कहिए कम-करिये ज्यादा (अन्तिम भाग)
इसे हम बराबर देखते हैं कि केवल बातें बनाने वाला व्यक्ति जनता की नजरों से गिर जाता है। पहले तो उसकी बात का कुछ असर ही नहीं होता। कदाचित उसकी ललित एवं आकर्षक कथन शैली से कोई प्रभावित भी हो जाय तो बाद में अनुभव होने पर वह सब प्रभाव जाता रहता है। वाकशूर के पीछे यदि कर्मवीरता का बल नहीं तो वह पंगु हैं। जो बात कहनी हो उसको पहिले तोलिए फिर बोलिए। शब्दों को बाण की उपमा दी गई। एक बार बाण के छूट जाने पर उसे रोकना बस की बात नहीं। लोहे का बाण तो एक ही जन्म और शरीर को नष्ट करता है पर शब्द बाण तो भविष्य की युग युगीन परम्परा को भी नष्ट कर देता है।
यह सब ठीक होते हुए भी प्रश्न उठता है कि विश्व में वाकशूर ही क्यों अधिक दिखाई देते हैं। उत्तर स्पष्ट है-बोलना सरल है। इसमें किसी तरह का कष्ट नहीं होता। कार्य करने में कष्ट होता है अपनी रुचि वृत्ति-स्वभाव बुरी आदतों पर अंकुश लगाना पड़ता है। और यह बड़ा कठिन कार्य है इन्द्रियाँ स्वच्छंद हो रही हैं, विषय वासनाओं की ओर लपलपाकर बढ़ना चाहती हैं। इनका दमन किये बिना इच्छित और उपयोगी कार्य नहीं किया जा सकता। कष्ट एवं कठिनता होने पर भी जो हमारे व विश्व के लिये आवश्यक है वह तो करना ही चाहिये। अतः सच्चे कर्म योग का अभ्यास करने की आदत डालना आवश्यक है। अभ्यास ही सिद्धि का मूलमंत्र है।
कहना हम सब को बहुत आता है। पर करना नहीं आता या चाहते नहीं। केवल दूसरों की आलोचना एवं अपनी बातें बघारना ही हमारा मनसूबा बन गया है। हमारे पांडित्य में परोपदेश और विद्या ‘विवादाय’ चरितार्थ हो रहे हैं। इन्हें हमें आत्मसुधार और विश्व उद्धार में लगाना है। अन्यथा हमारा अध्ययन ‘आप बाबाजी बैंगन खावे औरों को प्रबोध सुनावें’ सा ही रहेगा।
कई कहते हैं- “हमारी कोई सुनता ही नहीं, कहते-कहते थक गये पर सुनने वाले कोई सुनते नहीं अर्थात् उन पर कुछ असर ही नहीं होता”। मेरी राय में इसमें सुनने वालों से अधिक दोष कहने वालों का है। कहने वाले करना नहीं जानते। वे अपनी ओर देखें। आत्मनिरीक्षण कार्य की शून्यता की साक्षी दे देगा। वचन की सफलता का सारा दारोमदार कर्मशीलता में है। आप चाहे बोलें नहीं, थोड़ा ही बोलें पर कार्य में जुट जाइये। आप थोड़े ही दिनों में देखेंगे कि लोग बिना कहे आपकी ओर खिंचे जा रहे हैं। अतः कहिये कम, करिये अधिक। क्योंकि बोलने का प्रभाव तो क्षणिक होगा पर कार्य का स्थायी होता है। जैन योगी चिदानन्द जी ने क्या ही सुन्दर कहा है-
कथनी कथै कोई। रहणी अति दुर्लभ होई॥
अन्य कवियों ने भी कहा है-
कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय।
कथनी तजि करनी करै, विष से अमृत होय।1।
कथनी बदनी छांडी के, करनी सों चितलाय।
नरहिं नीर पिये बिना, करनी प्यास न जाय।2।
करनी बिन कथनी कथै, अज्ञानी दिन रात।
कूकर ज्यों भूँसत, फिरै, सुनी सुनाई बात।3।
अखण्ड ज्योति-जून 1950 पृष्ठ 16
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