दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन (अन्तिम भाग)
इस समस्या का हल करने के लिए यह आवश्यक प्रतीत हुआ है कि विवाहोन्माद प्रतिरोध आन्दोलन के साथ-साथ एक छोटा सहायक आन्दोलन और भी चालू रखा जाय। जिससे जो लोग आदर्श विवाहों की पद्धति अपनाने के लिए तैयार न हो सकें उन्हें उस सहायक आन्दोलन के किसी अंश के साथ सहमत करने का प्रयत्न किया जाय। किसी न किसी बात पर यदि व्यक्ति को सहमत कर लिया जाय तो विदाई के समय मधुरता बनी रहती है और आगे के प्रेम सम्बन्धों में अन्तर नहीं आता। आज की थोड़ी सहमति आगे चलकर बड़ी सहमतियों के रूप में परिणत हो सकती है। अतएव एक सरल आन्दोलन भी साथ-साथ चलते रहने की आवश्यकता अनुभव की गई है।
इस सहायक आन्दोलन का नाम है—"दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन" यों इसकी उपयोगिता, आवश्यकता एवं महत्ता भी किसी प्रकार कम नहीं। समाज निर्माण एवं सुधार के लिए दूसरा सहायक आन्दोलन के अंतर्गत आने वाले काम भी कम महत्व के नहीं हैं। चरित्र निर्माण, व्यक्ति निर्माण एवं समाज निर्माण में इनका भी भारी योगदान रहेगा। पर सहायक आन्दोलन उसे इसलिए कहा गया है कि उसमें बताये हुये दस कार्यों में से किसी न किसी के लिये कोई भी व्यक्ति आसानी से सहमत किया जा सकता है और बिना अधिक कठिनाई के आन्दोलन में सम्मिलित होने वाला, कोई एक प्रतिज्ञा लेने वाला बन सकता है।
दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन के अंतर्गत दस कार्यक्रम रखे गये हैं—
माँसाहार— माँस, मछली, अण्डे एवं काटे हुए पशुओं के चमड़े का उपयोग।
नशेबाजी— तम्बाकू, भाँग, गाँजा, अफीम, शराब आदि नशों का सेवन।
पशुबलि— देवी देवताओं के नाम पर निरीह पशु-पक्षियों की हत्या।
मृत्यु भोज— मृतक के नाम पर धूमधाम भरी दावतों का अपव्यय।
ऊँच-नीच— गुणों की अपेक्षा पद, वंश, जाति के कारण किसी को ऊँचा या नीच मानना।
नारी तिरस्कार— पुरुष की तुलना में नारी का गौरव, महत्व, सम्मान या अधिकार कम मानना।
बेईमानी— चोरी, छल, जुआ, समर्थ होते हुए भी अपने लिये भिक्षा याचना अनीति एवं बिना परिश्रम की कमाई।
अपव्यय— फैशन, जेवर, आडम्बर, विलासिता एवं व्यसनों की फिजूलखर्ची।
अन्ध विश्वास— भूत-पलीत, टोना, टोटके शकुन-अपशकुन जैसी मूढ़ मान्यतायें।
असभ्यता— गाली-गलौज, गन्दगी, आलस-अशिष्टता, कृतघ्नता, आवेश जैसे दुर्गुण।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जुलाई 1965 पृष्ठ 47
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