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Magazine - Year 1943 - Version 2

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श्रावण बंदी अमावस्या

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अनेक शास्त्रीय प्रमाणों से यह प्रगट है कि संवत् 1000 एक प्रचण्ड क्रान्तिकारी वर्ष है। महाभारत के वन पर्व अध्याय 190 श्लोक 90 तथा श्रीमद् भागवत 12-2-24 के अनुसार- ‘जिस समय चन्द्रमा सूर्य और बृहस्पति एक ही समय पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करते हैं, एक राशि में आते हैं उस समय युग परिवर्तन होता है।’ भागवत् श्रीधरी टीका में ऐसा प्रश्न उठाया गया है कि ऐसा योग बीच-बीच में भी आता है। परन्तु यह ठीक नहीं, क्योंकि महाभारत के बाद विगत 4800 वर्षों में एक बार भी ऐसा योग नहीं आया। इतना ही नहीं बौद्ध, सिख, जरदस्त, यहूदी, बहावी, ईसाई, मुसलमान आदि अनेक धर्मों की प्रमाणिक पुस्तकों से तथा योगी अरविन्द घोष म. गाँधी महामना मालवीय रवींद्रनाथ टैगोर स्वामी विवेकानन्द स्वामी रामतीर्थ श्रीमती ऐनी वीसेन्ट ज्योतिषी शीरो रोम्याँ रोला, पोप पायस फादर वालटर वेन ब्लेटस्की रेवेण्डर मलाई जार्ज बाबेरी, दलाई लामा आदि अनेक तत्वदर्शी महानुभावों ने एक स्वर से यह घोषित किया है कि युगान्तर की घड़ी आ पहुँची, परिवर्तन बेला आ गई, भारी उलट पलट होने का ठीक समय उपस्थित हो गया।

महाभारत और भागवत के अनुसार श्रावण बंदी अमावस्या 1 अगस्त 1943 को वह योग उपस्थित हो रहा है। निश्चय ही यह पुनीत घड़ी निश्चय में असाधारण परिवर्तन करने वाली है। यह समझना गलती होगी कि इस दिन से सब कुछ बदल जायेगा। युग परिवर्तन जैसे महान् कार्यों की पूर्ति में कुछ संध्याकाल तो होना ही चाहिए। इन दिनों करीब 8 बजे सूर्य अस्त हो जाता है तो भी आधे घंटे तक ऐसा समय बना रहता है जिसे रात्रि नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार सूर्योदय के आरंभ में कुछ समय ऐसा होता है कि जिसे रात्रि कह कर नहीं पुकारा जा सकता। जब 12 घंटे के दिन के आदि अन्त में इतना संध्या काल छूटता है तो हजारों वर्ष तक रहने वाले युग का भी कुछ संध्या काल रहना चाहिए। यह समय यदि दस बीस वर्ष हो तो भी अधिक नहीं मानना चाहिए।

बालक उत्पन्न होते समय तथा उसके कुछ पीछे तक माता को प्रसूति कष्ट होता रहता है। युग परिवर्तन के आरंभ काल में बहुत दिनों तक पूर्व परिस्थिति रहेगी। दीपक बुझने को होता है तो एक बार बड़े जोर से चमकता है। मरते वक्त चींटी के पंख उपजते हैं। अब कलियुग मर रहा है, अनीति का अन्त हो रहा है। ऐसी दशा में आप अपने अन्तिम समय में बड़े जोर से चमके उग्र रूप प्रकट करें तो कुछ आश्चर्य की बात नहीं है। संभवतः अगले दिनों बहुत ही अधिक कष्टमय घड़ियाँ संसार के सामने उपस्थित होंगी। युद्ध, रोग अकाल आदि आपत्तियाँ मनुष्य जाति के सामने और भी भयंकर रूप से सामने आवेंगी। किन्तु साथ ही उस विषम वेदना के बीच स्वर्णिम भविष्य की भी आधारशिला स्थापित होगी। वर्तमान महायुद्ध के अभी कई वर्ष चलने की संभावना है, जब तक पूर्ण रूप से अन्याय मलक विचार धारा का अन्त न हो जायेगा तब तक यह संघर्ष चलता रहेगा। बीच-बीच में ठहर-ठहर कर अग्नि मुँह के यह भी हो सकता है, कोई लाभदायक उपाय कठिनाइयों को कुछ साथ के लिए निवारण कर सकते हैं पर उनका स्थूल अन्त उस दिन होगा जब कलियुगी इच्छायें मर जायेंगी और विश्व सत्य प्रेम तथा न्याय को हृदयंगम करेगा।

