जाता है, वह संघर्ष का है। संघर्ष के बिना अवांछनीय तत्त्वों को हटाया नहीं जा सकता है। कुछ निहित स्वार्थ ऐसे होते हैं, उनकी दाढ़ में ऐसा लग जाता है अथवा किसी अपनी बेवकूफी...