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Magazine - Year 1943 - Version 2

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(लेखक श्री किंकर)

आपके जीवन में एक नहीं, अनेक बार ऐसे अवसर आये होंगे कि आपके साथ कोई पूरा आदमी हो और उसके विषय में किसी ने पूछा हो कि ‘आप की तारीफ?’ अर्थात् यह कौन है, तो आपने उत्तर दिया हो कि ‘आप अमुक फैक्टरी के मैनेजर हैं, अच्छे लेखक और वक्ता हैं अथवा डॉक्टर हैं, ग्रेजुएट हैं, गुजराती हैं, इत्यादि’ किन्तु किसी की तारीफ में आपने न तो कभी यह कहा होगा न कि किसी दूसरे के मुँह से सुना होगा, कि आप मनुष्य हैं। क्या हुआ यदि आपने किसी से पूछा हो-”आप कौन हैं?” तो किसी ने मजाक में कह ही दिया हो-”आदमी है।” आप ऐसा जवाब सुनकर या तो खीझ गये होंगे या हंस दिया होगा। हमारा ख्याल है कि आपने कभी यकीन नहीं किया होगा कि वे कहने वाले सचमुच आदमी हैं। दुनिया में चाहे आज झूठ का बोल बाला हो पर यदि कहीं कुछ झूठ नहीं कही जाती तो केवल यही कि किसी को आदमी कहने के विषय में आज भी बड़े संयम और सत्य से काम लिया जाता है। एक साहब राजपूत हैं और साथ ही राजस्थानी भी हैं, हिन्दुस्तानी भी हैं, गोरे हैं-प्रोफेसर हैं, तो भी हो सकता है कि वे आदमी न हों। एक बच्चा ठोकर खाकर गिर पड़ता है, पीछे आने वाली लकड़ी उस गिरे हुए बच्चे को खून में लथपथ देखकर भी छोड़कर चली जाती है। इसलिये न कि वह उसका कोई नहीं है।

