गुरुवर की वाणी
गायत्री परिवार का हर व्यक्ति बड़ा है। छोटेपन का उसने मुखौटा भर पहन रखा है। उतारने भर की देर है कि उसका असली चेहरा दृष्टिगोचर होगा। हमें हमारे मार्गदर्शक ने एक पल में क्षुद्रता का लबादा झटककर महानता का परिधान पहना दिया था। इस काया कल्प में मात्र इतना ही हुआ था कि लोभ, मोह की कीचड़ से उबरना पड़ा। जिस-तिस के परामर्शों—आग्रहों की उपेक्षा करनी पड़ी और आत्मा-परमात्मा के संयुक्त निर्णय को शिरोधार्य करने का साहस जुटाना पड़ा। इसके बाद एकाकी नहीं रहना पड़ा।
(हमारी वसीयत और विरासत-174)
इस समय जो भगवान के भक्त हैं, जिन्हें इस संसार के प्रति दर्द है, उनके नाम हमारा यही सन्देश है कि वे अपने व्यक्तिगत लाभ के कार्यों में कटौती करें एवं भगवान् का काम करने के लिए आगे आएं। अगर इस समय भी आप अपना मतलब सिद्ध करते रहे और मालदार बनते रहे, तो पीछे आपको बहुत पछताना पड़ेगा। अब आपकी इज्जत- आपकी इज्जत नहीं, हमारी इज्जत है। हमारी और मिशन की इज्जत की रक्षा करना अब आपका काम है।
(गुरु पूर्णिमा संदेश-1980)
भगवान् कृष्ण ने महाभारत के उपरान्त राजसूय यज्ञ में आग्रहपूर्वक आगन्तुकों के पैर धोने का काम अपने जिम्मे लिया था और सज्जनोचित विनम्रता का परिचय दिया था। गांधीजी कांग्रेस के पदाधिकारी नहीं रहे, किन्तु फिर भी सबसे अधिक सेवा करने और मान पाने में समर्थ हुए। चाणक्य झोपड़ी में रहते थे, ताकि राजमद उनके ऊपर न चढ़े और किसी साथी के मन में प्रधानमन्त्री का ठाट-बाट देखकर वैसी ही ललक न उठे। राजा जनक हल जोतते थे। बादशाह नसीरुद्दीन टोपी सीकर गुजारा करते थे। यह वे उदाहरण हैं जिनसे साथियों को अधिक विनम्र और संयमी बनने की प्रेरणा मिलती है।
(प्रज्ञा अभियान का दर्शन स्वरूप-32)
हनुमान ने कितनी उपासना की थी, नल-नील, जामवन्त, अर्जुन ने कितनी पूजा एवं तीर्थयात्रा की थी? यह हम नहीं कह सकते, परन्तु उन्होंने भगवान् का काम किया था। ये लोग घाटे में नहीं रहे। इस समय महाकाल कुछ गलाई-ढलाई करने जा रहे हैं। अब नये व्यक्ति, नयी परम्पराएं, नये चिन्तन उभरकर आयेंगे। अगले दिनों यह सोचकर अचम्भा करेंगे कितने कम समय में इतना परिवर्तन कैसे हो गया। अगर हम समय को पहचान पाये तो आप सच्चे अर्थों में भाग्यवान बन सकते हैं।
(गुरु पूर्णिमा संदेश-1980)
Recent Post
विचारणीय
मुफ्त में अनुदान-वरदान पाने की अपेक्षा, किसी को भी, किसी से भी नहीं करनी चाहिए। देवताओं से वरदान और धन-कुबेरों से अनुदान प्राप्त करने के लिए अपनी पात्रता का परिचय देना पड़ता है। मुफ्तखोरों के लिए तो...
महान कैसे बनें?
मित्रो ! तुम्हें ऐसे व्यक्तियों का प्रेमपात्र बनने का सदैव प्रयत्न करते रहना चाहिए जो कष्ट पडऩे पर तुम्हारी सहायता कर सकते हैं और बुराइयों से बचाने की एवं निराशा में आशा का संचार करने की क्षमता रख्...
संघर्षों की विजयादशमी (Kavita)
संघर्षों की विजयादशमी चढ़ आई है,
तज कर तन्द्रा, आ पंचशील के राम, उठो!
तुम भटक चुके हो नाथ, बहुत दण्डक वन में,
तुम बिलख चुके हो हृदय-विदारक क्रन्दन में,
नीरव आँसू से ...
साहस और संकल्प का महापर्व : विजयादशमी
शहरों, कस्बों और गाँवों में रावण के पुतलों को जलाने की तैयारियाँ देखकर दशहरा के आगमन का अनुमान होने लगा है। 12 अक्टूबर 2024 को विजयादशमी के मनाए जाने की खबर सभी को लग गयी है। इस दिन बाँसों की खपच्च...
शक्ति और मर्यादा की समन्वित सिद्धि
रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथों में शक्ति पूजा का उल्लेख नहीं आता। देवी भागवत और दूसरे पुराणग्रंथों में ही कहा गया है कि लंका विजय से पहले नवरात्र अनुष्ठान किया था और शक्ति ने स्वयं प्रकट होकर राम को व...
शक्ति -उपासना से ही राष्ट्र समर्थ−सशक्त हो सकेगा
देवभूमि भारत में आदिशक्ति के प्रति आस्था अत्यंत प्राचीन है। भारत में पूर्वपाषाणकाल और नवपाषाणकाल में शक्ति −उपासना के संकेत मिलते हैं। इतिहासविदों के अनुसार नवपाषाणकाल में कृषि−क्राँति ...
आनन्द की खोज
मित्रो! आनन्द की खोज में भटकता हुआ इन्सान, दरवाजे-दरवाजे पर टकराता फिरता है। बहुत-सा रुपया जमा करें, उत्तम स्वास्थ्य रहे, सुस्वाद भोजन करें, सुन्दर वस्त्र पहनें, बढिय़ा मकान और सवारियाँ हों, नौकर-च...
श्रेष्ठ जीवन
मित्रो ! भगवान के दो हाथ हैं। एक हाथ से वह पीडि़त होकर के माँगता है, पतित होकर के माँगता है। आप पतितों की सहायता कीजिए, पीडि़तों की सहायता कीजिए। पीडि़तों की और पतितों की आप सहायता न करें तब?...
राष्ट निर्माण
मजबूत राष्ट निर्माण के लिए सर्वप्रथम चरित्रवान नागरिकों को गढऩे की आवश्यकता है। चरित्रवान नागरिक ही किसी राष्ट की बुनियाद से लेकर गुंबद तक के निर्माण में सहायक होते हैं। इसके लिए उनके अंदर पव...
तीसरा चरण संघर्षात्मक
मित्रो ! तीसरा चरण जो अपना रह जाता है, वह संघर्ष का है। संघर्ष के बिना अवांछनीय तत्त्वों को हटाया नहीं जा सकता है। कुछ निहित स्वार्थ ऐसे होते हैं, उनकी दाढ़ में ऐसा लग जाता है अथवा किसी अपनी बेवकूफी...