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Magazine - Year 1941 - Version 2

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योगियों की कहानी

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एक अंग्रेज की जबानी

(लेखक-मि. जी. के. मफी)

सन् 1928 ई. में जब मैं युक्त प्रान्त में था, मुझे गंगा जी के उद्गम स्थान हरिद्वार जाने का अवसर मिला। उस समय प्रति दस वर्ष में लगने वाला कुम्भ मेला वहाँ लगा हुआ था। सारा शहर भक्त हिन्दुओं से भर गया था। मैं घाट के पास विचित्र प्रकार के दृश्यों को देख रहा था। मैंने वहाँ सैकड़ों साधुओं को देखा। घाट के ऊपर बने हुए मन्दिर के पास जाने पर मैंने एक वृद्ध योगी को देखा। उसकी लम्बी जटायें सिर पर पगड़ी के नीचे बंधी हुई थी। वह भक्ति-पूर्वक माला जप रहा था। उसके चारों तरफ यात्री भीड़ लगाये हुए थे। सब एक दूसरे को धक्का देकर निकल जाना चाहते थे, जिससे वे सूर्यास्त के पहिले स्नान कर लें।

ज्यों ही बूढ़े ने मुझे देखा उसे मैंने प्रणाम किया और उसके बगल में पड़ी हुई बाँस की चटाई पर कुछ पैसे फेंक दिये। उसने मुझे आशीर्वाद दिया और गौर से मेरी तरफ देखने लगा। फिर उसने कहना आरम्भ किया, आपने गंगाजी के भक्त को दान दिया हैं, गंगा जी आपका भला करेंगी।’

मैंने मुस्कराकर कहा-मैं आशा करता हूँ कि वे मुझे सौभाग्य देंगी।

-कोई बात नहीं है। आप शीघ्र ही विलायत जायेंगे और वहाँ से कभी वापिस नहीं आयेंगे।

-आप कैसे जानते हैं? चकित होकर मैंने पूछा।

-महोदय। यह तो आप के चेहरे पर लिखा हुआ है उसने कहा। इसके बाद हम लोग बात-चीत में लग गये। मैंने पूछा कि क्या वह मन और आत्मा के द्वारा-बात चीत करने में विश्वास करता है? क्या वह इस उपाय से समाचार भेज सकता है? उत्तर मिला विश्वासी के लिये सब कुछ सम्भव है।

-इसका अर्थ तो यही है कि आप भी ऐसा कर सकते हैं। क्या आप अपनी इस अलौकिक शक्ति का परिचय मुझे देंगे?’मैंने कहा।

‘-जी हाँ किसी भी समय।’उसने कहा।

‘अच्छा’ मैंने कहा-दूसरे हफ्ते जब मैं कलकत्ते जाऊंगा तब आप मुझे अपना समाचार दीजियेगा।

‘-ऐसा ही होगा। उसने विश्वास के साथ कहा।

थोड़ी देर पहिले मैं अपने एक मित्र से वहीं मिला था जो वहाँ पुलिस की ड्यूटी पर आये थे। मैंने कहा कि मैं अपने एक योरोपियन मित्र को गवाह बनाकर चला जाऊँगा। एक घंटे तलाश करने के बाद मेरे मित्र भिस्काट मिले। मि.स्काट असिस्टेण्ट सुपरिन्टेन्डेण्ट पुलिस थे। वे एक सख्त दिमाग के ‘स्काच’ थे। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं आत्मा के द्वारा बात करने के प्रयोग में उनकी सहायता चाहता हूँ। तो वे मेरे ऊपर बहुत हँसे।

उन्होंने कहा-”मूर्ख मत बनो। अगर तुम मेरी राय मानो, तो तुम इन लोगों से अलग ही रहो। वे वाहियात किस्म के भिखमंगे होते हैं। उनसे किसी प्रकार का सम्बन्ध रखना तुम्हारे लिये अच्छा नहीं है”

पर मैं अपने अनुरोध पर दृढ़ रहा। अन्त में बहुत कहने सुनने पर वे योगी के पास आने के लिये तैयार हो गये। पुलिस अफसर को देखकर उस योगी को आश्चर्य हुआ। मैंने उसे समझाया कि कोई घबराने की बात नहीं है। बाद में हमने यह इन्तजाम किया कि एक हफ्ते बाद एक खास दिन को दस बजे रात वह हमारे पास समाचार भेजे। उस समाचार को भि स्काट को भी उसी समय दे दे। मैं उस समय कलकत्ते में रहूँगा, जो कि वहाँ से 600 मील दूर है। स्काट से विदा होने के पहिले मैंने उसको खूब समझा दिया कि वे भेजने वाले के समाचार अवश्य लिख लें।

