काया से नहीं, प्राणों से प्यार करें:-
जो हमें प्यार करता हो, उसे हमारे मिशन से भी प्यार करना चाहिए। जो हमारे मिशन की उपेक्षा, तिरस्कार करता है लगता है वह हमें ही उपेक्षित-तिरस्कृत कर रहा है। व्यक्तिगत रूप से कोई हमारी कितनी ही उपेक्षा करे, पर यदि हमारे मिशन के प्रति श्रद्धावान् है, उसके लिए कुछ करता, सोचता है तो लगता है मानो हमारे ऊपर अमृत बिखेर रहा है और चंदन लेप रहा है। किंतु यदि केवल हमारे व्यक्तित्त्व के प्रति ही श्रद्धा है, शरीर से ही मोह है, उसी की प्रशस्ति पूजा की जाती है और मिशन की बात उठाकर ताक पर रख दी जाती है तो लगता है हमारे प्राण का तिरस्कार करते हुए केवल शरीर पर पंखा ढुलाया जा रहा हो।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, अगस्त १९६९, पृष्ठ ९, १०
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