हमारा निश्चित विश्वास है कि आज मनुष्य जाति को अनीति छोड़कर नीति का आचरण करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। असत्य को सत्य के सामने अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ेगी। सच्चिदानंद प्रभु की यह प्रबल इच्छा रखनी पड़ती है कि अधर्म के अभ्युत्थान का निवारण तथा धर्म की स्थापना अब होनी ही चाहिए। हमारी आँखें स्पष्ट रूप से देख रहीं हैं कि हर मनुष्य विपत्तियों की ठोकरें खा खाकर धर्म को ओर दिलचस्पी लेने लगा है, अधर्म के दुष्परिणामों को देख देखकर मन ही मन उस ओर से घृणा उत्पन्न होने लगी है। पुरानी पीढ़ी के वृद्ध पुरुषों की अपेक्षा नहीं पीढ़ी के व्यक्तियों में अधिक उदारता ईमानदारी त्याग भावना दिखने लगी है। यह काम दिन-दिन बढ़ेगा ही जायेगा जिस वृक्ष का अंकुर इस समय उत्पन्न हो रहा है वह दिन प्रति-दिन बढ़ता जायेगा और एक दिन पूरा वृक्ष होकर अपनी शीतल छाया से सुगंधित पुष्पों में स्वादिष्ट फलों से आनंद की वर्षा करने लगेगा।

शास्त्रीय प्रमाणों तथा अनेक तत्वदर्शी आत्माओं की विश्वसनीय वाणी के अनुसार आज का वर्ष, आज का मास, आज का दिन, युग परिवर्तन का आरंभ काल है। इस पुनीत सात्विक पर्व की महानता का हमें अनुभव करना चाहिए और आज से अपने को अधिक पवित्र, उदार निर्मल, सत्यनिष्ठ बनाने का उत्साह और निष्ठा के साथ प्रयत्न आरंभ करना चाहिए। हम लोगों के लिए यह बहुत ही श्रेयष्कर है कि प्रतिदिन ईश्वर स्मरण के लिए कुछ निश्चित समय निकालें। हजार काम छोड़ कर किसी नियत समय पर ईश्वर प्रार्थना करें। अपने मनोभावों को अन्तःकरण में विराजमान प्रभु के सामने खोल कर रखें और उससे याचना करें कि- ‘हे करुणा निधान हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलिए मृत्यु से अमृत की आरे ले चलिए, असत्य से सत्य की ओर ले चलिए।’ नित्य प्रार्थना करना, नित्य आत्म निरीक्षण करना, नित्य सत्कर्म करने के लिए कोई न कोई अवसर ढूँढ़ निकालना यह तीनों अभ्यास निरंतर जारी रखने से हम लोग अपने को सतयुगी ढांचे में धीरे-धीरे ढालते जायेंगे। हर एक पाठक से हमारा अत्यंत आग्रहपूर्वक अनुरोध है कि आज युग परिवर्तन की बेला में इन तीन पुण्य कार्यों का आरंभ करें और बिना विक्षेप के भविष्य में चालू रखें। जिनकी श्रद्धा हो इस अमावस्या को उपवास रखें और आगे भी प्रतिमास अमावस्या को निराहार या फलाहार सहित उपवास किया करें उस दिन विशेष रूप से आत्म शुद्धि और सत्कर्मों की ओर बढ़ने के कार्यक्रम पर गंभीरता पूर्ण से विचार किया करें एवं सत्य के पुनीत मार्ग पर चलने की प्रभु से प्रार्थना किया करें। अखण्ड ज्योति के पाठक सत्य की आराधना का इस प्रकार आरंभ करें सतयुग को शीघ्र लाने में इतना सहयोग तो अवश्य करें। हम श्रावण की अमावस्या के एक सप्ताह तक निराहार उपवास रखेंगे ताकि भगवान सत्यनारायण की मर्जी के मुताबिक अपने को चलाने के लिए क्षमता प्राप्त कर सकें युग परिवर्तन के पुण्य पर्व में अपने कर्त्तव्य का ईमानदारी और दृढ़ता के साथ पालन करते रहने के लिए जिस आत्मबल की आवश्यकता है उसका बहुत कुछ अंश इस एक सप्ताह के निराहार उपवास द्वारा प्राप्त होगा ऐसा हमारा विश्वास है। ईश्वर चिन्तन, आत्मशुद्धि, तपश्चर्या यही तीन कार्य प्रधान रूप से इन दिनों रहेंगे सो. 1 से 7 अगस्त तक पाठकों के पत्रों का उत्तर न दिया जा सके तो उन्हें चिन्ता न करनी चाहिए इस बीच में पत्र भेजने वालों या मिलने के लिए आने वालों से कष्ट न करने के लिए करबद्ध प्रार्थना करते हैं क्योंकि इससे हमारी साधना में विक्षेप पढ़ेगा।

श्रीराम शर्मा.

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