दिन दहाड़े एक भले आदमी को एक गुण्डा तंग कर रहा है, आप उसे क्यों नहीं बचाते। इसलिये कि आप उन दोनों से परिचित नहीं है या वे दोनों लड़ने वाले दूसरी कौम या मजहब के हैं। आप अपने बच्चे के लिये खिलौने लाये हैं, दूसरा एक बच्चा भी सामने खड़ा है, वह भी आपके बच्चे की तरह खिलौने के लिये लालायित है पर खिलौना आप उसे नहीं देते, इसलिये कि वह बच्चा आपका नहीं है, चाहे वह यह भेद न जानता हो। एक बेचारा रोगी दर्द से पीड़ित आपको कुर्सी के पास बैठा मुँह की तरफ देख रहा है आप उसे देखने से पहले सेठजी के कब्ज की शिकायत सुन रहे हैं। आप कैसे डॉक्टर हैं। उस दिन जो एक थका हुआ आदमी बिना पूछे आपकी सड़क पर पड़ी खाली चारपाई पर बैठ गया था तो आप उससे क्यों लड़ पड़े थे। इसलिये तो कि वह अनजान पंजाबी था यह आपकी रोज की आदतें हैं। आप इन बातों में कभी अपनी कमजोरी या गलती अनुभव नहीं करते, इसलिये कि आप अभ्यस्त हो गये हैं उन हाकिमों की तरह जो क्लर्कों से 10-11 घण्टे काम लेकर भी उन पर इसलिये नाराज हो उठते हैं कि वे काम नहीं करते। तब सोलह आना हमारी समझ में आ गया कि आप सचमुच आदमी न होकर कुछ और ही हैं। आप अपने जन्म की स्थिति को चाहे न जानते हों, परन्तु किसी बच्चे को जन्म के समय अवश्य देखा होगा। आप बताइये, वह उस समय क्या था बेदर्दी डॉक्टर या निर्दय अफसर या बेईमान वकील? क्या उस समय वह मुसलमान था। उसकी सुन्नत हुई थी? क्या वह हिन्दू था? क्या उस समय उसके चोटी या जनेऊ या तिलक था? यदि आप कहें कि वह मनुष्य था तो इसमें सन्देह नहीं किया जायेगा। एक बात अवश्य है, शरीर से वह मनुष्य था हृदय और मस्तिष्क उसे मिलना था, पर वह इससे पहले ही आपके द्वारा हिन्दू, मुसलमान ईसाई बना दिया गया? क्या ही अच्छा होता कि - उसे जब मनुष्य का शरीर मिला था तो मनुष्य का हृदय और मस्तिष्क भी पा जाने देते और वह हिन्दुस्तानी, हिन्दू मुसलमान, राजपूत, ब्राह्मण, पंजाबी, बंगाली बनता, वह आदमी भी रहता और हिन्दू, मुसलमान, ईसाई भी। परन्तु आपकी भयानक भूल से वह आज तक केवल शरीर से मनुष्य अर्थात् आधा ही मनुष्य रहा। ठीक यही दशा आपकी भी है आप कोरे दुकानदार, वकील और दस्तकार हैं, आदमी नहीं। यदि शरीर की बनावट पर ध्यान न दिया जाय तो आप में और पशु में बहुत कम अन्तर रह गया है एक आप जैसा मनुष्य रूप में पशु सिगरेट पीने लगा है, आप भी उसकी देखा−देखी सिगरेट पीना शुरू कर देते हैं, आपको इस चाल में भेड़ की सिफत है। आपके हित के लिये कोई मनुष्य का संगठन करना चाहता है। आप में से एक भागता है, उसको संभालता है तो दूसरा चला जाता है, तीसरा काबू में आया तो चौथा निकल गया। यह आप में उन मेंढ़कों के गुण हैं जो तोलने में नहीं आते। इसी तरह आप में चमगादड़, बगुले, काग और गीदड़ आदि पशुओं के स्वभाव और उनकी आदमें मिलती हैं। इसलिये आपके सम्बंध में कूपमण्डूक, तराजू के मेंढक भेड़चाल आदि उपाधि ठीक ही प्रचलित है।

आज आपका समाज मानव समाज नहीं, हिन्दू समाज मुसलिम समाज है। आपका धर्म मानव धर्म नहीं, सनातनधर्म इस्लाम धर्म है। आपकी जाति मनुष्य नहीं, गूजर कोली, ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, चमार है।

आपकी सभ्यता मानव सभ्यता नहीं, इंग्लिश एटिकेट है। असल बात यह है कि आप मनुष्य ही नहीं हैं, और न जाने क्या-क्या हैं। आप में एक खूबी है, मनुष्य हृदय और मस्तिष्क आवश्यक है और हृदय और मस्तिष्क की खुराक भी, पर आप इन सब के बिना भी जीते हैं, पर केवल जीते ही हैं, वे सर्वोच्च आनन्द, जिनकी जीवित प्राणी आकाँक्षा कर सकता है, आपको प्राप्त नहीं है। निर्दोष, शाँतिमय, सर्वांगपूर्ण जिन्दगी का मजा आपको चखने भर को नहीं मिलता। किसी प्रकार आपका जीवन तो स्थिर है पर उसमें जिन्दगी का नाम नहीं। अब भी यदि आप जीवन के सर्वोच्च आनन्दों को जानना चाहते हैं तो मजबूत बनें, महान बनें, और बनें शरीर तथा हृदय और मस्तिष्क वाले पूर्ण मनुष्य उस जीवन को, जिसमें जिन्दगी का नाम नहीं, और जो सड़ी गली चीजों से पूर्ण है, धता बतायें। जीवन की यह कोई साहित्यिक और शास्त्रीय व्याख्या नहीं सीधी सादी बात है-

हमने माना हो फरिश्ते शेरुजी।

आदमी होना बहुत दुश्वार है॥

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