
कचितस कुँज
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(श्री यदुवंशलाल चन्द्र तिलाठी)
प्रश्न
अरे, यह कैसा है व्यापार?
आज खिली थी कोमल कलिका,
कितनी थी उसमें मादकता,
फाँक रही है धल अभी वह-
कहाँ गई उसकी चंचलता?
जीवन के ही पीछे तो है,
मौत सजाये थार॥ अरे.॥
कभी किसी दिन इस उपवन में,
छाया था बसन्त का राज।
आते नहीं विहंग अब इसमें,
गाती नहीं कोकिला आज॥
हंसने के पीछे क्या रहता,
र ने का अधिकार? ॥ अरे.॥
युग सुधार
(श्री सोमनाथ नागर, मथुरा)
मन में ले चिंता भार वहन करते हैं।
कल्पना सदा उर में अशुद्ध भरते हैं॥
कलिकाल बड़ा है विकट यही डरते हैं।
पापों का चिंतन धार पाप करते हैं॥
कह दिया सहज बस धर्म यही इस युग का।
लो नाम न कलियुग बीच आज सतयुग का॥
मन में आती है आज क्राँति का पथ लूँ।
युग परिवर्तन की ऊंची सत्य शपथ लूँ॥
युग परिवर्तन तो नित्य हुआ करता है।
जब सदाचार का ज्ञान हृदय भरता है॥
सुविचार हृदय में आये-सतयुग आया।
प्रभु आदेशों से पूर्ण धर्म पथ पाया॥
बस रोको मन का यंत्र न आगे बढ़ना।
कुविचारों को ला पुनः न कलि में पड़ना॥
हो विश्व सुखी यह परम कामना मन की।
स्वीकार करो यह विनय नाथ निज जन की॥