मैं अपने देहरादून के कैम्प से वापस आ गया और पाँच रोज बाद कलकत्ते चला गया। नियत दिन को ठीक 9/45 मिनट पर मैं “विलिटी” होटल के अपने कमरे में अकेला बैठकर समाचार का इन्तजार करने लगा। मुझे बिल्कुल नहीं मालूम था कि किस प्रकार का समाचार आने वाला है। यह तो बिल्कुल स्काट के ऊपर छोड़ दिया गया था।

ठीक दस बजे से कुछ पहिले, मुझे न जाने कैसा लगने लगा। इसलिये मैंने सिगार जलाया और अपने मन को शान्त करने लगा। मैं चाहता था कि जहाँ तक सम्भव हो मैं योगी को अपना प्रयोग करने की सुविधा दूँ। कुछ मिनटों बाद मुझे साफ-साफ यह मालूम होने लगा कि मुझे नींद आ रही है। इसके बाद मेरे दिमाग के आगे बूढ़े योगी की तसवीर आई। उसके जटा-जूट, उसकी लाल तेज आँखें सब मैं साफ-साफ देख रहा था। वह मेरी तरफ घूर कर एक टक ताक रहा था। मैंने घड़ी की तरफ देखा - 9/58 मिनट हो चुके थे।

एकाएक मुझे इस तरह का अनुभव हुआ कि मुझे स्काट के पास एक पत्र लिखना ही चाहिये। उस समय मुझे यह बिल्कुल नहीं मालूम था कि मैं उन्हें क्या लिखूँ। फिर भी मेज पर जाकर मैंने अपना कलम लिया और यह पत्र लिखाः-

“मेरे प्यारे स्काट। मैं इन पंक्तियों में यही लिखना चाहता हूँ कि हरिद्वार वाले फकीर को पाँच रुपये दे देना। मैं यहाँ अगले हफ्ते तक रहूँगा। इसलिये पहिले निश्चय के अनुसार तुम्हारे साथ भोजन नहीं कर सकूँगा। ऐसा क्यों हुआ यह मिलने पर तुमको बताऊँगा।” पत्र को मैंने ठीक समय पर डाल दिया।

कुछ दिन बाद स्काट की यह चिठ्ठी मेरे पास आईः-”तुम्हारे पत्र के लिये धन्यवाद। जो समाचार मैंने योगी को दिया था वह यही था कि तुम मेरे द्वारा योगी की पाँच रुपये दे दो। सचमुच योगी ने ठीक वही समाचार भेजा था। लौटती डाक से पाँच रुपया भेज देना और कृपा करके इन योगियों के चक्कर में कभी न पड़ना।”

माना कि कुछ फकीर धूर्त होते हैं जो अलौकिक शक्ति रखते हैं और भूत और भविष्य की बातें साफ-साफ और सही-सही बतला देते हैं। मैं ईमानदारी के साथ कह सकता हूँ कि स्वयं मेरे मामले में एक फकीर की बात बिल्कुल सत्य उतरी।

शुरू के दिनों में जब मैं बर्मा में नौकर था एक बूढ़े फकीर ने कहा था कि मेरे पिता जी शीघ्र ही मर जाएंगे। मैं भारत वापस आऊँगा और चौदह साल नौकरी करूंगा। मुझे बीमारी से मजबूर होकर नौकरी छोड़नी पड़ेगी और मैं पेन्शन लेकर विलायत चला जाऊँगा। मैं मुस्कराया, फकीर को दक्षिणा देकर विदा किया। उसके विषय में मैं बाद में बिल्कुल भूल गया।

एक महीने बाद मेरे पास मेरे पिता जी का देहावसान का तार आया, मैंने अर्जी दी और तीन महीने की छुट्टी पर इंगलिस्तान आया। यहाँ बहुत कठिनाई से मैंने अपना तबादला भारतवर्ष में कराया, यहाँ चौदह साल नौकरी की और स्वास्थ्य खराब होने के कारण पेन्शन लेकर विलायत चला आया। इस तरह से जो कुछ फकीर ने कहा था सब कुछ बिल्कुल ठीक हुआ।

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